हिन्दी माध्यम से किस प्रकार प्राप्त करें सफलता

                  हिन्दी माध्यम से किस प्रकार प्राप्त करें सफलता

                                                                                                                                                                       डॉ0 आर. एस. सेंगर

विषयों की प्राथमिकता के आधार पर बनाएं अपन रणनीतियाँ

    प्रस्तुत लेख को आरम्भ करने से पूर्व संक्षेप में कुछ उस समय के बारे में चर्चा करनी जरूरी है, जिस समय हिंदी माध्यम से अच्छे परिणाम प्राप्त होते थे अथवा हिंदी माध्यम के प्रतियोगी भी मुख्य परीक्षा में अच्छे अंकों के साथ उत्तीर्ण होते थे इसके साथ ही वैकल्पिक एवं सामान्य अध्ययन के विषयों में भी अच्छे अंक प्राप्त किया करते थे। इस परिप्रेक्ष्य में यदि हम वर्ष 2000 के आस-पास की तैयारी के विषय में बात करें तो उस समय अधिकाँशतः विद्यार्थी अपने सीनियर अथवा शिक्षक के मार्गदर्शन में अपनी तैयारी करते थे।

उस समय के सीनियर छात्र किसी दुर्भावना से प्रेरित नही होते थे। वे उन्हें अपना छोटा भाई या जूनियर मानकर अपने सुझाव देते थें। प्रतियोगी छात्रों को भी अपने सीनियर अथवा शिक्षकों पर पूर्ण विश्वसा हुआ करता था। कक्षा में कम विद्यार्थी होते थे और शिक्षक के पास भी समय होता था और उस समय शिक्षक भी अपने विद्यार्थियों से खूब मेहनत कराने का प्रयास किया करते थै।

                                                               

उस समय ऐसे शिक्षक बहुत कम हुआ करते थे, जो कि वर्तमान शिक्षकों उकी भाँति कक्षा में निम्न स्तर का हास्य व्यंग कर छात्रों के बहुमल्य समय को बर्बाद करते थे। उस समय के शिक्षक निम्न स्तर के हास्य व्यंग को अपनी गरिमा के अनुकूल नही समझते थे। छात्रों एवं शिक्षकों का परस्पर व्यवहार गुरू-शिष्य परम्परा का पालन करने की कोशिश थी। शिक्षक कक्षा में व्याप्त तनाव को कम करने के लिए विषय सम्बन्धित ही किसी रोचक जानकारी को छात्रों के साथ साझा किया करते थे, न कि बेकार और फालतू के विषयों पर चर्चा करके।

     वर्तमान समय में शिक्षा के पवित्र क्षेत्र में स्तरहीन शिक्षकों के आगमन से कक्षा के स्तर में गिरावट आयी है। ऐसे में सामान्य तौर पर शिक्षक कथा-कहानी अथवा व्यर्थ के मुद्दों पर बातें करते हुए समय की बर्बादी केवल दो ही स्थितियों में करते हैं पहला उनके दिमाग में आगे पढ़ाने का कंटेंट पूरी तरह से साफ नही हो या फिर वे पूरी तैयारी के साथ ही न आयें हों। किसी भी शिक्षक को तीन घंटे की कक्षा लेने के लिए कम से कम 100 पृष्ठों से अधिक का सामग्री की आवश्यकता होती है।

इसके साथ ही शिक्षक को तीन घंटे की एक यूपीएससी के स्तर की कक्षा को लेने के लिए स्वयं भी तीन से चार घंटें पढ़ना पड़ता है और इस तथ्य से तो सभी परिचित हैं कि आजकल इतना समय तो किसी भी शिक्षक के पास है ही नही, तो फिर वह शिक्षक छात्रों की मियों एवं उसकी अच्छाईयों पर किस प्रकार ध्यान दे पाएगा।

    उपरोक्त बातों से एक समस्या तो यह स्पष्ट हो ही जाती है कि शिक्षक तो योग्य हैं, परन्तु उनकी वर्तमान शिक्षण शैली ही अयोग्य हैं। अतः अभ्यर्थी को अपनी तैयारी के लिए रणानीति बनाते समय उपलब्ध विकल्पों का सवाधानीपूर्वक मूल्यांकन करते हुए अपनी क्षमताओं के अनुरूप उचित विकल्प का चयन काफी महत्वपूर्ण हैं।

गुरू या मेंटर का चयन

                                                                                

    अपनी तैयारियों की रणनीति को बनाते समय हमें सबसे पहले गूगल गुरू, साक्षात्कार, यू-ट्यूब तथा सोशल मीडिया का पूर्ण रूप से त्याग करना होगा। क्योंकि हमारा मानना है कि जो भी टॉपर यू-ट्यूब या न्यूज चैनल या किसी संस्थान में जाकर अपने अनुभव को शेयर करता है वह अधिकतर अपनी तैयारी की रणनीति से इतर अपने अनुभव बताता है और सबसे बड़ी बात तो यह है कि ये टॉपर अधिकतर अंगेजी माध्यम से होते हैं।

जबकि एक कड़वा सच यह भी है कि अधिकाँश सफल अभ्यर्थी तो यह कहने की स्थिति में भी नही होते हैं कि परिणाम से पूर्व वह आश्वस्त थे कि उन्हें सफलता तो मिलेगी ही। ऐसे में अब जरा विचार करें कि हम सभी अलग-अलग परिवेश, संस्कार, संस्कृति, शैक्षणिक पृष्ठभूमि और विश्वविद्यालयों आदि से आते है, सभी ने अलग-अलग विषय पढ़े होते हैं तो फिर ऐसे में हमारी तैयारी किसी एक व्यक्ति की परामर्श अथवा मार्गदर्शन के आधार पर किस प्रकार से हो सकती है। वर्तमान में भी गुरू के रूप में सबसे अच्छा विकल्प हमारे शिक्षक तथा चयनित सीनियर ही होते हैं।

अतः ऐसे छात्र भी मेंटर हो सकते हैं जिन्हें परीक्षा का अच्छा अनुभव हो तथा जिन्होंने अच्छे अंको के साथ मुख्य परीक्षा को उत्तीर्ण किया हो। ऐसे मेंटर आपकी क्षमताओं का आंकलन कर तैयारी सम्बन्धित रणनीतियों को बनाने में सहायता कर सकते हैं। ध्यान रहे कि ये शिक्षक अथवा सीनियर अपनी कमियों में सुधार करने के फलस्वरूप ही सफल हुए हैं अतः यदि वे ईमानदारी पूर्वक जूनियरों का मार्गदर्शन करेंगे तो वे सफलता दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। अतः जिस किसी व्यक्ति, शिक्षक या सीनियर अभ्यर्थी को गुरू अथवा मेंटर बनाया जाए, तो उस पर पूर्ण विश्वास भी किया जाए और उनके मागदर्शन में जो भी रणनीति बनाई गई हो उसका शत-प्रतिशत पालन करना चाहिए।

तैयारी के लिए विधिवत रणनीतिः

     योजनाबद्व रूप से सबसे पहले यह विचार करें कि किस प्रकार से 950-1050 अंक सि प्रकार प्राप्त किए ज सकते हैं। इसके साथ ही यह भी निर्धारित करना होगा कि किस विषय की तैयार कब करें, कैसे करे, क्या पढ़ें और क्या नही पढ़ें।

परीक्षा के किसी भी माध्यम में शार्टकट के लिए काई स्थान नहीः सामान्यतः हिंदी माध्यम का अभ्यर्थी प्रत्येक चीज के लिए शार्ट कट ढूँढ़ता है और वह इसमें अपना समय ही बर्बाद करा है। उसकी कोशिश सदैव ऐसी सामग्री ढूँढने की होती है जिसमें उसे कम पढ़ना पड़े।

इसलिए वह फालतू की अध्ययन सामग्री, यू-ट्यूब के वीडियो आदि में अपने अधिकतर समय को खराब कर लेता है। मानक पुस्तकों का अध्ययन करने के स्थान पर वह गाईड जैसी पुस्तकों अथवा कोचिंग स्टडी मैटिरियल के माध्यम से ही परीक्षा को टॉप करने की अपेक्षा रखता है। जबकि टॉपर बनने के लिए विधिवत रणनीति के तहत समग्र अध्ययन की आवश्यकता होती है। अतः इसके लिए किसी एक कोचिंग, शिक्षक अथवा किसी एक पुस्तक पर निर्भर नही रहा जा सकता।

सभी की एक सामान्य सोचः हिंदी माध्यम के अभ्यर्थियों की एक सामान्य सोच होती है कि पहले वह प्रीलिम्स को पास कर ले फिर मेंस देंगे या सिविल भी नही होगा तो क्या, पीसीएस कर लेंगे या फिर किसी अन्य नौकरी के लिए प्रयास कर लेंगे। यह वैकल्पिक सोच ही उन्हें संघर्ष करने में बाधा उत्पन्न करती है।

यदि अभ्यर्थी ने संकल्प ले लिया है कि हमें तो सिविल संवा में ही जाना है तो तैयारी के आरम्भिक दिनों में यह वैकल्पिक सोच उनके लिए घातक सिद्व होती है अर्थात दूसरा कोई विकल्प नहीं। वर्तमान दौर में सिविल संवा की परीक्षा में सफल होने के लिए प्रत्येक विषय को मुख्य परीक्षा के दृष्टिकोण से ही पढ़नें की आवश्यकता होती है न कि प्रीलिम्स के दष्टिकोण से।  

मुख्य परीक्षा की तैयारी करते समय पाठ्यक्रम के उन प्रश्न-पत्रों को सबसे पहले पढ़ें, जिनमें अपेक्षाकृत आसानी से बेहतर अंक प्राप्त किये जा सकते हैंः अभ्यर्थी निम्नलिखित जरीके से प्राथमिकता के आधार पर अपनी तैयारी की रणनीति बना सकते हैं-

क्र0स0

प्रश्न-पत्रों की प्राथमिकता

लक्षित अंक

1.

वैकल्पिक विषय

310

2.

निबंध

120

3.

एथिक्स (पेपर-4)

110

4.

साक्षातकार

170

5.

पेपर-1

100

6.

पेपर-2

80

7.

पेपर-3

80

कुल

                             970

 

    उपरोक्त सारणी से स्पष्ट है कि वैकल्पिक विषय को सबसे पहले और अच्छी तरह से पढ़ा जाए, तत्पश्चात् प्राथमिकता के आधार पर क्रमशः निबंध, एथिक्स, साक्षात्कार तथा पेपर-1, 2 एवं 3 की तैयारी करनी चाहिए।वैकल्पिक विषय, निबंध, एथिक्स एवं साक्षात्कार की तैयारी के लिए आवश्यक रणनीति आदि पर चर्चा आगे की गई है।

रणनीति वैकल्पिक विषय की तेयारी कीः

सफलता में वैकल्पिक विषय का महत्वपूर्ण योगदानः मुख्य परीक्षा को पास करने के लिए वैकल्पिक विषय के अंतर्गत 300-330 अंक का लक्ष्य निर्धारित करने से लाभ प्राप्त होगा, जो कि ईमानदारीपूर्वक प्रयास करने से प्राप्त किया जा सकता हैं। हिंदी माध्यम के बहुत से शिक्षक ऐसे हैं जिनके मार्गदर्शन में आप तानविकी जैसे विषयों में 300-330 अंक तक प्राप्त कर सकते हैं।

वैकल्पिक विषय की पूरी तैयार हेतु शुरूआती 6 माह पर अपना पूर्ण ध्यान केन्द्रित करेंः तैयारी के इस चरण में मानक पुस्तकों को पढ़ना, कोचिंग करना तथा व्यक्तिगत नोट्स बनाना अधिक महत्वपूर्ण है। सके पश्चात् विगत 15 वर्षों में पूछे गये प्रश्नों को पाठ्यक्रम के अनुसार वर्गीकृत करके उनके उत्तर लखना आरम्भ करें।

क्रमशः पुराने से नये वर्षों की तरफ बढ़ते हुए उत्तरों का लेखन कार्य का अभ्यास करें साथ ही अपने द्वारा लिखे गये उत्तरों की तुलना पुस्तकों की हल सामग्री के साथ करें। अपने आप की गई इस तुलना के आधार पर अपने उत्तर लेखन में सुधार कर सकते हैं।

    पिछले पाँच वर्षों के पूछे गये प्रश्नों के उत्तरों का मूल्यांकन अपने शिक्षक अथवा मेंटर से कराना चाहिए। पाँच वर्षों से पहले पूछे गये प्रश्नों का मूल्यांकन या स्वयं कर सकते हैं अन्यथा अपने किसी समकक्ष अभ्यर्थी के द्वारा भी करा सकते हैं। इसी क्रम में अभ्यर्थी एक-दूसरे की कमी एवं अच्छाईयों के बारे में अच्छी तरह से जान सकते हैं। इस प्रकार एक-दूसरे की कमियों का आंकलन अपने उत्तर लेखन की प्रक्रिया सुधार लाया जा सकता है।

    ध्यान रहे कि परीक्षा हॉल में अभ्यर्थी को 10 अंक वाले प्रश्न को 7 मिनट तथा 15 मिनट वाले प्रश्नों के उत्तर को 11 मिनट में लिखना होता है। इतने कम समय में अपने उत्तरों को लिखने का अभ्यास अभ्यर्थी पहले से ही नही करेंगे तो परीक्षा हॉल में अपना पूरा पेपर नही कर पाएंगे।

हिंदी माध्यम के अभ्यर्थियों के साथ सबसे बड़ी समस्या यह आती है कि परीक्षा हॉल में वे समय प्रबन्ध कर पाने में असफल रहते हैं, फिर ऐसे में या तो प्रश्प-पत्र के कुछ प्रश्न छूट जाते हैं या फिर वे उन अंतिम प्रश्नों को बहुत ही कम समय दे पाते हैं।

अभ्यर्थी के द्वारा समय प्रबन्धन नही कर पाने के कारण एग्जामिनर को उनके द्वारा दिये गये अंतिम उत्तरों में वह स्तर नही मिलता है, जो उनके पूर्व में दिए गए प्रश्नों के उत्तरों का होता है, जिसके कारण अभ्यर्थी को उस प्रश्न-पत्र में अच्छे अंक प्राप्त नही हो पाते है।

    जैसा कि पूर्व में अवगत कराया जा चुका है कि हिंदी माध्यम के बहुत से शिक्षक ऐसे हैं कि जो यदि अभ्यर्थियों का उचित माग दर्शन करें तो वे वैकल्पिक विषय में 300 से अधिक अंक प्राप्त करने में उनकी सहायता कर सकते हैं। इसी प्रकार ऐसे शिक्षकों से बचना चाीए जो समय न दे सकें फिर चाहे वह कितना ही बड़ा शिक्षक क्यों न हो। असल समस्या पाठन सामग्री की नही है अपितु लेखन शैली की है।

लेखन शैली में भी शब्दों का चयन तथा कम से कम शब्दों का उपयोग करते हुए प्रभावी तरीके से अपने उत्तर का प्रस्तुतिकरण सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता है। निर्धारित समय और शब्द सीमा के अंदर समस्त महत्वपूर्ण बिन्दुओं को परीक्षा हॉल में अपने उत्तर में शामिल करना भी काफी चुनौतिपूर्ण होता है। अतः कहा जा सकता है कि बड़े नामों के पीछे न भागते हुए ऐसे लोगों के साथ जुड़ें, जो अभ्यर्थियों कमजोरियों को उजागर करते हुए उन्हें अच्छी तरह से तराश सकें।

वैकल्पिक विषय के द्वितीय प्ररून-पत्र अलग से ध्यान देने की आवश्यकता प्रायः यह एक सामान्य प्रक्रिया है कि वैकल्पिक विषय के द्वितीय प्रश्न-पत्र पर कम ध्यान देते हैं या फिर अभ्यर्थी को करंट अफेयर्स एवं विभिन्न पत्रिकाओं एवं अखबारों में प्रकाशित आलेखों के माध्यम से अपने नोट्स अपडेट करने का परामर्श देते हैं। ऐसे में ध्यान देने की आवश्यकता यह है कि वैकल्पिक विषय का दूसरा पेपर, पहले पेपर से अधिक अंक प्रदाता होता है।

अतः यदि इस पेपर का अध्ययन ठीक प्रकार से किया जाए तो इसमें अभ्यर्थी बढ़त प्राप्त कर सकते हैं, इसलिए होता है कि वैकल्पिक विषय का दूसरा प्रश्न-पत्र व्यवहारिक (applied) स्वरूप का होता है, तथा इसके प्रश्नों का उत्तर लिखते समय इनपुट के रूप में व्यवहारिक अथवा समसामायिक सामग्री को भी शामिल किया जा सकता है, सिके कारण उत्तर अलग एवं बेहतर हो सकते हैं।

    इसलिए शिक्षक अथवा मेंटर से दूसरे पेपर से सम्बन्धित की तैयार पर विशेष रणनीति पर चर्चा अवश्य करनी चाहिए। यह एक ध्यान देने योग्य बात है कि प्रत्येक शिक्षक द्वितीय प्रश्न-पत्र को पढ़ाने से बचता है, क्योंकि इस प्रश्न-पत्र को अधिक समय लेने वाला माना जाता है और शिक्षक को भी इसे पढ़ाने के लिए अधिक समय देना पड़ता है।

द्वितीय प्रश्न-पत्र को जब तक अंतरविषयी तथा बहु-विषयी दृष्टिकोण (Interdisciplinary–Multidisciplinary Approach) से नही पढ़ा जायेगा तब तक इस प्रश्न-पत्र में अच्छे अंक मिल पाना सम्भव ही नही है। अतः इसके समाधान हेतु सुझाव दिया जाता है कि सर्वप्रथम वैकल्पिक विषय पर ध्यान दें और उसकी तैयार में कोई कमी न रहने दें।

सफलता में निबंध की भूमिका अति महत्वपूर्ण

हिंदी माध्यम से सफलता प्राप्त करने में दूसरा महत्वपूर्ण प्रश्न-पत्र निबंध विषय का होता है- एक उत्कृष्ट निबंध के लेखन में कभी भी किसी एक पुस्तक को पढ़कर या किसी एक शिक्षक से क्लास लेकर या फिर परीक्षा के अन्तिम दिनों में पढ़कर इसे विकसि नही किया जा सकता है। निबंध लेखन में कौशल विकसित करने में शिक्षक की भूमिका केवल इतनी ही होती है वह अभ्यर्थी को इसके लिए मार्गदर्शन ही दे सकते हैं अथवा निबंध के लिए महत्वपूर्ण विषयों के बारे में जानकारी दे सकते हैं।

शिक्षक के द्वारा दिए गए मार्गदर्शन के द्वारा अभ्यर्थी केवल इतना ही जान पाते हैं कि इसकी तैया के लिए क्या करना है; क्योंकि तैयारी तो अभ्यर्थी को ही करनी होती है, क्योंकि यह एक सत्य है कि यदि तैरना है तो पानी में तो उतरना ही होगा।

    निबंध के लेखन में शिक्षक एक शिक्षक की भूमिका ऐसी होती है, जैसे कि किसी घोड़े को पानी तक तो लेकर जाया जा सकता है परन्तु से पानी पीने के लिए बाध्य नही किया जा सकता है; घोड़ा पानी तो अपनी इच्छा होने पर ही पिएगा। ठीक इसी प्रकार यदि अभ्यर्थी अपने निबंध में पुस्तकों के माध्यम से अर्जित की गई जानकारी को लिखेंगे तो इसमें उन्हे औसत अंक ही प्राप्त होंगे।

निबंध लेखन में अच्छे अंक प्रात करने के लिए एक अभ्यर्थी को वे समस्त प्रयास करने होते हैं, जो एक व्यक्ति को अपने व्यक्तित्व के विकास करने के लिए करने होते हैं- अतः अभ्यर्थी को समाज के प्रति अपने नजरिये, जीवन पद्वति, धार्मिक तथा सांस्कृतिक मान्यताओं के प्रति अपने दृष्टिकोण में तटस्थता लानी होती है, साथ ही विकास के साथ-साथ संवैधानिक पहलुओं की समझ को भी विकसित करना उतना ही महत्वपूर्ण है।

एक अच्छा निबंध वही अभ्यर्थी लिख सकता है, जिसे विषयों को समझने और उनको समझानें भी सक्षम हो- इस प्रक्रिया में सबसे पहली आवश्यकता तो यह होती है कि सभी विषयों की अधिक-से-अधिक सामग्रियों का अध्ययन और अपने सहपाठियों एवं शिक्षकों के साथ उनके महत्वपूर्ण मुद्दों पर विस्तृत चर्चा। इस प्रकार की परिचर्चाओं के माध्यम से अभ्यर्थी के अंदर संवाद करने की क्षमता का विकास होगा।

निबंध लेखन के लिए इनपुट्स केवल पुस्तकों से प्राप्त नही किए जा सकते अपितु विषयों को सुनकर, देखकर और समझकर भी इनपुट्स प्राप्त करने होंगे। इसलिये ही निबंध को निरंतर तैयारी का विषय माना जाता है।

परीक्षा के अंतिम दिनों में निबंध का केवल अभ्यास ही किया जा सकता है- अभ्यर्थी को यदि किसी सही शिक्षक अथवा मेंटर का मार्गदर्शन प्राप्त हो जाए तो टेस्ट सीरीज अवश्य ही कर लेना चाहिए, यह बात भी गौर करने लायक है कि टेस्ट सीरीज का लाभ भी तभी मिलेगा, जब वह शिक्षक आपकी कॉपी स्वयं ही चेक करें। आजकल विभिन्न संस्थानों के द्वारा जो टेस्ट सीरीज संचालित की जा रही है, उनमें अधिकाँशतः कोई विधर्थी ही उन कॉपियों को चेक कर रहा होता है।

वैसे भी टेस्ट सीरीज से भी अधिक अक्ष्च्छा मो यह रहेगा कि अभ्यर्थी महत्वपूर्ण मुद्दो अथवा प्रश्नों कहीं से भी प्राप्त कर लिखें और अपने सहपाठियों के साथ समूह में उन पर चर्चा करें।

मानविकी पृष्ठभूमि वाला हिंदी माध्यम का कोई भी छात्र निबंध लिख सकता है- यह बात स्वयं सिद्व है कि मानविकी विषयों को पढ़ने के कारण उसका अपनी बात को अभिव्यक्त करने का कौशल अन्य तकनीकी अध्ययन करने वाले छात्रों की पृष्ठभूमि की अपेक्षा बेहतर होता है। हिंदी माध्यम के अभ्यर्थियों के लिए एक चुनौति यह हे कि उन्हें अंग्रेजी माध्यम के अभ्यर्थियों की तुलना में किसी भी तथ्य या महत्वपूण बिन्दु को अभिव्यक्त करने के लिए अधिक शब्दों का उपयोग करना होता हैं, किन्तु ‘शब्द संख्या की अधिकता’ की यह चुनौति ही अभ्यर्थी को बढ़त दिला सकती है। अतः निबंध लेखन 120-130 अंक किस प्रकार लाए जा सकते हैं इसका प्रयास कर अभ्यर्थी दूसरी बाधा को भी पार कर सकते हैं।

अच्छा निबंध लेखन अभ्यर्थी के साक्षात्कार में बहुत अधिक सहायक है- विषयों की समझ के मामले में परिपक्वता स्तरीय निबंध लेखन में सफलता की कूँजी होती है।

प्रश्न-पत्र 4 की महत्वपूर्ण भूमिका होती है मुख्य परीक्षा की सफलता में- 

    मुख्य परीक्षा की सफलता में तीसरा महत्वपूर्ण रोल जीएस पेपर-4 का होता है। सामान्य रूप से अभ्यर्थी और शिक्ष कइस प्रश्प-पत्र को अधिक गम्भीरता के साथ नही लेते हैं। पाठयक्रम अथवा पिछले वर्षों के दौरान पूछे गये प्रश्नों को देखने पर यह विषय काफी सहज लगता ह, परन्तु व्यवहारिक रूप से यह इतना सहज होता नही है।।

नीतिशास्त्र का प्रश्न-पत्र न तो मानविकी विषयों की तरह से तथ्यात्मक होता है और न ही तकीनकी विषयों की तरह सिद्वाँतो पर आधारित- यह विषय पूर्ण रूप से व्यण्वहारिक एवं अनुभवजन्य स्वरूप का होता है। यह समाज, शासन-प्रशासन, मानवीय मूल्य, संस्कृति, जीवन दर्शन, कार्य-शैली आदि से व्युत्पन्न विषय है, जो कि मानव और उसके द्वारा बनाई गई व्यवस्था में उत्पन्न विकृति तथा अप्राकृतिक एवं अव्यवहारिक समस्याओं से उत्पन्न हुई परिस्थितियों में सुधार की आवश्यकताओं को ध्यान में रखतं हुए बनाया जाता है इस कारण से इसे न तो कोई शिक्षक पढ़ा सकता है और न ही पुस्तकें।

यह विषय भी निबंध और साक्षात्कार की तरह से ही ज्ञानार्जन की निरंतर प्रक्रिया के माध्यम से ही तैयार किया जा सकता है- इस प्रश्न-पत्र को हल करने के दौरान अभ्यर्थी के द्वारा अर्जित सम्पूर्ण ज्ञान का उपयोग कर ही प्रश्नों को हल किया जा सकता है। जो अभ्यर्थी ऐसा कर पाते हैं तो उनके लिए एक स्कोरिंग विषय होता है और इसमें अभ्यर्थी अच्छे से प्रयास कर बेहतर अंक प्राप्त कर सकते हैं।

उक्त विषय न केवल अभ्यर्थी के ज्ञान की परीक्षा लेता है अपितु उसकी समझ की भी पूरी परीक्षा लेता है- यह विषय, सामान्य अध्ययन के बाकी तीन प्रश्न-पत्रों के माध्यम से अर्जित ज्ञान के आधार पर अभ्यर्थी के अंदर जो समझ विकसित हुई है, उस समझ की जांच रता है, इस कारण से इस विषय के सम्बन्ध में विशेषज्ञों की पृथक-पृथक राय है क्योंकि इस विषय को जैसा समझा जाता है तथा जो जिस विषय का विशेषज्ञ है वह उसी हिसाब से इसकी व्याख्या करता है।

सामान्य रूप से इतिहास एवं भूगोल विषयों को छोड़कर प्रायः सभी विषयों के शिक्ष कइस विषय को पढ़ा सकते हैं औसे अपने विषय के सबसे करीब बताते हैं और यही विशेषता इस विषय को सबसे अलग बनाती है। इसीलिए इस विषय को ज्ञान की परीक्षा नही अपितु समझ की परीक्षा वाला विषय कहा जाता है।

इस विषय के अध्ययन के लिए कोई एक ऐसी पुस्तक पढ़ें जिसमें पाठ्यक्रम के अनुरूप सामगी प्रदान की गई हो- इस तरह के अध्ययन से अभ्यर्थी इस विषय से सम्बन्धित शब्दावलियों को बेहतर तरीके से समझ पायेंगे और उसका प्रयोग सामान्य जन-जीवन, मानवीय, समाजिक और सांस्कृतिक पहलुओं को ध्यान में रखकर प्रशासन के दृष्टिकोण से समस्याओं को सुलझानें में किया जा सकता हैं सभी दृष्टिकोणों को ध्यान में रखकर प्रश्नों का हल सोचें, विचार करें, अपने सामान्य जीवन में अपनाएं तो इस विषय को अच्छी प्रकार से तैयार किया जा सकता है।

इस विषय की तैयारी के लिए कोचिंग से अधिक आवश्यकता पुस्तकों के अध्ययन और लेखन के अभ्यास की होती है। पुस्तकों ने यह काम काफी आसान कर दिया है, जिसने अभ्यर्थियों को पेपर-4 से सम्बन्धित टर्मिनोलॉजी से पूर्णतया परिचित करा दिया है। सफलता को सुनिश्चित करने के लिए पेपर-4 में अभ्यर्थी को 110 अंक प्राप्त करने का लक्ष्य निर्धारित करना होगा।

अन्त में

    इस प्रकार अभ्यर्थियों को वैकल्पिक विषय का चुनाव काफी सोच-समझकर करना चाहिए तथा वैकल्पिक विषय, निबंध और एथिक्स पर सबसे अधिक जोर देते हुए 550 अंक सुरक्षित करने की रणनीति तैयार करनी चाहिए। यदि अभ्यर्थी की पकड़ इन तीनों विषयों पर अच्छी बन गई तो साक्षात्कार में उसके कम से कम 125 अंक तो अवश्य ही आ जाएंगे और इस प्रकार अभ्यर्थी वैकल्पिक विषय, निबंध, एथिक्स एवं साक्षात्कार में कुल मलिकर 675 अंक तक अवश्य अर्जित कर पाएंगे। 

    यदि अभ्यर्थी जीएस पेपर-I, II और III में सामान्य अंक (80-100) प्राप्त करने की रणनीति के तहत सोचें तो भी अभ्यर्थी 975-1000 अंक तक पहुँच जाते हैं। पेपर-I, II और III को अंडर स्कोर करने का कारण हिंदी माध्यम के अभ्यर्थियों का इन पेपरों में अंक प्राप्त करना है इसका एक प्रमुख कारण निर्धारित शब्द सीमा तथा समय सीमा में सटीक उत्तरों को नही लिख पाना हैं।

अतः यदि अभ्यर्थीगण उपरोक्त बातों को ध्यान में रखते हुए अपनी रणनीति बनाते हैं तो उनके अच्छे अंकों के साथ सफल होने के आसर बढ़ जाते हैं।  

 

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।