नीलकंठ कुफरी आलू अब अन्दर नजर आएगा लाल

                                        नीलकंठ कुफरी आलू अब अन्दर नजर आएगा लाल                    

                                                                                  डा0 आर. एस. सेंगर एवं मुकेश शर्मा

कुफरी नीलकंठ आलू पर चल रहा शोध पूर्ण हो चुका है, काला कहे जान वाला कुफरी नीलकंठ आलू अब भीतर से लाल रंग का दिखाई देने वाला है और जल्द ही इस प्रजाति का नामाकरण होगा। इस प्रजाति की बढ़ती मांग को देखकर सरकार भी इसके बीज को बेचने की तैयारी कर रही है।

चित्रः नीलकंठ कुफरी आलू

    नीलकंठ कुफरी प्रजाति के आलू को बीज के लिए कुशीनगर से इसे मंगाकर भण्ड़ारित किया जा रहा है और आशा की जा रही है कि जब तक आलू की यह नई प्रजाति प्रचलन में आए तो इसका प्रचार विभिन्न जिलों में होना आवश्यक है, जिससे कि इस प्रजाति के माध्यम से किसानों को पर्याप्त लाभ प्राप्त हो सके।

    केन्द्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, शिमला के द्वारा वर्ष 2015 में नीलकंठ कुफरी नामक प्रजाति का विकास किया गया था और वर्ष 2018 से इसकी किसानों ने बुआई आरम्भ की थी। अपने बाहरी रूप से बैंगनी या नीला इिखाई देने वाला इस आलू का गूदा क्रीमी अथवा सफेद रंग का होता है। प्रदेश के विभिन्न जिलों में आलू की इस प्रजाति की खेती की जा रही है, हालांकि खाने के लिए इस आलू की बाजारों में उपलब्धता सीमित ही है, क्योंकि अभी किसान केवल बीज के लिए ही इस आलू की पैदावार कर रहे हैं, जिससे उन्हें इसके अच्छे दाम भी मिल रहे हैं। इस प्रजाति के बीज का औसत मूल्य 3000 से 3,500 रूपये प्रति क्विन्टल तक आसानी से बेचा जा रहा है। उत्तर प्रदेश में आगरा, फर्रूखाबाद, फिरोजाबाद, कुशीनगर और अलीगढ़ समेत विभिन्न जिलों में इस प्रजाति की खेती की जा रही है। निदेशक उद्यान डा. आर. के. तोमर के अनुसार, आगरा में क्रेता-विक्रेता सम्मेलन दो से तीन अप्रैल तक होगा जिसमें नीलकंठ कुफरी को भी स्थान प्रदान किया जाएगा। इसमें कुफरी की खेती करने वाले किसानों को आमन्त्रित किया जा रहा है, जिससे कि वे अपने आलू का प्रदर्शन बेहतर तरीके से कर सकें।

कुफरी नीलकंठ आलू की औसत पैदावार 400 क्विंटल प्रति हैक्टेयर से भी अधिक है-

    अलीगढ़ के एफपीओ में नीलकंठ की खेती कर रहे एक किसान ने बताया कि आलू की इस प्रजाति के परिणाम बहुत अच्छे प्राप्त हो रहे हैं और उसी के सापेक्ष इसकी कीमत भी अच्छी ही मिल रही है। जब हम एनसीआर में ले जाकर इस आलू के बेचते हैं तो हमें अच्छा खासा मुनाफा प्राप्त होता है। आलू की यह प्रजाति गुणों से भरपूर होने के साथ ही इसका उत्पादन अच्छा मिलता है, अतः आलू की खेती करने वाले किसानों के लिए यह सोने की तरह है। जहाँ सामान्य आलू का उत्पादन औसत उत्पादन 300 से 350 क्विंटल प्रति हैक्टेयर होता है, वहीं नीलकंठ कुफरी का औसत उत्पादन 400 से 450 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक होता है। वर्तमान में आवश्यकता तो केवल इस बात की है कि सरकार इस प्रजाति के आलू के बीज को बांटें तथा इसका प्रचार भी अधिक से अधिक करें।

कुफरी नीलकंठ के आलू से पकने के बाद बासमती के जैसी खुशबु आती है-

इसका सेवन करने से रोग-प्रतिरोधक क्षमता में भी सुधार आता है-

    केन्द्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, मेरठ, के अधीक्षक डा0 देवेन्द्र कुमार ने बताया कि कुफरी नीलकंठ आलू में एंटी-आक्सीडेन्ट तत्व विद्यमान हैं और इसमें कैरोटिन ऐंथेसायनिन नामक एक तत्व उपलब्ध होता है, जिसके कारण हमारे शरीर में फ्री-रेडिकल्स (अत्याधिक प्रतिक्रियाशील अणु) को भी नियन्त्रित करने की क्षमता रखता है, जिससे हमारे शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता में पर्याप्त वृद्वि होती है।

    इस किस्म के आलू का दूसरा गुण यह है कि जब इस आलू को पकाया जाता है तो इसके अन्दर से बासमती के जैसी महक आती है। अब इस आलू की ऐसी प्रजाति को भी विकसित कर लिया गया है, जिसके अन्दर के गूदे का रंग लाल अथवा गहरे हरे रंग का होगा, हालांकि अभी इसका नामाकरण होना बाकी है।

लेखकः डा0 आर. एस. सेंगर, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, मोदीपुरम मेंरठ, में प्रोफेसर एवं कृषि जैव प्रौद्योगिकी विभाग के विभागाध्यक्ष हैं।

डिस्कलेमरः उपरोक्त लेख में व्यक्त विचार लेखक अपने विचार हैं।