ऑटिज्म बीमारी को समझें और इससे कैसे बचें

                                                                                 ऑटिज्म बीमारी को समझें और इससे कैसे बचें

                                                                                                                                                               डॉ0 दिव्यान्शु सेंगर एवं मुकेश शर्मा

ऑटिज्म एक जटिल समस्या होती है, जिसे अक्सर गलत ही माना जाता है। यह एक न्यूरोडेवलेपमेन्ट डिसॉर्डर (मस्तिष्क के विकास से जुड़ी समस्या) है। इस रोग से पीड़ित व्यक्ति को बातचीत करने करने, समाज के साथ घूलने-मिलने और अन्य के प्रति व्यवहार करने में परेशानी होती है।

    विशेष रूप से बच्चों में आरम्भ में ही इसके लक्षणों की पहिचान कर उन्हे सही उपचार देने और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने और उनके विकास में यह महत्वपूर्ण सिद्व हो सकता है। ऑटिज्म के सम्बन्ध में प्रचलित कुछ गलत धारणाएं इस प्रकार से हैं-

मिथक 1 ऑटिज्म त्रुटिपूर्ण पालन-पोषण से सम्बन्धित होता है-

    कुछ मानसिक रोग विशेषज्ञों का 1950 एवं 1960 के दशक तक यह माना था कि ऑटिज्म के होने का कारण भावनात्मक सहयोग की कमी देखभाल में होने वाली कमियों के कारण ऑटिज्म नामक होता है। यह एक अलग बात है कि ऐसा सिद्व करने के लिए कोई वैज्ञानिक साक्ष्या उपलब्ध नही है। जबकि इसका ऑटिज्म का सबसे प्रमुख कारण आनुवांशिक है, तथा कुछ हद तक पर्यावरणीय फैक्टर्स (कारक) भी इसके प्रभाव को बढ़ानें में सहायक होते हैं।

मिथक 2 ऑटिज्म को पूरी तरह से ठीक किया जाना सम्भव है-

    ऑटिज्म के लक्षणों की पहिचान शुरूआत मे ही हो जाने पर तथा समय पर उचित उपचार के जरिये इससे पीड़ित बच्चे को महत्वपूर्ण स्किल्स सीखने के लिए और उसके जीवन की गुणवत्ता में सुधार किया जा सकता है, परन्तु ऑटिज्म को पूरी तरह से ठीक किया जाना असम्भव होता है अतः यह कहना गलत है कि ऑटिज्म को उपचार के माध्यम से पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है, इसका केवल प्रबन्न्धन ही किया जा सकता है।

    अतः किसी योग्य प्रोफेशनल के द्वारा ही ऑटिज्म का उपचार करया जाना उचित है।

मिथक 3- ऑटिज्म से पीड़ितों में सहानुभूति की कमी होती है-

    ऑटिज्म पीड़ितों को भावनाओं को समझने और उन्हें व्यक्त करने में परेशानी हो सकती है। वहीं उनमें सहानुभूति होती है और दूसरो से जुड़ने की तीव्र इच्छाशक्ति भी हो सकती है। अतः यह कहना गलत होगा कि ऑटिज्म पीड़ितों में सहानुभूति की कमी होती है।

मिथक 4- ऑटिज्म केवल बच्चों में ही होता है-

    यह गलत है क्योंकि ऑटिज्म किसी भी आयु में लोगों को हो सकता, यह एक आजीवन चलने वाली बीमारी होती है। अधिक आत्मनिर्भर बनाने के लिए व्यक्ति का उपचार जितना शीघ्र हो सके उतना ही अच्छा होता है।

मिथक 5- ऑटिज्म के लिए केवल एक प्रकार का उपचार ही उपलब्ध है-

    ऑटिज्म के लिए कोई एक ही प्रकार का उपचार ही नही है। इस रोग से पीड़ित रोगी की विशेष आवश्यकताओं तथा लक्षणों के अनुसार अलग-अलग किया जाता है। विभिन्न प्रकार की थेरेपी जिनमें स्पीच थेरेपी, ऑकुपेशनल थेरेपी के साथ ही बिहेवियरल थेरेपी आदि का उपयोग रोगी की कण्डीशन के अनुसार करने से उसे बेहत लाभ प्रदान करने की दृष्टि से अपनाया जाता है।

अन्नानास का सेवन करने से मिलती है गठिया में राहत

    गठिया के दर्द के उपचार के दौरान आमतौर पर चिकित्सक अन्नानास के सेवन करने की सलाह देते हैं। गठिया (आर्थराइटिस), प्रमुख रूप से ओस्टियोआर्थराइटिस एवं रूमेटाईड आर्थाराइटिस, दो प्रकार की होती है। अनुवांशिक कारणों के अलावा किसी विशेष पोषक तत्व जैसे कैल्शियम आदि की कमी के चलते व्यक्ति की इम्यूनिटी मेटाबॉलिक रेट में बदलाव के कारण गठिया की समस्या हो सकती है।

गठिया से गस्त 40 रोगियों पर किए गए एक अध्ययन के अनुसार, ब्रोमलिन सप्लीमेन्ट लेने के 16 सप्ताह के बाद इन रोगियों के दर्द, जकड़न एवं उनकी शारीरिक कार्यक्षमता में काफी सुधार पाया गया।

    ब्रोमलिन एंजाईम्स का एक समूह होता है, जो अनाज में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होता है, जो दर्द निवारक एवं सूजन रोधी गुणों से भरपूर होता है। इस प्रकार यह गठिया से पीड़ितों के लिए एक प्रकार से स्ट्रॉइड मुक्त दर्द निवारक की तरह से काम करता है।

इसी प्रकार विटामिन ‘सी’ जो कि स्वस्थ ऊतक एवं कोलेजन आदि के निर्माण में सहायता करता है, की कमी से भी जोड़ों के दर्द में वृद्वि होती है। अतः विटामिन ‘सी’ से युक्त चीजों का सेवन भी भरूपर मात्रा में करना चाहिए।

वजन कम करने से डायबिटीज का खतरा होता है कम

                                                   

शोधकर्ताओं ने हाल ही में किए गए अध्ययन में यह पाया है कि जीवन शैली में बदलाव कर वजन को कम करने से दिल की बीमारियों व टाइप टू डायबिटीज का जोखिम कम हो जाता है। शोधकर्ताओं कहा पहले भी वजन कम करने के बाद वजन फिर बढ़ गया हो लेकिन इसका लाभ कम से कम 5 वर्ष तक मिलता है।

अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन की जनरल कार्डियोवैस्कुलर क्वालिटी एंड आउटकम्स में यह अध्ययन प्रकाशित हुआ है। शोध टीम ने बताया है कि मोटापे या अधिक वजन वाले लोगों में उच्च कोलेस्ट्रॉल और उच्च रक्तचाप का खतरा बढ़ जाता है यह ऐसा कारक है जो हृदय रोग के जोखिम को बढ़ाता है साथ ही है इंसुलिन प्रतिरोध टाइप टू डायबिटीज से भी जुड़ा है।

अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के  वर्ष 2023 शासकीय अपडेट के अनुसार वैश्विक स्तर पर अधिक भजन व मोटापे के चलते वर्ष 2020 में 24,00,000 लोगों की मृत्यु हुईए जो कि एक बहुत ही चिंता का विषय है इसलिए सभी को अपने खानपान पर विशेष ध्यान देना चाहिए और साथ ही कोशिश करनी चाहिए कि वह प्रतिदिन एक्सरसाइज करें और साथ ही साथ अपने वजन को नियंत्रित रखें यदि वजन कम होगा तो निश्चित रूप से डायबिटीज का खतरा भी कम होगा और वह नियंत्रण में भी रहेगी।

 

लेखकः डॉ0 दिव्यान्शु सेंगर, जिला अस्पताल मेरठ के मेडिकल ऑफिसर हैं और लेख में व्यक्त किए गए विचार उनें अपने हैं।