कुपोषण मुक्त भारत : गांव-गांव में हो पोषण वाटिका

             कुपोषण मुक्त भारत : गांव-गांव में हो पोषण वाटिका

                                                                                                                                                                           डा0 आर0 एस0 सेंगर

    संतुलित भोजन एक स्वस्थ शरीर का आधार माना जाता है। देश के ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करने वाले गरीब परिवारों को संतुलित भोजन उपलब्ध नही हो पाता है, जिससे उनके स्वास्थ, शारीरिक विकास एवं उत्पादकता पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है। फल एवं सब्जियाँ हमारे दैनिक भोजन का एक अभिन्न भाग है और यह भोजन को संतुलित रूप प्रदान करने में अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

                                                   

घरेलू स्तर पर पोषण को सुश्चित् करने के लिए वर्तमान में अनेक तकनीकियाँ उपलब्ध हैं परन्तु अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश के ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत गांवों में प्रेरणा पोषण वाटिका विकसित करने का कार्य प्रारम्भ किया जा रहा है।

    कुपोषण मुक्त भारत निर्माण के लिए प्रत्येक गांव एवं प्रत्येक घर में पोषण वाटिका स्थापित करने के प्रयास किये जा रहे हैं। पोषण की जागरूकता के लिए महिलाओं को घर में ही हरी सब्जियाँ उगाने और नियमित रूप से इनका सेवन करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। महिलाओं ने अपने परिवार के पोषण के मामले में आत्मर्भिर बनाने के लिए जन आंदोलन का रूप प्रदान किया जा रहा है।

    पोषण वाटिका को आर्थिक बचत का एक माध्यम तथा स्वस्थ रहने के लिए जाना जाता है फल एवं सब्जियों के बिना मानव स्वास्थ्य ठीक नही रह सकता। यही कारण है कि दैनिक आय का एक हिस्सा फल एवं सब्जियाँ खरीदने में चला जाता है। अतः ऐसे में घर के पास उपलब्ध खाली जमीन को उपयोग में लाकर जहाँ ग्रामीण आजीविका मिशन द्वारा संपोषित समूह की महिलाएँ पोषण वाटिका लगवा रही हैं।

                                                                      

इससे उनके लिए आसानी से सबिजयों के अतिरिक्त आम, अमरूद, आंवला और नींबू आदि के पौधों को लगाकर अच्छे फल भी प्राप्त हो सकेंगे, जिससे उनको बाजार से सब्जियाँ तथा फल आदि को लाने की आवश्यकता ही नही रहेगी और ताजा सब्जी अपने ही घर में प्राप्त हो जाती है। इससे शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ इनकी बिक्री कर वे अच्छी आमदनी भी प्राप्त कर सकती हैं।

    अपनी वाटिका से नियमित रूप से आम, अमरूद, आंवला एवं नींबू अन्य फलदायी पौधें लगाये जाते हैं जिससे वे समय पर उपलब्ध हो जाते हैं। ग्रामीण जीवन में अपना समय व्यतीत करने वाले लोगों और महिलाओं के लिए पोषणयुक्त भोजन की व्यवस्था हो जाती है जो उनको कुपोषण से मुक्ति प्रदान करता है।

    उत्तर प्रदेश सरकार के द्वारा प्रदेश के 52 जनपद के 340 विकास खण्ड़ों में 5140 ग्राम पंचायतों 16010 आजीविका सखियों का चयन किया गया है। जिनमें से 348551 महिला किसान प्रशिक्षित हैं। इस समूह की महिलाए्र न केवल पूरे राज्य में 5103 किचन गार्डन और 122202 प्रेरणा पोषण वाटिका बनाकर मानव स्वास्थ वर्धन के लिए रचनात्मक कार्य कर रही हैं। कैई क्षेत्र नेपाल के सीमावर्ती तराई और जंगली जंगली होने के कारण जंगली जानवरों जैसे- बन्दर, नीलगाय, हिरण तथा हाथी आदि के द्वारा फसल को उगाने से लेकर कटाई तक निरन्तर हानि पहुँचाई जाती है। इन सब समस्याओं के उपरांत भी महिलाओं का कार्य उत्साहवर्धक रहा है।

    पोषण वटिका किसानों को मानसिक रूप से प्रसन्नता भी प्रदान करती हैं इन वाटिकाओं में महिला किसान जैविक खाद एवं जैविक कीट एवं खरपवारनाशकों का प्रयोग बिना किसी लागत के अपने घर के आस-पास खाली पड़ी अनुपयोगी जमीन पर उपयोगी एवं शुद्व जैविक सब्जियाँ उगा रही हैं। पोषण वाटिका लगाने के अनेक लाभ जैसे प्रत्येक मौसम में ताजा साग-सब्जी आदि के उपलब्ध होने से बच्चों एवं गर्भवती स्त्रियों को ताजे फल एवं ताजी सब्जियाँ प्राप्त होती हैं। इसके साथ ही हरे-भरे वातावरण से वायु का शुद्विकरण भी होगा।

                                                           

जो लोग कम आय वाले समाज से सम्बन्ध रखते हैं उन्हें बाजार से सबिजयाँ एवं फलों की खरीददारी नही करनी पड़ेगी, जिससे उनके दैनिक खर्चों में भी कमी आयेगी। पोषण वाटिका घर के आस-पस अथवा आंगन में एंसी खुले पर होती है जहाँ पारिवारिक श्रम से परिसर के उपयोग हेतु विभिन्न मौसमों के फल तथा सबिजयाँ उगाई जाती है। पोषण वाटिका का उद्देश्य रसोईघर के पान, एवं कूड़ा-करकट आदि का उपयोग कर घर के फल एवं सब्जियों आदि की दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना है।

    आजकल बाजार में मिलने वाले चमकदार फल एवं सब्जियों को रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करके उगाया जाता हैं। इन रासायनों का प्रयोग खरपतवार, कीट एवं रोगों के नियन्त्रण हेतु किया जाता है। इन रसायनों का कुछ अंश सब्जियों एवं फलों में काफी समय बाद तक भी बना रहता हैं जिसके कारण इनको उपयोग नही करने वाले लोगों में भी रोगों से लड़ने की क्षमता दिन प्रतिदिन कम होती जा रही है।

इसके अतिरिक्त फलों एवं सब्जियों के स्वाद में फर्क आ जाता है इसलिए आज के समय की मांग भी यही है कि हमे अपने घर के आस-पास की खाली पड़ी अनुपयोगी जमीन में छोटी-छोटी क्यारियाँ बनाकर जैविक खादों का उपयोग कर इन सबिजयों एवं फलों का ही सेवन करना चाहिए इस कार्य के लिए स्थान चयन करने में भी कोई अधिक समस्या नही आती है क्योंकि ऐसे स्थान अक्सर हमारे घरों के पीछे अथवा आस-पास ही उपलब्ध होते हैं।

घरों से मिले होने के कारण समयाभाव के उपरांत भी कार्य करने में सुविधा रहती हैं। वाटिका के लिए ऐसे स्थान का चयन करें जहाँ पानी भी पर्याप्त मात्रा में जैसे कि नलकूप कुएं का पानी, स्नान का पानी अथवा रसोईघर में प्रयोग किया जाने वाला पानी प्राप्त हो सकें। इस स्थान का खुला होना भी अत्यन्त आवश्यक है जिससे कि सूर्य की रोशनी आसानी पहुँच सकें इन स्थानों का जानवरों से सुक्षित करना भी आवश्यक है और स्थान के उपजाऊ होने के कारण फलों एवं सब्जियों में पोषक तत्व भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होते हैं।

                                                                  

    बाजार में फलों एवं सब्जियों की कीमत अधिक रहती है जिसको न खरीदने से अच्छी खासी बचत होती है परिवार के लिए ताजा फल एवं सब्जियाँ आदि की प्राप्ति होती रहती है। यह सब्जियाँ बाजार की सब्जियों की अपेक्षा अच्छे गुणों वाली होती हैं। गृह वाटिका को लगाकर महिलाएं अपने परिवार की आर्थक स्थिति को भी सुदृढ़ कर रही हैं।

    पोषण वाटिका से प्राप्त मोसमी फल एवं सबिजयों को संरक्षित कर साल भर तक उपयोग में लाया जा सकता है। यह बच्चों के प्रशिक्षण के लिए भी एक अच्छा साधन हैं जो मनोरंजन एवं व्यायाम का भी एक अच्छा साधन बन सकता है। इससे न केवल घरेलू स्तर पर पोषण सुनिश्चित् होगा अपितु श्रम एवं समय का भी सदुपयोग हो सकेगा और परिवार की आर्थिक स्थिति भी सुदृढ़ होगी साथ ही खाने के लिए जैविक सब्जी प्राप्त होगी, बहु-स्तरीय फसल विधि के माध्यम से जैविक खाद के उपयोग से शुद्व शब्द की उपलब्धता भी सुरक्षित होगी।

    अभिभावकों को घर में ही हरी सब्जियाँ उगाने और इनका नियमित रूप से सेवन करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। घर के टूटे हुए प्लास्टिक के बर्तनों में मिट्ठि डालकर लौकी, तुरई, कद्दू और भिण्डी आदि को आसानी से उगया जा सकता है यह सब्जियाँ केमिकल से पूर्णतया मुक्त होगी और उनमें पोषक तत्व भी भरपूर मात्रा में उपलब्ध रहेगा, साथ ही इन सब्जियों एवं फलों के सेवन से बच्चों शारीरिक एवं मानसिक विकास सही रूप से हो सकेगा।

    शहरी क्षेत्रों में निवास करने वाले लोग भी अपने घरों की छतो पर पोषण वाटिका बना सकते हैं। इसके लिए पॉलीबैग्स बाजार में उपलब्ध होते हैं। इन प्लास्टिक अथवा सीमेण्टेड गमलों में वह पोषयुक्त सब्जियाँ जैविक विधि से प्राप्त कर सकते हैं। जिससे उनको नियमित रूप से अपनी इच्छा के अनुसार सब्जियाँ प्राप्त होंगी जिनमें रासायनिक खादों का प्रयोग बिलकुल नही होगा और ये निश्चित् रूप से स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी सिद्व होंगी।

पोषण वाटिका में पालक, मेथी, बथुआ, चौलाई, मूली, गाजर, शलजम, शिमला-मिर्च, बैंगन, टमाटर, मिर्च, भिण्डी, तौरई, लौकी, खीरा, ककडी़ एवं कद्दू के साथ-साथ नींबू, अनार, पपीता, फालसा, जामुन अमरूद एवं सहजन आदि के वृक्ष भी लगाये जा सकते हैं। कुछ बड़े वृक्षों को बोनसाई  बनाकर भी उगाया जा सकता है। यह देखनें में तो अच्छे लगेगें ही साथ ही वह आवश्यकता के अनुसार आपको फल भी उपलब्ध करा सकेंगे। गमलों में नींबू, सहजन और पपीता आदि के वृक्ष आसानी से बड़े गमलों में घर की छतों पर उगाये जा सकते हैं।

    नियमित रूप से फल एवं सबिजयों को भाजन में शामिल करने तथा योगासन करने से शरीर स्वस्थ तो रहता ही है साथ ही शरीर की रोगों से लडने की शक्ति भी बरकरार रहती है। भोजन में पोषक तत्वों की कमी ही मुख्य रूप से कुपोषण का कारण बनती है और यह ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करने वाले महिलाओं एवं पुरूषों में इस कुपोषण के कारण ही अनेक रोग देखने को मिल जाते हैं। इसलिए यह आवश्यक है कि गांवों में विशेष रूप से पोषण वाटिकाओं की स्थापना की जाये और प्रत्येक गांव और प्रत्येक घर में प्रयास कर अधिक से अधिक पोषण वाटिकाओं का निर्माण कराया जाये जिससे कि इसका लाभ लोगों को प्राप्त हो सकें।

    राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के द्वारा सामाजिक जुड़ाव और संस्था के निर्माण में उल्लेखनीय उपलबिधयों के उपरांत समूह को पोषण वाटिका के लिए ग्रामीण महिलाओं को प्रोत्साहित करना आवश्यक है, इससे सामाजिक आर्थिक उन्नति में सहयोग मिलेगा इस कार्य को करने के लिए सोसाइटी ऑफ ग्रीन वर्ल्ड फॉर सस्टेनेबल एनवायरमेंट नामक संस्था सराहनीय कार्य कर रही हैं और वह गांव-गांव में जाकर ग्रामीण महिलाओं को पोषण वाटिका के लाभों से अवगत कराती हैं जिससे ईको फ्रेंडली तकनीकों को अपनाने के बाद कुपोषण से लड़ने के लिए पोषण वाटिकाएँ अत्यन्त लाभकारी सिद्व हो रही हैं।

    यदि सरकार चाहे तो वह पोषण वाटिका के लिए अलग से बजट में प्रावधान कर सकती है तो इसके लिए भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में एक क्रान्ति आ सकती है जो एक सामाजिक क्रान्ति कही जा सकेगी। मिशन मोड में लेने से लोगों में सामाजिक जागरूकता आयेगी जिससे वैचारिक क्रान्ति को भी बढ़ावा मिलेगा और कुपोषण मुक्त भारत के लिए प्रत्येक गांव का प्रत्येक घर में पोषण वाटिका की आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सकेगी।

पोषण वाटिका बनाने की विधि-

                                                                        

  • चयनित स्थान से पत्थर आदि को साफ कर लें।
  • 30 फिट लम्बे फीते को पकड़कर क्यारी के मध्य में खड़े होकर और घूमकर इस स्थान का माप लें।
  • सर्वप्रथम फीते को 3 फीट पर पकड़कर घूमें या राख से निशान बनाते हुए गोल घूम जाएं, इसी प्रकार 4.8 फीट, 6 फीट 10.5 फीट और अन्त में 15 फीट पर घूमते हुए निशान बना लें।
  • इस गोल बने घेरे को 7 बराबर भागों में बाँटने के लिए 18 फीट फीते को बाहरी घेरे की परीधि पर रखकर निशान बना लें और इसे मध्य घेरे से जोड़ लें।
  • इस प्रकार से बनी हुई आकृति पर 9 इंच मिट्टी व गोबर की खाद की परत बिछाई जाती है, जिससे क्यारी ऊपर की ओर उठ जाती है जो वर्षा के दिनों में फसल को पानी में डूबने से बचाती है।
  • खाद एवं मिट्टी की परत को बिछाने के बाद क्यारियों में बीज की बुआई की जाती है। 

तलिका-1: विभिन्न फल एवं सब्जियों में पाये जाने वाले विटामिन्स-

नाम

स्रोत

लाभ एवं कमी से होने वाली हानियाँ

विटामिन ‘ए’

गाजर, पत्तागोभी, कद्दू, पालक, टमाटर, अंगूर, आम, पपीता, तरबूज और गाय का दूध।

हड्डियों को मजबूती देना, इसकी कमी से रतौंधी रोग व मसूढ़ों का कमजोर होना एवं संक्रमण होना।

विटामिन ‘बी 1’

भाजी, भुट्टा, ग्वार, भिण्डी, आलू, अनार, आम, तरबूज, अमरूद एवं गाय का दूध।

मंसपेशियों को मजबूत बनाना एवं मस्तिष्क को चुस्त रखना।

विटामिन ‘बी 2’

ग्वार, कद्दू, मटर, शकरकन्द, केला, अंगूर, आम एवं अनार।

लाल ग्रन्थियों का निर्माण करता है, इसकी कमी से त्वचा रोग व जीभ का फटना एवं आँखें का लाल होना।

विटामिन ‘बी 3’

भुट्टा, भिण्डी, मटर, टमाटर, और शकरकन्द

भोजन को ऊर्जा में परिवर्तित करना, इसकी कमी से बालों का सफेद होना, मन्दबुद्वि होना।

विटामिन ‘बी 5’

भिण्डी, आलू, कद्दू, शकरकन्द, ग्वार, अमरूद, अनार एवं तरबूज।

शरीर में नये हार्मोन बनाता है; इसकी कमी से त्वचा में दाग होना।

विटामिन ‘बी 6’

शिमला मिर्च, मटर, भिण्डी एवं आलू।

इसकी कमी से एनीमिया, त्वचा रोग, चक्कर आना, चिड़चिड़ापन।

विटामिन ‘बी 7’

फूलगोभी कच्चा।

इसकी कमी से अधरंग, शरीर में दर्द और बालों का गिरना।

विटामिन ‘बी 9’

पालक, टमाटर, पत्तागोभी, भिण्डी, आलू, पपीता, अमरूद और अनार।

फोलिक एसिड अधिक मात्रा में गर्भवास्था के पूर्व व पश्चात् आवश्यक तत्व।

विटामिन ‘सी’

टमाटर, नींबू, संतरा, शिमला मिर्च, मूली के पत्ते, हरा धनिया, पालक, सन्तरा, आंवला और अंगूर।

रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्वि प्रदान करना, कैंसर व हृदय सम्बन्धी रोगों को होने से रोकना, रक्त चाप को नियन्त्रित रखना, इसकी कमी से मसूढ़ों में खून का बहना, हड्डियों में कमजोरी व उच्च रक्तचाप की बीमारी का होना।

विटामिन ‘ई’

आलू, हरी पत्तेदार सब्जियाँ

इसकी कमी से नजर का कमजोर होना, चलते हुए लडखड़ाना तथा कमजोर जनन क्षमता।

विटामिन ‘के’

पत्तागोभी, गाजर, फूलगोभी, भिण्डी, पालक, मटर, टमाटर, आम, अंगूर एवं अनार।

इसकी कमी से रक्त का थक्का बनता है।

 

रबी के मोसम में उगाई जाने वाली सब्जियाँ-

                                                                

क्यारी क्रम.

सब्जियाँ

क्यारी क्रम.

सब्जियाँ

1.

फूलगोभी

8.

प्याज

2.

पत्ता गोभी

9.

लहसुन-अदरक

3.

चुकन्दर

10.

धनिया

4.

गाजर, अरबी

11.

मिर्च

5.

मूली, लाल भाजी

12.

टमाटर

6.

मटर

13.

मेथी

7.

बैंगन

14.

पालक

 

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।