अब लहसुन हुआ ₹400 प्रतिकिलो तो शिमला मिर्च में भी आई तेजी

     अब लहसुन हुआ 400 प्रतिकिलो तो शिमला मिर्च में भी आई तेजी

                                                                                                                               डॉ0 आर. एस. सेंगर, डॉ0 रेशु चौधरी एवं डॉ0 कृषाणु सिंह

                                                             

सर्दियों में लहसुन के सेवन को स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद माना जाता है। यह सर्दी जुकाम अस्थमा निमोनिया से लोगों को बचाता है, लेकिन लहसुन की कीमतों में बेतहाशा बढ़ोतरी के कारण यह आम आदमी की पहुंच से बाहर हो चुका है। एक महीने में लहसुन का दाम बढ़कर ₹400 किलो के पार पहुंच गया है। यह ₹ 120 पाव के हिसाब से तो कहीं ₹50 का 100 ग्राम के हिसाब से बचा जा रहा है।

टमाटर, शिमला मिर्च और मटर समेत कई सब्जियों के दामों में तेजी देखी जा रही है। एक महीने पहले फुटकर में लहसुन ढाई सौ से ₹300 प्रति किलोग्राम बाजार में बेचा जा रहा था, लेकिन पिछले 10-15 दिनों से इसके दाम दुगने से भी अधिक हो गए हैं।

तेजी से बढ़ रहे लहसुन के भाव को देखते हुए अनुमान लगाया जा रहा है कि अभी कुछ दिनों तक इसके भाव में ऐसी ही तेजी बनी रहेगी। टमाटर का भाव 15 दिन में ₹20 बढ़कर ₹40 प्रति किलो तो कहीं ₹50 प्रति किलो तक भी पहुंच गया है। मटर की कीमत जो पहले ₹10 प्रति किलोग्राम तक थी और अब वह बढ़कर फुटकर में अब ₹40 प्रति किलो तक पहुंच गई है।

                                                                               

धनिया के दाम भी 15 दिन में दो से तीन गुना तक बढ़ गए हैं, 100 ग्राम धनिया ₹15 का मिल रहा है। अदरक का भाव भी बढ़ा हुआ है और अदरक बाजार में ₹40 पांव के हिसाब से 160 रुपए किलो तक बेचा जा रहा है तो कहीं-कहीं अदरक को ₹200 प्रति किलो तक भी दुकानदार बेच रहे हैं। बीते कुछ दिनों में आलू का भाव जरूर कम हुआ है लेकिन अनुमान लगाया जा रहा है कि इस बार आलू की भी किसानों को अच्छी कीमत मिल सकेगी।

बाजार में सब्जियों की कीमतें तो बढ़ी हुई है, लेकिन इसका फायदा किसानों को नहीं मिल पा रहा है। यह फायदा ज्यादातर बिचोलिये ही ले रहे है है या दुकानदार कमा रहे हैं। किसान को तो न्यूनतम दर पर ही अपनी सब्जियों और फसलों को बेचना पड़ रहा है। फुटकर में दुकानदार दाम बढ़ाकर सब्जियों को बेचकर काफी मुनाफा कमाते हैं।

जबकि किसान पूरे साल अपने खेत पर उसको उगता है और जब बाजार में बेचने जाता है तो शायद उसकी सही कीमत तक नहीं मिल पाती। लेकिन दुकान पर पहुंचते ही उसकी कीमत में इतनी बढ़ोतरी हो जाती है कि दुकानदार को बैठे ही बैठे डेढ़ से दोगुने तक के पैसे मिल जाते हैं और वही जो किसान पूरे साल मेहनत कर इसे उगता है उसको अच्छी कीमत नहीं मिल पाती है।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।