महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय उदयपुर द्वारा अफीम की नई किस्म ’चेतक’ विकसित

महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय उदयपुर द्वारा अफीम की नई किस्म ’चेतक’ विकसित

                                                                                                                                              डॉ0 आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

 काला सोना, यानी अफीम उत्पादक किसानों के लिए खुश कर देने वाली खबर।

    महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय उदयपुर, राजस्थान के वैज्ञानिकों ने परीक्षणों की लंबी प्रक्रिया के बाद अफीम की नई किस्म ’चेतक’ विकसित की है। चेतक अफीम न केवल राजस्थान बल्कि मध्यप्रदेश व उत्तर प्रदेश के किसानों के लिए मील का पत्थर साबित होगी। परीक्षणों में पाया गया कि ’चेतक’ अफीम से न केवल मार्फीन बल्कि डोडा-पोस्त में भी अपेक्षाकृत ज्यादा उत्पादन प्राप्त कर सकते है। यही नहीं राजस्थान सहित मध्यप्रदेश व उत्तर प्रदेश की जलवायु भी इसके लिए अति उत्तम है।

                                                             

महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के अनुसंधान निदेशक, डॉ. अरविन्द वर्मा ने बताया कि इस किस्म का विकास अखिल भारतीय औषधीय एवं सगंधीय पौध अनुसंधान परियोजना, उदयपुर के तहत् डॉ. अमित दाधीच, पादप प्रजनक एवं परियोजना प्रभारी की टीम ने किया है।

डॉ. वर्मा के अनुसार औषधीय एवं सगंधीय अनुसंधान निदेशालय, बोरीयावी, आणंद गुजरात, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा आयोजित नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या, उत्तरप्रदेश में 7-9 फरवरी, 2024 को 31वीं वार्षिक समीक्षा बैठक में इस किस्म (चेतक अफीम) की पहचान, भारत में अफीम की खेती करने वाले राज्यों, राजस्थान, मध्यप्रदेश एवं उत्तरप्रदेश आदि के लिए की गई है।

                                                                   

डॉ. अमित दाधीच ने बताया कि यदि किसान वैज्ञानिक तकनीक को आधार बनाकर चेतक अफीम की फसल का उत्पादन करता है तो अफीम की खेती से औसतन 58 किलोग्राम अफीम प्रति हैक्टर साथ ही औसतन मार्फीन उपज 6.84 किलोग्राम प्रति हैक्टर तक प्राप्त की जा सकती है। इसके साथ ही 10-11 क्विंटल औसतन अफीम बीज प्रति हैक्टर एवं 9-10 क्विंटल औसतन डोडा-पोस्त प्रति हैक्टर तक प्राप्त किया जा सकता है।

इस किस्म की यह विशेषता है कि इसके फूल सफेद रंग के होते है। इस किस्म में अफीम लूना (एकत्रित) करने के लिए बुवाई के 100-105 दिनों के पश्चात् चीरा लगाना चाहिए तथा इस किस्म में मॉर्फिन की मात्रा औसतन 11.99 प्रतिशत है। इस किस्म में 135-140 दिन में बीज परिपक्व हो जाते है। किसानों के खेतों पर चेतक अफीम का प्रथम पंक्ति प्रदर्शन में भी काफी अच्छा प्रदर्शन रहा है।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।