गन्ने में रोग नियन्त्रण की जैविक विधि

                                                                      गन्ने में रोग नियन्त्रण की जैविक विधि 

                                                                                                                                                  डॉ0 आर. एस. सेंगर एवं मुकेश शर्मा

                                                                           

किसान भाई अपनी फसलों को रोगों से बचाने के लिए कई तरह की रासायनिक दवाओं का उपयोग करते है, जिससे फसल की लागत बढ़ जाती है, लेकिन फसलों में इसका प्रभाव भी किसी न किसी रूप में बना रहता है। आधुनिक तकनीकी की बात करें, तो किसानों के लिए फसलों में ट्राईकोडर्मा का उपचार करना बहुत ही लाभदायक होता है। इसके साथ ही इसकी कीमत और लागत भी रासायनिक दवाईयों से काफी कम होती है।

ट्राईकोडर्मा से उपचार करने के लिए लगभग 5 से 10 ग्राम ट्राइकोडर्मा को लगभग 25 मिली लीटर पानी में घोल लें और इस घोल को एक किलोग्राम बीज को शोधित करने के लिए उपयोग करें। इसके अलावा धान की नर्सरी और अन्य कन्द वाली फसलों में लगभग 10 ग्राम ट्राइकोडर्मा का घोल एक लीटर पानी में बना लें। अब इस घोल में नर्सरी पौध को आधे घंटे तक भीगों दें और इसके बाद उपचारित पौध की रोपाई कर दें। तो वहीं 1 किलो ग्राम ट्राइकोडर्मा सौ लीटर पानी में घोल लें। इसका छिड़काव प्रति एकड़ खेत करें. अगर भूमि शोधन करता है, तो लगभग 1 किलो ग्राम ट्राइकोडर्मा, 100 किलो ग्राम गोबर की खाद में मिलाकर, इसको लगभग एक सप्ताह तक छाया में रख दें।

अब प्रति एकड़ के हिसाब से इसे अपने खेतों की मिट्टी में मिला दें। अतः किसान भाई इस विधि को अपना कर फसल का उत्पादन अच्छा प्राप्त कर सकते है।

ट्राईकोडमा के उपयोग में अपेक्षित सावधानियाँ

                                                                           

यदि किसान भाई ट्राईकोडमा का प्रयोग खेत की मिट्टी में उपयोग किया है, तो लगभग 4 से 5 दिन बाद तक इसमें किसी भी रासायनिक फफूदीनाशक का उपयोग नहीं करना चाहिए।

  • सूखी मिट्टी में ट्राईकोडर्मा का उपयोग नहीं करना चाहिए।
  • ट्राईकोडर्मा के विकास और अस्तित्व के लिए नमी बहुत आवश्यक होती है।
  • ट्राईकोडर्मा उपचारित बीज को अधिक तेज धूप में नहीं रखना चाहिए।
  • ट्राईकोडर्मा द्वारा उपचारित गोबर की खाद को अधिक समय तक नहीं रखना चाहिए।
  • ट्राईकोडमा का उपयोग क्षारीय भूमि में कम लाभदायक होता।
  • ट्राइकोडर्मा विरडी एक कवक और एक जैव कवकनाशी है ।

                                                     

ट्राइकोडर्मा विरडी

ट्राइकोडर्मा विरडी कोनिडियोफोरस

वैज्ञानिक वर्गीकरण

साम्राज्यः कवक

विभाजनः असोमाइकोटा

कक्षाः सोर्डारियोमाइसीट्स

आदेशः हाइपोक्रेलेस

परिवारः हाइपोक्रेसी

जीनसः ट्राइकोडर्मा

प्रजातियांः टी. विराइड

द्विपद नाम

ट्राइकोडर्मा विरडी

पर्स।, (1794)

                                                      

समानार्थी शब्द

Hypocrea Contorta (Schwein I) और एमए कर्टिस, (1875)

हाइपोक्रिआ रूफा ( र्प ।) फ्र।, सुम्मा शाकाहारी।

स्कैंड ।, (1849) हाइपोक्रीया रूफा एफ I Sterilis Rifai एंड जे वेबस्टर, (1966)

Hypocrea Rufa रूफा (फार.) फादर, सुम्मा शाकाहारी।

स्कैंड ।, (1849) पाइरेनियम लिग्नोरम टोड, (1790)

स्पैरिया कॉन्टोर्टा श्विन ।, (1832)

स्पैरिया रूफा पर्स।, (1796)

ट्राइकोडर्मा लिग्नोरम (टोड) हार्ज़, (1871)

ट्राईकोडमा का उपयोग बीज और मिट्टी के उपचार के लिए कवक रोगजनकों के कारण होने वाले विभिन्न रोगों के दमन के लिए किया जाता है ।

ट्राइकोडर्मा हार्ज़ियानम एक कवक है जिसका उपयोग कवकनाशी के रूप में भी किया जाता है। इसका उपयोग पर्ण आवेदन, बीज उपचार और विभिन्न रोगों के दमन के लिए मिट्टी के उपचार के लिए भी किया जाता है जो कवक रोगजनकों का कारण बनते हैं। इस तरह के 3Tac के रूप में वाणिज्यिक जैव प्रौद्योगिकी उत्पादों के इलाज के लिए उपयोगी किया गया है। Botrytis , Fusarium और पेनिसिलियम spl [1], इसका उपयोग एंजाइम बनाने के लिए भी किया जाता है ।

                                                               

ट्राइकोडर्मा हर्जियानम

वैज्ञानिक वर्गीकरण

साम्राज्यः कवक

विभाजनः असोमाइकोटा

कक्षाः सोर्डारियोमाइसीट्स

आदेशः हाइपोक्रेलेस

परिवारः हाइपोक्रेसी

जीनसः ट्राइकोडर्मा

प्रजातियांः टी. हरजियानम

द्विपद नाम

ट्राइकोडर्मा हर्जियानम

रिफाई

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।