स्ट्रॉबेरी का सेवन करने से होता है वजन कम

                        स्ट्रॉबेरी का सेवन करने से होता है वजन कम

                                                                                                                                                                     डॉ0 आर. एस. सेंगर

स्ट्रॉबेरी के फल में विटामिन सी, फोलेट, पोटेशियम और एंटीऑक्सीडेंट पाए जाते हैं जो वजन को कम करने में सहायक साबित होते हैं। स्ट्रॉबेरी दिखने में भले ही एक छोटा सा फल होता है, लेकिन यह पौष्टिकता से भरपूर होता है। स्ट्रॉबेरी में लो कैलोरी और भरपूर मात्रा में फाइबर उपलब्ध होता है, जिससे काफी देर तक पेट भरा होने का अहसास होता है। इसके सेवन करने से आपको अपना वजन कम करने में सहायता प्राप्त होती है।

                                                                

स्ट्रॉबेरी में पाया जाने वाला मैग्नीशियम आपकी हड्डियों को मजबूत बनाता है। स्ट्रॉबेरी में पोटेशियम प्रचुर मात्रा में पाया जाता है जो आपके रक्तचाप को नियंत्रित कर स्ट्रोक से जोखिम को कम करने में मददगार साबित होता है। त्वचा को मुंहासे से मुक्त और चमकदार बनाए रखने में यह बहुत ही लाभदायक सिद्व होता है। स्ट्रॉबेरी में फाइबर, फ्लेवरेट्स और पोटेशियम जैसे पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं जो रक्तचाप को नियंत्रित करने में मदद करते हैं। इसक सेवन करने से दिल की बीमारियों का खतरा काफी हद तक कम हो जाता है। स्ट्रॉबेरी में मौजूद विटामिन-सी, हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्वि करता है।

स्ट्रॉबेरी एक्सीडेंट्स से भरपूर होती है और इसके सेवन से फ्री रेडिकल्स की मात्रा भी नियंत्रित रहती है। इससे कैंसर जैसी बीमारियों से बचने में मदद मिलती है। स्ट्रॉबेरी में पाए जाने वाला फ्लेवोनोइड्स रक्त में ग्लूकोज की वृद्धि को रोकता है और इसके सही स्तर को बनाए रखता है। स्ट्रॉबेरी का अधिक मात्रा में सेवन करने से बचना चाहिए क्योंकि इससे पेट की कई परेशानियां हो सकती हैं।

                                                                      

अगर आप कोई दवा ले रहे हैं तो स्ट्रॉबेरी  का सेवन करने से पहले अपने डॉक्टर से परामर्श जरूर करें और बाद ही स्ट्रॉबेरी का सेवन करें, क्योंकि स्ट्रॉबेरी का अधिक मात्रा में सेवन से आपको नुकसान भी हो सकता है। इसलिए डॉक्टर के परामर्श के बाद ही इसका सेवन करना चाहिए।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।