एमएसपी पर कानूनी गारंटी की मांग कृषि क्षेत्र को कमजोर भी कर सकती है

एमएसपी पर कानूनी गारंटी की मांग कृषि क्षेत्र को कमजोर भी कर सकती है

                                                                                                                           डॉ0 आर. एस. सेंगर, डॉ0 रेशु चौधरी एवं मुकेश शर्मा

हमारे देश में हरित क्रांति के जनक प्रख्यात कृषि वैज्ञानिक डॉ एस स्वामीनाथन को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से विभूषित करने की भारत सरकार की घोषणा से देश के कृषि विज्ञान को किसान हित धारकों तथा कृषि से जुड़ी राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में खुशी व उत्साह की लहर दौड़ गई है। वहीं दूसरी ओर किसानों का एक वर्ग स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिश लागू करने को लेकर सड़कों पर आंदोलन कर रहा है। किसान सी2$50 फार्मूले के आधार पर न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी की मांग कर रहे हैं।

                                                                

स्वामीनाथन समिति ने वर्ष 2004 और 06 में कृषि क्षेत्र का बहुत गहराई से अध्ययन करके अपनी रिपोर्ट पेश की थी। इस रिपोर्ट में कृषि क्षेत्र के सशक्तिकरण के लिए सिर्फ न्यूनतम समर्थन मूल्य अर्थात एमएसपी की ही सिफारिश नहीं की गई है, बल्कि किसानों के समग्र विकास के लिए नीतियां बनाने व धन का विकास करने पर विशेष जोर दिया गया है। जिससे कृषि क्षेत्र विश्व बाजार के अवसरों का अधिकतम लाभ उठाने के लिए प्रतिस्पर्धी बन सकें।

हालांकि, विडंबना यह रही कि यह रिपोर्ट वर्ष 2006 से 2014 तक ठंडे बस्ते में ही पड़ी रही और समय-समय पर अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को पूरी करने के लिए इसको चर्चा का विषय बनाया गया। अब हालात यहां तक पहुंच गए हैं कि एमएसपी से संबंधित अनुशंसा का इस्तेमाल किसानों को आंदोलन करने के लिए किया जाने लगा है। इसकी आड़ में संपूर्ण कृषि क्षेत्र को अपंग बनाने की साजिश है। यह किसानों एवं कृषि के लिए बहुत ही हानिकारक सिद्ध हो रहा है। स्वामीनाथन कमेटी रिपोर्ट, छोटे मंझौले एवं भूमिहीन किसानों और कृषि के लिए उभरती हुई चुनौतियों और अवसरों को ध्यान में रखकर तैयार की गई है।

                                                            

छोटे, मंझौले और भूमिहीन किसानों की संख्या देश में लगभग 86 प्रतिशत है। यह रिपोर्ट कृषि के समग्र विकास को बढ़ावा देने के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य के प्रावधानों का लाभ इन 86 प्रतिशत किसानों तक कैसे पहुंचे और इस देश पर रोजगार के लिए निर्भर 40 से 45 प्रतिशत लोगों एवं युवाओं के लिए सम्मानजनक व अधिक लाभप्रद रोजगार का सृजन कैसे हो फिलहाल इन दोनों विषयों पर गहन विचार विमर्श की आवश्यकता है। छोटे मंझौले व भूमिहीन किसानों में अपार क्षमताएं उपलब्ध हैं। लेकिन उनको न तो न्यूनतम समर्थन मूल्य से कोई फायदा ही मिलता है और ना ही विभिन्न प्रकार की सब्सिडी उन तक पहुंच पाती है।

अभी भी हमारे गांव और देहात में साक्षरता की काफी कमी देखने को मिलती है।साक्षरता की इसी कमी व साधन हीनता उनको आगे नहीं बढ़ने दे रही है। उनको साक्षर करने और सस्ते ब्याल दर की ऋण सहायता उपलब्ध कराने तथा कम लागत से उपयोग में लाई जाने वाली कुशल उत्पादन व भंडारण तकनीक को उपलब्ध कराने के लिए भी आवश्यक कदम उठाने की उतनी ही आवश्यकता है। किसान को साक्षर बनाने के मूल में भावना यह है कि किसान परंपरागत व कच्चे माल का उत्पादन करने वाली खेती के ज्ञान के साथ-साथ घरेलू व अंतराष्ट्रीय बाजार की मांग वह पूर्ति के भी जानकार हो सकें।

                                                              

वह वैश्विक मानकों के आधार पर उत्पादन करें तथा प्रसंस्करण व गुणवत्ता नियंत्रण करने के प्रति भी उनमें जागरूकता हो और अपने उत्पादों की पहचान बनाने के लिए कदम बढ़ाएं। इसके साथ ही बाजार तक अपने उत्पादों की पहुंच बनाने के लिए सप्लाई चैन का हिस्सा बनने के तरीकों का भी उनको पूरा ज्ञान हो। तो दूसरी ओर कृषि क्षेत्र को अधिक उत्पादक व लाभदायक बनाने के लिए सटीक खेती, नैनो तकनीकी, वर्टिकल फार्मिंग, प्रोटेक्टेड कल्टीवेशन, ड्रोन तकनीक, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, आधुनिक भंडारण, स्मार्ट पैकेजिंग और कृषि के वृद्धिकरण की तकनीकी जैसी तकनीकों का समावेश होने लगा है।

अतः किसान, विशेष रूप से खेती से जुड़े युवाओं को इन तकनीकों के बारे में साक्षर एवं कौशल युक्त बनाना होगा और जब किसान इन तकनीकों पर अमल करते हुए खेती करेंगे तो निश्चित रूप से उनकी आय बढ़ेगी और वह अपने जीवन को संतोषजनक अनुभव कर सकेंगे।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।