गो-मूत्र तथा गाय के गोबर से तैयार करें जीवामृत

                                      गो-मूत्र तथा गाय के गोबर से तैयार करें जीवामृत

                                                                             डॉ0 आर. एस. सेंगर एवं मुकेश शर्मा

    गाय के गोबर एवं गो-मूत्र में कुछ अन्य पदार्थों को मिलाकर एक ऐसा जैविक घोल तैयार किया जा सकता है, जिसका प्रयोग करने से किसान अच्छी फसलें बिना किसी अतिरिक्त व्यय के प्राप्त कर सकते हैं। इस घोल को जीवमृत के नाम से जाना जाता है।

    मात्र एक गाय के माध्यम से तैयार होने वाले इस घोल का उपयोग पूरे वर्ष लगभग 10 एकड़ भूमि में आसानी से किया जा सकता है, जो कि रासायनिक उर्वरकों की अपेक्षा बिलकुल मुफ्त में ही प्राप्त होता है।

जीवामृत बनाने की विधिः एक गाय से प्रतिदिन प्राप्त होने लगभग 10 कि.ग्रा. गोबर और गो-मूत्र के मिश्रण में एक कि.ग्रा. बेसन, एक कि.ग्रा. गुड़, एक कि.ग्रा. खेत की मिट्टी तथा एक कि.ग्रा. मौसमी फसल के अवशेष आदि को एक साथ घोलकर इस घोल को 7 दिन तक सड़नें के लिए छोड़ देते हैं। इसके बाद प्रतिदिन इस घोल को किसी लकड़ी के डण्ड़े की सहायता से 5 मिनट तक चलाया जाता है। इस प्रकार से यह घोल सात दिन बाद फसलों पर छिड़कने के लिए तैयार हो जाता हैं।

    इस घोल का छिड़काव किसान अपनी आवश्यकता के अनुसार महीने में एक बार या दो बार कर सकते हैं। इसका प्रयोग करने से फसलों के लिए समस्त आवश्यक तत्वों की पूर्ति होती रहती है और उसमें अन्य किसी भी प्रकार के उर्वरक आदि के डालने की आवश्यकता नही पड़ती है।

                         कुपोषण से लड़ाई में एक कारगर हथियार प्रोटीन युक्त धान

भारत के साथ ही विश्व की कुपोषित महिलाओं एवं बच्चों के लिए एक आशाभरी किरण है, धान की एक ऐसी किस्म जिसमें प्रोटीन एवं जस्ते की भरपूर मात्रा उपलब्ध है। छत्तीसगढ़ कृषि विश्वविद्यालय के जैव प्रौद्योग विभाग के 7 वर्षों के अथक प्रयासों के बाद इस किस्म को विकसित किया गया था।

माना जा रहा है कि धान की यह किस्म कुपोषण से लड़ने में काफी कारगर सिद् होगी तथा इसका सेवन करने से कुपोषण की शिकार महिलाओं और बच्चों को विशेष लाभ प्राप्त होगा, जिसकी सहायता से काफी हद तक कुपोषण के विरूद् लड़ाई सफलता पाई जा सकती है।

                                             दुधारू पशुओं में बाँझपन का खतरा

आक्सीटोसिन नामक इंजेक्शन के कारण दुधारू पशुओं में बाँझपन का खतरा होने की सम्भावना काफी बढ़ जाती है। केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार मंत्रालय के द्वारा दुधारू पशुओं में व्यप्त इस खतरे को देखते हुए राज्यों के मुख्य सचिवों को पत्र के माध्यम से अवगत कराया गया है।

गौरतलब है कि मवेशियों में दुग्ध उत्पादन को बढ़ाने के लिए प्रयोग किये जाने वाले आक्सीटोसिन नामक इंजेक्शन के प्रयोग पर केन्द्र सरकार के द्वारा प्रतिबन्ध लगाया गया है। अब यह इंजंक्शन मवेशियों में तब ही लगाया जा सकता है जब मवेशी एग्लैक्सिया नामक रोग से पीड़ित हो।

वेटेनरी चिकित्सक कहते हैं कि इस इंजेक्शन के कारण गाय एवं भैंस में बाँझपन का खतरा 80 प्रतिशत अधिक होता है। आमतौर पर किसी भी गाय अथवा भैंस में 80 से 10 बच्चे तक पैदा करने की क्षमता होती है, जबकि इस इंजेक्शन का प्रयोग करने से गाय या भैंस की प्रजनन क्षमता घटकर 2 या 3 बच्चे पैदा करने की ही सीमित रह जाती है।

हालाँकि, अधिकतर पशु-पालक अपने पशु का एूध उत्पादन बढ़ाने के लिए खुलेआम इसका प्रयोग कर कानून का मजाक उड़ा रहें हैं और इसके साथ ही अपने पशुओं की जान को भी खतरे में डाल रहे हैं।

देश के पशु-पालन विभाग के अनुसार इस समय देश में एक बड़ी संख्या में दुधारू गाय और भैंस उपलब्ध हैं, जिनमें से अधिकाँश पशुओं पर इस इंजेक्शन का प्रयोग किया जा रहा है। यदि इस इंजेक्शन का प्रयोग करना इसी गति से जारी रहा तो यह एक बड़ी एवं अन्तहीन समस्या को जन्म दे सकता है।

                             टमाटर को फ्रिज में रखने से हानि ही हानि

अधिकतर खाने और पीने की चीजों को खराब होने से बचाने के लिए उन्हें फ्रिज में रखा जाता हैं, परन्तु टमाटरों को फ्रिज में अधिक समय तक रखना अच्छा नही है। टमाटर को फ्रिज में रखने से उनके जेनेटिक गुण तो समाप्त होते ही हैं, इसके साथ ही उनका स्वाद भी बिगड़ जाता है।

एक शोध के अनुसार टमाटर को उनके पौधों से तोड़ने के बाद एक सप्ताह तक उनका प्रयोग बिना किसी ठण्ड़े  स्थान पर रखे ही करना चाहिए। टमाटर में मिठास एवं खटास के अतिरिक्त वालटल नामक एक ऐसा रसायन होता है, जो कि टमाटर के पौधे से टूटने के साथ ही समाप्त होना आरम्भ हो जाता है।, जबकि फ्रिज के अन्दर टमाटर के यह गुण अधिक शीघ्रता के साथ समाप्त होने लगते हैं।

यूनिवर्सिटी आफ फ्लोरिडा का एक बड़ा लेख पत्रिका साइंस में प्रकाशित किया गया है।  शोध के अनुसार टमाटर को जब किसी ठण्ड़े स्थान पर रखा जाता है तो टमाटर के अन्दर न बदलने वाले जेनेटिक बदलाव बहुत तीव्र गति के साथ होते हैं जो टमाटर के विभिन्न गुणों एवं उसके जायके को भी समाप्त/कुप्रभावित करते हैं। हार्टिकल्चर विभाग के प्रोफेसर हैरी जे. क्ली. के नेत्तत्व में किये गये इस अध्यन में जब टमाटर को ठण्ड़े स्थान पर रखा गया, तो उसके अन्दर सेहत को नुकसान पहुँचाने वाले विभिन्न प्रकार के परिवर्तन हुए।

प्रोफेसर क्ली ने बताया कि ताजे टमाटरों का उपयोग एक सप्ताह के अन्दर, उन्हें बिन किसी फ्रिज में करने से शरीर को कोई भी हानि नही होती है।

लेखक: आर. एस. सेगर सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर तथा कृषि जैव प्रौद्योगिकी विभाग के विभागाध्यक्ष और लेख में व्यक्त विचार उनके स्वयं के हैं।