बसंत पंचमी पर विशेष

                                       बसंत पंचमी पर विशेष

                                          

                               सरस्वती पूजा से भगवती माँ सरस्वती प्रसन्न होती हैं                          

बसंत पंचमी, जो इस बार 14 फरवरी को मनाई जा रही है। माँ सरस्वती विद्या और बुद्धि की अधिष्ठात्री देवी भगवती सरस्वती का प्रादुर्भाव होने के कारण इसे विद्या जयंती कहा जाता है। दिव्य शक्तियों को मानवीय आकृति में चित्रित करके ही उनके प्रति भक्ति भावनाओं की अभिव्यक्ति संभव हो पाती है। इसी चेतन विज्ञान को ध्यान में रखते हुए भारतीय तत्व वैधानिकताओं ने प्रत्येक दिव्य शक्ति को मनुष्य आकृति और भाव मर्म से सजाया है और उनकी पूजा, अर्चना एवं वंदना करना हमारी चेतना को देवघर के समान ऊँचा उठा देती है।

साधना विज्ञान का सारा ढांचा इसी आधार पर खड़ा है। मां सरस्वती के हाथ में पुस्तक ज्ञान का प्रतीक है। यह व्यक्ति की आध्यात्मिक एवं भौतिक प्रगति के लिए स्वाध्याय की अनिवार्यता की प्रेरणा देती है। ज्ञान की गरिमा को समझते हुए, उसके लिए हमारे मन में उत्कृष्ट अभिलाषा जागृत हो जाए तो समझना चाहिए कि सरस्वती पूजन की प्रक्रिया ने हमारे अंतरण तक प्रवेश पा लिया है।

भगवती सरस्वती का वाहन मयूर है और उन्होंने हाथ में एक वीना ले रखी है। कर कमल में विद्या धारण करने वाली मां भगवती वाद्य-यन्त्र से प्रेरणा प्रदान करती हैं कि हमारे हृदय रूपी वीणा सदैव जागृत रहनी चाहिए। उनके हाथ में वीना होने का अर्थ कि संगीत और गायन जैसी भाव प्रमण प्रक्रिया को अपनी प्रस्तुति सरसता सजग करने के लिए प्रयुक्त करना चाहिए।

हम कला प्रेमी और कला पारखी, कला के पुजारी और संरक्षक भी बने मयूर अर्थात मृदुभाषी हंस अर्थात नीर-क्षीर, विवेक हमें मां सरस्वती का अनुग्रह पाने के लिए उनका वाहन मयूर और हंस बनना ही चाहिए। मधुर, निर्मल, विनीत, सज्जनता, शिष्ट और आत्मनियता युक्त संभाषण करना चाहिए। हंस की भांति हमें अपनी अवरुचि को भी परिष्कृत करना चाहिए। तभी भगवती सरस्वती हमें अपना प्रिय पात्र मानेंगी। मां सरस्वती की पूजा और अर्चना का तात्पर्य यह है कि शिक्षा के महत्व को स्वीकार कर दसके प्रति अपनी श्रद्धा को व्यक्त किया जाए।

                                                                              

प्राचीन काल में जब देशवासी सच्चे हृदय से माँ सरस्वती की उपासना करते थे, तब हमारे देश को जगतगुरु होने की पदवी प्राप्त थी। विश्व भर के लोग सत्य ज्ञान की खोज में भारत आते थे। मां सरस्वती के प्रादुर्भाव के दिन पर यह आवश्यक है कि हम इस पर्व से जुड़ी परंपरा से जन-जन को जोड़ें। दूसरों तक विद्या का प्रकाश पहुंचाएं, क्योंकि कहा गया है विद्या की अत्यधिक अभिवृद्धि देखकर वाग देवी सरस्वती प्रसन्न होती है।

यह त्योहार हमारे लिए फूलों की माला लेकर खड़ा है और अब यह माला किस दिन उनके गले में पहनाई जाएगी, जो लोग ज्ञान और विवेक से अपने विवेक की ओर बढ़ने और दूसरों को बढ़ाने का दृढ़ संकल्प करते हैं। संसार में ज्ञान की गंगा को बहाने के लिए भगीरथ जैसा तप और साधना करने की प्रतिज्ञा करते हैं।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।