ग्लूकोमा

                                          ग्लूकोमा

                                                                                                                                     डॉ0 दिव्याँशु सेंगर एवं मुकेश शर्मा

                                                                    

एक अध्ययन के अनुसार भारत में अंधेपन का तीसरा सबसे बड़ा और आम कारण ग्लूकोमा पीड़ित लोगों मं लगभग 80 प्रतिशत मामलों का समय से पता ही नहीं चल पाना है। विशेषज्ञों के द्वारा बताया गया कि ग्लूकोमा एक ऐसी बीमारी है, जो पीड़ित व्यक्ति की ऑप्टिक तंत्रिका को प्रभावित करती है। जनवरी राष्ट्रीय ग्लूकोमा जागरूकता का महीना है, जो इस बीमारी के सम्बन्ध में जागरूकता फैलाने का के उद्देश्य से मनाया जाता है। ग्लूकोमा को ‘छुपे चोर’ के उपनाम से भी जाना जाता है।

ग्लूकोमा के कोई प्रारंभिक लक्षण नहीं होते हैं। इसी समस्या के चलते इसे अपरिवर्तनीय अंधेपन का प्रमुख कारण भी माना जाता है, जिससे दुनिया भर में आठ करोड़ से अधिक लोग प्रभावित हैं।

सेंटर और सर गंगा राम अस्पताल के वरिष्ठ कॉर्निया, मोतियाबिंद और सर्जरी विशेषज्ञ इकेदा लाल ने बताया कि, ग्लूकोमा आखों की स्थितियों का एक ऐसा समूह है, जो ऑप्टिक तंत्रिका को हानि पहुंचाता है और जिससे धीरे-धीरे दृष्टि की हानि होती जाती है। हालांकि, यह आमतौर पर अपने शुरुआती चरण में कोई विशेष लक्षण नहीं दिखाता है, जिससे ग्लूकोमा के प्रारंभिक निदान के लिए नियमित रूप से आंखों की जांच बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है। उन्होंने बताया कि जैसे-जैसे यह स्थिति बढ़ती जाती है. व्यक्तिको दृष्टि कम रोशनी के साथ तालमेल बिठाने में कठिनाई और रोशनी के चारों और प्रभामंडल देखने का अनुभव हो सकता है।

कुछ मरीजों को आंखों में दर्द के साथ ही सिरदर्द का अनुभव भी हो सकता है। डॉक्टर बताते हैं कि यदि किसी व्यक्ति को उपरोक्त लक्षणों में से कोई भी लक्षण दिखाई देता है, तो व्यापक नेत्र परीक्षण के लिए नेत्र चिकित्सक को अविलम्ब ही दिखाना अति महत्वपूर्ण होता है। केवल भारत में ही 40 वर्ष और उससे अधिक उम्र के लगभग 1 करोड़ से अधिक लोगों ग्लूकोमा से पीड़ित है, लेकिन उनमें से केवल 20 प्रतिशत लोग ही यह जानते हैं कि उन्हें यह बीमारी है।

                                                                          

ऐसा इसलिए है क्योंकि शुरुआत में इस बीमारी के कोई लक्षण नहीं दिखाई देते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, हालांकि ग्लूकोमा मुख्य रूप से मध्यम आयु वर्ग और बुजुर्गों को अधिक प्रभावित करता है। हालांकि, यह सभी आयूवर्ग के लोगों को प्रभावित कर सकता है। नई दिल्ली एम्स में आरपी सेंटर फॉर ऑलिमिक साइंसेज के रोहित सक्सेना बताते है कि ग्लूकोमा में दृष्टि ऑप्टिक तंत्रिका की क्षति के कारण होती है जो आंखों से मस्तिष्क तक इमेज को ले जाने के लिए जिम्मेदार होती है।

दृष्टि की हानि जीवन की कम गुणवत्ता और दैनिक जीवन की गतिविधियों को करने की क्षमताओं में कमी आने से जुड़ी हो सकती है, जिसके अन्तर्गत अवसाद और चितंा को भी शामिल किया जाता है।

                                                                   

इसके अलावा उन्होंने बताया कि बढ़ती उम्र के साथ ग्लूकोमा का होना भी आम होता जाता है। पारिवारिक इतिहास और आनुवांशिकी भी इसकी बढ़त में एक प्रमुख भूमिका निभाते हैं, जिन व्यक्तियों के रिश्तेदार ग्लूकोमा से प्रभावित रहे होते हैं, ऐसे लोगों में इसका अधिक खतरा होता हैं। हालांकि ग्लूकोमा एक लाइलाज बीमारी होती है जिससे इसका कोई पूर्ण इलाज उपलब्ध नहीं है।

लेकिन, समय के रहते इसके बारे में पता लगाना और उचित उपचार बहुत महत्वपूर्ण है और इससे दृष्टि हानि को रोकने में मदद मिलती है। डॉक्टरों ने बताया कि एक बार जब ग्लूकोमा की पहचान हो जाती है, तो इसके रोगी को दीर्घकालिक निगरानी और प्रबंधन की आवश्यकता होती है।

लेखकः डॉ0 दिव्याँशु सेंगर प्यारे लाल शर्मा जिला अस्पताल मेरठ, में मेडिकल ऑफिसर हैं।