रोजगार के लिए आवश्यक कौशल प्रशिक्षण

                                     रोजगार के लिए आवश्यक कौशल प्रशिक्षण

                                                                                                                                                         डॉ0 आर. एस. सेंगर एवं मुकेश शर्मा

“प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना- पीएमकेवीवाई को उद्योगों से जोड़ा जाना चाहिए। कुशल प्रशिक्षितों को रोजगार और स्थानीय आर्थिक आवश्यकताओं में समन्वय का होना भी बहुत जरूरी है।“

वर्ष 2015 में आरम्भ की गई प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना- अर्थात पीएमकेवीवाई के अंतर्गत पिछले सात वर्षों में 13.7 मिलियन उम्मीदवारों को प्रशिक्षण प्रदान किया गया है। जबकि इनमें से केवल 18 प्रतिशत यानि कि 2.4 मिलियन उम्मीदवार ही रोजगार प्राप्त करने में सफल हो पाए हैं। लोकसभा की एक स्थाई समिति ने इस कम ‘प्लेसमेंट दर पर’ चिन्ता प्रकट की है। समिति ने पैसे के उपयोग में कमी, ढांचागत कमियों, ड्रॉपआउट, उद्योगों के साथ संपर्क के अभाव तथा राज्य की समुचित संहिता के अभाव को इसके लिए महत्वपूर्ण समस्यायें माना है। कार्यक्रम की प्रभावशीलता बढ़ाने के लिए पीएमकेवीवाई को स्थानीय अर्थव्यवस्था की आवश्यकताओं से जोड़ा जाना चाहिए।

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वर्तमान समय में भारत के 530 मिलियन कार्यबल के केवल 2.4 प्रतिशत को ही औपचारिक व्यावसायिक शिक्षा या प्रशिक्षण प्राप्त है इसका अर्थ यह है कि देश बहुसंख्य कार्यबल अकुशल है जिसके चलते उसकी उत्पादकता भी कम है। इसके साथ ही भारत के कार्यबल के एक चौथाई हिस्से की शिक्षा का स्तर प्राथमिक शिक्षा के स्तर से भी कम है। इससे बेरोजगारी दर को कम करने में कौशल विकास कार्यक्रमों के महत्व पर जोर देने की आवश्यकता उजागर होती है। इसके बावजूद ‘क्वार्टली पीरियाडिक लेवर फोर्स सर्वे’ पीएलएफएस रिपोर्ट के नवीनतम डेटा के अनुसार बेरोजगारी दर 6.8 प्रतिशत तथा 15 से 29 वर्ष आयुवर्ग वाले नौजवानों में बेरोजगारी दर 17.3 प्रतिशत है।

अभी तक पीएमकेवीवाई के तीन रूप रहे हैं, पीएमकेवीवाई 2.0 में प्रशिक्षित व नौकरी प्राप्त उम्मीदवारों की संख्या सर्वाधिक रही है। इनकी नौकरी प्राप्त करने की दर 19.5 प्रतिशत रही है। लेकिन यह दर पीएमकेवीवाई 3.0 में कम होकर मात्र 5.8 प्रतिशत ही रह गई जो कि अब तक सबसे कम दर रही है। कुल मिला कर लगभग 11 मिलियन प्रशिक्षित उम्मीदवारों को प्रमाणपत्र प्राप्त हुए हैं। सरकार को इनके सरोकारों को संबोधित करने के लिए तत्काल कदम उठाने चाहिए।

इसके लिए पीएमकेवीवाई को स्थानीय अर्थव्यवस्था से जोड़ने तथा कार्यक्रम की प्रभावशीलता को भी बढ़ाने की जरूरत है। यहाँ यह तथ्य उल्लेखनीय है कि देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा उम्मीदवारों को प्रशिक्षण दिया गया है, जिनकी संख्या 1.59 मिलियन है, लेकिन राज्य में उनकी प्लेसमेंट दर केवल 20 प्रतिशत ही रही है।

दूसरी और तेलंगाना राज्य में सर्वोच्च प्लेसमेंट दर 35.1 प्रतिशत है और इसके बाद 34.6 प्रतिशत के साथ पुडुचेरी दूसरे स्थान पर है। हरियाणा और पंजाब भी इससे बहुत अधिक पीछे नहीं हैं जिनकी प्लेसमेंट दर क्रमशः 31.7 व 29.6 प्रतिशत है। लेकिन महाराष्ट्र और केरल को प्लेसमेंट दर ठीक करने के लिए अभी बहुत कुछ करना बाकी है। जिनकी यह दर निराशाजनक रूप से 9.3 प्रतिशत व 10.4 प्रतिशत ही है।

                                                                         

उल्लेखनीय है कि एनएसडीसी ने मुख्यतः निजी व्यावसायिक प्रशिक्षणकर्ताओं के साथ संबंध जोड़े थे, क्योंकि उस समय तेज औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों जैसे आईटीआई की संख्या बहुत कम थी। लेकिन एनएसडीसी के 3-4 महीने के संक्षिप्त कोर्स आईटीआई के 1-2 साल के कोर्स की तुलना में एक बड़ी चुनौती हैं जिससे निपटा जाना अनिवार्य है।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2016-17 में कार्यक्रम फंड का सही ढंग से प्रयोग नहीं हुआ और आवंटित धन के केवल 56 प्रतिशत का प्रयोग हो पाया। हालांकि, इन आंकड़ो में वर्ष 2020-21 में व्यषपक सुधार हुआ और यह बढ़ कर 98 प्रतिशत हो गया, परन्तु वर्ष 2021-22 में यह फिर से गिरकर 22 प्रतिशत पर आ गया। लोकसभा स्थाई समिति के अनुसार कोविड-19 के कारण प्रशिक्षण व प्लेसमेंट आपरेशन को स्थगित रखना पड़ा, जिससे भर्ती तथा प्रमाणन में काफी कमी आई। इसके परिणामस्वरूप पैसे का आवंटन और उसके प्रयोग में कमी आई।

ऐसे में अब उम्मीद की जा रही है कि जनवरी, 2023 से लागू पीएमकेवीवाई 4.0 के अंतर्गत जारी प्रशिक्षण एवं इसके पूरे होने तक इसके खर्च में भी बढ़ोत्तरी होगी। वर्ष 2008 में स्थापित एनएसडीसी साझा प्रशिक्षकों के साथ कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रमों में सहयोग करती है, लेकिन उद्योगों की सहभागिता तथा एनएसडीसी व उद्योगों के बीच समुचित संपर्कों का अभाव दूर किया जाना भी जरूरी है।

वर्तमान कौशल विकास कार्यक्रम कौशल की वास्तविक मांगों के अनुरूप नहीं है, जिससे प्रशिक्षण व स्थानीय आर्थिक आवश्यकताओं में असंगति पैदा होती है। इसके कारण प्रदान किए जाने वाले कौशलों तथा बाजार की आवश्यकताओं में भी काफी अंतर है जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है। प्रशिक्षण की गुणवत्ता तथा खास कौशल का चयन बाजार मानकों के अनुरूप ही होना चाहिए। परन्तु दुर्भाग्य से कौशल केन्द्र व्यावहारिक प्रशिक्षण के लिए उपयुक्त तरीकों से लैस नहीं है जिसके कारण सैद्धान्तिक प्रशिक्षण को बहुत कम प्रायोगिक अवसर मिल पाते है यह अस्वीकार्य है और इस खाई को दूर करने के कदम तत्काल उठाए जाने चहिए।

लोकसभा की स्थाई समिति ने इस संबंध-विच्छेद को रेखांकित करते हुए सुझाव दिया है कि आवश्यकताओं को बेहतर ढंग से समझने के लिए उद्योग प्रतिनिधियों का सर्वेक्षण किया जाना चाहिए। अब समय आ गया है कि कौशल विकास कार्यक्रमों को उद्योगों की आवश्यकताओं से जोड़ना सुनिश्चित किया जाए तथा दिए जाने वाले कौशल व बाजार आवश्यकताओं के बीच की गहरी खाई को पाटा जाए।

                                                                  

इंडियन इंस्टीट्यूट आफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन द्वारा वर्ष 2016 तथा वर्ष 2021 के बीच कराए एक अध्ययन से स्पष्ट होता है कि पीएमकेवीवाई में पंजीकृत 20 प्रतिशत उम्मीदवारों ने बीच में ही इसे छोड़ दिया। इसके विभिन्न कारण जैसे चिकित्सकीय मुद्दे, परिवार की जिम्मेदारियां, सामाजिक चुनौतियां, आजीविका की बढ़ती मांग, रोजगार के सीमित अवसर तथा कौशल में ठहराव का आना मुख्य रहें है। तो वहीं महिला उम्मीदवारों का ड्रापआउट रेट गर्भावस्था या विवाह आदि भी इसके कारण थे।

इस स्थाई समिति के द्वारा सुझाव दिया कि मंत्रालय को उम्मीदवारों के ड्रापआउट के कारणों को तत्काल संबोधित करना चाहिए। जिनमें प्रशिक्षण केन्द्रों की दूरी तथा रोजगार तक पहुंच आदि भी शामिल हैं।

महिला ड्रापआउट के लिए समिति का सुझाव था कि मंत्रालय को आशा और आंगनबाड़ी केन्द्रों से संपर्क कर कौशल के लाभों के बारे में जागरूकता पैदा करनी चाहिए तथा महिलाओं को प्रसव के बाद यथाशीघ्र ही इनमें शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। भारत के सभी जिलों में 818 प्रधानमंत्री कौशल केन्द्रों- पीएमकेकेएस में से अब तक केवल 722 ही स्थापित हो पाए हैं तथा यह स्थिति भी अस्वीकार्य ही है। बाकी केन्द्रों में से 58 पीएमकेकेएस को निजी बैंडरों द्वारा आपरेशनल कठिनाइयों के कारण सरकार को वापस कर दिया गया। इस मुद्दे पर भी सरकार को तत्काल ध्यान देना चाहिए।

सक्षम प्रशिक्षकों की कमी भी अनेक केन्द्र आपरेशनल नहीं हो पाए हैं। इस समस्या के समाधान के लिए सरकार को पीएमकेवीवाई 4.0 के अंतर्गत राष्ट्रीय आंकलनकर्ताओं व प्रशिक्षकों का एक पूल बनाना चाहिए। सरकार को यह सुनिश्चित करने के आवश्यक कदम उठाने चाहिए कि पीएमकेवीवाई कार्यक्रम एक कुशल कार्यबल गठित करने तथा भारत में बेरोजगारी घटाने में सफल हो सके।

विभिन्न आर्थिक व रोजगार इतिहास के चलते राज्यों की भिन्नतायें सीमित राज्य सहभागिता का ही एक कारण है। कृषि कार्यबल पर निर्भरता के चलते कुछ राज्य महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के ऊपर ज्यादा निर्भर रहते हैं, तो वहीं महाराष्ट्र या तमिलनाडु जैसे राज्यों में रोजगार के ज्यादा अवसर भी उपलब्ध हैं। इसलिए स्थानीय मांग-आधारित दृष्टिकोण अपनाने की महती आवश्यकता है जिससे कि रोजगार योजनाओं का विस्तार महानगरों से दूसरे और तीसरे दर्जे के शहरों तक भी किया जा सके।

                                                             

इससे खास क्षेत्रीय चुनौतियों से निपटने में आसानी होगी। वर्ष 2016-20 में पीएमकेवीबाई ने राज्य सहभागिता शुरू की थी जिससे कि प्रशिक्षण को स्थानीय आवश्यकताओं और महत्वकांक्षाओं के अनुरूप ढाला जा सके, लेकिन इस मॉडल में अनेक समस्यायें सामने आई। आनलाइन प्रबंधन आवश्यक होने के कारण केवल 15 राज्य व संपशासित क्षेत्र ही केन्द्र सरकार के साथ समन्वय स्थापित कर सके।

इस व्यवस्था का विस्तार देश के सभी राज्यों तक करने की आवश्यकता है ताकि कार्यक्रम सुगमता से संचालित किया जा सके। कार्यक्रम की प्रभावशीलता बढ़ाने के लिए पीएमकेवीवाई को उद्योगों से जोड़ा जाना भी बहुत जरूरी है। इससे कौशल प्रशिक्षित उम्मीदवारों को रोजगार मिलना सुनिश्चित होगा। अब असमय आ गया है कि कार्यक्रम के समक्ष उपस्थित चुनौतियों से निपटने के लिए कुछ साहसी कदम उठाए जाए ताकि इसकी लक्ष्य प्राप्ति सुनिश्चित की जा सके।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।