टमाटर की खेती एवं बीजोत्पादन

डॉ आर ऐस सेंगर  कृशानु डॉ शालिनी गुप्ता डॉ वैशाली डॉ वर्षा रानी एवं डॉ सत्यप्रकाश2 
सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रोद्योगिक विश्विद्यालय मेरठ  २५०११०

टमाटर भारतवर्ष में वृहत रूप से उगाई जाने वाली षाकभाजी की फसल है। यह ताजे उपयोग और प्रसंस्करण के लिए उगाई जाती है। यद्यपि पके हुए फल में 94 प्रतिषत पानी होता है फिर भी यह विटामिन -ए.,बी. तथा सी. का बहुत अच्छा स्रोत है। ये बहुत ही पाचक. कब्ज को दूर करने वाली एवं अच्छे स्वाद वाली सब्जी है। इसका उपयोग उबाल कर या कच्चे रूप में सूप, सलाद, प्रसंस्कृत अचार, चटनी, कैचप, साॅस तथा अन्य उत्पादन में किया जाता है।

मौसम
   टमाटर एक हल्के मौसम की फसल है। यह न केवल पाले के प्रति संवेदनषील है बल्कि इसका अत्यन्त कम तापमान पर भी अच्छा उत्पादन नहीं होता है । अधिक तापमान के साथ षुष्क हवा एवं कम आर्द्रता की स्थिति में फूलों के अंग अधिकतर नष्ट या चोटिल हो जाते हैं। अंततः फल नही बनता है। टमाटर के परागकण सर्वाधिक परागित 21.4 डिग्री सेन्टीग्रेड से 29.4 डिग्री सेन्टीग्रेड तापमान पर तथा 10 डिग्री सेन्टीग्रड एवं 37 डिग्री सेन्टीग्रेड पर बहुत कम परागित होते हैं। इसी कारण अधिक या कम तापमान होने पर फल नहीे बनते हैं। यद्यपि टमाटर सूखे की प्रति काफी सहनषील हैं। परन्तु सूखे या अधिक बरसात में ब्लासम एण्ड राॅट फलों पर आता है। सूखे के बाद नमी होने पर फलों में फटन पैदा होती है। 
भूमि
   टमाटर की खेती (हल्की बलुई से भारी चिकनी मृदा) हर प्रकार की मृदा में हो जाती है। परन्तु बीजोत्पादन के लिए अच्छे जल निकास वाली बलुई दोमट मिट्टी अच्छी होती है जहां पर वृद्धि के लिए कम समय मिलता है। वहां हल्की मृदा (बलुई दोमट) उपयुक्त होती है।

बीजोदर प्रति हैक्टेयर
   सामान्य किस्में   -   500 ग्राम (10 ग्राम प्रति नाली)
   संकर किस्में     -   300 ग्राम (6 ग्राम प्रति नाली) 
बीज बोने का समय
1.    तराई तथा भावर क्षेत्र (900 मीटर की ऊंचाई तक)
नर्सरी  -   अगस्त/सितंबर
रोपाई  -   सितंबर/अक्टूबर
2.    निचली पर्वतीय घाटियों वाले क्षेत्र (900 से 1500 मीटर की ऊंचाई तक)
 नर्सरी  -  जनवरी/फरवरी
रोपाई  -   मार्च/अप्रैल
3.    उच्च पर्वतीय क्षेत्र (1500 से 2500 मीटर की ऊंचाई तक)
नर्सरी  -   अप्रैल/मई
रोपाई  -   जून/जुलाई
खरपतवार नियंत्रण 
   खरपतवार नियंत्रण के लिए रोपाई से दो पूर्व बाससलीन 2.5 ली. प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग किया जाता है। 0.5 मिली. बासालीन को प्रति ली. पानी में घोल बनाकर समान रूप से खेत में छिड़काव करना चाहिए। तत्पष्चात हल्की जुताई कर देते है। जिससे यह मृदा में भली- भांति मिल जाएं।

खाद एवं उर्वरक (प्रति हैक्टेयर)
   सामान्य किस्में   -   नत्रजन 100 कि.ग्रा.    संकर किस्में   -   नत्रजन 150 कि.ग्रा.
                      फास्फोरस 60 कि.ग्रा.                    फास्फोरस 90 कि.ग्रा. 
                       पोटाष 60 कि.ग्रा.                      गोबर की खाद 10 टन
नर्सरी एवं बीज की बोवाई
   टमाटर की पौध तैयार करने के लिए यथा संभव नई जगह का चुनाव करना चाहिए। एक हैक्टेयर की पौध तैयार करने के लिए 7ग.75ग.15 मी. की 15 क्यारियों की आवष्यकता होती है। इन क्यारियों में अच्छी सड़ी हुई गोबर/कम्पोस्ट की खाद एवं मोटी रेत/मौरंग को समानुपात में मिलाकर 3 इंच मोटी पर्त बिछा देते है। इसके पष्चात क्यारियों का निजर्मीकरण कर देते हैं। यदि निजर्मीेरण नही हो पाया है तो प्रत्येक क्यारी में 100 ग्राम फ्यूराडान मृदा मिश्रण में मिला देते हैं। उपचारित क्यारियों में 5 से.मी. की दूरी पर 1 से.मी. की गहराई में बीज की बुवाई कर देते हैं एवं बुवाई के पष्चात पुआल से ढक देते हैं एवं अंकुरण के पष्चात पुआल हटा देते हैं।

 

रोपाई एवं दूरी
1.    पौध की रोपाई दोपहर के बाद षाम के समय करते हैं।
2.    पौध की जड़ को फैलाकर एवं सीधा करके रोपण करते हैं।
3.    रोपण के पष्चात हल्की सिंचाई कर दें।
4.    रोपण के 4-5 दिन पष्चात जहां पर पौघे सूख गए हों उन स्थानों पर नई पौध का रोपण कर देना चाहिए।
5.    टमाटर के पौधों की रोपाई मेंड़ों पर करना अधिक लाभदायक होता है।
6.    पौधों से पौधों की दूरी 60 से.मी. या 75 से.मी. ।
7.    लाइन से लाइन की दूरी 45 से.मी । 
8.    बीजोत्पादन के लिए पौधों की 75 से.मी. ग 60 से.मी.।
फसल चक्र
   टमाटर की खेती एक ही खेत में लगातार नही करनी चाहिए एवं कम से कम 1 वर्ष का अंतराल होना चाहिए। यदि बैक्टीरियल बिल्ट का प्रकोप हो तो 3 साल का फसल चक्र अपनाना चाहिए (धान, मक्का, ज्वार, गेहूं आदि) मूली, तरबूल, प्याज, लहसून, मूंगफली, कपास, कुसुम, सूर्यमुखी, तिल और षकरकन्द का फसल चक्र में प्रयोग करना चाहिए।
ट्रेनिंग एवं पौधे को सहारा देना
   टमाटर के पौध में नीचे की 2-3 षाखाओं को निकाल देते हैं। जिससे कि ऊपर की षाखाएं पुष्ट एवं मजबूत हों। इसके अतिरिक्त फल लगने से पूर्व पौधों को लकड़ी के डंडे के साथ अंग्रेजी के 8 की तरह सुतली से बांध देते हैं। जिससे पौधा सीधा रहे एवं फल जमीन पर न गिरे। यह क्रिया इनडिटरमिनेट किस्म के लिए अत्यन्त आवष्यक है।

सिंचाई 
   टमाटर में नमी बनाए रखने के लिए हल्की एवं जल्दी सिंचाई करते हैं। 8-10 दिन के अंतराल पर सिंचाई करना अत्यन्त उपयुक्त होता है।
मिट्टी चढ़ाना 
   खेतों में प्रत्येक उर्वरक के प्रयोग के पष्चात पौधों पर मिट्टी चढ़ा देते हैं। अतः दो बार 20 दिन एवं 50 दिन पष्चात मिट्टी चढ़ाना लाभदायक होता है।
पृथक्करण दूरी   
   टमाटर में किस्म की आनुवांषिक षुद्धता बनाए रखने के लिए एक किस्म से दूसरे किस्म के मध्य 50 मीटर की दूरी रखते हैं। जिससे षुद्ध बीज प्राप्त हो सकें।
आवांछनीय पौधों को निकालना
   आनुवांषिक षुद्धता के लिए बीजोत्पादन में यह एक महत्वपूर्ण क्रिया हैं। अवांछनीय पौधों को किस्म की विषेषता के आधार पर निकाला जाता है। यह क्रिया दो बार की जाती है- वानस्पतिक वृद्धि के समय यह क्रिया पौधों के आकार, पत्तियों की बनावट एवं रंग के आधार पर की जाती है। दूसरी बार फल लगने पर फल के आकार एवं रंग के आधार पर की जाती है।
प्रजातियों एवं उपलब्धि का स्रोत
प्रजाति    किस्म    उपलब्धि का स्रोत
सामान्य किस्में     पंत टी-3
 पंत बहार    गो.व.पंत कृषि एवं प्रौद्योगिक विष्वविद्यालय, पंतनगर
    पूसा गौरव
पूसा रूबी
पूसा षीतल    भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा, नई दिल्ली
संकर किस्में     पूसा हाइब्रिड-2
पूसा हाइब्रिड-4
    भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा, नई दिल्ली
    रूपाली, नवीन
लहर, यष
एम.टी.एच.-15
अविनाष-2
मनीषा, वैषाली
सी.टी.एन.230 
    मूल बीज उत्पादक बीज कम्पनी अथवा कम्पनी के 
मान्यता प्राप्त बीज विक्रेता

टमाटर में वृद्धि नियामकों का प्रयोग
   पी.सी.पी.ए. (पैराक्लोरोफिनाक्सी अम्ल) को 50 मिग्रा प्रति ली. पानी में या 10 ग्राम प्रति एकड़ का छिड़काव फूल लगने पर करने से बहुत कम या अधिक तापमान पर फल लगने में सुविधा होती है। इसी प्रकार साइकोसिल के 5 ग्राम 10 लीटर पानी में मिलाकर रोपाई से 3-4 दिन पूर्व नर्सरी में व रोपण के 25 दिन बाद करने पर पत्ती मोड़ विषाणु का प्रकोप कम हो जाता है।

1.    फल छेदक कीट 
यह कीट टमाटर के फलों में  छेद करके अंदर घुस जाता है और फलों को खाकर उन्हे क्षतिग्रस्त करता है, जिससे फल सड़ने लगता है।

2.    पूर्ण सुरंगक 
इसका मैगट पत्तियों में आड़े तिरछे तरीके से सुरंग बनाती है। यह सुरंग बैक्टीरिया एवं विषाणु के प्रकोप को बढ़ाती है।
नियंत्रण
आक्सी डिमेटानमिथाअल 25 ई.सी. 2 मिली. या नीम का तेल 5 मिली. प्रति ली. पानी में घोल बनाकर छिड़काव करने से नियंत्रण होता है।
3.    सफेद मक्खी
यह पत्तियों से रस चूसकर उसे विकृत करता है एवं विषाणु रोग फैलाता है।
नियंत्रण
क्यारी को एग्रोनेट से ढक देते हैं। मक्का/ज्वार/बाजरा/बैरियर फसल के रूप में बुवाई करते हैं। मेटासिस्टाक्स 2 मिली. प्रति ली. पानी में मिलाकर छिड़क दें एवं 25-30 पीले चिपकने वाले ट्रेप्सिन खेत में लगाकर सफेद मक्खी की संख्या का अनुश्रवण करते हैं।
4.    रसाद कीट
यह नाजुक पत्तियों से रस चूस लेते हैं। परिणामतः पत्तियां ऊपर की तरफ मुड़ने लगती हैं। यह टमाटर का चित्तीदार विल्ट विषाणु फैलाता हैं।
नियंत्रण
मोनोक्रोटोफास 1.5 मिली. या फास्फमिडान 1 मिली. या मेटासिस्टाक्स 2 मिली. प्रति ली. पानी में छिड़काव करेें। 
5.    पर्ण फुदका
इसके अर्भक व वयस्क पत्त्यिज्ञै। एवं मुलायम तनों का रस चूसते हैं। जिससे ग्रसित भाग जला प्रतीत होता है। 
नियंत्रण
मोनोक्रोटोफास 36 एस.एल. 1.5 मिली. या फास्फमिडान 1 मिली. या आक्सीडिमेटान मिथाइल 25 ई.सी. 2 मिली. प्रति ली. पानी में घोल बनाकर छिड़काव करेें।
6.    चींटी
पत्तियों से रस चूसती है। जिससे पीली या सफेद धारियां बनती हैं। अंततः पौधा मर जाता है।
नियंत्रण
घुलनषील गंधक 80 डब्ल्यू.पी. 2 या डाइकोफाल 18.5 ई.सी. 2.5 मिली. या टेफेथियान 50 ई.सी. 2 मिली. प्रति ली. पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
टमाटर की प्रमुख व्याधियां
1.    जीवाणुज म्लानि
अचानक पौधा गलने लगता है। ओज परीक्षण से निष्चित किया जा सकता हैं।
नियंत्रण
1.स्ट्रेप्टोसाइक्लीन 1 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी में या वैक्टीरियोमाइसिन एक ग्राम प्रति 3 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
2.फसल चक्र अपनाएं।
3.प्रमाणित एवं उपचारित बीजों का प्रयोग करें।
4.पौधों के अवषेष को नष्ट कर दें।
2.    फ्यूजेरियम म्लानि
पत्तियाॅ पीली पड़ कर गलने लगती हैं। तनों से चिपट जाती है। प्रमुखतः कुछ षाखाएॅं ही गलती हैं।
नियंत्रण
1.कार्वेन्डाजिम 50 ड़ब्ल्यू0 पी0 एक ग्राम या टापसिन एक ग्राम या थीरम 75 ड़ब्ल्यू0 पी0 2 ग्राम प्रति ली. में घोल बनाकर पौधों के आस-पास की मृदा को भली-भांति नम करें।
2.फसल चक्र अपनायें।
3.गर्मियों में गहरी जुताई करें।
4.डपचारित बीज का प्रयोग करें।
3.    अगेती अंगमारी 
फल, तनों एवं पत्तियों पर गोल अंगूठी जैसा निषान बनता है।
नियंत्रण
क्लोरोथैलोनिल 75 ड़ब्ल्यू0 पी0 1.5 ग्राम या डोडाइन 65 ड़ब्ल्यू0 पी0 एक ग्राम या थीरम 3 मिली. या कैप्टाफाल 75 ड़ब्ल्यू0 पी0 1.5 ग्राम या रिडोमिल एम.जेड. 72 ड़ब्ल्यू0 पी0 एक ग्राम प्रति ली. पानी में घोल बनाकर 10 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें।
4.    पछेती अंगमारी
पत्तियों पर भूरा या बैंगनी रंग के धब्बे होत जाते हैं।
नियंत्रण
रिडोमिल एम.जेड.72 एक ग्राम या फोसिटाल ए.एल. 80 ड़ब्ल्यू.पी. 2 ग्राम या क्लोरोथैलोनिल 1.5 ग्राम प्रति ली. पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
5.    चूर्णिल आसिता
पत्तियों की निचली सतह पर सफेद चूर्णिल बढ़त, जिससे ऊपरी सतह पीली पड़ जाती है।
नियंत्रण
फेनरीमोल 12 ई.सी. 0.25 मिली. या डाइनोकैप 48 ई.सी. 0.5 मिली. ट्राईडेमार्फ 80 ई.सी. 0.5 मिली. या घुलनषील गंधक 2 ग्राम प्रति ली. पानी में घोल बनाकर छिड़काव करे।
6.    पर्ण चित्ती
पत्तियों के धब्बे किनारों पर भूरे एवं बीच में सलेटी रंग के बनते हैं।
नियंत्रण 
टापसिन 75 ड़ब्ल्यू.पी. एक ग्राम या ट्राईडेमेफान 25 ड़ब्ल्यू.पी. एक ग्राम या ट्राईडेमार्फ 80 ई.सी. 0.5 मिली. या क्लोरोथेलोनिल 75 ड़ब्ल्यू.पी. 1.5 ग्राम प्रति ली. पानी में घोल बनाकर छिड़काव करेे।
7.    मूल ग्रन्थि 
पौधा छोटा रह जाता है। पत्तियों का पीला पड़ना एवं जड़ों में गांठ बनना प्रमुख लक्षण है।
नियंत्रण
मोनोकाट एवं गेंदा का फसल अपनाएं। नीमकेक 500 किग्रा. प्रति एकड़ या फोरेट 10 जी 10 किग्रा. प्रति एकड़ की दर से अंतिम जुताई के पूर्व मिलाएं।
8.    मूल ग्रन्थि
पौध की बढ़त रूक जाती है एवं जड़ों में गांठे बन जाती हैं।
नियंत्रण
मोनोकाट एवं गेंदा का फसल अपनाएं। नीमकेक 500 किग्रा. प्रति एकड़ या फ्यूराडान-3जी 12-15 किलो प्रति हैक्टेयर की दर से खेत में रोपाई से पूर्व मिला दों।
9.    टमाटर का पर्ण कुंचन
पौध की वृद्धि का रूक जाना, पत्तियों का नीचे की तरफ मुड़ना प्रमुख लक्षण है। यह विषाणु सफेद मक्खी से फैलता है।
नियंत्रण
सफेद मक्खी की रोकथाम करेें। रोगी पौधे को निकाल दें। पौधों की नर्सरी एग्रोनेंट लगाएं।
10.    मौजेक विषाणु
ग्रसित पौधों की पत्तियों में मौजेक की तरह हल्का एवं गहरा हरा एवं सफेद रंग दिखाई देता है।
नियंत्रण
फसल चक्र अपनाएं। ग्रसित पौधे को उखाड़ कर नष्ट कर दें। 1 प्रतिषत सप्रेटा वाला दूध या 2 प्रतिषत गाय के दूध का छिड़काव करने से इस विषाणु का अन्य पौधों में फैलाव रूक जाता है।
11.    चित्तीदार विषाणु
पत्तियों का अचानक भूरा या बैंगनी होना। फूल फल में परिवर्तित हो जाता है। पत्तियों एवं फलों में अधिक संख्या में काले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। जो रसाद कीट के कारण होता है।
नियंत्रण
रसाद कीट का नियंत्रण करें एवं ग्रसित पौधों को उखाड़ कर नष्ट कर दें।


फल की तुड़ाई
   टमाटर की परिपक्वता उद्देष्य के अनुसार होती है। फलों के प्रयोग के अनुसार, टमाटर के फल की तुड़ाई निम्नांकित अवस्थाओं में की जाती है।
 

1.    हरी अवस्था
बाजार अधिक दूरी पर होने पर फल को हरी अवस्था में तोड़ लिया जाना चाहिए।
2.    गुलाबी अवस्था
लोकल मार्केट में ले लाने के लिए फल के नारंगी या गुलाबी होने पर तुड़ाई करते है।
3.    परिपक्व अवस्था
फल लाल हो जाता है एवं मुलायम हो जाता है। ऐसे पौधों को घर के प्रयोग में लाया जाता है।
4.    पूर्ण परिपक्व अवस्था
रंग का विकास पूर्ण हो जाता है। ऐसी अवस्था में फल की तुड़ाई केनिंग अथवा प्रसंस्करण के उद्देष्य से की जाती हैं।

टमाटर में बीजोत्पादन
   टमाटर में बीजोत्पादन एवं फलोत्पादन की विधि एक सी है। एक-एक पौधा जिनमें उचित आकार के पौधों को चिन्हित कर लेते हैं और पके हुए फलों की बीज निकालने के लिए इकट्ठा करते है। 
   टमाटर के बीज को निम्नांकित विधि से निकालते हैं।
1.    किण्वन विधि
एकत्रित फलों को खेत के समीप गड्ढ़े में पालीथीन डालकर तोड़ देते हैं एवं एक-दो दिन तक सड़ने देते हैं। इसके पष्चात उसे साफ पानी में डाल देते हैं। गूदा और छिलका ऊपर तैरने लगता है एवं बीज नीचे बैठ जाता है।
2.    अम्ल द्वारा
14 किलो टमाटर को फोड़ने के पष्चात 100 मिली. व्यवसायिक हाइड्रोक्लोरिक अम्ल भली-भांति मिलाते हैं। 30 मिनट के पष्चात बीज गूदे से अलग हो जाता है। बीज निकाल कर साफ करने के पष्चात धूप एवं छांव में सुखाकर उचित नमी होने पर भण्डारण करते है।
3.    क्षारीय उपचार विधि
गूदे को क्षारीय मिश्रण से उपचारित करते हैं।(300 ग्राम धोने वाले सोडे को 4 ली. उबलते हुए पानी में मिलाते हैं) पल्प एवं क्षारीय मिश्रण को समानुपात में मिलाते हैं। 
उपज
   टमाटर में औसतन 75 किलो बीज प्रति हैक्टेयर की उपज होती है।
टमाटर की षारीरिक विषमताएं
1.    ब्लासम एंड राट
फूल और कली के अंत में भूरे रंग का धब्बा दिखाई देता है। यह धब्बा धीरे-धीरे बड़ा होकर फल का बड़ा हिस्सा ढ़क देता है। जब पौधा पानी की कमी में बढ़ता है या पौधे जड़ों के क्षतिग्रस्त होने के कारण पर्याप्त पानी नही ले पाते है। परिणामतः पौधों के ऊतक क्षतिग्रस्त होकर सड़ जाते है। ऐसा कैल्षियम तत्व की कमी के कारण होता है।
नियंत्रण
1.    पौधों को बांस की मदद से सहारा दें।
2.    हल्की एवं निष्चित समय पर सिंचाई करें।
3.    अच्छे जल निकास की व्यवस्था करें।
4.    रोपाई के 60 दिन पष्चात (फल विकास का समय) कैल्ष्यिम क्लोराइड का 2 ग्राम प्रति ली. पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
2.    फलों का फटना
यह गड़बड़ी बरसात के मौसम में अधिकतर पाई जाती है। परिपक्व हरे एवं पूर्णतया पके फल में फटन पैदा होती है। फल में फटन या तो त्रिज्याकार या सघनता में होती है। फलों के फटने के कुछ संभावित कारण है।
1.    कुछ समय तक सूखी मृदा में अधिक मात्रा में सिंचाई करना।
2.    लम्बे समयान्तराल तक षुष्क मौसम एवं भूमि में कम नमी का होना।
3.    सहारा एवं प्रूनिंग करने के कारण फलों का सूर्य के सामने आना।
4.    कुछ किस्में फटन के प्रति संवेदनषील है।
5.    बोरान की कमी होने पर।
नियंत्रण
1.    फलों को पूर्ण पकने से पहले तुड़ाई करें। इससे त्रिज्यिक फटन कम होगा।
2.    फसल के पूर्ण वृद्धि काल में उचित नमी बनाए रखें।
3.    सहिष्णु किस्म की प्रजाति का चयन करें। जैसे पंजाब, छुआरा, पूसा रूबी, रोमा इत्यादि।
4.    गर्मी के मौसम में पौधों की स्टेकिंग (सहारा) न करें।
5.    बोरिक एसिड 1 ग्राम 5 ली. पानी में घोल बनाकर नर्सरी में रोपाई से पूर्व, 30 दिन पष्चात एवं 60 दिन पष्चात छिड़काव करें।
3.    फूलों का गिरना एवं कम फलों का लगना
टमाटर में फूलों का गिरना एवं कम फलों का लगना एक आम समस्या है। यह पोषक तत्वों के असंतुलन से, प्रयोग की गलत विधि एवं समय, असामान्य मौसम जिसमें दोनों अवस्था अत्यधिक गर्म एवं ठण्डे तापमान से फूल गिरते है एवं कम फल बनते है। यदि रात्रि का तापमान 13 डिग्री से.ग्रेड से कम एवं दिन का तापमान 38 डिग्री से.ग्रेड से अधिक होता है तो यह गड़बड़ी पाई जाती है।
गर्म एवं षुष्क हवा और अधिक प्रकाष भी इसके लिए जिम्मेदार है। कभी-कभी यह गड़बड़ी कम परागण एवं निषेचन के कारण भी होती है। ऐसी दषा में पैराक्लोरोफिनाक्सी अम्ल 50 ग्राम प्रति ली. पानी में घोल बनाकर फूल लगने की अवस्था में छिड़काव करें।
फूल एवं फल लगने की अवस्था में अपर्याप्त नमी होने पर यह अत्यधिक होता है। इसलिए नमी बनाए रखना चाहिए। साधारणतया ठन्डे मौसम में 8-10 दिन के अन्तराल पर एवं गर्मी में 4-5 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए। परन्तु अत्यधिक नमी होने पर वानस्पतिक वृद्धि अधिक हो जाती है एवं पहले लगने वाले फूल गिर पड़ते हैैैैैैैै।
4.    सन स्केलडिंग
यह गड़बड़ी फल के तीव्र सूर्य की रोषनी में आने पर होता है। प्रकोपित फल पर पीले धब्बे पड़ जाते है। धब्बे बढ़ते है और ऊतक क्षतिग्रस्त होकर सिकुड़ जाते है। प्रकोपित फल में त्वचा जली हुई प्रतीत होती है। कभी-कभी इन प्रकोपित त्वचा में फफूंद लग जाती है। जिससे फल सड़ जाता है।
नियंत्रण 
1.    पौधों को सघन रखें (रोपाई कम दूरी पर करें)
2.    पत्तियों को रोग एवं कीट से झड़ने से बचाएं एवं कटाई-छंटाई न करें।
3.    स्वस्थ फसल के लिए अच्छे प्रबंधन अपनाएं।
4.    घनी किस्म का चयन करें।
5.    पाॅकेट आफ पफीनेस
यह प्रायः षीतकालीन मौसम में अधिक होती है। प्रकोपित फल हल्के एवं मुलायम होते है। कभी-कभी फल की त्वचा चपटी होती है। अत्यधिक नमी और नत्रजन से ऐसा होता है। यह कुछ किस्मों की विषेषता है।
नियंत्रण
1.    टमाटर की फसल को सघन न होने दें।
2.    छोटे दिनों एवं कम प्रकाष तीव्रता में बड़े दिन एवं अधिक प्रकाष तीव्रता की अपेक्षा कम नत्रजन का प्रयोग करें।
3.    हल्की सिंचाई करें एवं सिंचाई का अंतराल बढ़ा दें। जिसमें नमी अधिक न होने पाएं।


टमाटर की फसल हेतु मासिक कैलेन्डर
माह    तराई/भावर क्षेत्र
(900 मीटर तक ऊंचाई)    निचली पर्वतीय घाटियों
वाले क्षेत्र (900-1500
मीटर तक ऊंचाई)    उच्च पर्वतीय क्षेत्र
(1500-2500 मीटर तक
ऊंचाई)
जनवरी    पछेती झुलसा रोग से बचाव
हेतु डाइथेन एम-45 0.3 प्रतिषत अथवा रिडोमिल 0.2 प्रतिषत के घोल का छिड़काव करें। माहू से बचाव हेतु मोनोक्रोटोफास 0.04 प्रतिषत का छिड़काव करें तथा नियमित निराई-गुड़ाई तथा सिंचाई करें। खड़ी फसल को पाले से बचाने के लिए नियमित रूप से सिंचाई की जाएं। तैयार फलों की तुड़ाई, छंटाई, ग्रेडिंग तथा विपणन का कार्य किया जाएं।     पौधषाला हेतु क्यारियां बनाकर उनको 2 प्रतिषत फारमेलीन से उपचारित कर 48 घंटे तक पालीथीन की चादर से ढ़कने के उपरान्त 15 दिन तक खुला छोड़ने के बाद उचित रसायन द्वारा बीज उपचारित कर पौधषाला में बो दें। खेत की तैयारी करें। खेतों में पूरी मात्रा में कम्पोस्ट मिलाकर गहरी जुताई करें। तत्पष्चात निर्धारित उर्वरकों को मिट्टी में अच्छाी तरह मिलाकर खेत की तैयारी करें।    -
फरवरी    फलों की तुड़ाई, छंटाई, ग्रेडिंग तथा विवणन का कार्य पूर्ण करें।    यदि अब तक खेत की तैयारी तथा पौधषाला में बोआई नही हुई तो उपरोक्त प्रकार से तुरंत कर दें।    -
मार्च    -    खेतां में पौध रोपण करें तथा एक सप्ताह तक पौधों को पानी देते रहें तथा 15 दिन पष्चात हल्की निराई-गुड़ाई कर सिंचाई करंे।    -
अप्रैल    -    प्रत्येक 15 दिन के अंतराल पर निराई-गुड़ाई कर सिंचाई करें। नत्रजन की 1/4 मात्रा मिट्टी में मिला दें तथा सिंचाई करें।    खेत की तैयारी करें। कम्पोस्ट की पूरी मात्रा खेतों में डालकर गहरी जुताई करें। तत्पष्चात निर्धारित उर्वरकों को मिलाने के पष्चात खेत तैयार करें। पौधषाला हेतु क्यारियां बनाकर 2 प्रतिषत फार्मेलीन से उपचारित कर 48 घंटे तक पालीथीन की चादर से ढ़कने के पष्चात 15 दिन बाद बीज उपचारित कर पौधषाला में बो दें।
मई    -    आवष्यक निराई-गुड़ाई करें। फूल आने पर नत्रजन की 1/4 मात्रा मिट्टी में मिलाकर सिंचाई करें। फलबेधक कीट से बचाव हेतु इण्डोसल्फान 0.07 प्रतिषत का 12 दिन के अंतराल पर दो छिड़काव करें तथा झुलसा रोग से बचाव हेतु डाईथेन एम-45 0.3 प्रतिषत का छिड़काव करें।    यदि अब तक खेत की तैयारी तथा पौधषाला में बीज की बोआई नही की तो उपरोक्त प्रकार से तुरंत कर दें।
जून    -    फलों की तुड़ाई, छंटाई, ग्रेडिंग व विपणन का कार्य किया जाए।    खेतों में पौध रोपण करें तथा एक सप्ताह तक पौधों को पानी देते रहे।15 दिन बाद हल्की निराई-गुड़ाई कर सिंचाई करें।
जुलाई    -    फलों की तुड़ाई, छंटाई, ग्रेडिंग व विपणन का कार्य पूर्ण कर लिया जाए।    प्रत्येक 15 दिन के अंतराल पर निराई-गुड़ाई कर सिंचाई करें। नत्रजन की 1/4 मात्रा मिट्टी में मिला दें तथा सिंचाई करें।
अगस्त    पौधालय हेतु क्यारियां बनाकर 2 प्रतिषत फार्मेलीन से उपचारित कर 48 घंटे तक पालीथीन की चादर से ढ़कने के उपरान्त खुला छोड़कर 15 दिन बाद बीज को उपयुक्त रसायनों द्वारा उपचारित कर बोआई कर दें। खेत की तैयारी करें। कम्पोस्ट की पूरी मात्रा खेतों में डाल कर गहरी जुताई करें। तत्पष्चात निर्धारित उर्वरकों को मिट्टी में अच्छी तरह मिलाकर खेत तैयार करें।    -    आवष्यक निराई-गुड़ाई करें। फूल आने पर नत्रजन की 1/4 मात्रा मिट्टी में मिलाकर सिंचाई करें। फल बेधक कीट से बचाव हेतु इण्डोसल्फान 0.07 प्रतिषत का 12 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें। तैयार फलों की तुड़ाई, छंटाई तथा विपणन का कार्य करें।
सितंबर    यदि अब तक खेत की तैयारी तथा पौधषाला में बोआई नही हुई तो उपरोक्त प्रकार से तुरंत करें। पौध तैयार होने पर खेतों में पौध रोपण का कार्य आरंभ करें तथा पौधों को एक सप्ताह तक पानी देते रहें।    -    फलों की तुड़ाई, छंटाई, ग्रेडिंग व विपणन का कार्य किया जाए।
अक्टूबर    पौध रोपण का कार्य करें तथा एक सप्ताह तक पौधों को पानी देते रहें। 15 दिन बाद हल्की निराई-गुड़ाई एवं सिंचाई करें।    -    फलों की तुड़ाई, छंटाई, ग्रेडिंग व विपणन का कार्य पूरा करें। 
नवंबर    प्रत्येक 15 दिन के अंतराल पर निराई-गुड़ाई कर सिंचाई करें। नत्रजन की 1/4 मात्रा मिट्टी में मिला दें तथा सिंचाई करें।    -    -
दिसंबर    आवष्यक निराई-गुड़ाई करें। फूल आने पर नत्रजन की 1/4 मात्रा मिट्टी में मिलाकर सिंचाई करें। फल बेधक कीट से बचाव हेतु इण्डोसल्फान 0.07 प्रतिषत का 12 दिन के अंतराल पर दो छिड़काव करें तथा झुलसा रोग से बचाव हेतु डाइथेन एम-45 0.03 प्रतिषत का छिड़काव करें।    -    -