किडनी के स्वास्थ्य के सन्दर्भ में

                              किडनी के स्वास्थ्य के सन्दर्भ में

                                                                                                                                                             डॉ0 दिव्यांशं सेंगर एवं मुकेश शर्मा

“नियमित जांच और स्वस्थ जीवन शैली के चलते अपनी किडनी को बनाएं रख सकते हैं ठीक”

                                                                             

‘‘मधुमेह और उच्च रक्तचाप की तुलना में अपने क्रिएटिनिन लेवल के बारे में लोग कम ही जानते हैं। किडनी की अच्छी सेहत के लिए क्रिएटिनिन का सामान्य रेंज में रहना भी उतना ही जरूरी होता है। नियमित जांच, स्वस्थ जीवनशैली और खानपान से जुड़ी किन बातों पर ध्यान देना जिससे क्रिएटिनिन लेवल और किडनी को सही रख जा सकता है, के बारे में जानकारी दे रहे हैं डॉ0 दिव्यंशु सेंगर-

किडनी की समस्याओं के कई कारण हो सकते हैं, लेकिन बात जब इनके निदान की हो तो इसकी जानकारी रक्त परीक्षण के माध्यम से सीरम क्रिएटिनिन के स्तर से ही मिलती है। ऐसे में यदि क्रिएटिनिन का स्तर निर्धारित रेंज से अधिक है, तो किडनी रोगों की आशंकाएं भी बढ़ जाती है।

क्रिएटिनिन, अमेरिका स्थित द नेशनल किडनी फाउंडेशन के अनुसार, क्रिएटिनिन शरीर की मांसपेशियों का वह अपशिष्ट उत्पाद है, जो रीढ़ की हड्डी के दोनों और स्थित किडनी की सेहत का सूचक होता है। इसमें एमीनो एसिड होता है, जो अधिक चिकनाई युक्त चीजें खाने से बनता है। हमारी किडनी खून से क्रिएटिनिन के अलावा कई अपशिष्ट उत्पादों को फिल्टर करती है। फिल्टर होने के बाद ये अपशिष्ट उत्पाद पेशाब के रास्ते बाहर निकल जाते हैं। परन्तु, जब किडनी ढंग से अपना काम नहीं कर पाती हैं तब ये अपशिष्ट रक्त में जमा होने लगते हैं और इनकी मात्रा के बढ़ने पर विभिन्न प्रकार की समस्याएं सामने आने लगती है-

क्रिएटिनिन लेवल बढ़ने के लक्षण

                                                                                 

किसी भी अस्थायी कारण से यदि क्रिएटिनिन स्तर बढ़ता है, तो उसके कोई विशेष लक्षण सामने नहीं आते। पर, किडनी संबंधी समस्या होने पर कुछ इस तरह के लक्षण सामने आ सकते हैं-

  • मूत्र मार्ग (यूटीआई) में होने वाला संक्रमण, जिसका इलाज न होने से यह संक्रमण किडनी में भी पहुंच जाता है।
  • पेशाब में जलन व दर्द होना और पेशाब कम पर जल्दी-जल्दी आना।
  • हाथों व पैरों में सूजन होना तथा साथ में मसल्स क्रैम्ंप होना।
  • सांस लेने में परेशानी होना, सीने में दर्द।
  • शरीर में खुजली होना।
  • जी मिचलाना व बेहोशी रहना
  • खून की कमी (एनीमिया) का होना।
  • अनिद्रा, आंखों के नीचे सूजन होना।

किसी व्यक्ति में उपरोक्त लक्षण दिखाई देने पर उसे तुरंत ही डॉक्टर या किसी किडनी विशेषज्ञ (नेफ्रोलॉजिस्ट) से मिलना चाहिए। सीरम क्रिएटिनिन द्वारा विशेषज्ञ ग्लोमेरुलर फिल्टरेशन रेट अर्थात (जीएफआर) की जानकारी लेते हैं और उसीके आधार किडनी की हालत का आकलन करते हैं।

क्रिएटिनिन के बढ़ने के कारण

                                                                      

किडनी संबंधी विकारः- किडनी की प्रक्रिया में किसी प्रकार की गड़बड़ी, क्रिएटिनिन के बढ़ने का मुख्य कारण होता है। क्रोनिक किडनी रोगों में शरीर क्रिएटिनिन सहित अन्य अशुद्धियां फिल्टर नहीं कर पाता है। मधुमेह, पथरी, संक्रमण, ग्लोमेरुलोनेफ्राइटिस व गुर्दे की रुकावट जैसी स्थिति में किडनी की फिल्टर क्षमता कम हो जाती है और क्रिएटिनिन बढ़ने लगता है।

मांसपेशियों की चोटेंः- चोट, तीव्र व्यायाम या कुछ अन्य सेहत सम्बन्धित समस्याओं में मांसपेशियों की टूट-फूट खून में अधिक मात्रा में क्रिएटिनिन जारी करती है, जिससे इसका स्तर बढ़ जाता है।

उच्च प्रोटीन युक्त आहारः- लंबे समय तक उच्च प्रोटीन युक्त आहार का सेवन करना भी किडनी की फिल्टर क्षमता पर बुरा असर डालता है। किडनी को अधिक श्रम करना पड़ता है और इसके चलते क्रिएटिनिन बढ़ सकता है।

डिहाइड्रेशनः- शरीर में पानी की कमी होने पर पेशाब कम निकलता है। इसका अर्थ है कि क्रिएटिनिन व अन्य अशुद्धियां मूत्र पथ में देर बनी तक रहती हैं, जो क्रिएटिनिन के स्तर को बढ़ाती हैं।

विभिन्न दवाओं का कुप्रभावः- कीमोथेरेपी एवं कुछ एंटीबायोटिक दवाएं भी क्रिएटिनिन के लेवल को बढ़ा सकती हैं। ब्लड प्रेशर व ब्लड शुगर का बेकाबू बने रहना भी किडनी की सेहत पर बुरा असर डालता है। रक्त में शर्करा बढ़ने से फिल्टर प्रक्रिया पर जोर पड़ता है, वहीं रक्त नलिकाओं के संकुचन से अंगों तक रक्त संचार करने में बाधा आती है। इसके अलावा नमक अधिक सेवन करना, मोटापा, धूम्रपान और बिना परामर्श दर्द निवारक दवाएं सेवन करना, किडनी पर बुरा असर डालता है और यह क्रिएटिनिन के स्तर को भी बढ़ा सकती हैं।

  • 1.5 लाख लोग प्रतिवर्ष हमारे देश में किडनी फेल्योर की समस्या से पीड़ित होते हैं। तो वहीं डायलिसिस की सुविधा और किडनी ट्रांसप्लांट सुविधाएं भी मांग की तुलना में काफी कम है।
  • भारत में प्रतिवर्ष लगभग 4,500 से अधिक लोगों का ही किडनी प्रत्यारोपण हो पाता है, जबकि इसकी तुलना में मांग काफी अधिक रहती है।
  • एक अनुमान के अनुसार भारत में प्रत्येक 10 में से एक व्यक्ति किडनी सम्बन्धी समस्याओं से ग्रस्त होता है।

आयु के अनुसार क्रिएटिनिन का स्तर

क्रिएटिनिन का स्तर प्रत्येक व्यक्ति की मांसपेशियों पर निर्भर करता है। आमतौर पर, महिलाओं में, पुरुषों की तुलना में क्रिएटिनिन का स्तर कम रहता है। बच्चों में भी यह कम होता है। परन्तु जैसे-जैसे व्यक्ति की आयु बढ़ती है तो उसकी मांसपेशियां अपेक्षाकृत कमजोर व कम होने लगती है।

इससे क्रिएटिनिन के सामान्य स्तर में भी कमी आती है। जिस प्रकार हम 120/80 रक्तचाप या ब्लड प्रेशर को नॉर्मल मानते हैं, ठीक उसी तरह सामान्य शब्दों में क्रिएटिनिन को 0.5 से 1.2 के लेवल तक ठीक माना जाता है।

आयु वर्ग (वर्ष में)

अनुमानित सीरम

क्रिएटिनिन स्तर (एमजी/एल)

पुरूष

महिला

18-41

18-41

0.5-1.0

41-61

41-61

0.5-1.1

61 वर्ष से अधिक

61 वर्ष से अधिक

0.5-1.2

जांच व उपचार

                                                                           

किडनी रोगों की पहचान और क्रिएटिनिन स्तर जानने के लिए सीरम क्रिएटिनिन परीक्षण एवं क्रिएटिनिन क्लीयरेंस टेस्ट कराया जाता है। क्रिएटिनिन के स्तर के अनुसार ही डॉक्टर उपचार का विकल्प चुनते हैं। इसके अन्तर्गत पहले से ली जा रही दवाओं में बदलाव, रक्तचाप को नियमित करने की दवाएं और खानपान में बदलाव के तरीकों को अपनाया जाता हैं।

डायलिसिस की आवश्यकताः- जब सीरम क्रिएटिनिन का स्तर रक्त में वयस्कों में 5 एमजी/ डीएल या इससे अधिक और छोटे बच्चों में 2 एमजी/ डीएल या इससे अधिक हो जाता है तो यह एक गंभीर स्थिति मानी जाती है। ऐसी हालत में रक्त से क्रिएटिनिन व अन्य अपशिष्ट को हटाने के लिए डायलिसिस की आवश्यकता होती है।

आयुर्वेद के अनुसार

1.   मोथा, पित्तपापड़ा, उशीर, चंदन, सुगंध बाला और सोंठ को बराबर मात्रा में और मोटा सा चूर्ण बना लें। 5 ग्राम चूर्ण करीब 350 मिलीलीटर पानी में उबालें और जब पानी आधा रह जाए तो उसे छानकर ठंडा लें। रोज इसकी तीस मिलीलीटर मात्रा भोजन के 20 मिनट पहले लें। सभी चीजें न मिल रही हो तो मोथा को गिलोय के पानी में उबाल कर लें।

2.   चाय या कॉफी के स्थान पर सेंधा नमक व काली मिर्च मिलाकर सहजन की फली का सूप सेवन करें।

3.   प्रोटीन का इंटेक कम करें और दालों में केवल साबुत मूंग दाल का ही सेवन करें। इसके साथ ही जौ आटे की रोटी व चावल के भोजन को ग्रहण करें। गोभी और पालक आदि का सेवन न करें तथा भूख से कम ही खाएं।

लेखकः डॉ0 दिव्याँशु सेंगर प्यारे लाल शर्मा जिला अस्पताल मेरठ, में मेडिकल ऑफिसर हैं।