भिण्डी की उन्नत किस्में

 

 

                                      भिण्डी की उन्नत किस्में

                                                                                                                       डॉ0 आर. एस. सेंगर, डॉ0 रेशु चौधरी एवं मुकेश शर्मा

                                                                            

पूसा सावनी :- यह एक अगेती किस्म है। इस किस्म में फलों की पहली तुड़ाई गर्मियों में 45-50 दिनों एवं वर्षा ऋतु में 60-65 दिनों में प्राप्त हो जाती है। फल, पांच धारियों वाले, गहरे हरे रंग के रोये रहित होते हैं। यह किस्म जायद व वषा ऋतु दोनों के लिये उपयुक्त है। यह किस्म पीतशिरा मौजेक रोग को सह लेती है, लेकिन हाल के वर्षों में इस रोग का काफी प्रकोप देखा गया है। वर्षा ऋतु में औसत उपज 100-125 क्विंटल/हैक्टर है।

पूसा मखमली :- यह किस्म जायद एवं वर्षा ऋतु के लिये उपयुक्त है। इसके फल नुकीले एवं हल्के हरे रंग के होते हैं।

सलेक्शन-1 :- इस किस्म के फल बड़े आकार के पूसा सावनी के समान लंबे होते हैं। यह किस्म पीतशिरा रोग अवरोधी है।

परभनी क्रांति :- यह किस्म पीतशिरा रोग अवरोधी है। इसके पौधे हरे, लंबे व कम शाखाओां वाले होते हैं। इस किस्म में फूल 40-50 दिनों में एवं फलों की पहली तुड़ाई 55 दिनों में हो जाती है। फल गहरे हरे रंग के, चिकने, मुलायम, पांच धारियों वाले होते हैं। जायद में औसत उपज 85-90 क्विंटल प्रति हैक्टर एवं वर्षा में 120-130 क्विंटल प्रति हैक्टर है।

पंजाब पद्मनी :- इसके पौधे 80-120 सें.मी. ऊँचे व 4-5 प्राथमिक शाखाओं वाले होते हैं। इस किस्म में फूल 45-50 दिनों में एवं फलों की पहली तुड़ाई 53-54 दिनों में हो जाती है। फल गहरे हरे रंग के, चिकने, चमकीले, पतले, 12-15 सेमी. लम्बे, पांच धारियों वाले तथा लंबी अवधि तक मुलायम रहने वाले होते हैं। यह किस्म विषाणु रोग, जैसिड व फली छेदक कीट के प्रति कुछ हद तक सहनशील है।

पंजाब-7 :-  यह किस्म पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना द्वारा विकसित है। इसके पौधे मध्यम ऊँचाई के होते हैं। वर्षा ऋतु में पौधों की ऊँचाई 105 सेमी. व गर्मियों में 85 सेमी. होती है। इस किस्म में तने में गांठों के बीच की दूरी कम होती है। फल मध्यम लंबाई के हरे, मुलायम, पांच धारियों वाले होते हैं। इसमें फूल 45-50 दिनों में एवं फल पहली तुड़ाई के लिये 54-55 दिनों में योग्य हो जाते हैं। इसकी औसत उपज गर्मियों में 50 क्विंटल व वर्षा में 95 क्विंटल/हैक्टर होती है। यह किस्म मौजेक रोग के प्रति अवरोधी है।

वैशाली वधु :- इस किस्म को दोनों मौसमों में उगाया जा सकता है। फल हरे, लंबे व सात धारी वाले होते हैं।

वर्षा उपहार :-  इसके पौधे 90-120 सेमी. ऊँचे होते हैं। वर्षा ऋतु में फूल 40 दिनों में एवं फल 47 दिनों में तुड़ाई के योग्य हो जाते हैं। फल मुलायम, गहरे हरे रंग के, आकर्षक, पांच धारियों वाले होते हैं। यह किस्म विषाणु रोगरोधी है। इस किस्म की औसत उपज 98 क्विंटल प्रति हैक्टर है।

आई.एच.आर.-20-31 :- फल पांच धारी वाले, लंबे, गूदेदार और हल्के हरे रंग के होते हैं। फूल बनने के 8-10 दिनों के बाद फल तोड़ने योग्य हो जाते हैं।

अर्का अनामिका :- इसके पौधे 180 सेमी. ऊँचे, सीधे एवं शाखाओं वाले होते हैं। फल 20 सेमी. लंबे, अत्यंत मुलायम, 7.2 सेमी. व्यास के, रोयें रहित, गहरे हरे रंग के होते हैं। इसमें फूल 45 दिनों में एवं फल तुड़ाई योग्य 55 दिनों में हो जाते हैं इसकी उपज 17.5 से 25 टन/हैक्टर होती है। यह किस्म पीतशिरा अवरोधी है।

अर्का अभय :- इसके पौधे 100-110 सेमी. ऊँचे होते हैं। इसमें फूल 45-50 दिनों में आते हैं। फूलों की पहली तुड़ाई 55‘60 दिनों में हो जाती है। फल हल्के हरे रंग के, लम्बे, नुकीले होते है। यह पीतशिरा अवरोधी किस्म है। इसकी पैदावार पूसा सावनी से 30 प्रतिशत अधिक है।

                                                               

हिसार उन्नत :- इसके पौधे 100-110 सेमी. ऊँचे एवं तने में गांठों के बीच की दूरी 6 सेमी. होती है। प्रत्येक पौधे में 3-4 शाखायें होती हैं। पत्तियां हरे रंग की, नीचे वाली पत्तियां कम गहरी कटी हुई एवं इसके बाद वाली ऊपर की पत्तियां संकरी एवं गहरी कटी हुई होती हैं। इसमें 38 दिनों में चौथी, पांचवी गांठ से फूल आना शुरू हो जाते हैं। इसमें फलों की पहली तुड़ाई 45-60 दिनों में हो जाती है। इस किस्म की औसत उपज 10.2 टन प्रति हैक्टर है। यह किस्म भी पीतशिरा रोग प्रतिरोध है।

इसके अलावा निजी क्षेत्र की बीज कंपनियों के द्वारा भी कई प्रकार की संकर किस्में/अधिक उपज देने वाली किस्में विकसित की गयी हैं, जिनका विवरण निम्न प्रकार है :-

अंकुर सीड्स लिमिटेड :-  संशोधित अंकर-35 व अंकर-40 के अलावा निम्नांकित किस्में हैं :

अंकुर-41 :-  इस किस्म के फल हरे मध्य लंबाई के होते हैं। पहली तुड़ाई 45-47 दिन पर की जा सकती है। उपज क्षमता 150-175 क्विंटल/एकड़ होती है।

ए.आर.ओ.एच.-9 :- किस्म सीधी बढ़ने वाली, 150-155 सेमी. ऊँचाई की, 2-3 शाखाओं वाली होती है। फल 13-15 सेमी. लम्बे, एक समान, आकर्षक हरे रंग के व 5 धारियों वाले होते हैं। पहली तुड़ाई 51 से 53 दिन में प्रारम्भ की जा सकती है। पीलिया रोग के लिये सहनशील यह किस्म 110-120 दिनों की है तथा पैदावार 115-125 क्विंटल/एकड़ होती है।

ए.आर.ओ.एच.-10 :- पौधे 155-160 सेमी. ऊँचाई के, फल 13-15 सेमी. लम्बे, एक समान आकर्षक हरे रंग के व 5 धारियों वाले होते हैं। पहली तुड़ाई 51-53 दिनों में की जा सकती है। पीलिया रोग के लिये सहनशील इस किस्म की उत्पादन क्ष्ज्ञमता 110-130 क्विंटल/एकड़ है।

इण्डो अमेरिकन हाइब्रिड सीड्स :-

विजया - इस किस्म के फल मध्यम मोटाई के होते हैं। पहली तुड़ाई 40-50 दिन बाद शुरू की जा सकती है। पीतशिरा रोग के प्रति सहनशील है।

विशाल - इस किस्म के फल हरे स्वस्थ होते हैं। पहली तुड़ाई 40-50 दिन में शुरू की जा सकती है। पीतशिरा विषाणु रोग के प्रति सहनशील है।

गोल्डन सीड्स :-

एफ-1 ( सुमन) : यह सीधे बढ़ने वाली, लम्बे सीधे 5 धारियों वाले फलों वाली प्रजाति है। यह पीतशिरा, मौजेक रोग के लिये प्रतिरोधी है।

एफ-2 (ग्रीन गोल्ड) : इस किस्म में फल नीचे से ही लगने शुरू हो जाते हैं। किस्म पीतशिरा, मौजेक रोग के लिये प्रतिरोधी है।

महिको :

संकर भिण्डी :- इस किस्म की पहली तुड़ाई 45-50 दिन बाद की जा सकती है। फल पतले, 5 धारियों वाले, गहरे हरे रंग के होते हैं। फलों की लम्बाई 10-12 सेमी., पीली नसों वाली मौजेक वायरस रोग के प्रति सहनशील है।

संकर भिण्डी नं०-8 :- इस किस्म की पहली तुड़ाई 45 दिन पर की जा सकती है। फल पतले, 5 धारियों वाले तथा 12 सेमी. लम्बे, गहरे रंग के होते हैं। पीली नसों वाली मौजेक वायरस रोग के लिये प्रतिरोधी है।

संकर भिण्डी नं०-10 :- इस किस्म की पहली तुड़ाई 45 दिन बाद की जा सकती है। फल पतले, 12 से 15 सेमी. लम्बे, 5 धारियों वाले गहरे हरे रंग के होते हैं। पीली नसों वाली मौजेक वायरस रोग के लिये प्रतिरोधी किस्म है।

मालव सीड्स प्रा० लि० :-

भिण्डी मालव-31 सुप्रीम एवं भिण्डी मालव-27 प्राइम :- जेनेटिक रिसर्च की शक्तिशाली किस्म है, जोकि पीली मौजेक की प्रतिरोधी है। आकर्षक हरा स्वस्थ फल, जो भूमि की सतह से 5-6 इंच की ऊँचयाई से ही लगना शुरू हो जाते हैं। फलन 42-45 दिनों में शुरू हो जाता है। पौधे की ऊँचाई 5-7 फीट होती है।

एफ-1 हाइब्रिड भिण्डी मालव शक्ति :- भरपूर उपज देने वाली जेनेटिक रिसर्च किस्म है। प्रति पौधा 10-12 शाखायें तथा 75 से 125 फूल, प्रत्येक फल 10-12 सेमी. लम्बा होता है। यह पीला मौजेक एवं अन्य कीटों के लिये प्रतिरोधी है। फलन 40 दिनों में शुरू होकर 80-85 दिनों तक चलता है।

नुन्हैम्स प्रोएग्रो सीड्स प्रा० लि० :-

उपहार :- इस संकर किस्म के फल पतले, लम्बे, हल्के हरे रंग वाले, मुलायम चिकने एवं 5 धारियों वाले होते हैं। पहली तुड़ाई गर्मियों में 42-44 दिन बाद की जा सकती है। यहि पीलिया रोग के लिये अवरोधी है।

सन-040 :- इस किस्म के फल अधिक हरे, पतले, लम्बे, मुलायम व धारियों वाले होते हैं। पहली तुड़ाई गर्मियों में 45 दिन तथा बरसात में 55 दिन बाद की जा सकती है। दो गांठों के बीच की दूरी कम होने से भिण्डी अधिक लगती है। पीलिया रोग के लिये अवरोधी किस्म है।

सन-008 :- इस संकर किस्म के फल कोमल, लम्बे, गहरे हरे रंग केक 5 धारियों वाले होते हैं। यह गर्मियों में 55‘60 दिन में तथा बरसात में 65 दिनों में पहली तुड़ाई के लिये तैयार होती है। पीलिया रोग के लिये अवरोधी किस्म है।

बसंत-9603 :- इस संकर किस्म के पौशे कम ऊँचाई वाले होते हैं। फल पतले, गहरे हरे रंग के, आकर्षक व 5-6 धारियों वाले होते हैं यह पीलिया रोग के लिये अवरोधी है। यह महाराष्ट व तमिलनाडू के लिये अधिक उपयुक्त है।

नोवार्टिस इण्डिया लिमिटेड :-

परपियट : पौधा मजबूत, सघन, फल 5 धारियों वाले, बैंगनी रंग के, 10-12 सेमी. लम्बे होते है। फलन 40-45 दिनों बाद प्रारम्भ हो जाता है।

मिस्टिक : इस किस्म के फल 5 धारियों वाले, चिकने, कांटे रहित, अधिक टिकाऊ होते हैं। यह पीतशिरा रोग के लिये सहनशील है। उपज क्षमता 140 से 200 क्विंटल/एकड़ है।

ऐश्वर्या : यह किस्म विषाणु रोगों के लिये सहनशील है। पहली तुड़ाई 40-45 दिन बाद शुरू होती है, अधिकतम उपज क्षमता 140 से 160 क्विंटल/एकड़ है।

रेशमा : इस किस्म के फल गहरे हरे रंग के होते हैं। यह पीतशिरा विषाणु रोग तथा छाछ्या/भभूतिया (पाउडरी मिल्ड्यू) के प्रति सहनशील है। अधिकतम उपज क्षमता 140 से 160 क्विंटल/एकड़ है।

नूजीवीडू सीड्स :-

एन.बी.एच.-225 (प्रभाव) : इस किस्म की पहली तुड़ाई 40-45 दिन बाद की जा सकती है। यह पीतशिरा विषाणु रोग के लिये प्रतिकारक है। उपज क्षमता 130-140 क्विंटल/एकड़ है।

एन.बी.एच.-12 (हर्षा) : इस किस्म की पहली तुड़ाई 40-42 दिन बाद की जा सकती है। यह पीतशिरा विषाणु रोग केलिये प्रतिकारक है। उपज क्षमता 120-130 क्विंटल/एकड़ है।

एन.बी.एच.-235 : यह किस्म सीधी बढ़ने वाली 5 से 6 फीट ऊँची, फल 3-4 इंच लम्बे, रेशा कम, रोंयेदार नहीं, प्रथम तुड़ाई 40-45 दिन में पीतशिरा रोग के लिये प्रतिकारक है। उपज क्षमता 120-125 क्विंटल/एकड़ है।

एन.बी.एच.-245 : यह सीधी बढ़ने वाली 5 से 6 फुट ऊँची, शाखायें पास-पास, फल का रंग आकर्षक हरा, फल की लम्बाई 5 से 6 इंच, फल 5 धारियों वाले, बिना रोंयेदार, प्रथम तुड़ाई 40-45 दिन में तैयार हो जाती है। उपज क्षमता 135 से 140 क्विंटल प्रति एकड़ है।

पाहूजा सीड्स प्रा. लि. :-

प्रभा : यह लम्बी बढ़ने वाली शाखाओं युक्त संकर किस्म है। अतः बीज दर कम रखी जा सकती है। इसके फल चमकीले हरे, लम्बे सीधे तथा 5 धारियों वाले होते हैं। पीतशिरा रोग के प्रति सहनशील है।

दिव्या : पौधे सीधे लम्बे बढ़ने वाले, शाखा युक्त होते हैं। इसके फल गहरे हरे रंग के मुलायम, सीधे मध्यम लम्बाई के 5 धारियों वाले होते हैं। पीतशिरा रोग के लिये सहनशील है।

रैली सीड्स :-

तारा : इसकी पहली तुड़ाई 55 दिन में शुरू की जा सकती है। फल 13 सेमी. लम्बे होते हैं। यह पीतशिरा वायरस रोग के लिये प्रतिरोधी है।

आर.आई.एस.-59 : इस किस्म के फल 10 सेमी. लम्बाई के होते हैं। पहली तुडत्राई 55 दिन बाद की जा सकती है।

सनग्रो सीड्स :-

प्रिया : इस किस्म की पहली तुड़ाई 33 दिन बाद शुरू की जा सकती है, यह पीतशिरा रोग के लिये प्रतिरोधी है। उपज क्षमता 72 क्विंटल/एकड़ है।

सुप्रिया : यह किस्म पहली तुडत्राई के लियू 32 दिन बाद तैयार हो जाती है। यह पीतशिरा रोग के लिये प्रतिरोधी है। उपज क्षमता 68 क्विंटल/एकड़ है।

एस-51 : इस किस्म के फल लम्बे, रेशे रहित होते हैं। यह पीतशिरा रोग के लिये प्रतिरोधी है तथा अधिक उपज देने वाली है।

स्किल लि. (सीड डिवीजन) :-

एस.पी.एच.बी.-273 : यह किस्म पहली तुड़ाई के लिये 45-48 दिन में तैयार हो जाती है। यह पीतशिरा रोग के लिये प्रतिरोधी है।

वेस्टर्न एग्रो सीड्स :-

अनन्त हर्षा-8 : यह किस्म पीतशिरा रोग के लिये प्रतिकारक है। इसके फल गहरे हरे रंग के होते हैं। पहली तुड़ाई 40-45 दिन में शुरू होती है। उपज क्षमता 68 से 74 क्विंटल / एकड़ है।

निर्यात योग्य किस्में : अभी तक के अनुभव के आधार पर 6 से 9 सेमी. लम्बे हरे फल निर्यात में प्रमुख स्थान रखते हैं तथा किस्में पूसा ए-4, पूसा सावनी, परभनी क्रान्ति, पंजाब-7, सेलेक्शन उपयुक्त पाई गई है।

पीतशिरा रोग प्रतिरोधी किस्में : परभनी क्रान्ति, अर्का अभय, अर्का अनामिका, पंजाब पद्मिनी, पंजाब-7, पूसा ए-4, हिसार उन्नत, वर्षा उपहार आदि विकसित की जा चुकी है। अन्य निजी कंपनियों की किस्मों में सागर एग्रोटेक (इण्डिया) प्रा. लि. की एफ-1, हाइब्रिड कोमल, एफ-1 हाइब्रिड सागर, सेन्चुरी सीड्स प्रा. लि. की किस्म आधुनिक पान्चाली, अजीत सीड्स लि. की अजीत-221, नामधारी सीड्स प्रा. लि. की एन.एस.-502, हिन्दुस्तान लीवन लिमिटेड की राम्या, आर.के. सीड्स की मोहिनी, योग्य सीड्स प्रा. लि. की योगश्री।

 

संकर भिण्डी उत्पादन के लिये प्रभावी बिन्दु :-

                                                                     

बीज दर : गर्मियों में 3 किलो तथा बरसात में 1.5 किलो प्रति एकड़।

बुवाई : गर्मियों में उत्तरी मैदानी क्षेत्रों में फरवरी-मार्च, मध्य भारत व पश्चिमी मैदानी क्षेत्रों में जनवरी-फरवरी तथा बरसात में उत्तरी मैदानी क्षेत्रों में जूल-जुलाई, मध्य भारत एवं पश्चिमी क्षेत्रों में मई से जुलाई, पूर्वी क्षेत्रों में सितम्बर-अक्टॅबर, दक्ष्जि्ञणी क्षेत्रों में मई से जुलाई तक बोई जा सकती है। ऑफ सीजन में मध्य भारत व पश्चिमी मैदानी क्षेत्रों में अक्टूबर-दिसम्बर, दक्षिणी क्षेत्रों में अक्टूबर-नवम्बर एवं पर्वतीय क्षेत्रों, मार्च से अक्टूबर-नवम्बर एवं पर्वतीय क्षेत्रों में मार्च से अप्रैल एवं मई से जून मं बुवाई की जा सकती है।

बुवाई की विधि : गर्मी में पौशे से पौधा 15 सेमी. तथा लाइन से लाइन 30 सेमी., जबकि बरसात में लाईन से लाईन 60 सेमी. व पौधे से पौधा 30 सेमी. रखें। गर्मियों में बीज को 12 घंटे तक भिगोने के बाद बोयें।

खाद व उर्वरक : गोबर/कम्पोस्ट की खाद 30-40 बैलगाड़ी/एकड़ बुवाई पूर्व डी.ए.पी. 150 किलो, सी.ए.एन.-85 किलो, एम.ओ.पी. 50 किलो डालें। बुवाई के 30 व 45 दिन बाद 85 किलो कैन (सी.ए.एन.) दो बार में दें।

कीटनाशक : बुवाई के 15 दिन बाद से लेकर 80 दिन तक की फसल की कीट-व्याधियों से सुरक्षा करें। इसके लिये पहला छिड़काव मोनोक्रोटोफास 1 मिली. कार्बेण्डाजिम 1 ग्राम/लीटर पानी में घोलकर छिड़कें। दूसरा छिड़काव 25 दिन बाद, तीसरा 35 दिन, चौथा 40-45 दिन, पांचवा 60 दिन तथा छटा छिड़काव 80 दिन की फसल पर करें, किन्तु फलों की तुड़ाइ्र शुरू होने के बाद यदि आवश्यकता हो तो कार्बोरिल 50 प्रतिशत डब्ल्यू.पी. 4 ग्राम डाइनोकेप 0.5 मिली./हैक्टर या डाइक्लोरवोस 76 प्रतिशत 0.5 मिली./लीटर पानी में घोलकर डिछ़काव करें। अधिक घातक कीटनाशक न ड़िकें। फलों की तुड़ाई प्रतीक्षा अवधि के बाद करें।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।