अत्यधिक प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों के सेवन को हतोत्साहित करने की आवशयकता

अत्यधिक प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों के सेवन को हतोत्साहित करने की आवशयकता

                                                                                                                                                       डॉ0 आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

स्वाद की बजाय सेहत को चुनें और समझदार बनें

                                                                     

संयुक्त राष्ट्र के दो प्रमुख संगठनों विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और खाद्य एवं  कृषि संगठन (एफएओ) के आह्वान पर प्रतिवर्ष 7 जून को विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस मनाया जाता है। खाद्य मानदंड, जो जीवन की रक्षा करते हैं, लेकिन भारत को इस दिशा में अब भी कड़े कदम उठाने हैं। हमारा देश गैर संचारी रोगों (एनसीडी) संबंधी स्वास्थ्य संकट से जूझ रहा है। पांच वर्ष से कम आयु वर्ग के बच्चों में भी मोटापे की समस्या सामने आ रही है तो प्रति 4 में से 1 वयस्क अधिक वजन का शिकार है।

पिछले पांच सालों में यह समस्या अधिक बढ़ी है। मोटापा टाइप-2 डायबिटीज, कैंसर और हृदय रोगों का कारण भी बनता है। प्रत्येक वर्ष गैर संचारी बीमारियों के कारण 58 लाख लोगों की मृत्यु हो जाती है, जो कि देश में होने वाली कुल मौतों का 60 प्रतिशत है।

                                                           

पैकेट बंद अति प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों (यूपीएफ) का बढ़ता चलन अत्यधिक मोटापे और बीमारियों का कारण बनकर उभरा है। विशषज्ञों का कहना है कि इन बीमारियों की रोकथाम के लिए यूपीएफ पदार्थों के सेवन को कम करना होगा। इसके लिए इनके विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगाना चाहिए और पैकेट के सामने वाले हिस्से पर स्वास्थ्य चेतावनी भी छपनी चाहिए। सवाल यह है कि खाद्य सुरक्षा क्या है?

संसद ने खाद्य सामग्री का नियमन करने और मानव उपभोग के लिए सुरक्षित व पौष्टिक भोजन की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए खाद्य सुरक्षा और मानक (एफएसएस) अधिनियम 2006 लागू किया था। इस अधिनियम के अनुसार, खाद्य सुरक्षा का अर्थ है यह सुनिश्चित करना कि उक्त खाद्य सामग्री मानव के उपयोग के लिए स्वीकार्य है। अधिनियम में कहा गया है कि ‘असुरक्षित खाद्य’ वह खाद्य सामग्री होती है, जिसकी प्रकृति या गुणवत्ता स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकती है। असुरक्षित खाद्य को अच्छा दिखाने के लिए उन्हें आकर्षक, रंगीन, सुगंधित या कोटेड बना कर भी प्रस्तुत किया जा सकता है।

निःसन्देह ऐसा बिक्री बढ़ाने के लिए ऐसा किया जाता है और यूपीएफ खाद्य पदार्थ असुरक्षित हैं। संयुक्त राष्ट्र की खाद्य एवं कृषि संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार यूपीएफ यानी अति प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ उन सामग्रियों से बने होते हैं, जो अधिकतर सिर्फ औद्योगिक उपयोग के लिए होते हैं। इन्हें तैयार करने में औद्योगिक तकनीक और प्रक्रिया का प्रयोग किया जाता है।

                                                                               

ब्रिटिश मेडिकल जर्नल के अनुसार, अत्यधिक प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ एडिटिव, फ्लेवर, इमल्सीफायर और रंगों का कॉकटेल होते हैं। इन्हें खाने की आदत लग जाती है, तो हम धीरे-धीरे स्वास्थ्यकर भोजन खाना छोड़ देते हैं।

ब्रिटिश मेडिकल जर्नल के अनुसार, ये खाद्य पदार्थ आपके घर पर नहीं बनाए जा सकते। इनमें कई सामग्रियों का इस्तेमाल किया जाता है। ये एक तरह से एडिटिव, फ्लेवर, इमल्सीफायर और रंगों का कॉकटेल होते हैं। इन्हें खाने की आदत लग जाती है, तो हम धीरे-धीरे स्वास्थ्यकर भोजन खाना छोड़ देते हैं। यूपीएफ में शर्करा, वसा और नमक/सोडियम की मात्रा अत्यधिक होती है। यूपीएफ इसीलिए अधिनियम में बताई गई ‘असुरक्षित खाद्य’ की श्रेणी में बिलकुल फिट बैठते हैं।

वैज्ञानिक प्रमाणों से भी यह स्पष्ट है कि यूपीएफ सेवन में प्रति 10 प्रतिशत की वृद्धि से टाइप-2 डायबिटीज का खतरा 15 प्रतिशत बढ़ जाता है। इससे ओवरईटिंग और वजन बढ़ने, शर्करा के अधिक सेवन और उच्च रक्तचाप के जोखिम रहते हैं। ऐसे भी प्रमाण हैं कि इन खाद्य पदार्थों के सेवन से कैंसर, हृदय रोग, अवसाद और अन्य कई बीमारियों का खतरा भी आसन्न रहता है।

डब्ल्यूएचओ ने हाल ही चेताया है कि ऐसे खाद्य पदार्थों का सेवन अधिक समय तक करना ठीक नहीं है। एफएसएस अधिनियम 2006 के अनुसार, ‘किसी भी ऐसे खाद्य पदार्थ का विज्ञापन नहीं कियी जाना चाहिए, जो भ्रामक हो या धोखा देने वाला हो या इस अधिनियम का उल्लंघन करे।’

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 की धारा 2 (28) के अनुसार किसी उत्पाद या सेवा के ‘भ्रामक विज्ञापन’ से तात्पर्य है कि इसमें जानबूझ कर महत्त्वपूर्ण जानकारी छिपाई गई है। उदाहरण के लिए अगर किसी मीठे खाद्य पदार्थ के विज्ञापन में इसके कुल शर्करा घटक की जानकारी नहीं दी गई है, तो यह विज्ञापन भ्रामक ही कहलाएगा। क्या यह नियमन प्रभावी हैं? नहीं। नियमन तंत्र शिकायत पर आधारित हैं।

                                                                             

भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने कथित तौर पर 150 से अधिक विज्ञापन भ्रामक पाए हैं और उन्हें निर्णय के लिए एक समिति को सौंप दिया है। इस बीच, खाद्य कम्पनियां लोगो के स्वास्थ्य की कीमत पर पैसा कमा रही हैं। इसलिए मौजूदा नियमन की समीक्षा भारतीय जनता के हित में ही है। अब नीति निर्माताओं को यह सुनिश्चित करना होगा कि भारतवासी ‘स्वास्थ्यकर भोजन’ का सेवन करें।

असुरक्षित भोजन का विज्ञापन रोकने के लिए तीन कदम उठाने होंगे। पहला, इसके लिए आवश्यक स्वास्थ्य चेतावनी जारी की जाए। अगर खाद्य सामग्री में शर्करा की मात्रा 10 प्रतिशत से अधिक हो, 10 प्रतिशत से ज्यादा संतृप्त वसा हो और एमजी/किलो कैलोरी से अधिक सोडियम हो। दूसरा, भारत सरकार ऐसे खाद्य पदार्थों के विज्ञापन, अन्य प्रोत्साहनों पर प्रतिबंध लगा सकती है।

ये दो उपाय असुरक्षित भोजन के बढ़ते सेवन पर रोक लगा सकते हैं। तीसरा, ऐसे खाद्य पदार्थों पर उच्चतम जीएसटी कर लगा दिया जाना चाहिए। दक्षिणी अफ्रीका की सरकार ने इसी तरह के नियमन का प्रावधान किया है। भारत के लिए यह उदाहरण हो सकता है। निस्संदेह ऐसा करके हम कई जान बचा सकेंगे। साथ ही गैर संचारी रोगों पर खर्च होने वाला पैसा बचा सकते हैं।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।