भारत एक सामाजिक प्रजातन्त्र

                                भारत एक सामाजिक प्रजातन्त्र

                                                                                                                                                 डॉ0 आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

                                                                         

    ‘‘वास्तव में प्रजातन्त्र को बनाए रखने के लिए हमें अपने सामाजिक और आर्थिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए निष्ठापूर्वक सांविधानिक तरीको को ही अपनाना चाहिए।’’

    महोदय, संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसम्बर, 1946 को सम्पन्न हुए अब 2 वर्ष, 11 माह और 17 दिन हो जाएंगे। इस समयावधि के दौरान संविधान सभा की कुठ 11 बैठके हुई है। इन सभी सत्रों में से आरम्भिक छह उद्देश्य प्रस्ताव पास करने तथा मूलभूत अधिकारों, संघीय संविधान, संघ की शक्तियाँ, राज्यों के संविधान, अल्पसंख्यकों, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों पर बनी समितियों द्वारा प्रस्तु की गई रिर्पोट्स पर विचार करने में ही बीतें। उसके बाद के सत्रों में प्रारूप संविधान पर विचार किया गया।

इस सभा के इन 11 सत्रों में कुल 165 दिन कार्य किया गया। इनमें से 114 दिन प्रारूप संविधान के विचारार्थ लगाए गए। यदि प्रारूप समिति की बात करें, तो वह 29 अगस्त, वर्ष 1947 को संविधान सभा के द्वारा चुनी गई थी, जिसकी पहली बैठक 30 अगस्त, 1947 को हुई। तब से 141 दिनों तक वह प्रारूप संविधान को तैयार करने में जुटी रही। प्रारूप समिति के द्वारा आधार के रूप में उपयोग किए जाने के लिए संवैधानिक सलाहाकार के द्वारा बनाए गए प्रारूप संविधान में 243 अनुच्छेद और 13 अनुसूचियाँ विद्यमान थी और यह अपने अन्तिम स्वरूप के प्रारूप संविधान में 395 अनुच्छेद और 8 अनुसूचियाँ रखे हुए है।

प्रारूप संविधान में कुल मिलाकर करीब प्रस्तावित थे, जिनमें से कुल 2, 473 संशोधन नही सदन में विचार करने के लिए प्रस्तुत किए गए। मै उक्त तथ्यों का स्मरण इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि कहा तो यह गया है कि अपना कार्य पूरा करने में इस समिति ने बहुत अधिक समय लगा दिया और समिति जनता के धन की बर्बादी कर रही है। ऐसे में क्या इस शिकायत का कोई औचित्य है?

यह सत्य है कि हमने अमेरिका या दक्षिण अफ्रीकी सभाओं की तुलना में अधिक समय लिया, परन्तु हमने कनाडाई सभा से अधिक समय नही लिय और ऑस्ट्रेलियाई सभा की तुलना में तो यह बहुत ही कम है। संविधान-निर्माण करते समय समयावधियों की तुलना करते समय दो बातों का ध्यान विशेष रूप से आवश्यक है, जिनमें पहली यह है कि अमेरिका, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका और ऑस्टेªलिया आदि के संविधान हमारे संविधान की तुलना में बहुत छोटे हैं, तो दूसरी बात यह है कि अमेरिका, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका और ऑस्टेªलिया आदि के संविधान निर्माताओं को संशोधनों की समस्या का भी सामना नही करना पड़ा था।

उक्त तथ्यों को देखते हुए संविधान के निर्माण में विलम्ब के आरोप मुझे पूरी तरह से निराधार ही लगते हैं। इसीके परिप्रेक्ष्य में यह सभा इतने दुर्गम कार्य को इतने कम समय में पूर्ण करने के लिए स्वयं को बधाई भी दे सकती है। मुझे यह देखकर प्रसन्नता होती है कि एक अकेले सदस्य (नजीरूद्दीन अहमद) को छोड़कर इस संविधिान सभा के समस्त सदस्यगण एकमत थे। संविधान सभा में आने के पीछ मेरा एकमात्र उद्देश्य देश की विभिन्न अनुसूचित जातियों के हितों की रक्षा करने के अलावा और कुछ भी नही था।

                                                                          

26 जनवरी, 1950 को भारत इस अर्थ में एक प्रजातान्त्रिक देश बन जाएगा कि उस दिन से भारत में जनता की जनता के द्वारा जनता के लिए ही एक सरकार होगी। प्रजातन्त्र को वास्तव में बनाए रखने के लिए हमें पहला काम यह करना चाहिए कि अपने सामाजिक एवं आर्थिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए निष्ठापूर्वक संवैधानिक उपयों का ही सहारा लेना चाहिए। हमें, हमारे प्रजातन्त्र को एक सामाजिक प्रजातन्त्र भी बनाने का प्रयास करना चाहिए। सामाजिक प्रजातन्त्र का अर्थ एक ऐसी जीवन पद्वति से है जो कि स्वतन्त्रता, समानता और बंधुत्व को जीवन के प्रमुख सिद्वाँतों के रूप में स्वीकार करती हो।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।