गेहूं में आत्मनिर्भर देश चावल उत्पादन से बचने के कारण

               गेहूं में आत्मनिर्भर देश चावल उत्पादन से बचने के कारण

                                                                                                                                    डॉ0 आर. एस. सेंगर, शोध छात्रा आकांक्षा सिंह एवं मुकेश शर्मा

दुनिया में गेहूं के निर्यात का बाजार करीब 225 मिलियन टन है, जबकि चावल का मात्र 58 मिलियन टन। लेकिन एक किलो चावल पैदा करने में. चार हजार लीटर पानी का दोहन करना होता है। भारत ने इस अनाज का निर्यात इस साल रोक दिया है, जिससे दुनिया में चावल की कीमत में सात साल में सबसे बड़ा उछाल आ गया है। सच तो यह है कि भारत दुनिया में इस अनाज के कुल निर्यात का 40 प्रतिशत या करीब 22 मिलियन टन भेजता है।.

                                                                        

भारत में धान का इस वर्ष का उत्पादन लगभग 131 मिलियन टन है। हालांकि भविष्य में अनाज के संकट के अंदेशे के चलते सरकार ने चावल की कुछ किस्मों और गेहूं के निर्यात पर पिछले दो वर्षों से रोक लगा दी है लेकिन सोचना यह है कि आखिर क्यों विश्व बाजार में भारत के चावल की मांग है। अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया या चीन जब गेहूं के निर्यात में अग्रणी हो सकते हैं तो चावल में क्यों नहीं?

दरअसल अपने यहां चावल का उत्पादन करने के लिए जल-संसाधनों का दोहन न कराकर वे भारत का चावल खरीदने के लिए उत्सुक हैं। यानी भारत वास्तव में चावल नहीं बल्कि देश का पानी निर्यात कर रहा है। यही स्थिति कमोबेश गन्ने को लेकर है। ब्राजील जैसा प्रमुख चीनी उत्पादक गन्ने की जगह अन्य स्रोतों से चीनी बना रहा है। गन्ने के उत्पादन में भी पानी की खपत असाधारण रूप से बहुत ज्यादा है। बिहार जैसे राज्य में, जहां भूजल स्तर काफी ऊपर है, वहां गन्ने की खेती तो फिर भी ठीक है

                                                            

लेकिन दक्षिण और पश्चिम भारत के राज्य जब गन्ना उत्पादन में प्रमुख भूमिका रखते हैं तो चिंता होती है कि इन सूखाग्रस्त राज्यों में अगले कुछ वर्षों में पीने के पानी का अकाल भयंकर रूप ले लेगा। स्टीवन सोलोमन ने 21वीं सदी में पानी को लेकर विश्वयुद्ध की आशंका व्यक्त की थी। हमें अपनी कृषि सहित अन्य कार्यों में पानी के दोहन को हर हाल में रोकना ही होगा।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।