28 फरवरी राष्ट्रीय विज्ञान दिवस पर विशेष पेशकश

             28 फरवरी राष्ट्रीय विज्ञान दिवस पर विशेष पेशकश

                                                                                                                                                                                डॉ0 आर. एस. सेंगर

शोध संस्कृति से समृद्ध होता है विज्ञान का क्षेत्र

                                                                                 

भारत के प्रधानमंत्री आदरणीय श्री नरेंद्र मोदी जी ने वाक्य दिया था जय जवान, जय किसान, और जय विज्ञान जय। उन्होंने जय अनुसंधान का जयघोष करके यह सिद्ध किया कि भारत में यदि शोध संस्कृति में समृद्धि होती है तो निश्चित रूप से विज्ञान आगे बढ़ेगा। इसके साथ-साथ स्वदेशी के पद पर भी हम लोग आगे बढ़ाने में सक्षम हो सकेंगे। शायद मोदी जी का संकल्प था कि हम अपना मार्ग तो स्वयं तो बनाएं ही इसके साथ ही विश्व के मार्गदर्शक भी बने।

भारत में वैज्ञानिक शोध के विस्तारित होते संजाल और नवाचारों की नीतियों के चलते ही, आज भारत काफी तेजी से अंतरराष्ट्रीय पटल पर अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करा रहा है।

प्रत्येक वर्ष 28 फरवरी का दिन राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के रूप में मनाया जाता है। वर्ष 1928 में इसी दिन प्रख्यात भौतिक शास्त्री सीवी रमन ने विश्व को भारतीय मेघा के प्रकाश से परिचित कराया था। प्रकाश से जुड़े उनके शोध रमन इफेक्ट का प्रभाव ऐसा रहा कि वर्ष 1930 में विज्ञान की किसी भी शाखा में नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले वह भारत के ही नहीं बल्कि पूरे एशिया के पहले वैज्ञानिक बने। वर्ष 1987 से 28 फरवरी को भारत में राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। इस वर्ष के राष्ट्रीय विज्ञान दिवस की थीम है ‘‘विकसित भारत के लिए स्वदेशी तकनीक’’।

यदि सीवी रमन आज जीवित होते तो निश्चित रूप से बहुत प्रसन्न होते, जब उन्हें यह पता चलता कि आज भारत शोध अनुसंधान के क्षेत्र में तेजी से अपने कदम बढ़ा रहा है, स्वदेशी तकनीकें विकसित की जा रही हैं जिससे कि वर्ष 2047 में, जब हम अपना 100वां स्वाधीनता मना रहे होंगे तो हम रक्षा, स्वास्थ्य, अंतरिक्ष, कृषि और संचार आदि के क्षेत्रों में अत्यधिक स्वदेशी तकनीक का प्रयोग कर रहे होंगे। केवल आत्मनिर्भर ही नही, अपितु विश्व को राह दिखाने वाले भी बन सकें।

जिस गति से भारत में बीते 8-10 वर्षों में शोध अनुसंधान के क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है और उस पर विशेष ध्यान भी दिया जा रहा है, उसे विज्ञान के क्षेत्र में वैश्विक शक्ति बनने के लक्ष्य का शंखनाद भी सुगम होगा।

देश में शोध के क्षेत्र में हो रहा है निरंतर विस्तार

देश में हो रहे शोध के क्षेत्र में विस्तार के अन्तर्गत 03 जनवरी वर्ष 2019 की यह तारीख भी भारत में शोध अनुसंधान और विज्ञान के लिए अति महत्वपूर्ण दिनांक सिद्व हुई है। इस दिन 106वीं भारतीय विज्ञान कांग्रेस को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में एक विस्तारित शोध ईकोसिस्टम की बात कही थी। आईआईटी, आईआईएस और आईआईएसईआर के जैसे केंद्रीय संस्थान तो शोध कार्यों की रीड रहे ही हैं, अब शोध इकोसिस्टम को देश के विश्वविद्यालयों तक लेकर जाना है। इसका सबसे अहम कारण यह है कि देश के लगभग 95 प्रतिशत विद्यार्थी इन्हीं विश्वविद्यालयों में अध्ययन करने के लिए जाते हैं।

ऐसे में यह स्वाभाविक ही है कि इन विश्वविद्यालयों के माध्यम से शोध अनुसंधान की पहुंच देश की अधिकतम युवाओं की मेघा तक होगी। देश के प्रधानमंत्री ने अपने इस विचार को केवल अपने संबोधन तक ही सीमित नहीं रखा, अपितु आगामी दो वर्ष के दौरान ही केंद्र सरकार ने इसको अमली जामा भी पहना दिया। जब वर्ष 2021-22 के बजट में नेशनल रिसर्च फाउंडेशन यानी एनआरएफ के लिए 50000 करोड रुपए की राशि आवंटित की गई। इस परिप्रेक्ष्य में यदि एनआरएफ के महत्व को समझना हो, तो भारत सरकार के पूर्व प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार प्रोफेसर के विजराघवन की बात पर गौर किया जा सकता है।

एनआरएफ के गठन का स्वागत करते हुए, उन्होंने कहा था कि यह भारत में शोध अनुसंधान को विज्ञान की विभिन्न शाखाओं तक पहुंचाने का एक सेतु बनेगा। आज हम शायद इस ओर बढ़ भी रहे हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर योगेश सिंह ने तो संस्था में शोध अनुसंधान को प्रोत्साहित करने के लिए प्रतिष्ठित जनरल में प्रकाशन पर शोधकर्ताओं के लिए नगद पुरस्कार व सम्मान की पहल भी कर दी है।

वैश्विक वृद्धि से दोगुना होगा विस्तार

एनआरएफ तो विस्तार ले ही रहा है और इसके साथ ही देश में विज्ञान अब नया आयाम भी प्राप्त कर रहा है। शोध क्षेत्र के डेटाबेस के आधार पर रिपोर्ट जारी करने वाले साइवाल के अनुसार वर्ष 2017 से 2022 की अवधि में रिसर्च आउटपुट 54 प्रतिशत तक बढ़ा। लेकिन इससे भी बड़ा तथ्य है कि भारत में शोध कार्यों में एक उत्साहित करने वाली वृद्धि वैश्विक वृद्धि से दुगनी रही और विज्ञान तकनीक के दिग्गज माने जाने वाले पश्चिमी देशों से भी आज हम आगे रहे। कुछ समय पहले तक शायद यह बात किसी दिव्यास्वप्न के जैसी ही लगती, परन्तु अब गर्वित करने वाली एक सुखद वास्तविकता है।

थोड़े और आंकड़े देखें तो यह तस्वीर बिल्कुल साफ हो जाएगी कि भारत में शोध के क्षेत्र में काफी अच्छी प्रगति की है। वर्ष 2017 से 2022 के बीच भारत के 13 लाख शोध पत्र प्रकाशित हुए जो विश्व में इसी अवधि में चौथी सबसे बड़ी संख्या रही है। इसमें 45 लाख शोध पत्र प्रकाशन के साथ चीन शीर्ष स्थान पर था जबकि 44 लाख के साथ अमेरिका दूसरे और 14 लाख शोध पत्र प्रकाशन के साथ ब्रिटेन तीसरे स्थान पर रहा था। इसका अर्थ यह है कि हम केवल वैश्विक आर्थिक स्थिति ही नहीं बनने जा रहे हैं, बल्कि एक वैज्ञानिक शक्ति भी बनने जा रहे हैं। हमारे 19 प्रतिशत शोध कार्य अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों के साथ होते हैं जो कि वैश्विक आंकड़े 21 प्रतिशत के बहुत ही निकट हैं।

केंद्र सरकार ने इंस्टीट्यूट ऑफ इमिनेंस (आईओई) को भी प्रमुखता दी है, जिसका सुफल है कि 11 आईओई में हमारे डेढ़ लाख शोध पत्र छपे जिन पर 14 लाख से अधिक साइटेशन हुए। कदम तो बढ़ चुके हैं बस अब हमें गतिमान रहने की आवश्यकता है। हालांकि कुछ अवरोध अभी भी है किंतु हमारी तैयारी बताती है कि हम सफल होंगे और अभी काफी आगे भी बढ़ेंगे, क्योंकि अब हमारे देश में शोध संस्कृति बढ़ रही है और वैज्ञानिक ही नहीं युवा भी इस क्षेत्र में ध्यान दे रहे हैं। जिससे निश्चित रूप से आने वाले वर्षों में हम अपने विज्ञान को और अधिक समृद्धि दे सकेंगे।

शोध अनुसंधान में स्वदेशी रणनीतियों का सफल प्रयोग

                                                                   

शोध-अनुसंधान के आंकड़े तो हमने ऊपर पढ़ ही लिए हैं, लेकिन अब वास्तविकता के धरातल पर भी हमें यह देखना चाहिए कि हम कितने आगे बढ़ रहे हैं। ऐसे में सबसे पहले हम अपने रक्षा क्षेत्र की तरफ देखते हैं तो पाते हैं कि स्वदेशी डिजाइंन और रक्षा उपकरणों के विकास पर विशेष जोर दिया गया है। इंडिजेनेसली डिजाइंड डेवलप्ड एंड मैन्युफैक्चरिंग (आईडीडीएम) इसी दिशा में बढ़ा एक कदम रहा है।

अप्रैल 2018 में इनोवेशंस फॉर डिफेंस एक्सीलेंस यानी आईडेक्स को बनाया गया, ताकि रक्षा क्षेत्र में शोध नवोन्मेष का इकोसिस्टम तैयार हो सके। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का रक्षा तकनीकी में प्रयोग करने के लिए डिफेंस एआई काउंसिल और डिफेंस एआई प्रोजेक्ट एजेंसी की स्थापना की जा चुकी है। स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप मॉडल बनकर र्तैयार हो चुका है ताकि वैश्विक रक्षा उपकरण निर्माताओं के साथ तकनीकी साझा की जा सके।

रक्षा अनुसंधान के बजट का 25 प्रतिशत स्वदेशी तकनीक के लिए आरक्षित कर, रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के द्वारा अब उद्योगों, स्टार्टअप और अकादमिक विशेषज्ञों के लिए ओपन किए जा चुके हैं। अब तक नौ विशिष्ट क्षेत्रों की पहचान डीआरडीओ कर भी चुका है।

इन नीतियों का ही परिणाम है कि बीते कुछ वर्षों में कई आधुनिक रक्षा प्रणालियां और उपकरण हम विकसित कर चुके हैं- जैसे 155 एमएमम आर्टिलरी गन सिस्टम धनुष, हल्का युद्धक विमान तेजस, अर्जुन और टी-72 टैंक, आकाश मिसाइल, चीता हेलीकॉप्टर, आईएनएस कलवारी, खंडेरी और चेन्नई तथा पनडुब्बी रोधी युद्धक प्रणाली। यह सूची बहुत लंबी है जिसके अन्तर्गत बुलेट प्रूफ वाहनों के साथ रडार और कंट्रोल सिस्टम भी बनाए जा चुके हैं।

डीआरडीओ का ड्रोन भी अपने आप में एक अहम उपलब्धि है। अभी तक आयात पर निर्भर रहने वाला यह देश अब रक्षा उपकरण, प्रणालियों और हथियार अन्य देशों को निर्यात कर रहा है, जो कि हमारी एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। हमारे देश में 200 स्टार्टअप हैं जो इसी से संबंधित है और इनका पूरा नवाचार अनुसंधान स्वदेशी ज्ञान पर आधारित है। इसी प्रकार 25 प्रतिशत स्वदेशी तकनीक के लिए आरक्षित हैं, रक्षा अनुसंधान का बजट इस बात को ही सिद्व करता है।

अब हमारी पहुँच है बीज से ब्रह्मांड तक

                                                                              

अंतरिक्ष क्षेत्र में तो हम नित्य नए आयाम तो छू ही रहे हैं, इसमें चांद के दक्षिणी ध्रुव पर अपने दम पर चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग हो या अतिकिफायती मंगलयान या फिर सूर्य की टोह पाने के लिए निकला हमारा आदित्य एल-1 मिशन, भारतीय शोध व मेधा की सफलता ब्रह्मांड के हर क्षेत्र में व्याप्त है। क्रायोजेनिक इंजन को मिला प्रमाणन सबसे नई सफलता है तो कृषि में नैनो यूरिया इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।

तकनीक के प्रयोग और नित्य नए शोध में हमारे प्रसार का एक सबसे बड़ा उदाहरण पेश किया गया है। इसके अलावा नई प्रजातियों का विकास, मौसम पूर्वानुमान की नई विधियां, मिट्टी की जांच की बेहतर सुविधा हो या एआई के प्रयोग से मोबाइल ऐप पर फसलों की बीमारी पहचान करना एवं उसका उपचार करने की सलाह के माध्यम से खेती-किसानी अब आधुनिक हो चली है। देश के सामने जैसे-जैसे चुनौतियां आती हैं तो उनसे निपटने के लिए नए ज्ञान का मार्ग प्रशस्त भी होता है।

आज देश का माहौल विज्ञान और अनुसंधान की प्रति बहुत सकारात्मक है। भारतीय विश्वविद्यालयों के द्वारा पेटेंट फाइलिंग में हुई वृद्धि भी इसी तथ्य को स्पष्ट करती है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में वैक्सीन के मामले में हम पहले ही वैश्विक पहचान बना चुके हैं। एंटीबायोटिक दवाओं के प्रतिरोध की घटती क्षमता को रोकने के लिए किए जा रहे वैश्विक शोध कार्यों में भी भारत अहम हिस्सेदारी है। एम्स की बढ़ती संख्या चिकित्सा और उपचार के क्षेत्र में नए शोधों की राह को प्रशस्त करती है।

संचार के क्षेत्र में भी अब 5जी को देश में कोने-कोने में पहुंचने की पूरी तैयारी की गई है, इससे ग्रामीण क्षेत्रों तक ब्रॉडबैंड पहुंच सुनिश्चित होगी। सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के स्टार्टअप इनक्यूबेशन एंड इन्नोवेशन सेंटर के निदेशक डॉक्टर आर. एस. सेंगर के अनुसार नवाचार और शोध की दिशा में भारत ने मजबूत कदम बढ़ाए हैं। कृषि विश्वविद्यालय 20 क्षेत्रों में यह कार्य प्रारंभ कर चुका है।

मजबूत इनोवेशन और नवाचार अनुसंधान के माध्यम से भारत पूरी दुनिया का अग्रणी स्टार्टअप हब बनने के लिए तैयार को पूर्ण कर चुका है। नव परिवर्तन को सशक्त बनाकर हमारा लक्ष्य रोजगार सृजन और समान विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाना है, जिसमें हम अवश्य ही सफल होंगे।

बौद्धिक संपदा को पेटेंट का कवच पहनाने की राह में भी भारत अग्रसर

                                                                           

वर्ल्ड इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी ऑर्गेनाइजेशन की रिपोर्ट शोध क्षेत्र में भारत की गतिशीलता की शक्ति की ओर संकेत करती है। इस रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2022 में भारतीयो के द्वारा इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी आवेदन 31 प्रतिशत से अधिक बढ़े, जो कि बीते दशक के शीर्ष 10 आवेदनकर्ता देशों में सबसे अधिक है। भारतीय पेटेंट कार्यालय के द्वारा नवंबर 2023 तक 41,000 से अधिक पेटेंट प्रदान किए गए, जबकि वर्ष 2013-14 में यह संख्या मात्र 4,227 ही थी। आईआईटी मद्रास को वर्ष 2023 में 300 पेटेंट मिले हैं, जो पिछले वर्ष की अपेक्षा दुगने हैं।

संस्थान के निदेशक वी कामाकोटि कहते हैं कि भारत को महाशक्ति बनाने के लिए यह जरूरी है कि अपने शोध को, विचार को पेटेंट के माध्यम से सुरक्षित बनाया जाए। आईआईटी मद्रास के शोधकर्ता, वायरलेस नेटवर्क एडवांस्ड मटेरियल, रोबोटिक, इंजन एडवांसमेंट, स्वच्छ ऊर्जा, एडवांस सेंसर एप्लीकेशंस और बायोमेडिकल एप्लीकेशंस सहित दूसरे कई उभरते क्षेत्रों में बौद्धिक संपदा को विकसित कर रहे हैं।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।