प्यार का खेल और दिमाग का मकड़जाल

                           प्यार का खेल और दिमाग का मकड़जाल

                                                                                                                                                                                            डॉ0 आर. एस. सेंगर

प्रेम का व्यवहार समस्त जीवों में समान रूप से ही पनपता है और मौजूद भी रहता है। प्रेम की भावना कभी स्थिर नहीं होती है, यह सदैव गतिशील रहती है। जीव का हृदय कभी एक जगह ठहर ही नहीं सकता, क्योंकि यह उसकी प्रकृति में ही नहीं है। यह जरूर है कि लोक-लाज, समाजिक और संवैधानिक नियमों के तहत यह भाव काफी हद तक नियंत्रित हो सकता है, लेकिन कहते हैं न कि दिल है कि मानता नहीं। यह आकर्षित तो जरूर होगा, हाव-भाव में बाहरी तौर पर यह भले ही दिखाई न दे, पर अंदरुनी भावनात्मक रूप से यह जोर- आजमाइश जरूर करेगा।

प्यार होना या न होना, यह किसी के अपने बस की बात नहीं है। यह एक तरह का भाव होता है, जो एक-दूसरे के प्रति आकर्षण पैदा करता है। दिमाग में एक प्लेजर सेंटर, यानी खुशी का केंद्र होता है, जहां से कुछ विशेष प्रकार के केमिकल (रसायन) निकलने की वजह से मनुष्य में प्रेम के भाव पैदा होते हैं। मस्तिष्क से निकलने वाले तमाम तरह के केमिकल का कॉकटेल ही इंसान में प्यार की तरंगें पैदा करता है। इसमें खासियत यह है कि हर स्तर के लिए हार्मोस अलग-अलग होते हैं और वही प्यार के लिए जिम्मेदार भी होते हैं। मस्तिष्क में प्यार को शुरुआत देने वाला पहला केमिकल ’टेस्टोस्टेरॉन’ है।

                                                                                         

दिमाग में मौजूद प्लेजर सेंटर से समय-समय पर अलग-अलग तरीके से केमिकल निकलते हैं। इसमें टेस्टोस्टेरॉन केमिकल को मेडिकल भाषा में प्यार की पहली शुरुआत के लिए जिम्मेदार माना जाता है। जब इंसान के दिमाग से टेस्टोस्टेरॉन केमिकल निकलता है, तो उस समय आकर्षण की भावना पैदा होने लगती है।

इस केमिकल की वजह से न्यूरो ट्रांसमीटर के जरिये एड्रानिल, डोपामाइन और सेरोटॉनिन नाम के केमिकल भी निकलने शुरू हो जाते हैं। जब ये चारो केमिकल एकसाथ मिलते हैं, तो उस समय इंसान के मन में कई तरह के भाव पैदा होने लगते हैं। इस कॉकटेल में एड्रानिल हार्मोन प्यार पैदा करने के लिए जिम्मेदार होता है, जबकि डोपामाइन प्यार को परवान चढ़ाता है।

वहीं सेरोटॉनिन निर्धारित करता है कि कब, कहां और कैसे प्यार होगा। किस से प्यार होगा, यह भी फैसला यही लेता है। प्यार के खेल में सारा किया-धरा सिर्फ दिमाग का होता है। दिल तो बस धड़कता है, ताकि दिमाग को खून की सप्लाई बराबर मिलती रहे। यह सारी कारस्तानी तो केवल और केवल दिमाग की ही होती है, जबकि बदनाम सिर्फ दिल होता है।

                                                                     

‘‘मनुष्य के दिमाग में एक प्लेजर सेंटर, यानी खुशी का केंद्र होता है, जहां से कुछ विशेष प्रकार के रसायन निकलते हैं, जिनकी वजह से मनुष्य में दूसरे के प्रति प्रेम की भावना पैदा होती है।’’

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।