जलवायु परिवर्तन से धान और गेहूं की फसल को ज्यादा खतरा

                       जलवायु परिवर्तन से धान और गेहूं की फसल को ज्यादा खतरा

                                                                                                                                  डॉ0 आर. एस. सेंगर, डॉ0 रेशु चौधरी एवं मुकेश शर्मा

                                                                     

दुबई में जारी जलवायु वार्ता में जलवायु संकट से निपटने के उपायों पर मुख्य रूप से चर्चा की जा रही है। तो वहीं एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन के कारण भारत के कृषि क्षेत्र के लिए भी एक गंभीर संकट पैदा हो गया है। जिसके कारण धन और गेहूं की फसलों को सबसे ज्यादा खतरा हो सकता है, यह बात 2023 में जलवायु परिवर्तन पर आयोजित सम्मेलन के दौरान सामने आई हैं।

क्लाइमेट ट्रेंड्स की ताजा रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 1950 से अब तक देश में ग्रीष्मकालीन मानसूनी बारिश में 6 प्रतिशत तक की गिरावट दर्ज की गई है। यह एक चिंता की बात यह है कि देश के मध्य क्षेत्र में जहां की 60 प्रतिशत खेती बारिश पर ही निर्भर है, वहां यह कमी और भी ज्यादा दर्ज गई है। इस रिपोर्ट में बदलते ग्रीष्मकालीन मानसून के प्रति, भारत की कृषि की संवेदनशीलता को दर्शाने वाले विभिन्न साक्ष्य भी जुटाए गए हैं। यह कृषि पर अत्यधिक निर्भर अर्थव्यवस्था के लिए बेहद महत्वपूर्ण है और कृषि में होने वाले नुकसान में चावल और गेहूं की फसल की पैदावार में कमी आना भी शामिल है।

ताजा विश्लेषण से पता चला है कि ग्रीन हाउस गैसों और मानव जनित प्रदूषण को सीमित करने से 1985 से 1998 के दौरान चावल की फसल की पैदावार में 14 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती थी, लेकिन यह संभव नहीं हो सका।

भारत के कई प्रदेशों में पैदावार घटी

                                                                   

असोम, बिहार, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में जलवायु परिवर्तन ने 1966 से 2002 की अवधि में चावल की फसल के उत्पादन को लगभग 6 प्रतिशत तक कम कर दिया है। इसके अतिरिक्त जून, जुलाई, 2023 में अनियमित मानसून के कारण खरीफ फसल की बुवाई में देरी हुई। पिछले वर्ष की तुलना में 9 प्रतिशत कम बुवाई हुई है। अतः इससे भी अनुमान लगाया जा सकता है कि फसलों की पैदावार में 6 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है।

चुनौतियां बढी

क्लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक, आरती खोसला ने कहा कि जहां लंबी अवधी में मानसूनी बारिश में कमी आई है, वहीं गर्मी, सुखा और बाढ़ जैसी चरम घटनाओं ने कृषि के लिए चुनौतियां बढ़ा दी है। पिछले जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक संवेदनशील इन पैटर्न में आए बदलाव भारत की अर्थव्यवस्था और खुशी को वृहद और सूक्ष्म दोनों पर ही प्रभावित करते है।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।