मानसिक कमजोरी ही बनती है अवसाद का कारण

                   मानसिक कमजोरी ही बनती है अवसाद का कारण

                                                                                                                                                                     डॉ0 दिव्याँशु सेंगर एवं मुकेश शर्मा

अपनों के करीब आए डरे नहीं और ना ही भागे

प्रत्येक व्यक्ति को जीवन में कभी ना कभी अपनों से बिछड़ने या अपने किसी प्रिय संबंधी या रिश्तेदार से हमेशा के लिए दूर होने का कष्ट झेलना ही पड़ता है। इससे व्यक्ति का मानसिक स्वास्थ्य तो प्रभावित होता ही है और उसके कारण व्यक्ति विभिन्न प्रकार के मानसिक रोगों से संबंधित समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं। प्रायः देखा गया है कि इस स्थिति के चलते अवसाद, एंजायटी, न्यूरोसिस और अगर किसी केस में शिजोफ्रेनिया बाइपोलर डिसऑर्डर, ऑब्सेसिव कांप्लैक्सिव डिसऑर्डर आदि की पारिवारिक पृष्ठभूमि है, तो इन रोगों के उभर आने की संभावना रहती है।

                                                                             

ऐसा होने पर व्यक्ति में घबराहट का होना, चिड़चिड़ापन रहना, नींद का नही आना, भूख कम लगना, जरूरत से अधिक और लगातार बोलते ही रहना, बोलना एकदम बंद कर देना, अचानक रोने लगना, आसामान्य संदेह का पैदा होना, बिना किसी कारण के ही भड़क जाना या जोर से चिल्लाना, किसी के साथ समय बिताने में कठिनाई का होना, अन्य लोगों को समझ नही पाना, किसी भी काम को करने की इच्छा नही होना, अपने जीवन बेकार लगना, आत्महत्या का विचार मन में आना, घर की वस्तुओं को तोड़ना और फोड़ना, खास दोस्तों से भी दूरी बना लेना, विभिन्न सामाजिक स्थितियों को लेकर चिंतित और भयभीत रहना, अपने शुभचिंतकों पर ही शक करना, मौखिक या शारीरिक रूप से उग्र व्यवहार प्रदर्शित करना, संबंधों में उग्र होना और भगवान से विश्वास उठ जाना आदि के जैसी मानसिक समस्याओं के लक्षण पैदा होने लगते है।

मानसिक कमजोरी व्यक्ति को किसी भी कारण से हो सकती है, जैसे अपमान, भय, आत्मविश्वास की कमी, ऑफिस में कठोर नियम, ईर्ष्या, प्यार का अभाव, कोई नुकसान और किसी प्रियजन की मृत्यु हो जाना आदि कारण इसके लिए उत्तदायी हो सकते हैं।

                                                                                

अवसाद का पहला कारण मानसिक कमजोरी ही होती है। इन कारणों से होने वाली मानसिक परेशानियों को रोकने और पीड़ित व्यक्ति को इनसे बचाने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि मानसिक रोगी की जल्द से जल्द पहचान की जाए और उसकी काउंसलिंग लगातार प्रारंभ कर दी जाए, जिससे उसे उचित उपचार एवं व्यवहार के माध्यम से ठीक किया जा सकें। इसके लिए पीड़ित व्यक्ति के साथ अधिक से अधिक समय व्यतीत करें और उससे लगातार बातचीत करते रहें, पीड़ित को अकेला ना रहने दे और उसकी परेशानी जानने की कोशिश करने की कोशिश करें।

इस प्रकार के रोगों के उपचार में मानसिक रोग विशेषज्ञ की एक महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इस प्रकार के रोगों के उपचार में काउंसलिंग और दवा दोनों महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

                                                                            

काउंसलिंग के दौरान रोगी से बात कर उसके अन्दर बीमारी से बाहर निकलने का विश्वास जगाया जाता है। इस प्रक्रिया में एक ट्रेंड थैरेपिस्ट की बातें रोगी को उसके भावनात्मक मुद्दों से निपटने में सहायता करती है। काउंसलर ऐसे लोगों की समस्याओं को शीघ्रता से समझ कर और उनका विश्लेषण कर पीड़ित के स्वभाव के अनुसार ही उनका समाधान प्रस्तुत करते हैं। इसी प्रकार मनो चिकित्सक रोगी के रोग की पहचान कर उसी के अनुसार उसकी दवा देते हैं। इस प्रकार की समस्या में बिहेवियरल थेरेपी, एक्स्पोज़र थेरेपी, फैमिली थेरेपी और कॉगनेटिव बिहेवियरल थेरेपी आदि की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

हालांकि ऐसे लोगों को अपने खान-पान पर भी विशेष ध्यान देना चाहिए और रोगी को धूम्रपान, मदिुरा या किसी भी प्रकार के नशे से दूर ही रहने का प्रयास करना चाहिए। इसके लिए रोगी को सामान्य दर्जे के व्यायाम से लेकर मध्यम दर्जे का व्यायाम भी नियमित रूप से करने चाहिए। यदि संभव हो सके तो योगा और ध्यान भी जरूर करना चाहिए। अतः उपरोक्त दिये गए सभी उपायों को अपनाकर व्यक्ति स्वयं को इस प्रकार की दुखद घटनाओं और कष्टप्रद स्थितियों से उभार सकता है। इन जरूरी बातों को ध्यान में रखकर आप मानसिक रोगों से पीड़ित मनुष्य के जीवन को सुरक्षित बना सकते हैं।

लेखकः डॉ0 दिव्याँशु सेंगर, मेडिकल ऑफिसर, प्यारे लाल शर्मा, जिला अस्पताल मेरठ।