तबाही का कारण बन सकते हैं धरती की ओर बढ़ते उल्का पिण्ड़

                    तबाही का कारण बन सकते हैं धरती की ओर बढ़ते उल्का पिण्ड़

                                     

                                                               चित्रः उल्का पिण्ड

नासा के द्वारा अभी हाल ही में घोषणा की गई थी कि उल्का पिण्ड़ों का धरती से टकराने को खतरा है जो अब तीन गुना अधिक बढ़ चुका है, और यदि यह पृथ्वी से टकरा गए तो किसी परमाणु बम की अपेक्षा दस गुना अधिक तबाही ला सकते हैं।

    नासा से मिली जानकारी के आधार पर गोलार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर के मुख्य वैज्ञानिक जेम्स गारविन ने बताया कि अंतरिक्ष से इस प्रकार का हमला लगभग 7 लाख वर्ष के बाद हुआ है। गारविन की टीम ने पृथ्वी के चारों ओर एक बड़े छल्ले को चिन्हित किया है, जहाँ इनके टकराने की सम्भावना है।

    अंतरिक्ष में बहुत सी चट्टानें हमारी धरती के चारों और एक छल्ला बना रही हैं और यह चट्टानें कभी भी पृथ्वी से टकरा सकती हैं।

एयर कंडीशनर देगा ठण्ड़ी और शुद् हवा- तकनीक के चमत्कार

 

                

                चित्रः एयर फिल्टर ऑफ एसी

आईआईटी के इन्क्यूबेटर रवि कौशिक ने एसी के लिए एक अनोखा हेपा एयर फिल्टर विकसित किया है, जो हृदय फेफड़ें एवं एलर्जी के रोगियों को अब गर्मियों में एसी केवल ठण्ड़ी हवा ही नही देगा, अपितु यह उन्हें शुद् और ठण्ड़ी हवा भी देता है। हेपा एयर फिल्टर वायरस, बैक्टीरिया आदि के साथ ही विभिन्न प्रकार के प्रदूषणों से उपभोक्ता की रक्षा करेगा, जो अब एक बड़ी साइट का बेस्ट सेलर प्रोडक्ट बना हुआ है।

    आईआईटी स्टार्टअप एवर्थ के संस्थापक रवि कौशिक के द्वारा विकसित यह एयर फिल्टर एसी के ऊपर लगाने से पूरे सीजन शुद्व एवं ठण्ड़ी हवा देगा। इस एयर फिल्टर को विशेष हाई एफीशिएंसी पार्टिकुलेट एयर (हेपा) तकनीक के माध्यम से तैयार किया गया है। जिसके द्वारा प्रत्येक प्रकार के प्रदूषित कणों को रोका जा सकता है। इसके साथ ही अब इसके लिए अलग से कोई एयर प्यूरीफायर लगाकर अतिरिक्त बिजली व्यय नही करनी होगी।

आईआईटी एवं आईआईएससी ने की सहायता एवर्थ के रवि ने बताया कि यह विशेष फिल्टर आईआईटी कानपुर और आईआईएससी बेंगलुरू के वैज्ञानिकों के निर्देशन में विकसित किया गया है, यह इन दोनों संस्थानों की अत्याधुनिक लैब्स विकसित किया गया है। इस फिल्टर की कीमत बाजार में 1,999 रूपये है और इस फिल्टर को लगाने के बाद 400 वर्ग फिट का कमरा पूर्ण रूप से प्रदूषणमुक्त करने में सक्षम है।

प्रौद्योगिकियों की सहायता जीवन में हुआ सकारात्मक बदलाव

   कुछ समय पूर्व तक किसी प्रौद्योगिकी का सुलभ होना बड़े सौभाग्य की बात मानी जाती थी, जिससे केवल शहरी अभिजात्य वर्ग लाभ उठाने में सक्षम हुआ करता था। ग्रामीण क्षेत्र के लोग तो इंटरनेट का खर्च उठाने में स्वयं को बिलकुल असमर्थ ही पाते थे, जबकि इंटरनेट की कनेक्टिविटी भी इतनी सुलभ नही थी।

    वर्ष 2014 तक तो केवल 25 करोड़ भारतीय लोग ही इंटरनेट के यूजर हुआ करते थे। वर्ष 2022 में यह संख्या बढ़कर 84 करोड़ के आंकड़ें तक पहुच चुकी थी, पूर्व में एक जीबी डाटा की कीमत लगभग 300 रूपये हुआ करती थी, जो कि अब मात्र 13.5 रूपये प्रति जीबी रह गई है।

    इंटरनेट की कम कीमतों के चलते लोग अब विभिन्न सेवाओं का लाभ उठाने लगे हैं। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के द्वारा प्रौद्योगिकी गरीबों के विरूद् नामक लड़ाई को एक अहम साधन के रूप में परिवर्तित करने से लोगों को काफी लाभ मिला और डिजिटल प्रौद्योगिकियां अब हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग बन चुकी हैं। ए.आई, 5जी एवं क्वांटम प्रौद्योगिकी का चलन अब इतना अधिक बढ़ चुका है ये अब मुख्य धारा में शामिल होती जा रही हैं।

    भारत के द्वारा भी इस प्रकार के डिजिटल प्लेटफॉर्म्स की स्थापना पर ध्यान केन्द्रित किया गया, जो वर्तमान में सभी के लिए उपलब्ध है, और एक बड़े पेमाने पर इनका सृजन किया जा रहा है। कोविड-19 के विरूद् टीकों की लगभग 220 करोड़ खुरकें दी जा चुकी हैं। अतः कोविड-19 समस्त देशवासियों के लिए डिजिटल प्रौद्योगिकयों को सुलभ बनाने का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है।

आज सम्पूर्ण भारतवर्ष में स्ट्रीट वेंडर्स और छोटी-छोटी दुकानों से लेकर बड़े-बड़े मेगा शोरूम्स तक में डिजिटल भुगतान करने के लिए क्यूआर कोड स्टिकर्स नजर आते हैं।

सरकार के द्वारा सार्वजिनक धन का उपयोग कर एक ऐसा प्लेटफार्म बनाया गया है, जिससे बैंक, बीमा कम्पनियां, ई-कामर्स कम्पनियां एमएसएमई, विभिन्न र्स्टाअप्स एवं सबसे महत्वपूर्ण 120 करोड़ लोग इससे जुड़ गए है। वर्ष 2016 में लॉन्च किया गया यूपीआई अब 15 खरब डॉलर मूल्य का प्रतिवर्ष लेन-देन करने वाली एप बन चुकी है, जिसके अन्तर्गत प्रत्येक लेन-देन में लगने वाला औसत समय मात्र 2 सेकेण्ड है।

यूपीआई के माध्यम से लेन-देन करने में पारदर्शिता और सहुलियतों में भी वृद्वि हुई है और यही वह कारण है जिसके माध्यम से वर्तमान में यूपीआई भुगतान के लिए अब एक वैश्विक मानक के रूप में स्थापित होने वाली एप बन चुकी है।

लोगों के जीवन को आसान बनाने में ऐसी प्रौद्योगिकयों की भूमिका अब दिन प्रति दिन बढ़ती ही जा रही है। ‘‘फास्टैग’’ के माध्यम से वाहन अब राज्य मार्गों पर बिना रूके ही फर्रांटें भरने लगे हैं। अब 5जी की शुभारम्भ होने के साथ ही प्रौद्योगिकी ने भी एक ऊँची छलांग लगाई है और अब 481 जिलों में 5जी कवरेज वाली एक लाख से भी अधिक साईटों को स्थापित किया जा चुका है।

आज भारत का लक्ष्य आगामी तीन वर्षों में 4जी एवं 5जी प्रौद्योगिकियों का निर्यातक देश बनने का है। अब भारत ‘‘ओसीईएन’’ अर्थात ओपन क्रेडिट एनैबलमेंट नेटवर्क विकसित कर रहा है, जिसके माध्यम से देश की बैंकिंग प्रणाली  को ‘नकदी-प्रवाह आधारित ऋण व्यवस्था’ के अन्तर्गत परिवर्तित करके देश में कर्ज की उपलब्धता को काफी हद तक बढ़ाया जाना सम्भव होगा। ओसीईएन के द्वारा लोगों के लिए ऋण उपलब्ध कराने के लिए विभिन्न बैंकों के बीच प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा मिलेगा। मार्गन स्टैनली के द्वारा व्यक्त अनुमान के अनुसार इसके द्वारा कर्ज-जीडीपी अनुपात मौजूदा 57 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2031 तक 100 प्रतिशत तक होने की सम्भावना है।

डिजिटल एवं प्रौद्योगिकी आधारित क्रॉन्ति आम नागरिकों के जीवन को सशक्त रूप से रूपान्तरित कर रही है। यह गरीब एवं वंचित वर्गों को भी सशक्त बना रही है, और देश में उपलब्ध युवा एवं प्रतिभाशाली पीढ़ी को उनकी रचनात्मक सोच के माध्यम से कुछ विशेष सृजन की क्षमता भी प्रदान कर रही है। अब इसी मॉडल को अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों में भी अपनाया जा रहा है, फिर चाहे वह स्वास्थ्य का क्षेत्र हो, शिक्षा का क्षेत्र हो या फिर लॉजिस्टिक का क्षेत्र, कृषि का क्षेत्र हो या फिर रक्षा का क्षेत्र।

इस प्रकार के प्लेटफार्मों का सृजन किया जा रहा है, जिन पर र्स्टाट अप्स या किसी भी अन्य उद्यम का सक्रिय ईको-सिस्टम आगामी समय में सटीक समाधान विकसित करने में सक्षम हो।

वैश्विक अनिश्चित्ता के वर्तमान दौर में भारत अब अपने ‘‘अमृत-काल’’ के दौर में प्रवेश कर चुका है। इस में अग्रसर प्रधानमंत्री मोदी के दूरदर्शी एवं निर्णायक नेतृत्व में भारत की जी-20 की अध्यक्षता एक अच्छे पथ प्रदर्शक के रूप में स्थापित होगी और इस दौरान सर्वाजनिक डिजिटल अवसंरचना को भी पूरे विश्व के साथ साझा किया जाना है।