नीम आधारित कीटनाशक

                                    नीम आधारित कीटनाशक

                                                                                                                                                        डॉ0 आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 कृषाणु सिंह

                                                                          

नीम का नाम भारतवासियों के लिये नया नहीं है। प्राचीन युग से ही भारतवासी नीम के दिव्य गुणों से भली भांति परिचित हैं। सदाबहार नीम उन कल्पवृक्षों में से एक है, जिसके सभी भाग औषधीय, उद्योगों आदि में काम आते हैं। इसे खेतों व मेड़ों पर लगाकर किसान अन्य उपलब्ध वृक्षों की तुलना में अधिक आमदनी प्राप्त कर सकता है। नीम के पेड़ लगाने से हवा शुद्ध होती है और नीम की दातुन करने से मुख के सभी रोग दूर हो जाते हैं, यह कथन हम बचपन से बुजुर्गों से सुनते आ रहे हैं।

पिछले कुछ समय से नीम के महत्व को जानते हुए भी हम उसे भुलाते जा रहे थे। कहावत भी है कि घर का जोगी जोगड़ा, आन गांव का सिद्ध, अर्थात लोग अपने आस-पास उपलब्ध वस्तुओं को कम महत्व देते हैं, पर यदि वही वस्तु आसपास के गांव में उपलब्ध होती है तो उसे अधिक प्राथमिकता देते हैं। यही नीम के साथ हुआ। विदेशों से अचानक नीम के औषधीय व अन्य दिव्य गुणों के शोध परिणाम आने शुरू हुए, तब भारतीयों को सुध आई कि सचमुच नीम बहुपयोगी वृक्ष है।

                                                                    

यह कटु सत्य है कि यद्यपि नीम भारतीय पौधा है व सदियों से हमारी धरती पर फल-फूल रहा है तथापि अधिकतर शोध विदेशों में हुये हैं। यही कारण है कि नीम आधारित औषधियों व अन्य उत्पादों पर अधिकरत पेटेंट विदेशियों को प्राप्त हैं और इनकी संख्या बढ़ती जा रही है।

नीम के कीटनाशक गुणों से भी भारतवासी बहुत पहले से परिचित हैं। हमारे बुजुर्ग अन्न संगेहण के समय अन्न के साथ नीम की सूखी पत्तियों या नीम के बीजों की पोटली रख दिया करते थे। वे जानते थे कि यह प्राकृतिक उपाय न केवल कीडत्रों को दूर रखेगा, बल्कि उनके अन्न को भी जहरीला नहीं करेगा। इसके अलावा यह उपाय सस्ता भी है। आज भी गांवों में अन्न संग्रहण में नीम, सीताफल, र्निगुंडी आदि की सूखी पत्तियों का प्रयोग होता है।

इन ग्रामीणों को जहरीले कीटनाशकों पर विश्वास नहीं है। खेतों में फसलों को कीड़ों से बचाव के लिये नीम का प्रयोग यद्यपि पहले इतना प्रचलित नहीं था, तथापि देश के कुछ हिस्सों में आदिवासी नीम के घाल का छिड़काव कुछ पौध रोगों व कीटों को नष्ट करने के लिये करते थे। आज बाजार में बहुत से नीम आधारित कीट-नाशक उपलब्ध हैं, जिसमें कि (एजीडिरेक्टीन) मुख्य तत्व के रूप में होता है। विभिन्न रसायनों से होने वाले पर्यावरण-मित्र के नाम से नीम आधारित कीटनाशकों की मारक क्षमता के अधिकतर प्रयोग विदेशों में भिन्न वातावरणीय परिस्थितियों में हुये हैं।

                                                                                     

विदेशी वैज्ञानिकों द्वारा अनुमोदित अधिकतर नीम आधारित कीटनाशक भारतीय बाजार में उपलब्ध हैं। भारती परिस्थितयों में इन कीटनाशकों की क्षमता को भलीभांति विश्लेषित नहीं किया गयाहै। केन्द्रीय चावल अनुसंधान केन्द्र, कटक में हाल ही में आयोजित एक राष्ट्रीय संगोष्ठी के दौरान वैज्ञानिकों ने अनौपचारिक चर्चाके दौरान यह कटु सत्य उजागर किया कि भारतीय परिस्थितियों के लिये नीम आधारित कीटनाशक उपयुक्त नहीं है। इसका प्रचार कर किसानों को छला जा रहा है। भारतीय क्षेत्रों में तापक्रम अधिक होने के कारण लम्बे समय तक ये कीटनाशक प्रभावी नहीं रह पाते हैं।

एक बार कीटनाशक डालने के बाद मुश्किल से दो-तीन दिनों तक ही इसका प्रभाव रहता है, जबकि कीटनाशक निर्माता 10 से 15 दिनों तक प्रभाव रहने का दावा करते हैं। विदेशों में खासकर ठंडे देशों में कम तापक्रम की वजह से ये कीटनाशक वास्तव में 10-15 दिनों तक प्रभावी रहते हैं। हमारे देश में उत्तरी क्षेत्रों में जहां गर्मी अधिक नहीं पड़ती है, कुछ अधिक समय तक ये कीटनाशक प्रभावी रहते हैं। इस प्रकार की जानकारी किसानों को उपलब्ध नहीं है। यही कारण है कि वे लगातार बहकावे में आ रहे हैं। विदेशों से नीम आधारित कीटनाशकों के गुणों का बखान सुनकर भारत के कुछ प्रमुख अनुसंधान केन्द्रों में इन प्रयोगोें को जब दोहराया गया तो बिल्कुल उलटे परिणाम मिले। इसलिये भारतीय कृषि वैज्ञानिकों ने अब इन कीटनाशकों के विरोध में खुलकर कहना शुरू कर दिया।

इसके अलावा नीम अधारित कीटनाशकों के साथ एक समस्या है कि ये रिपेलेन्ट का काम करते हैं, अर्थात् कीटों को नष्ट करने के स्थान पर पौधों पर उनकी उपस्थिति कीटों को दूर भगाती है। अतः नीम पर आधारित उत्पादों को कीड़ों के आक्रमण के पूर्व छिड़कना होता है, जिससे कि कीड़े पौधे पर आक्रमण न कर पाएं। भारत में अभी मौसम पूर्वानुमान में सुधार हो जाये तो वातावरणीय परिस्थितियों के अनुसार पौध रोग व कीटों के प्रकोप का पहले से पता लगाकर नीम आधारित उत्पादों का प्रयोग किया जा सकता है। नीम के बीजों का तेल एक अच्छे रिपेलेन्ट का कार्य करता है। जैविक कृषि से उनके स्वयंसेवी संगठनों ने अपने अनुसंधानों में 1 प्रतिशत नीम के तेल को अधिक प्रभावी पाया है। नीम का तेल गांवों में आसानी से निकाला जा सकता है। सस्ता व आसान उपलब्धता होने से किसानों द्वारा इसे अपनाने की गति तेज है।

आज आवश्यकता इस बात की है कि भारत में किसी भी कीटनाशक के प्रयोग की सलाह किसानों को देने से पहले कुछ शोध अनुसंधान केन्द्रों में किये जायें, जिससे भारतीय परिस्थितियों में उनकी प्रभावशीलता के आंकलन को प्राथमिकता दी जाये। आज पूरा विश्व एक खुला बाजार बन गया है। ऐसे में अशिक्षित और भोले-भाले भारतीय किसानों को गुमराह होने से रोकने की महती आवश्यकता है।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।