देशी गाय का घी: धरती का अमृत

                                                                           देशी गाय का घी: धरती का अमृत

                                                                                                                                                     डॉ0 आर. एस. सेंगर एवं मुकेश शर्मा

1. पहला गुण: संतुलन

- ‘आयुर्वेद के मतानुसार मानव शरीर में 80 प्रतिशत रोग वात-पित्त के असंतुलन के कारण होते हैं। देशी गाय का घी इन्हें सन्तुलित कर व्यक्ति को इन 80 प्रतिशत रोगों से बचाता है, और मानव को एक स्वस्थ जीवन प्रदान करता है।

- ’देशी गाय का घी पतले व्यक्ति को मोटा व मोटे व्यक्ति को पतला करता है, यानी यह मानव शरीर को संतुलित करता है। यही कारण है कि देशी गाय का घी अपने आप में अमृत तुल्य होता है।

- ’देशी गाय का घी हॉर्मोन्स को संतुलित रखता है। गाय के घी को सेवन करने वाले व्यक्ति को हार्मान्स के अंसतुलन अर्थात (Disbalance of Hormones) की समस्याओं का भी सामना नहीं करना पड़ता है।

2. दूसरा गुण: मानसिक रोगों से मुक्ति

- भय: ऐसे लोग जिनके दिमाग में गर्मी होती है, उन्हें डर अधिक लगता है। गाय का घी दिमाग की गर्मी को शांत कर उन्हें अभय प्रदान करता है।

- क्रोध-चिड़चिड़ापन: दिमाग की गर्मी होने से गुस्सा अधिक आता है। देशी गाय का घी दिमाग की गर्मी को शान्त कर उसे मानसिक शान्ति प्रदान करता है और चिड़चिड़ापन भी दूर करता है।

                                                                                           

- ईर्ष्या (जलन): जलन शब्द ही दिमाग में अधिक गर्मी का प्रतीक है। देशी गाय के घी से जलन अथ्वा ईर्ष्या आदि भावनाएं भी शांत होती है।

- डिप्रेशन: दिमाग में गर्मी बढ़ने से व्यक्ति तनाव को झेल नहीं पाता और डिप्रेशन का शिकार हो जाता है। देशी गाय का घी दिमाग को ठंडा रख तनाव को झेलने की क्षमता को बढ़ाकर सम्बन्धित व्यक्ति को डिप्रेशन का शिकार होने से बचाता है।

3. तीसरा गुण: तृप्ति

संतुलित आहार यह विज्ञान नहीं, अज्ञान है। भोजन के सबसे महत्त्वपूर्ण गुण हैं: भोजन पौष्टिक व तृप्तिदायक होना चाहिए। पौष्टिक भोजन शरीर को और तृप्ति दायक भोजन मन को प्रसन्न एवं निरोगी रखता है। वैसे भी कहा जाता है कि वही व्यक्ति भ्रष्ट होता है जो अतृप्त होता है। देशी गाय का घी तृप्ति प्रदान करता है और मानव को अतृप्ति से बचाता है।

4. चौथा गुण: प्रेम

देशी गाय के घी में जो चिकनाई होती है, उसे स्नेह कहा जाता है। देशी गाय का घी सेवन करने से शरीर व मन दोनों का ही रूखापन खत्म होता है।

5. पाँचवा गुण:- दिमाग का टॉनिक

मानव मस्तिष्क का 18-20 प्रतिशत भाग चिकनाई से बना है, और चिकनाई कमी से मानव विभिन्न रोगों से ग्रस्त होते हैं। मस्तिष्क केवल 3.5 माइक्रोन से छोटी चिकनाई को ग्रहण कर पाता है। देशी गाय का बिलौने का घी 3.1 से 3.3 माइक्रोन का होता है, जबकि अन्य सभी चिकनाई 4.8 माइक्रोन से अधिक होती हैं। अर्थात् मस्तिष्क के लिए एक ही चिकनाई है उपयुक्त होती है, देशी गाय का घी। इसलिए जब तक भारतीय देशी गाय का घी का सेवन करते रहे, तब तक भारत विश्वगुरु बना रहा।

6. छठवाँ गुण: .धैर्य

हाइपर होना भी आज का तेजी से बढ़ता रोग है। अपने स्थिरता के गुण के कारण देशी गाय का घी धैर्य प्रदान करता है, और इस समस्य से निजात दिलाता है।

7. सातवाँ गुण: धी, धृति, स्मृति वर्धक

देशी गाय का घी (बुद्धि, समझ), धृति (धारण करने की क्षमता, त्मजमदजपवद च्वूमत), स्मृति (डमउवतल) को बढ़ाता है।

8. आठवाँ गुण:...... घाव भरना

चोट, प्रसव या ऑपरेशन के कारण हुए घावों को देशी गाय का घी सबसे अधिक तेजी से भरता है।

9. नौवाँ गुण: अपनी उम्र से कम दिखना ।

आयुर्वेद ने देशी गाय के घी को रसायन कहा है अर्थात् घी शरीर पर बढ़ती उम्र का प्रभाव नहीं पड़ने देता है।

10. दसवाँ गुण: स्वस्थ जीवन-स्वस्थ मृत्यु

आयुर्वेद देशी गाय के घी के बारे में लिए कहता है ‘‘आयुरेव घृतं’’ - घी ही आयु (स्वस्थ जीवन) है। देशी गाय का घी सेवन करने वाले. स्वस्थ जीते हैं और पूरी आयु भोगकर स्वस्थ ही मरते हैं।

11. ग्यारहवाँ गुण: आध्यात्मिक उन्नति में सहायक

साधना के प्रारंभ में मन की चंचलता बाधा डालती है, देशी गाय का घी मन को स्थिरता प्रदान कर साधना में सहायक होता है। मन के स्थिर होने पर शरीर में ऊर्जा का स्तर बढ़ने लगता है, जिससे शरीर जलने लगता है। देशी गाय का घी इस ऊर्जा को संचित कर जलन को ताप में बदल देता है।

                                                                                      

नोट: घी का सेवन नीचे दी गई विधि के अनुसार करना चाहिए-

’देशी गाय के घी से ये सब लाभ उठाना है प्रतिदिन 100-125 ग्राम बिलौने का घी खाइए।

’घी को पचाने के लिए उस पर तुरंत तेज गर्म दूध, कढ़ी, दाल, सूप, काढ़ा, पानी आदि गर्म पेय आदि का सेवन करना चाहिए।

सावधानियाँ:

’घी के ऊपर सादा या ठंडा पानी जहर का काम करता है जबकि गर्म पानी अमृत के समान होता है। गर्म पानी में ठंडा पानी मिलाने पर वह भी जहर  के समान ही हो जाता है।

‘घी और शहद दोनों ही अपने आप में अमृत हैं परन्तु इन दोनों को एक समान मात्रा में मिलाकर सेवन करना एक तीव्र जहर के सेवन करने के बराबर होता है।’

’ज्वर (बुखार), कफ (बलगम) और आँव (उनबवने) आदि में घी-तेल अर्थात चिकनाई का सेवन न करें।

लेखक सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रोद्योगिक विश्वविद्यालय, मोदीपुरम, मेरठ के जैव प्रौद्योगिकी विभागाध्यक्ष तथा एक वरिष्ठ वैज्ञानिक हैं तथा लेख में प्रस्तुत विचार उनके स्वयं के हैं।