अंतरिक्ष में फैलता प्रदूषण

                                    अंतरिक्ष में फैलता प्रदूषण

                                                                                                                                                              डॉ0 आर. एस. सेंगर एव डॉ0 कृषाणु सिंह

                                                                            

“पृथ्वी की कक्षा से अनुपयोगी हो चुके कचरे को साफ करना भी अति आवश्यक है, जिससे कि भावी पीढ़ियां भी अंतरिक्ष विज्ञान का लाभ उठा सकें।“

वर्तमान के तीव्र प्रौद्योगिकी विकास और अंतरिक्ष अन्वेषण के युग में विश्व ने बाह्य अंतरिक्ष के अन्वेषण में महत्वपूर्ण प्रगति की है। लेकिन, इसके साथ-साथ अंतरिक्ष में मानव पदार्पण के चलते प्रदूषण की समस्या भी दबे पांव आ रही है, जिसकी काली छाया पहले से ही प्रदूषण से कलुषित पृथ्वी पर भविष्य में पड़ने वाली है।

परिचालन उपग्रहों का रिकॉर्ड रखने वाले यूनियन ऑफ कंसर्ल्ड साइंटिस्ट्स (यूपीएस) के अनुसार, एक जनवरी, 2021 तक लगभग साढ़े छह हजार उपग्रह पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे थे, जिनमें से करीब साढ़े तीन हजार सक्रिय और इतने ही निष्क्रिय अवस्था में थे। यूएन ऑफिस फॉर आउटर स्पेस अफेअर्स (यूएनओओएसए) के अनुसार, जनवरी, 2022 तक 8,261 उपग्रह पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे थे, जिनमें से केवल 4,852 ही सक्रिय हैं।

पृथ्वी की निचली कक्षा में कम से कम 12 करोड़ टुकड़े हवा में तैर रहे हैं। लंदन के प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय के अनुसार, उनमें से करीब 34 हजार टुकड़े आकार में 10 सेमी से ज्यादा बड़े हैं। इस प्रकार मानव ने चंद्रमा को भी नहीं छोड़ा है, जहां हमने कई वस्तुओं को स्मृति चिह्न या टाइम कैप्सूल के रूप में रख छोड़ा है।

                                                                   

चंद्रमा पर वर्तमान में ‘शिव शक्ति’ पॉइंट पर भारत के क्रियाशील गौरव प्रतीक विक्रम लैंडर और प्रज्ञान के अतिरिक्त और भी बहुत कुछ है, जो अब मलबा बन चुका है, जैसे अपोलो 15, 16 और 17 की तीन मून बग्गियां, 54 मानव-रहित यान, जो चंद्र सतह पर दुर्घटनाग्रस्त हो गए थे, चंद्रमा पर अंतरिक्ष यात्रियों द्वारा छोड़ा गया 19 हजार किग्रा पदार्थ, सोवियत संघ का  लूना-2, अमेरिका का रेंजर-4, जापान का हितेन इत्यादि। हालांकि, टकराव अंतरिक्ष मलबे का एकमात्र कारण नहीं है।

पृथ्वी की निचली कक्षा में तीव्र पराबैंगनी विकिरण के लंबे समय तक संपर्क में रहने से उपग्रह भी टूट सकते हैं। इससे पृथ्वी की निचली कक्षा में उपग्रहों की संख्या से टकराव की एक अनियंत्रित श्रृंखला बन सकती है, जो चारों ओर अंतरिक्ष मलबे को इस सीमा तक बिखेर देगी, कि हम नए रॉकेट लॉन्च करने में असमर्थ होंगे। इस आशंका को केसलर सिंड्रोम के रूप में जाना जाता है और कई खगोलविदों को डर है कि यदि हम अंतरिक्ष मलबे को नियंत्रण में नहीं रख सके, तो यह मानवता को बहुग्रहीय प्रजाति बनने से रोक सकता है।.

पृथ्वी की कुछ सौ किलोमीटर की निचली कक्षाओं में कुछ वस्तुएं शीघ्रता से वापस लौट सकती हैं। कुछ वर्षों के बाद वे वायुमंडल में फिर से प्रवेश करती हैं। लेकिन 36 हजार किलोमीटर की ऊंचाई पर छोड़ा गया उपग्रह और उसका बना मलबा सैकड़ों या हजारों वर्षों तक पृथ्वी की परिक्रमा करते रह सकते हैं। यह दुर्लभ है, लेकिन अमेरिका, चीन और भारत, सहित कई देशों ने स्वयं के उपग्रहों को उड़ाने का अभ्यास करने के लिए मिसाइलों का उपयोग किया है, जिससे पैदा होने वाले प्रदूषण की तो सिर्फ कल्पना ही की जा सकती है।

                                                                   

सौभाग्य से अभी तक अंतरिक्ष प्रदूषण ने हमारे अंतरिक्ष अन्वेषण कार्यक्रमों में कोई बड़ा जोखिम पैदा नही किया है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों के दौरान अंतरिक्ष पर्यटन की होड़ सी लग गई है। रॉकेट द्वारा उत्सर्जित कण कालिख के अन्य सभी स्रोतों की तुलना वातावरण में गर्मी बनाए रखने में लगभग पांच सौ गुना अधिक सक्षम होते हैं, जिससे जलवायु परिवर्तन का होना भी स्वाभाविक ही है।

संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि सभी कंपनियां अपने मिशन की समाप्ति के बाद 25 वर्षों के भीतर अपने उपग्रहों को कक्षा से हटा लें। इस आदेश को लागू करना कठिन है, क्योंकि उपग्रह विफल हो सकते हैं, और जो कि प्रायः होते भी हैं। इस समस्या से निपटने के लिए कंपनियां नए समाधान भी लेकर सामने आई हैं। इनमें मृत उपग्रहों को कक्षा से हटाना और उन्हें वापस वायुमंडल में खींचना होता है, जहां जाकर ये जल जाएंगे। हालांकि, अंतरिक्ष के कबाड़ को पृथ्वी की कक्षा से बाहर करने की ये तकनीकें पृथ्वी की परिक्रमा करने वाले बड़े आकार के मृत उपग्रहों के लिए तो उपयुक्त होती हैं, परन्तु छोटे टुकड़ों के लिए नहीं।

                                                                           

स्पेसएक्स व अमेजन जैसी कई कंपनियां उपग्रहों के विशाल नए समूहों की योजना बना रही हैं, जिन्हें मेगा तारामंडल कहा जाता है, जो पृथ्वी पर इंटरनेट प्रसारित करेंगे। ये कंपनियां वैश्विक उपग्रह इंटरनेट कवरेज प्राप्त करने के लिए हजारों उपग्रह लॉन्च करने की योजना बना रही हैं।

हालांकि इसके दौरान पृथ्वी व बाह्य अंतरिक्ष का अध्य्यन जरूरी है, लेकिन पृथ्वी की कक्षा से अनुपयोगी हो चुके मलबे को साफ करना भी उतना ही जरूरी है, ताकि हमारी भावी पीढ़ियों के लिए भी अंतरिक्ष विज्ञान के लाभ सुनिश्चित किए जा सकें।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।