नाकिमा, क्रोलीब्रोकेनियम और लेमन ग्रास के पौधे शुगर में 65 प्रतिशत तक लाभकारी

नाकिमा, क्रोलीब्रोकेनियम और लेमन ग्रास के पौधे शुगर में 65 प्रतिशत तक लाभकारी

                                                                                                                                        डॉ0 दिव्यांशु सेंगर एवं मुकेश शर्मा

सफेद चूहों पर इसका परीक्षण भी कर चुका है आईबीएसडी

ब्लड प्रेशर, शुगर व गठिया रोग से पीड़ित लोगों के लिए यह एक राहत की खबर है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधीन जैव संसाधन एवं स्थायी विकास संस्थान की इंस्टीटयूट ऑफ बायोरीसॉर्सेस एंड सस्टेनेबल डेवलपमेंट (आईबीएसडी) रीजनल सेंटर, सिक्किम ने नॉर्थ-ईस्ट के जंगलों में पाई जाने वाली वनस्पती नाकिमा, क्रोलीब्रोकेनियम, लेमन ग्रास व बेरिंडा जैसी जंगली पौधों पर रिसर्च कर निष्कर्ष निकाला कि इनके उपयोग से बीपी, शुगर और आर्थराइटिस (गठिया रोग) पर 60 से 65 प्रतिशत तक लाभ मिल सकता है।

                                                                  

सफेद चूहों पर इसका परीक्षण भी कर चुके हैं। अंतिम परीक्षण के बाद उक्त पौधों से बने प्रोडक्ट बाजार में उतारने की तैयारी है। गुरुग्राम रोड स्थित थिस्टी बायोटेक संस्थान में 9वें भारत अंतरराष्ट्रीय विज्ञान महोत्सव में आए शोधकर्ताओं ने इसकी जानकारी दी। आईबीएसडी के वैज्ञानिक डी. लोकेश देव ने बताया कि नाकिमा नामक पौधा नॉर्थ ईस्ट के राज्य सिक्किम, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश में पाया जाता है। लोग इसे सब्जी के रूप में उपयोग करते हैं।

इसके हरे पौधे और सूखे पौधे दोनों पर रिसर्च किया गया। दोनों शुगर नियंत्रित में 60 प्रतिशत तक कारगर हैं। इसे सूखाकर चाय के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। इसी प्रकार से क्रोलीब्रेकेनियम पौधा बीपी के लिए रामबाण है। इसकी देश में 100 प्रजातियां हैं। सफेद फूलवाला पौधा भी बीपी को नियंत्रित करता है। इसे भी चाय व जूस के रूप में लिया जा सकता है। खून के फ्लो को ठीक रखता है।

ये तीन पौधे गठिया रोग में कारगर :

                                                               

देव ने बताया कि जंगली अदरक, लेमन ग्रास और बेरिंडा आदि गठिया रोग के दर्द में 60 से 65 प्रतिशत तक कारगर है। इन पौधों का सफेद चूहों पर एक माह परीक्षण किया गया। परीक्षण में सामने आया कि ये पौधे फीमेल में अधिक कारगर है। अब यह रिसर्च अपने अंतिम चरण में है। इसके बाद इनके पौधों से जेल बनाकर बाजार में उतारा जाएगा।

लेखकः डॉ0 दिव्यांशु सेंगर, प्यारे लाल शर्मा जिला चिकित्सालय मेरठ में मेडिकल ऑफिसर के तौर पर कार्यरत हैं।