ठंड में दिल का बचाव करेंगी ये आदतें

                            ठंड में दिल का बचाव करेंगी ये आदतें

                                                                                                                                                                             डॉ0 दिव्याँशु सेंगर एवं मुकेश शर्मा

                                                                        

रक्त वाहिकाओं में आने वाली सिकुड़न, प्रदूषण, शारीरिक सक्रियता की कमी आदि कई ऐसे कारण हैं, जो ठंड में दिल की मुसीबतें बढ़ा देते हैं। दिल को खतरों से बचाने के लिए ठंड के दिनों में किन बातों का ध्यान रखें, बता रहे हैं हृदय रोग विशेषज्ञ

पिछले कुछ समय से बड़ी उम्र के लोगों के साथ मध्यम आयु वर्ग के युवाओं में भी हृदय रोगों के मामले बढ़ रहे हैं। ऐसे कई जोखिम कारक हैं, जो सभी आयुवर्ग में हृदय रोगों की आशंका बढ़ाते हैं, जैसे पारिवारिक इतिहास, खराब जीवनशैली, बढ़ता तनाव, गलत खानपान, पर्यावरण प्रदूषण व धूम्रपान आदि या सर्दियां सेहत बनाने का मौसम है, पर यह उन लोगों की मुसीबतें बढ़ा देता है, जिन्हें पहले से हृदय रोग हैं या फिर हृदय रोगों का खतरा है। तापमान की गिरावट, प्रदूषण का बढ़ना, शारीरिक गतिविधियों में कमी आना, खुराक बढ़ना और व्यायाम की कमी हृदयरोगों के जोखिम को बढ़ा देते हैं।

दरअसल, ठंड में शरीर की गर्मी और ऊर्जा को संरक्षित करने के लिए छोटी रक्त वाहिकाएं सिकुड़ जाती हैं। इस कारण, हृदय को इन संकुचित रक्त वाहिकाओं के विरुद्ध अधिक मेहनत करनी पड़ती है, रक्तसंचार धीमा हो जाता है और रक्तचाप बढ़ जाता है। रक्तचाप का बहुत अधिक बढ़ना या लंबे समय तक बढ़े रहना दिल की मांसपेशियों को कमजोर करता है। इसके साथ ही सभी अंगों तक ऑक्सीजन की आपूर्ति में भी दिक्कत होती है।

सर्दियों में उच्च कैलोरी वाले गरिष्ठ भोजन खाने की प्रवृत्ति भी बढ़ जाती है इस तरह का खान-पान वजन और कोलेस्ट्रॉल संबंधी समस्या को बढ़ा सकता है जो पहले से ही हृदय रोगी है या जिनके हृदय की धमनियों में छोटे-छोटे प्लाक है, उन्हें ठंड में अपने खान-पान पर खास ध्यान देना चाहिए।

फेफड़ों के संक्रमण से बचें

                                                                      

दिल के मरीजों को वायरल या बैक्टीरियल संक्रमण से बचकर रहना चाहिए एक संक्रमण का बार-बार होना शरीर की इम्युनिटी कमजोर करता है। दूसरा, वायरल संक्रमण जैसा पलू या कोचिड के समय देखने को मिला, दिल की मांसपेशियों को कमजोर करता है, उनमें सूजन आ जाती है। इसे मायोकाडोइटिस कहते हैं। दरअसल, कोई भी संक्रमण दिल की नसों समेत पूरे शरीर में सूजन बढ़ाता है। सूजन का बहुत बढ़ना हार्ट फेल्योर का कारण बन जाता है। खासतौर पर कमजोर इम्युनिटी वाले बच्चों को प्रदूषण और अधिक ठंड से बचाना जरूरी है।

1. साबुत अनाज और मेवे खाएं। प्रोसेस्ड चीजों से बचें साबुत अनाज फाइवर और पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं। इनमें जटिल कार्बाेहाइड्रेट होते हैं, जो दिल के लिए फायदेमंद होते हैं। जटिल कार्बाेहाइड्रेट सामान्य कार्बाेहाइड्रेट की तुलना में धीरे-धीरे पचते हैं, देर तक शरीर को एनर्जी देते हैं। खून में ब्लड शुगर तेजी से नहीं बढ़ती बादाम और अखरोट जैसे मेवे आवश्यक फैटी एसिड की पूर्ति करते हैं और भरपूर पोषक तत्व और फाइबर देते हैं। फाइबर युक्त चीजें भी ब्लड शुगर ठीक रखने में मदद करती है।

2. कार्बाेहाइड्रेट और वसा को सीमित करें

पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन वाली चीजें खाएं। होता यह है कि ठंड से लड़ने के लिए शरीर में कार्बाेहाइड्रेट और व से भरपूर चीजें खाने की इच्छा बढ़ती है। सर्दियों में गरिष्ठ भोजन पचता भी अधिक है पर अत्यधिक कार्बाेहाइड्रेट और वसा तत्व शरीर में रक्त वाहिकाओं व लिवर समेत विभिन्न

दिल को स्वस्थ रखेगी ये खुराक

स्थानों पर जमा हो सकते हैं, जो धनाक बनाते हैं और हृदय रोगों का खतरा बढ़ जाता है।

3. मौसमी फल और सब्जियां खाएं। ये विटामिन, खनिज, फाइबर एंटीऑक्सीडेंट्स का बेहतरीन स्रोत हैं। भोजन से पहले सलाद खाना कार्बाेहाइड्रेट और वसा को सीमित करके कैलोरी कम करने में

मदद करता है।

फल और

सब्जियां भोजन के बीच में कैलोरी से भरपूर नाश्ते का अच्छा विकल्प है।

4. नमक और चीनी

सीमित करें अधिक नमक खाने से बीपी बढ़ता है, जो

व्यायाम जरूर करें, पर ध्यान रखें...

                                                                

1. ठंड के दिनों में आप दौड़ना, साइकिल चलाना आदि गतिविधियां कर पाते हैं तो अच्छी बात पर अगर आपके लिए ऐसा करना मुश्किल होता है तो आप घर के भीतर ही अपनी सक्रियता को बढ़ाएं घर या कार्यालय के परिसर में योग, हल्की शारीरिक गतिविधि और एरोबिक्स करें। इससे हृदय रोगों की जटिलताएं कम होती हैं। हाल के कुछ अध्ययनों में नियमित तौर पर 5000 कदम चलने पर जोर दिया गया है। कुल मिलाकर, जितना हो सके, घर में ही तेज गति से चलें।

2. सुबह बहुत जल्दी या देर शाम तापमान में कमी के साथ प्रदूषण की मांत्रा अधिक होती है सास व हृदय रोगी और जिन्हें एलजी रहती है, वे ठंड व प्रदूषण से बचें प्रदूषण से सांस की नली पर असर पड़ता है और पूरे शरीर में टॉक्सिक तत्व बढ़ते हैं, जो नरों में सूजन पैदा करते हैं। कम तापमान रक्तचाप भी बढ़ सकता है। खासकर छोटे बच्चे व बुजुर्ग गर्म कपड़े व मास्क पहनकर घर से निकलें अचानक तापमान में बदलाव व प्रदूषण से बचें।

तंबाकू सेवन न करें

धूम्रपान शरीर के अंदर विषाक्त पदार्थों के असर को बढ़ाता है, जिससे अल्पकालिक और दीर्घकालिक प्रभाव होते हैं। किसी भी रूप में लंबाकू से परहेज करने से शरीर में सूजन कम होने लगती है, जिससे हृदय रोगों का खतरा कम हो जाता है। सक्रिय और निष्क्रिय धूम्रपान, दोनों का लंबे समय तक सेवन करना नसों को संकुचित करता है।

दवाएं बंद न करें

सर्दियों के मौसम में हृदय रोगियों के लिए समय पर दवाएं लेना जरूरी है ये दवाएं हृदय रोगों को गंभीर होने से रोकती हैं यदि कोई व्यक्ति गलती से दवा लेना छोड़ देता है, तो दया की अधिक या अपर्याप्त खुराक लेकर स्वयं उपचार करने के बजाय डॉक्टर से परामर्श करें और उसी अनुसार दवा लें। अगर किसी को हृदय रोगों से जुड़े किसी तरह के लक्षण दिख रहे हैं तो डॉक्टर से संपर्क जरूर करें।

हृदय रोगों की आशंका बढ़ाता है। वहीं डायबिटिक व प्रीडायबिटिक लोगों को ठंड में चीनी का सेवन कम करना

की सेहत के लिए अच्छा है रोज करें इनका अभ्यास आसन और प्राणायाम का अभ्यास

श्वसन प्रक्रिया के अलावा फेफड़े शरीर में पीएच बैलेंस बनाने व विषैले तत्वों को बाहर निकालने में भी मदद करते हैं। सांस से जुड़ी दिक्कतों में राहत पाने के लिए क्या करें, बता रही हैं योग विशेषज्ञ डॉ. हंसा योगेंद्र

आंकड़ों के अनुसार, दुनियाभर में फेफड़ों के । गंभीर रोगों में 15% मामले भारत कुल में पाए जाते हैं। पर, इससे होने वाली मौतों का 30.28% बोझ भारत वहन करता है। देश में क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज या (सीओपीडी) से 5.5 करोड़ और अस्थमा के 3.5 करोड़ लोग जूझ रहे हैं। यह एक बड़ी संख्या है। जिससे अपने स्तर पर बहुत हद तक बचा जा सकता है। फेफड़ों के रोग श्वसन प्रणाली के ऊपरी व

निचले किसी हिस्से को प्रभावित कर सकते हैं। दमा, सीने में जकड़न, लगातार खांसी सांस की तकलीफ आदि समस्याओं में वायुमार्ग बाधित होने लगता है, इससे सांस के जरिये कम हवा भीतर जाती है और सांस लेना कठिन हो जाता है। इन समस्याओं के निम्न कारण हो सकते हैं-

ऽ फेफड़े कठोर हो जाना वायुमार्ग का कफ से भरना रु छाती की दीवार या मांसपेशियों में समस्या रीढ़ की हड्डी में

मोटापा, प्रदूषण

                                                       

लचीलेपन के बावजूद, फेफड़े अस्थमा, सीओपीडी और निमोनिया जैसी सेहत समस्याओं के प्रति संवेदनशील हो सकते हैं। ऊपरी श्वसन पथ में संक्रमण होने पर सामान्य सर्दी व टॉन्सिल से जुड़ी समस्याएं होती है। वहीं निचले पथ के संक्रमण में वायरल व बैक्टीरियल संक्रमण से होने वाले रोग जैसे निमोनिया आदि को शामिल किया जाता है।

फेफड़ों की समस्याओं को रोकने और शीघ्र पहचान के लिए नियमित जांच और अच्छी जीवनशैली पर ध्यान देना जरूरी है। साथ ही धूम्रपान से बचें और स्वस्थ वातावरण में रहें।

अनुलोम-विलोम

अनुलोम-विलोम प्राणायाम में नाक से बारी-बारी से सांस ली जाती है, जिससे ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड के प्रवाह का संतुलन रहता है। इस तकनीक से सांसों के उतार-चढ़ाव व तेजी से आने वाले बदलावों को दूर करने में मदद मिलती है। प्राणायाम सांसों को सहज बनाने की क्रिया है।

सेतुबंधासन

                                                                

यह आसन छाती को मजबूत बनाता है, फेफड़े खुलते है, जिससे पर्याप्त हवा शरीर के भीतर जा पाती है। छाती में खिचाव से फेफड़ों की क्षमता बढ़ती है और विषैले तत्व शरीर से बाहर निकल जाते हैं।

चाहिए। दरअसल, मधुमेह में एक और शरीर की इम्यूनिटी कमजोर होती है तो वहीं शरीर में सूजन बढ़ जाती है। यह सूजन दिल के आसपास की छोटी नसों को भी प्रभावित करती है दिल की नसों में सूजन हृदय रोगों का एक बड़ा कारण है।

5. पर्याप्त पानी पिए ठंड में चुकि पसीना कम आता है, इसलिए पानी भी कम पिया जाता है। इस कारण शरीर में पानी की कमी यानी डिहाइड्रेशन हो जाती है। पानी की इस कमी से शरीर में सूजन व धमनियों की अकड़न बढ़ती है, रक्तदाब पर असर पड़ता है। ये सब चीजें रक्त कोशिकाओं को स्थायी रूप से क्षतिग्रस्त भी कर सकती हैं। ठंड में ऐसा होना हृदय रोगों व स्ट्रोक का खतरा बढ़ा सकता है। पर्याप्त मात्रा में तरल पदार्थ पिए इससे शरीर का तापमान बाहर के तापमान से बेहतर संतुलन रख पाता है। पानी शरीर का मेटाबॉलिज्म भी ठीक रहता है।

ताजी हवा

स्वच्छ हवा के साथ प्राकृतिक परिवेश में समय बिताने से प्रदूषक तत्वों का जोखिम कम होता है शरीर को पर्याप्त ऑक्सीजन मिलती है, विषैली हवा बाहर निकलती है। ठंड बहुत सुबह और देर रात बाहर निकलने से बचें।

पेट से सांस लेना

पेट से सांस लेना यानी गहरी सांस लेने पर श्वसन प्रक्रिया में डायाफ्राम जुड़ जाता है। इससे सीना फैलता है, दबाव उत्पन्न होता है, अधिक हवा सांस के जरिये भीतर जाती है और फेफड़ों की क्षमता बढ़ती है। खून में ऑक्सीजन का वितरण बेहतर हो पाता है।

लेखकः डॉ0 दिव्याँशु सेंगर प्यारे लाल शर्मा जिला अस्पताल मेरठ, में मेडिकल ऑफिसर हैं।