ब्रोकली का सेवन करें, अपनी आंत की सुरक्षा करें

                                                      ब्रोकली का सेवन करें, अपनी आंत की सुरक्षा करें

                                                                                                          डॉ0 आर. एस. सेंगर एवं मुकेश शर्मा

हाल ही में किए गए एक अध्ययन में दावा किया गया है कि ब्रोकली पे सम्बन्धित रोगों को दूर रखने में सहायक सिद्व होती है। अमेरिका के पेन्सिलवेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी की ओर से किए गए इस अध्ययन के अनुसार, ब्रोकली हमारी छोटी आत की परत की सुरक्षा करती है।

ब्रोकली, पत्ता गोभी और अंकुरित ब्रसेल्स जैसी सब्जियां साामान्य सेहतमन्द भोजन का हिस्सा क्यों होने चाहिए, पर आधारित था।

    शोधकर्ताओं के अनुसार, ब्रोकली में जो अणु उपलब्ध होते हैं उन्हें ‘एरिल हाइड्रोकार्बन रिसेप्टर लीगैंड्स’ कहते हैं, और यह अणु प्रोटीन की एक किस्म एरिल हाइड्रोकार्बन रिसेप्टर (एएचार) को छोटी आंत की परत पर जोड़ते हैं। यह आंत की कोशिकाओं की कार्यप्रणाली को प्रभावित करती है। हमारी आंतों की परत पर मौजूद कुछ निश्चित् कोशिकाएं लाभदायक जल एवं पोषक तत्वों हमारे शरीर के अन्दर जाने में सहायता करती हैं और बैक्टीरिया आदि का प्रवेश उसमें निरूद्व करती हैं, इससे सन्तुलन बना रहता है।

इन कोशिकाओं में एंटरोसाइट्स होते हैं जो पानी एवं पोषक तत्वों का अवशोषण करते हैं।

                                                      

आहार को लचीला बनाने का कार्य करते हैं ‘‘लिगैंड्स’’

    शोधकर्ता गैरी पेरड्यू ने कहा कि लिगैंड्स से भरपूर होने के कारण यह आहार हमारी छोटी आंत के लचीलेपन में अपना योगदान प्रदान करते हैं, यह प्रयोग चूहों के एक समूह पर किया गया था। इन सभी चूहों को 15 प्रतिशत ब्रोकली खिलाई गई, और एक दूसरे समूह के चूहों को ब्रोकली रहित सामान्य भोन दिया गया। शोध के परिणामों में पाया गया कि जिन चूहों को खाने के लिए ब्रोकली नही दी गयी थी उनमें एएचार की गतिविधियों में कमी दर्ज की गई।

अल-नीनो का खतरा अभी नही है-

मौसम विभाग अपने विभिन्न मॉडलों के माध्यम से प्रशान्त महासागर की विषुवत रेखा के आस पास के तापमान पर करीबी नजर रखे हुए हैं, और फिलहाल समूचे विश्व की मौसम एजेन्सियों की नजरे यहाँ के तापमान पर लगी हुई हैं, क्योंकि एक लम्बे समय से बने ला-नीना के प्रभाव समाप्त हो चुके हैं और ल नीनो की स्थितियाँ बनी हुई हैं। हालांकि, मौसम विभाग का मानना है कि जुलाई माह से पूर्व तापमान में बढ़ोत्तर होने कोई आसार नही हैं।

    प्रशान्त महासागर में विषुवत रेखा के समीप समुद्र के गरमाने से अल नीनो के प्रभाव उपन्न होते हैं, जो भारीय मानसून को प्रभावित करते हैं, जबकि समुद्री सतह के ठण्ड़ा होने पर ला नीना के प्रभाव उपन्न हैं, जो कि मानसून के लिए लाभकारी सिद्व होते हैं।

हालांकि, अभी तक यहाँ का तापमान सामान्य बना हुआ है, परन्तु विभिन्न मॉडल संकेत दे रहे हैं कि गर्मी के मौसम अर्थात अप्रैल से जून माह के दरम्यान इसके अन्दर कुछ विसंगतियाँ हो सकती हैं, लेकिन तापमान में इतनी अधिक बढ़ोत्तरी नही होगी कि अल नीनो के प्रभाव दिखने लगे। अल नीनो के प्रभावों के लिए तापमान में कम से कम आधा डिग्री की बढ़ोत्तरी होनी आवश्यक है।

भारतीय मौसम विभाग के अनुसार जुलाई या उसके बाद तापमान में बढ़ोत्तरी के संकेत तो मल रहे हैं, परन्तु तब तक मानसून देश के अधिकांश क्षेत्रों में अपनी आमद दर्ज करा चुका होगा। इससे सम्भावनाएं व्यक्त की जा रही हैं कि अल नीनो के प्रभाव अगस्त या सितम्बर तक आगे खिसक सकते हैं। यदि यह प्रभाव अगस्त के बाद उत्पन्न होते हैं तो भारतीय मानसून के प्रभावित होने के उपरांत भी उसके धरातलीय प्रभाव लगभग शून्य ही होंगें।

महासागरों के अन्दर भी बढ़ रही है गरमी

    संम्पूर्ण विश्व के महासागरों की गहराई के तापमान में अभी तक की रिकार्ड बढ़ोत्तरी र्द की गई है, उक्त जानकारी अमेरिकी सरकार से प्राप्त आंकड़ों से प्राप्त हुई है। पर्यावरण वैज्ञानिकों ने राष्ट्रीय समुद्री एवं वायुमण्ड़लीय संचालन (एनओएस) के माध्यम से बताया कि पिछले वर्ष समुद्री तल का जहाँ 21 डिग्री सेल्सियस था, वहीं अब यह इस वर्ष अप्रैल के महीनें में ही समुद्र तल का तापमान 21.1 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच चुका है।

न्यू साउथ वेल्स विश्वविद्यालय के पर्यावरण वैज्ञानिक प्रो0 मैथ्यू इंग्लैण्ड ने कहा कि ऐसा लगता है कि वर्तमान आंकड़ा पिछले वर्ष के रिकार्ड को तोड़ते हुए तेजी से आगे बढ़ रहा है। वैज्ञानिकों के अनुसार, अब गर्मी समुद्र की गहारईयों तक पहुँच चुकी है। उन्होनें इस वर्ष के अन्त तक उष्णकटिबन्धीय प्रशांत क्षेत्र में प्रभावशाली अल नीनो प्रणाली की ओर ईशारा करते हुए  कहा कि इसके कारण मौसम में बदलाव के जोखिमों में वृद्वि होगी।

वर्ष 1980 से बढ़ रही है, समुद्र तल की गर्मी

    गत वर्ष किए गए एक अध्ययन के अनुसार, समुद्रों में एकत्र हुई ऊष्मा की मात्रा में नरन्र वृद्वि दर्ज की जा रही है। इस अध्ययन के सहलेखक ने बताया कि वर्ष 1980 से समुद्र में दो किलोमीटर से ऊपर की माप समुद्र के ऊपरी हिस्से में गर्मी के तेजी से बढ़नें को प्रदर्शित करती है।

गर्म समुद्र

    प्रोफेसर डॉ0 एलेक्स सेन गुप्ता ने बताया कि यह अपने आप में आश्चर्यनक है कि गत तीन वर्षों के दौरान ही समुद्री तल गर्म हुआ, जबकि, ला नीना परिस्थितियाँ भी उपलब्ध थी।

BUSSINUSS LINE IN CHENNAI–2023

    India may no import urea for kharif as current stocks may meet demand, potentially helping the government to avert any shortages ensure stable foodgrain production.

    Chemicals and Fertilizers Minister Manshukh Mandaviya said there will be no shortage of fertilizes in the upcoming Kharif sowing season as the domestic production and stocks–in–hand estimated at 19.43 million tonnes (mt) will be sufficient to meet the local demand of about 18 mt. Though urea that is being imported under long term supply agreements will be utilized in the next winter season, there will be no requirement for import to meet Kharif (Summer–shown) demand, the minister said. The country will also not need of import complex (Combination of N, P, K nutrients) fertilizers, he said.

IMPORTS UP 1.4 PERCENT

    During the April–January of current fiscal, urea import has jumped 1.4 per cent to 7.31 mt with sales increasing by 7.3 per cent per cent to 31.85 m and there was low opening stock last year.

    The domestic production of urea in April–January surged 12.8 per cent to 23.72 mt, official data show. There have been revival of some closed urea plants during this period that helped augment domestic availability, officials said. The estimated opening stock as on April 1 this year is 5.5 m while domestic production at 13.93 mt during the next six months.

    On the other hand, Mandivya said there will be some import of DAP (Di–Ammonium Phosphate) to meet the local demand.

NANO UREA OUTPUT

    On nano urea, the minister said the annual production capacity has reached to 17 crore bottles and will touch 44 crore bottles by November 2025, which is equivalent to 20 mt conventional urea. As the current urea production capacity has exceeded 26 mt, with the use of nano urea, the total availability will be over 46 mt in terms of conventional urea by 2025, which will be much higher than current annual demand of about 36 mt.

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर तथा कृषि जैव प्रौद्योगिकी विभाग के विभागाध्यक्ष हैं।