उत्तर भारत में गन्ने की पैदावार आखिर कम क्यों

उत्तर भारत में गन्ने की पैदावार आखिर कम क्यों

डॉ0 आर. एस. सेंगर, डॉ0 शलिनी गुप्ता एवं मुकेश शर्मा

गन्ने की पैदावार बढ़ाने के लिए नई प्रजातियों एवं तकनीकों का समावेश कर उत्पादन बढ़ाए गन्नें के उत्पादन में भारत का एक विशेष स्थान है जिसके फलस्वरूप किसान आज भी गन्ने का उत्पादन करने में काफी रूचि रखते हैं। उत्पादन की दृष्टि से देखा जाए तो देश के विभिन्न क्षेत्रों में इसकी उत्पादकता भिन्न-भिन्न है। उत्तर भारत में इसकी उत्पादकता जहां 30 से 35 टन प्रति एकड़ है वहीं मध्य भारत जैसे महाराष्ट्र में 60 से 70 टन प्रति एकड़ से भी अधिक है। उत्तर भारत में गन्ने की कम उत्पादकता के विभिन्न कारण हैं जैसे बीज का जमाव अंकुरण कम होना पौधों की संख्या पर्याप्त से कम होना पौधों की बढ़वार कम होना फसल का गिर जाना फसल में खरपतवार ओं का प्रकोप होना एवं फसल पर कीड़ों एवं बीमारियों का अधिक प्रकोप होना उपरोक्त प्रजाति का चुनाव करें।

गन्ने से कैसे बढ़ाएं किसानों की आय

बीज का अंकुरण जमाव प्रतिशत बढ़ाएं, सही बीज का चुनाव करें, बुवाई की सही विधि को अपनाएं संतुलित उर्वरक का प्रयोग करें, गन्ने के साथ सहफसली खेती करें आदि।

बीज का अंकुरण जमाव प्रतिशत कैसे बढ़ाएं

बीज के कम जमाव के कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं जिनपर ध्यान देने की आवश्यकता है-

पूरे साबुत गन्ने की बुवाई, कीड़े तथा बीमारी के बीजों की बुवाई, गन्ने की जड़ निकली हुई पोरियों को बोना, बीज की देरी से बुआई करना, खेत में गहरी बुआई करना, जमीन में नमी की कमी या फिर अधिकता का होना, बुवाई के समय उर्वरकों के सीधे प्रयोग से गन्ने की आंखों को क्षति पहुंचाना, गन्ने के निचले एवं तिहाई भाग को भी बीज के रूप में प्रयोग करना, आदि।

बीज का चुनाव कैसे करें-

कीड़े से प्रभावित गन्ना निकाल दें, बीमारी अथवा रोग से प्रभावित गन्ना निकाल दें, सामान्य से पतले गन्ने निकाल दें, जड़ निकली हुई पोरियों को निकाल दें, गन्ने के ऊपरी दो तिहाई भाग को ही बीज के रूप में प्रयोग करें, गन्ने के निचले हिस्से को बुवाई में ना उपयोग में लाएं और बुवाई हेतु दो से तीन आंख के स्वास्थ्य गन्नें टुकड़े का ही प्रयोग करें इत्यादि।

आखिर बीज के उपचार की आवश्यकता क्यों-

शीघ्र एवं अधिक जमाव हेतु बीज के उपचार की आवश्यकता होती है। बीज को रोग तथा कीट से मुक्त रखने हेतु भी उपचारित करना चाहिए। गन्ना की किस्म सीओ 238 में रेड रॉट की समस्या अधिक है इसलिए अन्य नवीन जातियों की बुवाई करें।

बीज के टुकड़ों का उपचार कैसे करें-

फफूंदी नाशक कार्बेंडाजिम 100 से 200 ग्राम या विटावेक्स 100 ग्राम प्रति एकड़ कीटनाशक क्लोर पायरीफॉस या एंडोसल्फान 200 मिलीलीटर अच्छे जमाव हेतु 1 किलोग्राम यूरिया भी घोल में डालें। 100 लीटर पानी का घोल 1 एकड़ बीज के उपचार हेतु पर्याप्त है यह घोल एक ही बार में बनाएं और टुकड़ों को 5 मिनट तक घोल में डुबोकर रखें।

बुवाई की सही विधि को अपनाएं

सबसे पहले 4’ 4’ और 4‘ या 4’ 2’ 4’ या 5’ 2’ अथवा 5’ 5’ फीट की दूरी पर नालियां बनाकर तैयार करें। इसके बाद नालियों में उर्वरकों को गोबर की सड़ी खाद अथवा कंपोस्ट में मिलाकर प्रयोग करें पननालियों में सावधानीपूर्वक नाली के ऊपर थोड़ी सी मिट्टी अवश्य चढ़ाएं। गन्ने को नालियों में बोते समय यह भी ध्यान रखें कि चारा के प्रति फुट हो। इसके बाद गन्ने के टुकड़ों को नालियों में इस तरह रखें कि टुकड़ों की आंखें साइड में आएं, बुवाई के बाद टुकड़ों के ऊपर 2 से 3 इंच मिट्टी कुदाली से ढक दें तथा पूर्ण ऊपर पाटा ना लगाएं।

गन्ने में सहफसली खेती करें

दो कतारों के मध्य की दूरी में 4’ 4’ 4’ या 4’ 24 या 5’ 2’ अथवा 5’ 5 फीट दूरी को बनाये रखकर से फसली खेती की जा सकती है अथवा आवश्यकतानुसार गन्ने की कतार से कतार की दूरी बीच में बसंत कालीन में मूंग उड़द एवं शरद काल में आलू मशहूर लाही अथवा सरसों की खेती की जा सकती है। इसके अलावा शरद कालीन सब्जियों जैसे मेथी, पालक, मूली, शलजम और धनिया आदि को भी गन्नें के कूड़ों बीच में उगाया जा सकता है। इससे आमदनी में इजाफा होगा गन्ना भी अच्छा उत्पादित होगा। संतुलित उर्वरकों का करें प्रयोग-

उर्वरक प्रयोग मृदा जांच के आधार पर करें। अच्छी तरह से सढ़ी हुई गोबर की खाद या कंपोस्ट 50 से 75 कुंटल प्रति एकड़ की दर से खेत में डालें। जिंक सल्फेट 10 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से आखिरी जुताई के समय खेत में प्रयोग करें। बुआई करने से 2 से 3 दिन पहले 5 कुंतल गोबर की सड़ी हुई खाद में 5 किलोग्राम पीएसबी या अन्य कोई अन्य जैविक खाद मिलाएं तथा बुवाई के साथ नत्रजन फास्फोरस पोटाश आदि को मिलाकर खेत में डालें।

बुवाई के समय नत्रजन और यूरिया 30 किलोग्राम, फास्फोरस सुपर फास्फेट 150 किलोग्राम या डीएपी 25 किलोग्राम, पोटाश म्यूरेट आफ पोटाश 25 किलोग्राम अच्छी पैदावार के लिए 20 किलोग्राम प्रति एकड़ गंधक का भी प्रयोग करें अगर सुपर फास्फेट की जगह डीएपी देना है तो 25 किलोग्राम यूरिया प्रति एकड़ की दर से दे।

बुवाई के 40 से 45 दिन बाद यूरिया 50 किलोग्राम को 5 कुंतल गोबर की खाद में मिलाकर अंकुरित पौधों की जड़ों में डालें तथा हल्की मिट्टी भी चढ़ा दें। बुवाई के 90 से 100 दिन के बाद 50 किलोग्राम यूरिया, 15 किलोग्राम बीएपीएस सुपर फास्फेट, 50 किलोग्राम तथा 20 किलोग्राम उ.व.च. बेसन खुराक की तरह प्रति एकड़ 5 कुंटल गोबर की सड़ी खाद में मिलाकर पौधों की जड़ों में डालें। बरसात से पहले गन्ने की जड़ों पर मिट्टी चढ़ाएं जिस से गिरने का खतरा कम होगा।

खेत के रिक्त स्थानों की करें भराई-

बुवाई के समय 1008 के स्वस्थ उपचारित टुकड़ों को सिंचाई के नाली के साथ विभिन्न स्थानों पर रिक्त स्थानों पर भराई के लिए लगाएं। रिक्त स्थानों की भराई के बाद पौधों को तुरंत पानी लगा दे।

सिंचाई निराई गुड़ाई व बधाई कैसे और कब करें-

उर्वरक की प्रत्येक खुराक के बाद नालियों के माध्यम से हल्की सिंचाई हल्की सिंचाई करें, कभी भी खेत को पूरा न भरें। जड़ों में उचित वायु संचार एवं जड़ों के अच्छे विकास हेतु बेलनवा ट्रैक्टर चालित यंत्रों से निराई करें। जून से सितंबर माह के दौरान फसल को सूखी पत्तियों द्वारा दो से तीन बँधाई करें। यह बनाई गन्ने को गिरने से रोकने के साथ-साथ अच्छी प्रकाश व्यवस्था भी प्रदान करती है और इससे पौधों में वृद्धि अच्छी होती है।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।