पर्यावरण और प्लास्टिक प्रदूषण

                                                                          पर्यावरण और प्लास्टिक प्रदूषण

                                                                                                                           डॉ0 आर. एस. सेंगर, डॉ0 शालिनी गुप्ता एवं मुकेश शर्मा

    कभी जीवन को आसान बनाने के लिये ईजाद किया गया प्लास्टिक आज इंसानों की जान का दुशमन बन गया है। हवा, पानी और जमीन में मौजूद प्लास्टिक के विषैले और कैंसर कारक तत्व जीवन को दीमक की तरह चाट रहे हैं।

    प्लास्टिक और पॉलीथीन के कारण पृथ्वी और जल के साथ-साथ वायु भी प्रदूषित होती जा रही है। हाल केदिनों में मीठे और खारे दोनों प्रकार के पानी में मौजूद जलीय जीवों में प्लास्टिक के केमिकल से होने वाले दुष्प्रभाव नजर आने लगे हैं। इसके बावजूद प्लास्टिक और पॉलीथीन की बिक्री में कोई कमी नहीं आई है।

प्लास्टिक प्रदूषण के बारे में-

- प्लास्टिक की उत्पत्ति सेलूलोज डेरिवेटिव में हुई थी, प्रथम सिंथेटिक प्लास्टिक को बेकेलाइट कहा गया और इसे जीवाश्म ईंधन से निकाला गया था।

- फेंकी हुई प्लास्टिक धीरे-धीरे अपघटित होती हैं एवं इसके रसायन आस-पास के परिवेश में घुलने लगते हैं। यह समय के साथ और छोटे-छोटे घटकों में टूटती जाती है और हमारी खाद्य शृंखला में प्रवेश करती है।

- यहाँ यह स्पष्ट करना बहुत आवश्यक है कि प्लास्टिक की बोतलें ही केवल समस्या नहीं हैं, बल्कि प्लास्टिक के कुछ छोटे रूप भी हैं, जिन्हें माइक्रोबिड्स कहा जाता है। ये बेहद खतरनाक तत्व होते हैं, इनका आकार 5 मिलीमीटर से अधिक नहीं होता है।

- इनका इस्तेमाल सौन्दर्य उत्पादों तथा अन्य क्षेत्रों में किया जाता है। ये खतरनाक रसायनों को अवशोषित करते हैं। जब पक्षी एवं मछलियाँ इनका सेवन करती हैं तो यह उनके शरीर में चले जाते हैं।

- भारतीय मानक ब्यूरो ने हाल ही में जैव रूप से अपघटित न होने वाले माइक्रोबड्स को उपभोक्ता उत्पादों में उपयोग के लिये असुरक्षित बताया है।

- अधिकंशतः प्लास्टिक का जैविक क्षरण नहीं होता है। यही कारण है कि वर्तमान में उत्पन्न किया गया प्लास्टिक कचरा सैकड़ों-हजारों साल तक पर्यावरण में मौजूद रहेगा, ऐसे में इसके उत्पादन और निस्तारण के विषय में गंभीरतापूर्वक विचार-विमर्श किए जाने की आवश्यकता है।

नुकसानदायक प्लास्टिक

                                                   

माइक्रो प्लास्टिक - कॉस्मेटिक में उपयोग हो रहा माइक्रो प्लास्टिक या प्लास्टिक बड्स पानी में घुलकर प्रदूषण बढ़ा रहे हैं। इसकी मौजूदगी जलीय जीवों में भी मिली है। माइक्रो प्लास्टिक मछलियों के साथ-साथ भोजन शृंखला के जरिए पक्षियों और कछुओं में भी मिलने की पुष्टि हुई है। यही वजह है कि भारत सहित कई देखों ने जुलाई 2017 में इस पर बैन लगाया।

समुछ्र में प्लास्टिक - रीसाइक्लिंग से बचे और बेकर हो चुके प्लास्टिक का बड़ा हिस्सा हमारे समुद्रों में डंप हो रहा है। अनुमान है कि 2016 में समुद्र में 70 खरब प्लास्टिक के टुकड़े मौजूद थे, जिसका वजन तीन लाख टन से अधिक है।

जलीय जीवों को क्षति-

- वैज्ञानिक अब तक 250 जीवों के पेट में खाना समझकर या अनजाने में प्लास्टिक खाने की पुष्टि कर चुके हैं। इनमें प्लास्टिक बैग, प्लास्टिक के टुकड़े, बोतलों के ढक्कन, खिलौने, सिगरेट लाइटर तक शामिल हैं। समुद्र में जेलीफिश समझकर प्लास्टिक बैग खाने वाले जीव हैं, तो हमारे देश में सड़कों पर आवारा छोड़ दी गई गायें इन प्लास्टिक बैग में छोड़े गए खाद्य पदार्थों के साथ बैग भी खा जाती हैं।

- साथ ही 693 प्रजातियों के जलीय, पक्षी और वन्य जीव अब तक प्लास्टिक के जाल रस्सियों और अन्य वस्तुओं में उल्झे मिले हैं, जो अक्सर उनकी मौस की वजह बनते हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ पर्यावरण कार्यक्रम की रिपोर्ट के अनुसार प्लास्टिक से बचाव में हो रहा निवेश विभिन्न देशों को आर्थिक रूप से भी नुकसान पहुँचा रहा है। अमरीका अकेले 1300 करोड़ डॉलर अपने समुद्र तटों से प्लास्टिक साफ करने में खर्च कर रहा है।

पेट में पहुँच रहे नौ तरह के प्लास्टिक कण -

    मेडिकल यूनिवर्सिटी ऑफ विएना और एनवायरमेंट एजेंसी ऑफ ऑस्ट्रिया के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में पाया है कि तकरीबन नौ तरह की प्लास्टिक के कण खाने-पीने एवं अन्य तरीकों से इंसान के पेट में पहुँच रहे हैं। प्लास्टिक के ये कण लसीका तंत्र और लीवर तक पहुँच कर इंसान की रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित कर सकते है। आंतों और पेट की बीमारी से पीड़ित मरीजों के लिए तो ये प्लास्टिक और भी ज्यादा खतरनाक होते हैं। प्लास्टिक के इन कणों से कोशिकाएं तो प्रभावित होती ही हैं साथ ही इससे रक्त के प्रवाह में भी बाधा आती है। पर्यावरणविद् और जल पुरुष के नाम से प्रख्यात मैग्सेसे अवार्ड विजेता राजेन्द्र सिंह के अनुसार, प्लास्टिक के साथ लेड जैसे हानिकारक तत्व पानी में घुल जाते है। जो शरीर को भारी नुकसान पहुँचाते हैं।

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हर हफ्ते पांच ग्राम प्लास्टिक निगल रहा इंसान -

    ऑस्ट्रेलिया की यूनिवर्सिटी ऑफ न्यूकैसल द्वारा किए गए अध्ययन में पाया गया है कि हर इंसान एक हफ्ते में औसतन पांच ग्राम प्लास्टिक निकल रहा है। प्लास्टिक कचरे का एक तिहाई से अधिक हिस्सा प्रकृति में मिल जाता है, खास कर पानी में जो शरीर में प्लास्टिक पहुँचाने का सबसे बड़ा स्रोत है। नल की पानी में पलास्टिक फाइबर पाए जाने के मामले में भारत तीसरे स्थान पर है। भारत में 82.4 फीसद तक प्लास्टिक फाइबर पाया जाता है। यानि प्रति 500 मिली पानी में चार प्लास्टिक फाइबर मौजूद होते हैं। एक अन्य शोध के मुताबिक हर साल एक व्यक्ति 52 हजार से ज्यादा प्लास्टिक के माइक्रो कण खाने-पीने और संास के जरिए निगल रहा है। प्लास्टिक के जलने से उत्सर्जित होने वाली कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा 2030 तक तिगुनी हो जाएगी। इससे हृदय रोगों के बढ़ने के मामलों में तेजी आएगी।

127 करोड टन प्लास्टिक जा रहा समुद्र में-

    जॉर्जिया विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के मुताबिक 41 लाख टन से 1.27 करोड़ टन के बीच प्लास्टिक हर साल समुद्र में प्रवेश करता है, जो 2025 तक दोगुना होने की उम्मीद है। यही नहीं समुद्र में 90 फीसद प्लास्टिक तो दुनिया की दस बड़ी नदियों से ही पहुँचता है। एक आंकलन में कहा गया है कि समुद्रों और महासागरों में हर साल करीब 10 लाख समुद्री पक्षी और एक लाख स्तनधारी प्लास्टिक प्रदूषण के कारण मौत के मुँह में समा जाते हैं। प्लास्टिक के मलबे से समुद्री कछुओं की दम घुटने से मौत हो रही है और व्हेल इसके जहर का शिकार हो रही है। प्रशांत महासागर में द ग्रेट पैसिफिक गार्बेज पैच समुद्र में कचरे के सबसे बड़ा ठिकाना है। अनुमान है कि यहाँ पर 80 हजार टन से भी ज्यादा प्लास्टिक जमा है।

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जल, थल और वायु तीनों हो रहे प्रदूषित

    अनुमान है कि समुद्र में 1950 से 2016 के बीच के 66 वर्षों में जितना प्लास्टिक जमा हुआ है, उतना अगले केवल एक दशक में जमा हो जाएगा, इससे महासागरों में प्लास्टिक कचरा 30 करोड टन तक पहुँच सकता है। यही नहीं हर साल उत्पादित होने वाले कुल प्लास्टिक में से महज 20 फीसद ही रिसाइकिल हो पाता है। 39 फीसदी प्लास्टिक कचरा जमीन के अंदर दबाकर नष्ट किया जाता है और 15 फीसदी जला दिया जाता है। एक अध्ययन में बारिश के पानी में भी प्लास्टिक के कणों की मौजूदगी के बारे में पता चला है। ऐसे में कहना गलत नहीं होगा कि प्लास्टिक जल, थल और वायु तीनों को प्रदूष्ज्ञित कर रहा है। चूँकि प्लास्टिक में कैंसर कारक तत्व पाए जाते हैं ऐसे में आने वाले दिनों में यह समस्या महामारी का रूप ले सकती है।

प्लास्टिक प्रदूषण और भारत

                                                         

    पिछले 50 वर्ष में हमने अगर किसी चीज का सबसे ज्यादा उपयोग किया है तो वो है प्लास्टिक। इतना ज्यादा उपयोग किसी भी अन्य वस्तु का नहीं किया गया है। 1960 में दुनिया में 50 लाख टन प्लास्टिक बनाया जा रहा था। आज यह मात्रा बढ़कर 300 करोड़ टन के पार हो चुकी है। यानी लगभग हर व्यक्ति के लिए करीब आधा किलो प्लास्टिक हर वर्ष बन रहा है।

    वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में सालाना 56 लाख टन प्लास्टिक का कूड़ा बनता है। दुनियाभर में जितना कूड़ा हर साल समुद्र में बहा दिया जाता है, उसका 60 प्रतिशत हिस्सत भारत डालता है। प्रत्येक भारतीय रोजाना 15000 टन प्लास्टिक को कचरे के रूप में फेंक देते हैं। प्लास्टिक प्रदूषण के कारण पानी में रहने वाले करोड़ों जीव-जन्तुओं की मौत हो जाती है।

    यह धरती के लिए काफी हानिकारक है। दुनिया भर के विशेषज्ञ कहते हैं कि जिस रफ्तार से हम प्लास्टिक इस्तेमाल कर रहे हैं, उससे वर्ष 2020 तक दुनियाभर में 12 अरब टन प्लास्टिक कचरा जमा हो चुका होगा। इसे साफ करने में सैकड़ों साल लग जाएंगे।

इस तरह होगा समस्या का निदान

    सिंगल यूज प्लास्टिक के निस्तारण में कई कंपनियाँ आगे आई हैं। बनयान नेशन भारत की पहली एकीकृत प्लास्टिक रिसाइकिलिंग कंपनी है जिसने इस क्षेत्र में उल्लेखनीय काम किया है। प्लास्टिक की रिसाइक्लिंग की दिशा में यह अपनी कोशिशों के चलते 2018 का पीपुल्स च्वाइस अवार्ड जीत चुकी है। यही नहीं नीदरलैंड की कंपनी परपेचुअल पीर्ठटी बोतलों से उच्च गुणवत्ता वाले टिकाऊ (पॉली) ईस्टर तैयार कर रही है जिससे नए बोतल बनते हैं। पानी के कारोबार से जुड़ी कंपनी एवियर ने फैसला किया है कि यह 2025 से हर बोतल रिसाइकिल प्लास्टिक से ही तैयार करेगी। यह उच्च गुणवत्ता वाले प्लास्टिक रेजिन को बनाने में कामयाब हुई है इससे नई प्लास्टिक नहीं बनानी होगी। इसके अलावा डिकंपोज हो जाने वाली पन्नियों के उत्पादन की पहल भी हो रही है। उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाले वक्त में ये कोशिशें रंग लाएंगी।

सराहनीय उपाय-

- दुनिया के कई हिस्सों में अनुपयोगी प्लास्टिक कचरे से सड़कें बनाई जा रही हैं, वहीं ईरान सहित कई देश प्लास्टिक को छोटे टुकड़ों में तोड़कर उन्हें कंक्रीट के रूप में पत्थरों की कमी दूर करने के लिए करने के लिए उपयोग कर रहे हैं। वहीं प्लास्टिक के रीसाइकिल की बात की जाए तो इस समय दुनिया का एक तिहाई प्लास्टिक ही रीसाइकिल हो पा रहा है।

- वैज्ञानिकों के अनुसार, प्लास्टिक को अधिक से अधिक मात्रा में रीसाइकिल करने की जरूरत है। इसी तरह मुंबई का वर्सोवा तट, लोगों द्वारा प्लास्टिक से मुक्त करने के अभियान का एक अनूठा उदाहरण बना है। ऐसे ही अभियान देश के विभिन्न हिस्सों में चलाए जा रहे हैं।

- देश की कई बड़ी कंपनियों ने प्लास्टिक प्रदूषण में कमी लाने में मदद करने की शपथ ली है। री-यूज, री-साइकिल, रिड्यूज, इन तीन तरीकों को अपनाकर प्लास्टिक प्रदूषण में भारी कमी लाई जा सकती है। भारत सरकार ने कई राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में प्लास्टिक प्रदूषण रोकने के लिए प्लास्टिक केरी बैग्स पर पूरी तरह पहले से ही रोक लगा रखी है।

- केरल में कई सरकारी कार्यालय के कर्मचारियों ने प्लास्टिक के बने सामान जैसे प्लास्टिक की पानी की बोतलें और चाय के डिस्पोजेबल कप का उपयोग करना छोड़ दिया है। इसकी जगह स्टील कटलरी का उपयोग करना शुरू कर दिया है। वहीं केरल के मछुआरे महासागरों में फेंकी गई प्लास्टिक को अपने जाल की मदद से बाहर निकाल रहे हैं। उन्होंने कडलममा में समुद्र में फेंके गए सभी प्लास्टिक के थैले, बोतलें, पुआल इत्यादि को बाहर निकालकर संशोधित करने के लिए पहली बार रीसाक्लिंग सेंटर स्थापित किया है।

- सिक्किम सरकार ने 2016 में दो बड़े फैंसले किए। पहले फैंसले में उन्होंने सरकारी कार्यालयों को परिसर में पैकिंग पेयजल के उपयोग पर प्रतिबंध लगाया, दूसरा फैसला, प्लास्टिक प्रदूषण के हानिकारण प्रभाव को कम करने और थर्माकॉल डिस्पोजेबल प्लेट्स और कटलरी की खपत पर प्रतिबंध लगा दिया गया।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, मेरठ में प्रोफेसर तथा कृषि जैव प्रौद्योगिकी विभाग के विभाग-अघ्ययक्ष हैं।

डिस्कलेमरः उपरोक्त विचार लेखक के अपने हैं।