मिर्गी का होम्योपैथिक उपचार

                                 मिर्गी का होम्योपैथिक उपचार

                                                                                                                                                     डॉ0 राजीव सिंह एवं मुकेश शर्मा

मिर्गी एक न्यूरोलॉजिकल रोग है जो प्रभावित व्यक्ति के मस्तिष्क एवं नसों को प्रभावित करती हैं, इससे ग्रस्त व्यक्ति को अक्सर सीजर्स अथवा दौरे पड़ते हैं। अधिकतर केसों में दौरों के कारणों की पहिचान नही हो पाती है। मिर्गी का रोग किसी प्रकार की मानसिक मन्दता संकेत नही होता है और कोई संक्रमक रोग भी नही है अर्थात यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को लगने वाला रोग नही है। प्रायः देखा गया है कि लगभग 50 प्रतिशत बच्चे व्यस्यक होने तक इस रोग की जद से बाहर निकल जाते हैं।  मिर्गी के दौरान प्रभावित व्यक्ति को या तो जनरलाइज्ड सीजर (इसमें व्यक्ति का पूर्ण मरिस्तष्क अथवा मस्तिष्क का एक बड़ा भाग प्रभावित होता है) या फिर फोकल अथवा मस्तिष्क का कोई विशोष भाग प्रभावित होता है।

                                                                                

जनरलाइज्ड एब्सेंस सीजर अर्थात इस प्रकार के दौरे में व्यक्ति कुछ सेकेण्ड्स के लिए अपने होश को बिल्कुल खो देता है। आमतौार पर यह बचपन में शुरू होते हैं लेकिन कुछ परिस्थितियों में व्यस्यकों में भी यह हो सकता है जिनमें ये दौरे कम अवधि के रहते हैं। घूरना, चेहरे के भावों का कम हो जाना, प्रतिक्रिया व्यक्त नही कर पाना तथा अचानक काम करते हुए रूक जाना आदि एब्सेंस सीजर के सामान्य लक्षणों में होते हैं और प्रभावित व्यक्ति जल्द ही दौरे से बाहर आ जाता है, परन्तु उसे अपने दौरे के बारें में कुछ भी याद नही होता है।

जनरलाइज्ड टॉनिक-क्लोनिक सीजर के दौरान अचानक बेहोश हो जाने के साथ उसकी मांसपेशियों में अकड़न के बाद झटके लगना आरम्भ हो जाते हैं। इसी प्रकार अन्य लक्षण जैसे- त्वचा का लाल या नीला हो जाना, जीभ को काटना, पेशाब को नही रोक पाना, और भ्रम की स्थिति का होना आदि भी जनरलाइज्ड-क्लोनिक सीजर के दौरान होना आम बात होती है। फोकल सीजर, जिसे आंशिक दौरे के रूप में भी जाना जाता है, प्रभावित व्यक्ति के मस्तिष्क के कुछ भाग को ही प्रभावित करता है। इसके अन्तर्गत शरीर का असामान्य रूप से हिलना, असामान्य भावनाएँ तथा व्यवहार जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।

अधिकतर मामलों में मिर्गी के कारणों का पता नही चल पाता है। हालांकि सर की चोट, संक्रमण अथवा मस्तिष्क में ट्यूमर का स्ट्रॉक, मादक द्रव्यों का अत्याधिक सेवन तथा आनुवांशिक जैसे कारकों को सम्भावित कारणों के रूप में देखा जाता है।

                                                               

मिर्गी की जाँच के लिए चिकित्सक प्रभावित व्यक्ति की पूरी मेडिकल हिस्ट्री लेते हैं तथा दौरे पड़ने से सम्बद्व लक्षणों के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं और इसके लिए तंत्रिका तन्त्र की जाँच भी की जाती है। इलेक्ट्रोएन्सेफ्लोगा्रफी (ईईजी) तथा एमआरआई मस्तिष्क के कार्य करने की निगरानी और मस्तिष्क की विस्तृत छवियों को प्राप्त कर मिर्गी की जाँच के लिए उपयोगी टेस्ट होते हैं।

आमतौर पर मिर्गी, व्यक्ति के मस्तिष्क की तंन्त्रिका की कोशिकाओं को प्रभावित करती है तथा असामान्य विद्युत संकेतों को ट्रिगर करती है, जिसके कारण शरीर में झटके लगते हैं तथा मांसपेशियों में अकड़न आ जाती है। यह स्थिति बच्चों एवं व्यस्यकों को समान रूप से प्रभावित करती है।

मिर्गी के उपचार में प्रयोग की जाने वाली पारम्परिक दवाईयों में, भूलने की बीमारी, बेचैनी एवं कभी-कभी सुस्ती जैसे दुष्प्रभाव भी होते हैं। इसके विपरीत मिर्गी के उपचार हेतु उपयोग की जाने वाली होम्योपैथिक दवाईयाँ प्रभावित व्यक्ति की क्लिीनिकल हिस्ट्री पर ध्यान केन्द्रित करती हैं, जिनका दुष्प्रभाव भी बहुत कम होता है। यह होम्योपैथिक दवाएं उन ट्रिगर्स को ध्यान में रखते हुए दी जाती हैं जो कि मिर्गी के दौरे का कारण बनते हैं। इसलिए यह मिर्गी को दोबारा होने से रोकने के लिए भी कारगर होती हैं।

मिर्गी के उपचार हेतु उपयोग की जाने वाली कुछ चुनिंदा होम्योपैथिक दवाईयाँ उनके लक्षण सहित-

                                                                 

1. आर्टिमिसिया वल्गैरिस

  सामान्य नामः मगवोर्ट

  लक्षणः  यह दवाई निम्नलिखित लक्षणों में अच्छा कार्य करती है-

  • डरावनापन
  • मिर्र्गी के दौरे से पूर्व उत्तेजना अपने चरम पर
  • बेचैनी
  • दौरे के दौरान जबड़े का भिंच जाना
  • शरीर में ऐंठन के दौरान अपनी जीभ को काटना
  • ऐंठन के दौरान मुँह में झाग आना
  • बोलने में अस्पष्टता
  • दाँतों को पीसना
  • दौरे के दौरान पेशाब का अपने आप निकल जाना
  • रोगी की छाती में कम्पन होना
  • अंगूठों का जकड़ना
  • हाथ-पैरों बायीं तथा ऐंठन के दौरान दायीं ओर का पैरालाइसिस
  • हाथ-पैरों में झटके लगना
  • हाथ-पैरों में झटकों के साथ खिंचाव तथा उसके दूसरी तरफ का पैरालासिस
  • रात के समय ऐंठन
  • झटके लगने के साथ ऐंठन

2. ऐगारिकस मस्केरियस

सामान्य नामः एमानिटा

लक्षणः जिन रोगियों में ऐसे लक्षण दिखाई देते हैं उनके लिए यह दवाई कारगर है-

  • मिर्गी के दौरे के दौरान पीछे की तरफ इस प्रकार से गिरना मानों सिर में पीछे की ओर कोई वजन रखा हो।
  • सिर का दर्द जैसे कि बर्फीली सुईयों से छेद किए जा रहे हों
  • हाथ-पैरों में अकडन
  • निचले अंगों में पैरालाइसिस
  • हाथों में ऐंठन
  • पैरो को एक दूसरे पर रखने के बाद उनमें सुन्नपन आना
  • रोगी के बायें हाथ में लकवे वाला दर्द
  • रोगी के निचले अंगों में कम्पकपी एवं झटके लगना
  • रोगी के पैरों में भारीपन एवं थकान
  • शरीर के विभिन्न भागों की मांसपेशियों में लगातार झटके लगना
  • रोगी को ऐसा अनुभव होता है कि उसके शरीर के अंग उससे सम्बन्धित नही हैं।
  • मंसपेशियों का बहुत तेजी के साथ फड़कना
  • रोगी जब जागृत अवस्था में होता है उस समय मांसपेशियों का अपने आप ही हिलना
  • रोगी के पूरे शरीर में कम्पन होना
  • प्रातः काल अथवा सूर्य की रोशनी के साथ लक्षणों का बढ़ना

3. ब्यूफो राना

समान्य नामः पॉइजन ऑफ द टोड

लक्षणः ब्यूफो राना नामक दवाई मिर्गी के निम्न लक्षणों में लाभ देती है-

  • मिर्गी के दौरों के समय गर्दन के पिछले भाग में झटके लगना
  • रोगी की अंगुलियों में संकुंचन
  • रोगी के हाथ बहुत आसानी के साथ सो जाते हैं।
  • मिर्गी का दौरा पड़ने से पहले रोगी की जीभ का हिलना
  • मिर्गी के दौरे आमतौर पर रात के समय अथवा पीरियड्स के समय ही पड़ते हैं।
  • शरीर के निचले अंगों की कमजोरी
  • मिर्गी के दौरे के दौरान रोगी के शरीर में सूजन
  • रोगी के हाथों में दर्द होना
  • मिर्गी के दौरे से पहले अँगूठे को पेट के निचले हिस्से की ओर लेकर जाने की प्रवृत्ति
  • जब लक्षण गर्म वातावरण में बढ़ जाते हैं ठण्ड़े पानी में पैरों को रखने अथवा ठण्ड़े वातावरण में लक्षणों में कुछ सुधार

4. बेलाडोना

लक्षणः बेलाडोना का उपयोग निम्न लक्षणों में किया जाता है-

  • रोगी की बाहों में दर्द और सुन्नपन रहता है।
  • रोगी की बाहों में लगातार खिंचाव होना
  • रोगी के हाथों में भारीपन होना
  • रोगी के पैरों में जलन वाला दर्द होना
  • रोगी की श्रोणी के आसपास वाले भाग में अकड़न
  • रोगी में बिना किसी कारण लँगड़ाहट उत्पन्न होना
  • रोगी के पैरों में सूजन होना
  • रोगी के पैरों में भारीपन तथा पैरालाइसिस
  • रोगी की मांसपेशियों में कम्पन तथा टेंडन में झटकों के साथ विभ्न्नि अंगों का झटको के साथ हिलना
  • मिर्गी के दौरे के साथ अंगूठे को पीछे की ओर खींचना
  • रोगी बिलकुल भी नही हिल पाता है, अर्थात ऐंठन वाली अकड़न
  • रोगी के एक ही अंग में अकडन होती है।
  • अपने आप ही हंसी आने के साथ ही ऐंठन वाला अटैक
  • रोगी के अंगों में पैरालाइसिस
  • रोगी के अंगों में सिहरन
  • मिर्गी के दौरे जो कि मामूली स्पर्श से दोबार हो सकते हैं।
  • कमजोरी के साथ शरीर में कम्पन होना
  • स्पर्श या अत्याणिक शोर तथा लेट जाने के बाद लक्षणों में वृद्वि
  • आधी-सीधी स्थिति में बैठने से स्थिति बेहतर होती है।

5. सिक्यूटा विरोसा

सामान्य नामः काउबैन

लक्षणः मिर्गी से रोग से प्रभावित व्यक्ति में निम्न लक्षण का उपचार सिक्यूटा विरोसा के माध्यम से किया जाता है-

  • मामूली परिश्रम के बाद भी अंगों में बहुत कमजोरी का आना
  • अंगों का कांपना
  • अंगों में डर के झटके लगना
  • अंगुलियों में सुस्ती
  • रोगी के अंगों का अपने आप ही हिलना तथा उनमें झटके लगना
  • चेहरे के पीलेपन और जबड़े के भिचनें के साथ मिर्गी के दौरे पड़ना।
  • शरीर के अंगों में दर्द
  • सिर,, हाथ और पैरों में झटके लगना।
  • पीठ में दर्द

6. कैमोमिला

सामान्य नामः जर्मन कैमोमाइल

लक्षणः नीचे दिये गये लक्षणों में इस दवा का उपयोगी

  • सिर मे पीछे की ओर झटकने के साथ ही पीठ में ऐंठन
  • गले की मांसपेशियों में अकड़न
  • रोगी के जोड़ों में दर्द
  • रोगी के अंगों में ऐंठन वाले झटके
  • रोगी के हाथों में सुन्नपन तथा अकड़न
  • रात में बाहों में दर्द के साथ पैरालाइसिस से जुड़ी कमजोरी
  • रोगी का अपने अंगूठे को खीचना
  • रोगी की अंगुलियों में ऐंठन
  • रोगी को पैरों की अंगुलियों में सुन्नता का अनुभव होता है
  • रोगी के कूल्हों तथा जाँघों में लकवे से जुड़ा दर्द जो रात के समय बढ़ जाता है
  • पूरे शरीर में कमजोरी और गिरने की आशंका होना
  • रोगी के हाथ-पैरों का ठण्ड़ा होना तथा आधी बन्द आँखों के साथ मिर्गी के दौरे पड़ना
  • मिर्गी की ऐंठन के साथ मुँह में झाग के बाद की सुस्ती
  • आँखों, पलकों, तथा चेहरे की मांसपेशियों में ऐंठन
  • गर्मी के सम्पर्क में आने पर, गुस्सा आने पर और रात के दौरान लक्षणों का बढ़ जाना
  • आमतौर पर गर्म अथवा गीले मौसम में रहने से लक्षणों में सुधार आना

7. कोनियम मैकुलेटम

सामान्य नामः पॉइजन हेमलॉक

लक्षणः निम्न लक्षणों के उपचार के लिए इस दवा का उपयोग किया जाता है-

  • रोगी के हाथों में कंपकंपी का होना
  • रोगी के हाथ एवं पैरों में पैरालाइसिस
  • मांसपेशियों में कमजोरी
  • अंगों का उपयोग करने में कठिनाई उत्पन्न होना
  • रोगी का चलने में असमर्थ होना
  • रोगी के चलते समय दाहिनी जाँघ में कंपकंपी होना
  • बीमार अनुभव करना और प्रातः काल बेहोशी
  • बिस्तर पर लेटते हुए, पलटते हुए, उठते हुए या मानसिक परिश्रम से लक्षणों का बढ़ना
  • रोगी को अपने अंगों को लटकाने अथवा दबाने से आराम मिलता है

8. हायोसियामस नाइजर

सामान्य नामः हेनबैन

लक्षणः किसी रोगी में निम्न लक्षणों के दिखाई देने पर हायोसियामस नामक दवा से उपचार किया जाता है-

  • बाहों को हिलानें तथा शाम के कंपकंपी का होना
  • रोगी के हाथों में सुन्नता एवं अकड़न के साथ दर्द का होना
  • रोगी के हाथों में सूजन होना
  • रोगी के हाथों में पैरालाइसिस
  • रोगी की जाँघों में ऐंठन के साथ मांसपेशियों में संकुचन होना
  • चलते समय या पैरों को उठाते समय पैरों की अंगुलियों में होने वाला संकुचन
  • रोगी को अपने अंगों तथा जोड़ों में सुस्त खिंचाव का अनुभव करना
  • रोगी का अपने हाथों और पैरों को झटकना
  • रोगी को अकड़न एवं ऐंठन के साथ पानी वाले दस्तों का होना
  • रोगी के पूरे शरीर में ऐंठन
  • सिर में जमाव के साथ मिर्गी की ऐंठन
  • रोगी को मिर्गी के दौरों के बाद बहुत गहरी नींद आती है
  • मिर्गी के दौरों के दौरान चेहरे पर सूजन और रोगी का रंग नीला पड़ जाता है
  • मिर्गी का दौरा पड़ने के दौरान रोगी के मुँह से झाग आना
  • मिर्गी के दौरों के दौरान दाँतों को पीसना और अंगूठे को पीछे की ओर खींचना
  • बेहाशी के दौरों का आना
  • रात में खाने के बाद और लेटते समय लक्षणों का बढ़ जाना

9. नक्स वोमिका

सामान्य नामः पॉइजन नट

लक्षणः होम्यौपैथिकी में नक्स वोमिका नामक दवा का व्यवहार निम्न लक्षणों के अनुसार किया जाता है-

  • रोगी के हाथ एवं पैरों का अक्सर सो जाना
  • रोगी के पैरों में झटके लगना
  • रोगी का अपने हाथ एवं पैरों को झटकना
  • रोगी को अपने अंगों में पैरालाइसिस होने का अनुभव होता है
  • सुबह के समय रोगी अपने हाथ एवं पैरों में ताकत कम होना महसूस करता है
  • सुबह के समय अथवा मानसिक परिश्रम के साथ लक्षणों का बढ़ना
  • आराम करने के समय तथा नम एवं गीले मौसम में रोगी बेहतर महसूस करता है

10.  प्लम्बम मेटैलिकम

  सामान्य नामः लीड

  लक्षणः इस दवा का उपयोग निम्नलिखित लक्षणों के अन्तर्गत किया जाता है-

  • रोगी के हाथों और बाहों में ऐंठन के साथ ही जोड़ों में दर्द रहता है।
  • रोगी के जोड़ों में दर्द
  • रोगी को अंगुलियों को चलाने में भी परेशानी का अनुभव होता है।
  • रोगी की जाँघों एवं पैरों में पैरालाइसिस
  • रोगी के पैरों में सुन्नता
  • रोगी के अंगों में दर्द जो कि रात के समय बढ़ जाता है।
  • रोगी के अ्रगों में संकुचन वाला दर्द होना
  • रोगी के अंगों में ऐंठन वाले झटके लगते हैं
  • बेहोशी में ही रोगी को मिर्गी के दौरे पड़ जाते हैं
  • रोगी को अंगों में कम्पन के साथ बहुत अधिक थकावट महसूस होती है
  • रोगी के जोड़ों में सूजन आ जाती है
  • रात्री के समय चलने-फिरने से लक्षणों का बढ़ना

11. स्ट्रामोनियम

सामान्य नामः थोर्न एपल

लक्षणः निम्नलिखित लक्षणों वाले रोगियों का उपचार स्ट्रामोनियम के द्वारा किया जाता है-

  • रोगी के हाथ एवं पैरों में झटके लगना
  • रोगी के अंगों में कंपकंपी, जो कि अक्सर सो जाते हैं
  • रोगी के अंगों में ऐंठन होना
  • ऐंठन के दौरान रोगी के हाथों में विकृति उत्पन्न हो जाती है और वह अपनी मुट्ठियों को भींचता है।
  • रोगी की अंगुलियाँ सुन्न हो जाती हैं
  • बेहोशी के आए बिना ही मिर्गी की ऐंठन होना
  • ऐंठन के दौरान पसीना आने के बाद रोगी को गहरी नींद आ जाती है
  • अकेले रहने अथवा सोने के बाद लक्ष्णों का बढ़ना
  • जब रोगी किसी के साथ अथवा गर्म वातावरण के सम्पर्क में रहता है तो उसके लक्षण बेहतर हो जाते हैं।

  होम्योपैथिक दवाईयों की दक्षता को बढ़ानें के लिए रोगी की दिनचर्या तथा दैनिक गतिविधियों में निम्नलिखित उपायों को शामिल करने से परिणाम शीघ्र एवं अच्छे आते हैं-

                                                            

  • रोगी को रोजाना जॉगिंग अथवा योग जैसे शारीरिक व्यायाम करने की आवश्यकता है।
  • रोगी उनकी स्वयं की स्वच्छता के साथ उनके आसपास के स्थानों की सफाई का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए।
  • रोगी को हवादार एवं आरामदायक कपड़े पहिनना चाहिए।
  • रोगी प्रयास करें कि वे सदैव सही मुद्रा में उठे और बैठें।
  • रोगी को अधिक मसालेदार खाना एवं प्रोसेस्ड फूड का सेवन करने से बचना चहिए।
  • रोगी को प्याज, लहसुन तथा हींग आदि उत्तेजक पदार्थों का सेवन नही करना चाहिए।
  • रोगी शराब आदि का प्रयोग न करें।
  • किसी भी कृत्रिम सुगन्ध जैसे परफ्यूम तथा रूम फ्रेशनर आदि का उपयोग नही करना चाहिए।
  • रोगी को असहज एवं अधिक टाईट कपड़ें पहिनने से परहेज करना चाहिए।

लेखक: मुकेश शर्मा होम्योपैथी के एक अच्छे जानकार हैं जो पिछले लगभग 25 वर्षों से इस क्षेत्र में कार्य कर रहे हे। होम्योपैथी के उपचार के दौरान रोग के कारणों को दूर कर रोगी को ठीक किया जाता है। इसलिए होम्योपैथी में प्रत्येक रोगी की दवाए दवा की पोटेंसी तथा उसकी डोज आदि का निर्धारण रोगी की शारीरिक और उसकी मानसिक अवस्था के अनुसार अलग-अलग होती है। अतः बिना किसी होम्योपैथी के एक्सपर्ट की सलाह के बिना किसी भी दवा सेवन कदापि न करें।

डिसक्लेमरः प्रस्तुत लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं।