ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने में महिलाएं बन रही है ग्रामीण विकास का इंजन

ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने में महिलाएं बन रही है ग्रामीण विकास का इंजन

                                                                                                                                                                                             डॉ0 आर. एस. सेंगर

गांवों में बनाए जा रहे स्वयं सहायता समूहों में महिलाओं का सामूहिकरण ग्रामीण भारत में विकास का इंजन बन रहा है। वर्तमान में 83 लाख स्वयं सहायता समूह से 9 करोड़ से अधिक महिलाएं जुड़ी हुई है। लखपति दीदी पल के तहत स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाओं को प्रशिक्षण दिया जाता है। साथ में प्रत्येक स्वयं सहायता समूह परिवार को मूल्यवर्धन के विभिन्न उपायों और गतिविधियों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, ताकि वह सालाना कम से कम ₹100000 की आय प्राप्त कर सके। यह पहल दिखती है कि स्वयं सहायता समूह ग्रामीण महिलाओं के जीवन में वित्तीय स्वतंत्रता और बदलाव लाने वाला एक सशक्त माध्यम बन चुका है।

ग्रामीण अर्थव्यवस्था में ग्रामीण महिलाएं एक महत्वपूर्ण योगदान करता है। लेकिन 15 वर्ष और उससे अधिक आयुवर्ग की ग्रामीण कामकाजी आबादी में महिलाओं की संख्या 36.6 प्रतिशत है जबकि पुरुषों की संख्या 78.5 प्रतिशत है।

                                                                                     

पहला कदमः सूक्ष्म उद्यम गतिविधियों से जुड़े स्वयं सहायता समूह को दीर्घकालिक बनाने के लिए उन्हें शुरू से अंत तक सहायता देना और उसमें क्षमता निर्माण प्रशिक्षण, वित्तीय संसाधनों तक पहुंच की सुविधा और बाजार संपर्क आदि की सहायता शामिल है। इससे स्वयं सहायता समूह को चुनौतियों से निपटने तथा अवसरों का लाभ उठाने और आगे बढ़ाने में मदद मिलती है, जो उनकी महिला सदस्यों के सामाजिक और आर्थिक विकास में योगदान करता है।

दूसरा कदमः महिलाओं को नेतृत्वकारी भूमिकाओं के लिए तैयार करना

सफल महिलाओं के लिए ऐसे अवसर बनाए जाने चाहिए कि जहां पर अपनी सफलता की कहानियों को अन्य महिलाओं के साथ साझा कर सके और उनमें आत्मविश्वास पैदा कर सके। उदाहरण के लिए राजस्थान के दूनी गांव की मीरा जाट डेरी और कृषि उत्पादक कंपनी मैत्री महिला मंडल समिति की प्रमुख है।

यह समिति राजस्थान में 8000 से अधिक ग्रामीण महिलाओं को रोजगार देती है। आज जब भी चुनौतियां और अपनी सफलता की कहानी अन्य महिलाओं को सुनाती हैं तब वह अधिक से अधिक महिलाओं को कामकाजी समूह में शामिल करने के लिए प्रेरित करती हैं। ऐसा ही काम लखपति दीदी भी कर सकती हैं, जिन्होंने स्वयं सहायता समूह के माध्यम से कई सफलताएं पाई है। वे सतत आय के विभिन्न उपायों को सामने लाने में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

                                                                

तीसरा कदमः उत्पादकता और आय को बढ़ाने के लिए नई प्रौद्योगिकियों को अपनाने के लिए प्रेरित करना

उदाहरण के लिए सोलर सिल्क, सीलिंग मशीन, सोलर ड्रायर, बायोमास संचालित कोल्ड स्टोरेज जैसी कई स्वच्छ प्रौद्योगिकियां कठिन परिश्रम को घटाने और मूल वर्धित उत्पाद तैयार करने में मदद कर सकती हैं। सीई व यू और विल्लाघ्रो का अध्ययन बताता है कि स्वच्छ प्रौद्योगिकियों ने ग्रामीण भारत की 10,000 से अधिक महिलाओं की सालाना आय को 33 प्रतिशत तक बढ़ाने में मदद करते हुए, उनकी आजीविका में उल्लेखनीय सुधार किया है। राजस्थान में झाडोल गांव की आशापुरा स्वयं सहायता समूह की गायत्री सुधार के अनुभव को बात और उदाहरण के तौर पर देखा जा सकता है।

बिजली आपूर्ति में दिक्कत होने पर उन्हें डेरी व्यवसाय में नुकसान उठाना पड़ता था, इससे बचने के लिए उन्होंने सोलर रेफ्रिजरेटर लगा लिया अब वह सोलर रेफ्रिजरेटर को अपने कारोबार का रक्षक बताती है क्योंकि इससे दूध की बर्बादी कम हुई है और उनकी आय भी बढ़ी है।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।