गण और तंत्र के बीच बढ़ा फासला

                           गण और तंत्र के बीच बढ़ा फासला

                                                                                                                     डॉ0 आर. एस. सेंगर, डॉ0 रेशु चौधरी एवं मुकेश शर्मा

                                                                               

हम चाहे किसी भी धर्म या संप्रदाय से संबंध क्यों न रखते हों, परन्तु राष्ट्र-धर्म की राह पर चलना हमारी एक नैतिक जिम्मेदारी होनी चाहिए, क्योंकि हमारा देश दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र और गणराज्य है। भारत कें संविधान भी में हर धर्म के लोगों को एकसमान मौलिक अधिकार और कर्तव्य प्राप्त हैं, इसी कारण हम यहां पूर्ण आजादी से जी रहे हैं। मगर यह अत्यन्त ही दुखद है कि 26 जनवरी को जब हम एक-दूसरे को गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं देते हैं, सत्ताधारी व राजनेता संविधान की मान- मर्यादा बनाए रखने के लिए बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, मगर हम में से बहुत से लोग संविधान में दर्ज मौलिक कर्तव्यों की पालना ही नहीं करते, सरकारों के प्रति आक्रोश जाहिर करने के लिए सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाते हैं।

अपने लाभ के लिए दूसरे को ठगने तक से संकोच नहीं करते। तो क्या यह सब अधिकार भी हमें संविधान ने दिए हैं? ऐसे में, कैसे बनेगा हमारा देश आत्मनिर्भर? लगता है, हरिवंश राय बच्चन ने इन्हीं सबकी कल्पना करके ही यह लिखा था- कठिन नहीं होता है बाहर की बाधा को दूर भगाना, और कठिन नहीं होता है बाहर के बंधन को काटना, गैरों से कहना क्या मुश्किल अपने घर की राह सिधारें, किंतु नहीं पहचाना जाता अपनों के बीच में बैठा हुआ बेगाना।

आज नमन उन महान शहीद देशभक्तों को, जिनकी बदौलत हम सभी एक गणतंत्र में रह रहे हैं। इस देश की निःस्वार्थ सेवा के लिए उन लोगों ने अपनी जान तक की परवाह नहीं की। महात्मा गांधी ने भी कभी कहा था, मैं ऐसे संविधान के लिए प्रयत्न करूंगा, जिसमें छोटे से छोटे व्यक्ति को भी यह अहसास हो कि यह देश उसका है और इसके निर्माण में उसका भी बराबर का योगदान है।

                                                                             

इन पंक्तियों पर अनुसरण करना आजाद भारत के कुछ स्वार्थी सत्ताधारी राजनेता, और नौकरशाह भूल गए, तभी तो आज देश में गण और तंत्र के बीच फासला बढ़ता ही जा रहा है। आज सबको कुरसी और धन की भूख है। आज गण के भ्रष्ट-तंत्र में आमजन को जरा भी यह अहसास नहीं होता है कि यह उनका तंत्र है या संविधान में गण के लिए ही तंत्र का प्रावधान किया गया है। गण पर तंत्र का इस कदर हावी होना यह भी दर्शाता है कि देश की राजनीति और नौकरशाही में स्वार्थी लोगों की वृद्धि हो रही है और देशभक्तों की कमी। ऐसे में, जरूरी यही है कि देश के हरेक नागरिक को अपना स्वार्थ छोड़कर निःस्वार्थ भाव से राष्ट्र- धर्म की भावना अपने अंदर भरनी होगी, तभी हमारा देश अपनी हर समस्या से मुक्त हो सकता है।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।