गन्ने की खेती का रकबा बढ़ाने की कवायद

                     गन्ने की खेती का रकबा बढ़ाने की कवायद

                                                                                                                                  डॉ0 आर. एस. सेंगर, डॉ0 रेशु चौधरी एवं डॉ0 कृषाणु सिंह

‘‘इस पथ का यह उद्देश्य नहीं है श्रांत भवन में टिके रहना, किंतु पहुंचना उस सीमा पर जिसके आगे राह नहीं।’’ महाकवि जयशंकर प्रसाद की इस पंक्ति को शुगर केन मैन के नाम प्रसिद्ध डा. बक्शी राम ने अपने जीवन में धारण किया है। सेवानिवृति के बाद भी उनके कदम एक दिन के लिए भी नहीं रुक पाए है। गन्ने खेती का दायरा देश में कैसे बढ़े, वह दिन रात इसके लिए अंतहीन प्रयास कर रहे हैं।

वह चाहते हैं कि देश में गन्ना खेती का दायरा एक लाख हेक्टेयर की सीमा तक पहुंच जाए। जबकि वर्तमान में 52 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में ही गन्ने की खेती की जाती है। गन्ने की खेती का दायरा बढ़ाने के लिए देश में जहां भी शुगर मिल है, वहां जाकर किसानों से संवाद करते हैं। वह कम लागत में उत्पादन कैसे बढ़ा सकते हैं, इस बारे में किसानों को समझाते हैं। उनका मानना है कि जब कमाई अधिक होगी तभी गन्ने की खेती का दायरा बढ़े सकेगा।

                                                             

मूल रूप से हरियाणा के गुरूग्राम जिले के गांव सिधरावली के रहने वाले डा. बक्शी राम गन्ना संस्थानों, आइसीएआर गन्ना प्रजनन संस्थान कोयम्बटूर एवं उत्तर प्रदेश गन्ना अनुसंधान परिषद शाहजहांपुर के निदेशक रह चुके हैं। देश में उनकी पहचान गन्ना ब्रीडर के रूप में है। उन्हें गन्ना क्रांति का जनक भी कहा जाता है, क्योंकि वर्ष 2009 के दौरान उन्होंने गन्ना की प्रजाति सीओ-0238 विकसित की थी।

इस प्रजाति का उपयोग करने से गन्ने के उत्पादन में प्रति हेक्टेयर 20 टन तक की बढ़ोतरी दर्ज की गई थी। इस प्रकार गन्ने का उत्पादन बढ़ने से किसानों की आमदनी भी बढ़ी थी। इसके बाद गन्ने की खेती का दायरा काफी बढ़ा था। नई प्रजाति का लाभ हरियाणा के अलावा उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब से लेकर बिहार तक के किसान इस प्रजाति का जमकर उठा रहे हैं। डॉ0 बक्शी राम का मानना है कि वर्तमान में किसान केमिकल का इस्तेमाल अधिक करने लगे हैं, इस वजह से उन्हें आमदनी कम हो रही है।

                                                                                                                         

अतः किसानों को सलाह दी जाती है कि वे केमिकल का इस्तेमाल कम से कम करें, इस बारे में समझाने का बीड़ा, उन्होंने अपनी सेवानिवृति के बाद से ही उठा रखा है। देश भर में जहां भी शुगर मिल हैं। वहां जाकर सेमिनार आयोजित कराते हैं। सेमिनार में गन्ना किसानों को आमंत्रित करते हैं और उनसे सीधा संवाद करते हैं। संवाद के सकारात्मक परिणाम यह है कि कुछ किसान अब आर्गेनिक खादों का इस्तेमाल भी करने लगे हैं। डा. बक्शी राम कहते हैं कि कुछ किसानों को लगता है कि वह जितना अधिक केमिकल खेत में डालेंगे, उतना ही पैदावार भी अधिक होगी, परन्तु यह सोच सही नहीं है। कुछ समय तक तो पैदावार बढ़ सकती है, लेकिन बाद में मिट्टी का स्वास्थ्य खराब होने पर पैदावार कम होना शुरू हो जाती है।

जब पैदावार कम होना शुरू होती है तो किसान खेती से पीछे हटने लगते हैं। यही स्थिति अन्य फसलों के किसानों के सथ भी है, अतः किसानों को कम से कम केमिकल का इस्तेमाल करना चाहिए। इससे जमीन की उर्वरा शक्ति कभी कम नहीं होगी। डॉ0 बक्शी राम को खुशी है कि उनके प्रयास से काफी किसान काफी संख्या में जागरूक भी हुए हैं। अब किसान स्वयं भी एक-दूसरे से कहने लगे हैं कि केमिकल का इस्तेमाल कम करो अन्यथा आगे जमीन फसल के लायक ही नहीं रहेगी।

                                                                                  

डॉ0 बक्शी राम पिछले साल राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु के हाथों पद्मश्री सम्मान हासिल कर चुके हैं। उन्हें यह सम्मान गन्ना किसानों के जीवन में नई ऊर्जा का संचार करने के लिए दिया गया है। उनका कहना है कि सम्मान हासिल करने के बाद उनका उत्साह और अधिक बढ़ गया है।

अब तो उन्हें एक पल भी बैठने की इच्छा नहीं होती है। यदि कहीं नहीं जाता हूं तो बैठे-बैठे किसानों को जागरूक करने के लिए फेसबुक पर पोस्ट डालते रहता हूं। देश के काफी किसान उनके फेसबुक से जुड़े हुए भी हैं। काफी किसानों को वह वाट्सएप से भी मैसेज भेजते रहते हैं। बता दें कि डा. बक्शी राम कृषि क्षेत्र का सर्वोच्च रफी अहमद किदवई पुरस्कार भी प्राप्त कर चुके हैं। जबकि वह हरियाणा विज्ञान रत्न पुरस्कार भी हासिल कर चुके हैं।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।