प्लास्टिक निस्तारण के माध्यम से रोजगार का सृजन

                प्लास्टिक निस्तारण के माध्यम से रोजगार का सृजन

                                                                                                                                                        डॉ0 आर. एस. सेंगर एवं मुकेश शर्मा

“युवा जितेंद्र ने केंद्र सरकार की योजना में ऋण लेकर स्थापित किया संयंत्र गांवों में खोजा बाजार, नारी सशक्तीकरण को दी गति”

पर्यावरण के साथ स्वावलंबन को जोड़कर बिहार के एक युवा ने ग्रामीण क्षेत्र में अन्य युवकों के लिए भी रोजगार सृजन करने का मार्ग भी प्रशस्त किया है। सीतामढ़ी के रुन्नीसैदपुर निवासी जितेंद्र कुमार ने केंद्र सरकार की योजना का लाभ लेकर प्लास्टिक के कचरे के निस्तारण का संयंत्र स्थापित किया है। इससे वह स्वयं तो आत्मनिर्भर हुए ही हैं, छह दर्जन से अधिक अन्य लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार भी दिया है। इसके अलावा 300 से अधिक लोगों को अप्रत्यक्ष रोजगार भी मिला है।

                                                                           

दस जिलों तक आपूर्तिः संयंत्र में प्लास्टिक की रिसाइकिलिंग से कुर्सी, टेबल, स्टूल, डस्टबिन आदि के अलावा प्लास्टिक का दाना भी तैयार किया जाता है। इन उत्पादों की आपूर्ति सीतामढ़ी और आसपास के बाजार के अलावा बिहार के दस जिलों में भी की जाती है। प्लास्टिक कचरा प्रबंधन पर कार्य करने वाली संस्था एपिक, जितेंद्र कुमार को अप्रैल 2023 में मुंबई में आयोजित समारोह में सम्मानित कर चुकी है।

कचरा प्रबंधन में अनुभव : एएन कालेज पटना से लेबर एंड सोशल वेलफेयर मैनेजमेंट की पढ़ाई करने वाले जितेंद्र कुमार वर्ष 2008 में नई दिल्ली स्थित सेंटर फार इनवायरमेंट एजुकेशन से जुड़ गए। इसके निदेशक परमजीत सिंह सोढ़ी के साथ मिलकर उन्होंने प्लास्टिक सहित अन्य कचरे के प्रबंधन के क्षेत्र में कई वर्षों तक कार्य किया।

इसके बाद नवंबर 2017 में जितेंद्र कुमार ने पटना के राज भारती और वैशाली के राकेश पांडेय के साथ मिलकर केंद्र सरकार के बहु क्षेत्रीय विकास कार्यक्रम के अंतर्गत ऋण लेकर इस संयंत्र की स्थापना की। वह सीतामढ़ी जिले में कबाड़ के छोटे-बड़े व्यापारियों से प्लास्टिक का कचरा खरीदते हैं। आसपास के ग्रामीण क्षेत्र से भी प्लास्टिक का कचरा क्रय किया जाता है।

                                                                          

पर्यावरण संरक्षण संग प्लास्टिक के कचरे में अवसर खोजने वाले जितेंद्र कुमार बताते हैं कि लंबे समय तक दिल्ली में कार्य करने के दौरान लगा कि ग्रामीण क्षेत्र में भी इस गंभीर समस्या पर काम किया जाना चाहिए। स्वावलंबन के साथ अन्य के लिए भी रोजगार के अवसर बनेंगे।

नारी सशक्तीकरण का ध्यान रखते हुए संयंत्र के कामगारों में 30 प्रतिशत महिलाएं हैं। स्थानीय वेंडर भी जुड़े हैं जो साइकिल से गांव-गांव में उत्पाद बेचते हैं। अच्छे टर्नओवर से सरकारी योजना का ऋण भी वह भर चुके हैं।

‘‘सीतामढ़ी के रुन्नीसैदपुर में स्थित प्लास्टिक रीसाइकिलिंग संयंत्र में बेहतर कार्य हो रहा है। इस तरह के संयंत्र और स्थापित हों, इसके लिए उद्यमियों और युवाओं को प्रोत्साहित भी किया जा रहा है।’’

                                                                                                              -निशांत कुमार, उद्योग विस्तार पदाधिकारी, सीतामढ़ी

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।