कैसे बनता है पानी और कैसे होती है वॉटर रिसाइकलिंग

              कैसे बनता है पानी और कैसे होती है वॉटर रिसाइकलिंग

                                                                                                                                                    डॉ0 आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

अपनी दैनिक दिनचर्या में हम बिना सोचे समझे पानी का बहुत अधिक उपयोग/दुर्पपयोग करते रहते हैं और इसे बेवजह बर्बाद भी करते हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि पृथ्वी सैंकड़ों वर्षों के अधिक समय से पानी का पुनः चक्रीकरण अर्थात रीसाइकलिंग कर रही है। हमारी पूरी दुनिया में पानी झीलों, नदियों, महासागरों, वायुमंडल और पृथ्वी के बीच एक लगातार चक्र चलता रहता है, जिसे जल चक्र कहा जाता है। जब पानी इस सतत प्रणाली चक्र से गुजरता है तो वह तरल (पानी), गैस (वाष्प), या ठोस (बर्फ) में बदल जाता है। दरअसल सूर्य की ऊर्जा पृथ्वी की सतह को गर्म करती है, जिससे हमारी नदियों, झीलों और महासागरों में स्थित पानी का तापमान भी बढ़ जाता है। जब ऐसा होता है तो पानी की कुछ मात्रा हवा में वास्पीकृत हो जाती है और यह गैस में बदल जाता है। पेड़ पौधे भी अपनी पत्तियों के माध्यम से वातावरण में पानी छोड़ते रहते हैं। इस प्रक्रिया को वाष्पोत्सर्जन के रूप में जाना जाता है।

                                                                        

जब यह पानी वह तो बनकर आकाश में ऊपर उठता है तो वह ठंडा हो जाता है और इस वाष्प को तरल रूप में बदलते हुए बादल का निर्माण करता है, यह प्रक्रिया को संक्षेपण की क्रिया कहलाती है। और फिर हवा इन बादलों को दुनिया भर में घुमाती है और बारिश के रूप में जल पृथ्वी पर वापिस आ जाता है। जल चक्र को जल विज्ञान चक्र के रूप में भी जाना जाता है। जब बहुत सारा पानी एक जगह जमा हो जाता है तो वह बादलों में पानी की बड़ी एवं भारी बूंदों में बदल जाता है, जिसे हवा रोक नहीं पाती है। ऐसे में पानी की यह बूंदे बारिश, बर्फ या ओलावृष्टि के रूप में वापस पृथ्वी पर आ गिरती है और इसी प्रक्रिया को वर्षा के रूप में जाना जाता है। वर्षा का जल कैसे एकत्र होगा यह इस पर निर्भर करता है कि यह कहां गिरता है। कुछ बूंदे सीधे झीलों, नदियों या समुद्र में गिरती है, जहां से यह फिर से वास्पीकृत हो जाता है और चक्र फिर से शुरू हो जाता है।

                                                                    

यदि पानी पेड़ पर गिरता है तो वह पत्तियों से वास्पित होकर पुनः हवा में या नीचे जमीन पर गिर सकता है। इस जल का कुछ भाग पौधों की जड़ों द्वारा सोख दिया जाता है। ठंडी जलवायु में वर्षा भूमि पर बर्फ या ग्लेशियर के रूप में जमा हो जाता है और पुनः तापमान के बढ़ने के कारण बर्फ पिघलाकर तरल अर्थात पानी बनकर या तो जमीन में समा जाता है या फिर यह बहकर नदियों एवं समुद्र में चला जाता है। ऐसे में जो पानी सीधे जमीन तक पहुंचता है वह जमीन पर बहते हुए महासागरों, नदियों या झीलों में इकट्ठा हो सकता है। इस जल को सतही अपवाह कहा जाता है। वर्षा का कुछ जल मिट्टी सोख लेती है, जहां से यह धीरे-धीरे जमीन के माध्यम से आगे बढ़ता है और अंततः नदी या समुद्र तक पहुंच जाता है और इसी चक्र के लगातार होने के कारण पानी हम तक लगातार पहुंचता रहता है।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।