भारत डेयरी उत्पादों का आयात कर सकता है

                                      भारत डेयरी उत्पादों का आयात कर सकता है

                                                                            डॉ0 आर. एस. सेंगर एवं मुकश शर्मा

दूध उत्पादन स्थिर रखने में अपूर्व संबंधी कमी को पूरा करने के लिए भारत मक्खन और घी जैसे डेयरी उत्पादों का आयात कर सकता है, वर्ष 2011 में आखिरी बार इन उत्पादों का आयात भारत द्वारा किया गया था। पशुपालन एवं डेयरी सचिव राजेश कुमार सिंह ने बुधवार को कहा कि पिछले साल काट दे तो चारों की वजह से 1.89 लाख मवेशियों की मौत हो गई थी। मौसम की मार, महंगा चारा और तमाम दुस्वारियों की वजह से 2022 और 23 में दूध उत्पादन स्थिर रहा, लेकिन घरेलू मांग 8 से 100% तक बढ़ गई है. उन्होंने कहा कि दक्षिण राज्यों में दूध के भंडार की स्थिति के आकलन के बाद अगर जरूरी हुआ तो सरकार डेरी उत्पादों के आयात के मामले में फैंसला करेगी।

दूध आपूर्ति में कोई बाधा नहीं

डेरी सचिव ने कहा कि देश में दूध आपूर्ति में कोई बाधा नहीं हैए रिकमेंड मिल्क पाउडर का पर्याप्त भंडार मौजूद है लेकिन डेयरी उत्पादों और विशेष रूप से बसा मक्खन का स्टॉक पिछले साल से कम है। आमतौर पर दूध उत्पादन सालाना 6% की दर से बढ़ रहा है हालांकि 2022 एवं 23 में यह कम हुआ है, लेकिन इसके बावजूद भी दूध की पर्याप्त मात्रा देश में उपलब्ध है।

बीमारी के चलते पिछले वर्ष मवेशियों की हुई थी मौत

पशुपालन एवं डेरी सचिव राजेश कुमार सिंह ने कहा कि आयात इस समय हमारे देश के लिए लाभकारी नहीं हो सकता है क्योंकि हाल के महीनों में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतें मजबूत बनी हुई है अगर वैश्विक कीमतें ऊंची हैं तो आयात करने का कोई मतलब नहीं है। हम देश के बाकी हिस्सों में उत्पादन का आकलन करेंगे और फिर फैसला करेंगे कि क्या करना उचित है। पिछले वर्ष देखा गया था कि 1.89 लाख मवेशियों की मौत हो गई थी जिसके चलते दूध का उत्पादन स्थिर रहा है लेकिन आगामी कुछ महीनों में गर्मी का मौसम आने वाला है गर्मियों के दिनों में दूध का उत्पादन घटता है कहीं ऐसा ना हो कि इसके चलते देश में बसा मक्खन एवं घी का स्टॉक प्रभावित हो इसके लिए सरकार अभी से सचेत है और लोगों को सुविधा उपलब्ध कराने के लिए जागरूक है।

दूसरी न्यूज़

चीनी उत्पादन 3% घटकर 299.6  हुआ

देश में चीनी उत्पादन विपणन वर्ष 2022-23 के पहले 6 महीने में 3% घटकर 299.6  लाख रह गया। इस माह के मुताबिक इस साल पहले उत्पादन 309 दशमलव 900000 टन रहा था, यूपी में चीनी उत्पादन 900000 टन रहा है।

कोरोना पीड़ितों के लिए डिमेंशिया है खतरनाक

डॉ आर एस सेगर, डॉ0 वर्षा रानी, एवं डॉ0 शालिनी गुप्ता

भारत में कोरोना के मामले फिर से लगातार बढ़ने लगे हैं इस बीच शोधकर्ताओं द्वारा इसके दुष्परिणामों को लेकर नई जानकारियां भी सामने जारी की जाने लगी है। एक ताजा अध्ययन के अनुसार कोरोना दो वायरस डिमेंशिया से पीड़ित मरीजों की बीमारी को और बढ़ाता है। यह अध्ययन बंगाल में एक क्लीनिक में किया गया है। अध्ययन का निष्कर्ष अल्जाइमर डिजीज रिपोर्ट्स जनरल में प्रकाशित हुआ है काला की न्यूरोलॉजिस्ट अभी यह स्पष्ट नहीं कर पाए हैं कि मानवीय अनुभूति को कितना प्रभावित करता है। न्यूरोलॉजिस्ट इसे बैंकॉक के रूप में परिभाषित करते हैं शोधकर्ताओं ने दुनिया के सभी प्रकार के प्रतिभागियों पर किया अध्ययन में पाया कि यह  इन सभी पर तेजी से अपना असर डालता है इसके लिए उन्होंने डिमेंशिया से पीड़ित 14 रोगियों पर संज्ञानात्मक अधीरता की जांच की जो लंबे समय तक कोरोना दो से संक्रमित थे। डिमेंशिया के इन रोगियों में 4 अल्जाइमर 5 वैस्कुलर डिमेंशिया 3 पार्किंसन वादों फ्रंटोटेंपोरल डिमेंशिया से पीड़ित थे शोधकर्ताओं ने इसलिए डिमेंशिया से पीड़ित को कोरोना से सावधान रहने की सलाह दी है।

दूसरी न्यूज़

मौसम के उतार.चढ़ाव से फसल उत्पादन हो रहा प्रभावित

बेमौसम बारिश ने किसानों को चिंता में डाल दिया है इस बार बेमौसम बारिश के चलते किसानों का काफी नुकसान हुआ है इसका अनुमान लगाया जा रहा है कहीं कहीं पर तो 50 से 60 प्रतिशत तक नुकसान होने की बात कही जा रही है लेकिन निश्चित रूप से इस बेमौसम बरसात ने किसानों की आर्थिक स्थिति को प्रभावित किया है। आज संपूर्ण विश्व जलवायु परिवर्तन और उससे होने वाले दुष्परिणामों से प्रभावित है एक और जहां हम अधिकता और विकास बाद की बात करते हैं तो वहीं दूसरी ओर खाद्यान्न सुरक्षा पोषण सुरक्षा और आर्थिक सुरक्षा को पूरी तरह पाने में हम पिछड़ रहे हैं। एक आंकड़े के अनुसार संपूर्ण विश्व में वर्ष 2021 में करीब 2.3 अरब लोग खाद्य सुरक्षा से प्रभावित हुए थे जो विश्व की आबादी का 29.3% था अगर हम पोषण सुरक्षा की बात करें तो पूरे विश्व में वर्ष 2020 में 3.1 अरब लोग मानक पौष्टिक आहार से वंचित थे यानी किसानों के पास कोई विकल्प नहीं है कि उत्पादन बढ़ाना ही होगा। किसानों को हौसला बुलंद रखना ही होगा किसानों के हौसले के चलते ही हम बढ़ती हुई जनसंख्या को खाद्यान्न उपलब्ध करा सकते हैं।

यदि हम वैज्ञानिकों की माने तो समस्या बढ़ सकती है वैश्विक ताप क्रम में लगातार वृद्धि हो रही है अगले 20 वर्ष में विश्व का तार तापक्रम 1.5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा बढ़ने की आशंका है। बढ़ती गर्मी अल्प वार्षिक वर्षाए असम में तेज बारिश ओला व आंधी तूफान की तीव्रता को हम सभी महसूस कर रहे हैं भारत ही नहीं विश्व भर में कृषक एक ही मौसम में बाढ़ हुआ सूखापन दोनों झेल रहे हैं। देश के एक कोने में बाढ़ की चपेट में किसान होते हैं तो किसी दूसरे क्षेत्र में वह सूखा खेल रहे होते हैं यह सब मौसम में हो रहे बदलाव के कारण ऐसा हो रहा है जिसका कारण शायद बढ़ता हुआ प्रदूषण है।

बदलते मौसम के चलते उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और बिहार के कई हिस्सों में मौसम की चरम घटनाएं बढ़ रहे हैं, खासकर उत्तर बिहार में जैसा कि वैज्ञानिक तथ्य एवं अनुसंधान बताते हैं कि जलवायु बहुत बदल गई है, अनिश्चितता बढ़ गई है पिछले 20 वर्षों के दौरान अप्रैल व मई के महीने में बारिश की मात्रा बढ़ गई है। इसका नकारात्मक असर यह पड़ा है कि गेहूं की फसल पूरी तरह प्रभावित हो रही है जो इस क्षेत्र की रवि फसल है इस मौसम में अधिकांश वर्षा गर्ग तूफान के साथ होती है नई बात नहीं है।

इस मौसम में ओलावृष्टि भी होती है इस वर्ष मार्च के अंत और अप्रैल की शुरुआत में मुजफ्फरपुर पूर्वी पंचायत पश्चिमी पंचायत सारण शिवहर और मधुबनी जिलों में बिहार को काफी प्रभावित किया है वही उत्तर प्रदेश के कई जिले ऐसे हैं जहां पर इस बेमौसम बारिश ने ओलावृष्टि की जिसके चलते गेहूं की फसलए सरसों की फसल और सब्जियां बुरी तरह से प्रभावित हुई है। ऐसी बारिश ने कई जगहों पर गेहूं की फसल को गिरा दिया और दानों को बिखेर दिया इसके अलावा कई स्थानों पर तेज हवा चलने आम और लीची के कोमल नई फल भी पेड़ों से झड़ गए।

प्रखंडों में 5 अप्रैल 2023 में बेमौसम बरसात और ओलावृष्टि से गेहूं में 15 से 80% नुकसान की सूचना बताई जाती है अगर पीछे मुड़कर देखें तो 7 अप्रैल 2018 को उत्तर बिहार में कई जिलों में हुए ओलावृष्टि सबसे विनाशकारी थी पूर्वी चंपारण, सीतामढ़ी, गोपालगंज, मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर, दरभंगा और वैशाली जिले गंभीर रूप से प्रभावित हुए थे कि करीब 50% गेहूं की फसल पूरी तरह से बर्बाद हो गई थी। मगर प्रतिकूल स्थितियों के बावजूद ध्यान देने की बात है कि बिहार में चलाई गई योजना जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम रामबाण साबित हो रहा है और यहां किसान मौसम की मार के बावजूद अच्छी फसल अच्छी उत्पादकता ले रहे हैं। गेहूंए मक्का आदि उत्पादकता विपरीत परिस्थितियों के बावजूद बड़ी है कृषि विकास दर बढ़ाने में सरकारी प्रयास व जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम में सहभागिता को सर्वोपरि माना जा रहा है। जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम वर्ष 2019 से 80 और 2020 से शेष 30 जिलों के 190 गांवों में करीब 60000 एकड़ क्षेत्र में चलाए जा रहे हैं।

आज चक्र आधारित कृषि प्रणाली को समयबद्ध तरीके से और जलवायु अनुकूल कृषि तकनीक के साथ लागू करना जरूरी है। कृषि केंद्रों से जुड़कर ऐसे आजमाए गए तरीके किसानों को सीखने पड़ेंगे ताकि कम लागत में अधिक उत्पादन हासिल हो सके। कृषि कोई ऐसा मोर्चा नहीं है जहां हम हार मान जाए किसानों को निराशा से दूर रहते हुए समय अनुकूल कृषि तौर तरीके सीखने पड़ेंगे। अच्छी बात है कि कृषि कार्यक्रम में मिल रही सफलता और भविष्य में खाद्यान्न की बढ़ती मांग को देखते हुए सरकार चौथे कृषि रोड मैप में इस योजना को और बड़े रूप में लाने की सोच रही है यदि किसान जागरूक होकर कृषि अनुकूल कार्यक्रम के अनुसार नई प्रजातियों तथा तकनीकों का अपनी खेती किसानी में समावेश कर लेते हैं तो किसान इस बेमौसम बारिश से होने वाले नुकसान से बच सकते हैं।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविधालय, मेरठ के प्रोफेसर तथा कृषि जैव प्रौद्योगिकी विभाग के विभागाध्यक्ष हैं।