भविष्य के लिए कितने तैयार हो रहे हमारे ग्रामीण युवा

          भविष्य के लिए कितने तैयार हो रहे हमारे ग्रामीण युवा

                                                                                                                              डॉ0 आर. एस. सेंगर, डॉ0 रेशु चौधरी एवं डॉ0 वर्षा रानी

‘‘14 से 18 आयु वर्ग के नौजवानों का यह अध्ययन बताता है कि सक्षम भारत के लिए हमें गांवों की शिक्षा प्रणाली पर और अधिक ध्यान देना होगा।’’

                                                                                 

प्रत्येक वर्ष जनवरी के महीने में ‘असर रिपोर्ट’ निकलती है। इस वर्ष भी 17 जनवरी को यह जारी कर दी गई। हालांकि, इस बार की रिपोर्ट कुछ अलग है। वर्ष 2005 से 2014 तक इसने देश के सभी ग्रामीण जिलों में 30 ‘रैंडमली’ चुने हुए गांवों के 20 परिवारों में जाकर छह से 14 आयु वर्ग के बच्चों के विद्यालयों में नामांकन की स्थिति और उनके बुनियादी पठन-पाठन व गणित हल करने की क्षमता को समझा और देश के सामने इसे साझा किया। वर्ष 2014 के बाद 2016, 2018 और 2022 में असर रिपोर्ट ने इसी तरह देश के बच्चों के बुनियादी कौशल पर रोशनी डालती है।

                                                                      

इस वर्ष की असर रिपोर्ट 14 से 18 वर्ष के युवाओं पर ध्यान केंद्रित करती है। इस आयु वर्ग को चुनने के कई कारण है- देश के कानून के मुताबिक, 14 वर्ष तक के प्रत्येक बच्चे का स्कूल जाना आवश्यक है। वहीं 18 वर्ष की आयु से पहले कोई भी व्यक्ति औपचारिक क्षेत्र में पूर्णकालिक काम नहीं कर सकता। इन दोनों कानूनी लकीरों के बीच 10 करोड़ से ज्यादा आबादी है। आज के 18 वर्ष के युवक या युवती को अगले 40-50 वर्षों में बहुत कुछ हासिल करना है।

इनमें से प्रत्येक अपने हिसाब से काम करेगा, कमाएगा, घर बसाएगा, परिजनों की देखभाल करेगा और अपने जीवन को आगे बढ़ाएगा। इस संदर्भ में यह समझना बहुत जरूरी है कि हमारे नौजवान अपने भविष्य के लिए किस हद तक तैयार हैं?

इस बार असर की पहुंच देश के प्रत्येक राज्य के एक या दो ग्रामीण जिलों तक सीमित रही है, लेकिन इसमें 14 से 18 आयु वर्ग को व्यापक नजरिये से देखने की कोशिश की गई है। इस दौरान मुख्यतः तीन सवाल पूछे गए जिनमें से पहला, इस उम्र में लोग क्या करते हैं- पढ़ाई या रोजगार? किस किस्म की पढ़ाई या किस तरह का रोजगार? दूसरा, उनके बुनियादी कौशल किस स्तर के हैं- पढ़ने और गणित हल करने में और दैनिक जीवन के जुड़े साधारण कार्यों को करने में क्या वे सक्षम हैं? और इसका तीसरा सवाल था- क्या स्मार्टफोन युवक-युवतियों को उपलब्ध हैं? स्मार्टफोन पर वे क्या-क्या कर सकते हैं?

देश के 28 जिलों के आंकड़े बताते हैं कि 14 से 18 आयु वर्ग के नौजवान बड़े पैमाने पर स्कूल-कॉलेज में पढ़ रहे हैं। सर्वे के मुताबिक, उनमें से आधे 10वीं या उससे निचली कक्षाओं में नामांकित हैं। एक चौथाई 10वीं से 12वीं के बीच है और बाकी सात प्रतिशत कॉलेज में नामांकित हैं और 13 फीसदी कहीं भी नहीं पढ़ रहे हैं। 34 प्रतिशत युवक-युवतियां महीने में 15 दिन से ज्यादा (घरेलू काम के अलावा) काम करते हैं। अक्सर यह काम परिवार के अन्य लोगों के साथ अपने खेतों में करते हैं।

यदि हम इस आयु वर्ग के नौजवानों के पढ़ने-लिखने की कुशलता को देखें, तो नजर आता है कि इन जिलों में एक चौथाई युवाओं को अपनी मातृभाषा में सरल कहानी पढ़ने में भी दिक्कत होती है। साधारण गणित (जैसे भाग करने) हल करने में औसतन आधे युवक-युवतियों को मुश्किल होती है। अंग्रेजी में लगभग 60 प्रतिशत बच्चे आसान वाक्य पढ़कर उसे समझा सकते हैं। 2022 की रिपोर्ट में भी यही स्थिति थी।

                                                                            

इस बार 14 से 18 वर्ष के युवक-युवतियों को दैनिक जीवन से जुड़े कुछ अन्य कार्य भी दिए गए थे, जैसे ओआरएस पैकेज के निर्देश को पढ़कर घोल बनाना, दुकान से छूट (डिस्काउंट) में सामान खरीदना, बैंक से लिए गए लोन का हिसाब करना आदि। जाहिर है, इन कार्यों को करने में भी बुनियादी कुशलता की बड़ी भूमिका है। गौर करने वाली बात यह कि लड़कियों की तुलना में लड़के ज्यादा इन कार्यों को करते पाए गए।

    सबसे दिलचस्प डाटा स्मार्टफोन के इस्तेमाल से जुड़ा है। 90 प्रतिशत युवक-युवतियों के घर में स्मार्टफोन है और उससे भी अधिक युवक-युवतियां इनका इस्तेमाल करना जानते हैं। मगर फोन का सबसे ज्यादा उपयोग मनोरंजन के लिए ही होता है। पढ़ाई के लिए 50 फीसदी युवक-युवतियां फोन का उपयोग करते हैं। परन्तु इस उम्र के बच्चे ऑनलाइन सेवाओं (जैसे ऑनलाइन बिल भरना, फॉर्म भरना, टिकट खरीदना) आदि तक कम ही पहुंच पाते हैं।

ऑनलाइन सुरक्षा के बारे में उन्हें कम जानकारी उपलब्ध है। वे ब्राउज करना तो जानते हैं, परन्तु गूगल मैप का सही इस्तेमाल करने में उतने सक्षम नहीं हैं।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।