गेहूं की खेती से अधिक उत्पादन कैसे लें

                                                                               गेहूं की खेती से अधिक उत्पादन कैसे लें

                                                                                                                                                                               प्रोफेसर आर एस सेंगर

आजकल पूरे विश्व में गेहूं की मांग लगातार बढ़ती जा रही है और मांग अधिक होने के कारण इसका बाजार भाव भी अच्छा मिल रहा है, इसलिए किसान अब गेहूं की खेती की तरफ आकर्षित हो रहे हैं और वह गेहूं की खेती को लाभकारी भी समझ रहे हैं, क्योंकि इस फसल के उत्पाद को आसानी से बेचा जा सकता है और इसका भंडारण भी किया जा सकता है। इसलिए किसान इस बार गेहूं की खेती बड़े पैमाने करने के लिए अपने खेतों को तैयार कर रहे हैं।

खेत की तैयारी कैसे करें

अधिकतर धान की कटाई के बाद गेहूं की बुवाई की जाती है, जिसके चलते अक्सर गेहूं की बुवाई में देर हो जाया करती है। अतः किसानों को पहले से यह निश्चित कर लेना होगा कि खरीफ में धान की कौन सी प्रजाति का चयन करें और रबी के मौसम में उसके बाद गेहूं की कौन सी प्रजाति की बुआई करें।

गेहूं की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए धान की रोपाई समय से करना बहुत आवश्यक है, जिससे गेहूं के लिए खेत अक्टूबर माह में खाली हो जाए। इसके अन्तर्गत दूसरी बात यह ध्यान देने योग्य है कि धान के खेत में पडलिंग/लेवा के कारण भूमि कठोर हो जाती है।

अतः भारी भूमि की, पहले मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई करने के बाद डिस्क हैरो से दो बार जुताई करके मिट्टी को भुरभुरी बनाने के बाद ही गेहूं की बुवाई करना उचित रहता है। डिस्क हैरो का प्रयोग करने से धान के ठूँठ छोटे-छोटे टुकड़ों में कट जाते हैं और इन्हें शीघ्र सड़ाने हेतु 15 से 20 प्रोग्राम नाइट्रोजन यूरिया के रूप में प्रति हेक्टेयर की दर से खेत को तैयार करते समय पहली जुताई के साथ अवश्य दी जानी चाहिए। ट्रैक्टर चलित रोटावेटर के द्वारा एक ही जुताई में खेत पूर्ण रूप से तैयार हो जाता है।

गेहूं की कौन सी अच्छी प्रजातियां है

असंचित दशा में प्रजाति

मगहर (के-8027), इन्द्रा (के-8962), गोमती (के-9465) और (के-9644), मंदाकिनी (के-9351) तथा एचडीआर-77 इत्यादि अच्छी किस्में हैं।

सिंचित दशा और समय से बुवाई के लिए चयनित प्रजातियां

                                              

 

देव (के-9107) एच.डी.-1731 (राजलक्ष्मी), नरेंद्र गेहूं-1012, उजियार के-9006, एच.यू.डब्ल्यू.-468, डी.एल.-784-3 (वैशाली), यू.पी.-2382, एच.पी.-1761, एच.डी.-2888, डी.बी.डब्ल्यू.-17, एच.यू.डब्ल्यू.-510, पी.बी.डब्ल्यू.-443, पी.बी.डब्ल्यू.-343, एच.डी.-2824, सीवी.डब्ल्यू.-38 और डी.बी.डब्ल्यू-39 आदि प्रगतिशील प्रजातियां हैं।

सिंचित दशा विलंब से बुवाई हेतु प्रजातियां

डी.बी.डब्ल्यू.-14, एच.यू. डब्ल्यू..-234, त्रिवेणी के-8020, सोनाली एच.पी.-1633, एच.डी.-2634 (गंगा), के-9162, के-9533 एच.पी.-1744, नरेंद्र गेहूं-1014, के-9423, के-7903, नरेंद्र गेहूं-2036, यू.पी.-2425, एच.डब्ल्यू.-2045, नरेंद्र गेहूं-1076, पी.बी.डब्ल्यू.-373 और डी.बी.डब्ल्यू-16 आदि।

ऊसर भूमि के लिए संस्तुत प्रजातियां

के.आर.एल.-14, के.आर.एल.-19, राज-3077, लोक-1 के.-8434 (प्रसाद), एन.डब्ल्यू.-1067, के.आर.एल.-210 और के.आर.एल.-213 आदि।

बुवाई का उचित समय क्या है

असंचित दशा में बुवाई

अक्टूबर के द्वितीय पक्ष में नवंबर का प्रथम पक्ष

सिंचित दशा में समय से बुवाई के लिए नवंबर के प्रथम सप्ताह से 25 नवंबर तक का समय ठीक है।

कब और कैसे करें गेहूं की बुवाई

                                                               

गेहूं की बुवाई समय से एवं पर्याप्त नमी पर करना ठीक रहता है। विलम्ब से पकने वाली प्रजातियों की बुवाई समय से अवश्य कर देनी चाहिए, अन्यथा विलम्ब से करने पर उपज में कमी हो जाती है इस प्रकार जैसे-जैसे बुवाई में विलंब होती जाती है तो गेहूं की पैदावार में भी गिरावट की दर बढ़ती चली जाती है।

दिसंबर में बुवाई करने पर गेहूं की पैदावार दो से चार कुंतल प्रति हेक्टेयर एवं जनवरी में बुवाई करने पर 4 से 5 कुंतल प्रति हेक्टेयर प्रति सप्ताह की दर से घटती चली जाती है। गेहूं की बुवाई सीड ड्रिल से करनी चाहिए, जिससे जुताई का खर्चा कम आएगा और उत्पादन भी अच्छा रहेगा।

बीज दर तथा बीज का शोधन कैसे करें

लाइन में बुवाई करने पर सामान्य दशा में 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर एवं मोटा दाना 125 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना ठीक रहता है। बीजों का शोधन करने के लिए कार्बाॉक्सिन एजोटोबेक्टर एवं पीएसबी आदि से उपचार कर बुवाई की जाए तो जमाव अच्छा होगा और उत्पादन भी अच्छा प्राप्त होगा।

पंक्तियों की आपसी की दूरी- सामान्य दशाओं में 18 सेंटीमीटर एवं 23 सेंटीमीटर एवं गहराई 5 सेंटीमीटर रखना चाहिए। हल से बुवाई की दशा में 15 सेंटीमीटर से 18 सेंटीमीटर तथा गहराई 4 सेंटीमीटर रखना ठीक रहता है।

कैसे और कितना करें उर्वरकों का प्रयोग

उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर करना ही उचित रहता है। बौने गेहूं की अच्छी उपज के लिए मक्का, धान, ज्वार और बाजरा आदि खरीफ फसलों के बाद भूमि में 150:60:40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से तथा विलंब से बुआई करने पर 80:40:30 कि.ग्रा. क्रमशः नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश का प्रयोग करना उचित रहता है।

बुंदेलखंड क्षेत्र में सामान्य दशा में 120:60:40 किलोग्राम नाइट्रोजन, फास्फोरस तथा पोटाश एवं 30 किलोग्राम गंधक प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना काफी लाभकारी पाया गया है। जिन क्षेत्रों में डीएपी का प्रयोग लगातार किया जा रहा है उनमें भी 30 किलोग्राम गंधक का प्रयोग लाभदायक ही देखा गया है।

आश्वत् सिंचाई की दशा में

सामान्यतः बौने गेहूं की उपज अधिकतम प्राप्त करने के लिए हल्की भूमियों में सिंचाई निम्न अवस्थाओं में करनी चाहिए। इन अवस्थाओं पर जल की कमी का उपज पर बहुत अधिक कुप्रभाव पड़ता है, परंतु ध्यान रखें कि सिंचाई हल्की ही करें।

प्रथम सिंचाईः क्राउन रूट-बुवाई के 20 से 25 दिन बाद अर्थात ताजमूल अवस्था में की जानी चाहिए।

दूसरी सिंचाईः गेंहूँ की बुवाई के 40 से 45 दिन पर कल्ले निकलते समय की जानी चाहिए। तीसरी सिंचाईः बुवाई के 60 से 65 दिन के बाद दीर्घ सन्धि अथवा गांठो के बनते समय की जानी चाहिए।

चौथी सिंचाईः गेंहूँ की बुवाई के 80 से 85 दिन यानी पुष्प अवस्था में की जानी चाहिए।

पांचवी सिंचाईः बुवाई के 100 से 105 दिन पर दुग्ध अवस्था में की जानी चाहिए।

छठवीं सिंचाईः बुवाई के 115 से 120 दिन पर दाना भरते समय की जानी चाहिए। इस प्रकार से सिंचाई की जाती है तो उत्पादन अच्छा रहता है।

दोमट या भारी दोमट भूमि निम्न चार सिंचाईयां करने के बाद भी अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है, परंतु प्रत्येक सिंचाई कुछ गहरी लगभग 8 सेंटीमीटर करें, जिससे अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं।

सीमित सिंचाई साधन होने की दशा में क्या करें

  • यदि तीन सिंचाईयों की सुविधा ही उपलब्ध हो तो ताजमूल अवस्था, बाली निकलने के पूर्व तथा फसल की दुग्ध अवस्था पर आवश्यक रूप से सिंचाई करें।
  • यदि दो सिंचाईयों की सुविधा ही उपलब्ध हो तो ताजमूल तथा पुष्पावस्था पर सिंचाई करनी चाहिए।
  • यदि एक ही सिंचाई उपलब्ध हो तो केवल ताजमूल अवस्था पर ही सिंचाई करनी चाहिए।

गेहूं की फसल सुरक्षा कब और कैसे

बीज उपचार

जब कवक नाशी (ट्राईकोडरमा प्रजाति आधारित) के माध्यम 4.0 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से बीज का उपचार करना चाहिए, जिससे बीज जनित रोगों यथा अनावृत कण्डुवा और करनाल बट आदि की रोकथाम आसानी से की जा सकती है।

मृदा का उपचार

गेंहूँ बुवाई करने से पूर्व, जैव कव़कनाशी (ट्राइकोडर्मा प्रजाति आधारित) के द्वारा 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 60 किलोग्राम गोबर की खाद में मिलाकर मृदा उपचार करना चाहिए, जिससे अनावृत कण्डुआ और करनाल बन्ट आदि रोगों के प्रबंधन में सहायता प्राप्त होती है।

दीमक नाम के कीट का नियंत्रण कब और कैसे करें

दीमक कीट, एक सामाजिक कीट होता है जो कॉलोनी बनाकर रहते हैं और एक कॉलोनी में अनेक को श्रमिक कीट 90 प्रतिशत एवं सैनिक कीट 2 से 3 प्रतिशत, एक रानी तथा एक राजा और अनेकों कॉलोनी बनाने वाले या पूरक अविकसित नर एवं मादा कीट पाए जाते हैं।

श्रमिक पंखहीन, सबसे छोटे पीताभि श्वेत रंग के होते हैं तथा यह कॉलोनी के लिए समस्त कार्यों को काफी समय तक करते हैं और हमारी फसलों एवं अन्य वस्तुओं को हानि पहुँचाने के लिए उत्तरदायी होते हैं।

दीमक का उपचार कब और कैसे

1. दीमक प्रकोपित क्षेत्र में नीम की खाली 10 कुंतल प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना उचित रहता है।

2. खड़ी फसल में दीमक का प्रकोप होने पर क्लोरपाइरीफॉस 20 ई.सी. 2 से 3 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से सिंचाई के पानी के साथ अथवा बालू रेत में मिलाकर प्रयोग करें।

3. वेवेरिया वेसियाना की दो किलोग्राम मात्रा को 20 किलोग्राम अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद में मिलाकर 10 दिनों तक छाया में ढक कर रख दे तथा बुवाई करते समय कूड़ों में इसे डालकर बुवाई करें।

खेत में चूहे का नियंत्रण कैसे करें

 

गेहूं की खड़ी फसल को चूहें सबसे अधिक नुकसान पहुंचाते हैं, अतः फसल की पूरी अवधि के दौरान दो से तीन बार चूहों के रोकथाम की आवश्यकता होती है। वहीं, यदि चूहों की रोकथाम का कार्य सामूहिक रूप से किया जाए तो इससे इन्हें रोकने में अधिक सफलता प्राप्त होती है।

चूहों का उपचारः चूहों की रोकथाम हेतु जिंक फॉस्फाइड का एक भाग अथवा बेरियम कार्बोनेट के बने जहरीले चारे का प्रयोग किया जा सकता है, जो इस सम्बन्ध में काफी लाभदायक रहता है।

जहरीला चारा बनाने की विधिः जहरीला चारा बनाने के लिए जिंक फॉस्फाइड एक भाग, सरसों का तेल एक भाग तथा 48 भाग दाना मिलकर बनाया हुआ जहरीला चारा प्रयोग कर सकते हैं और इस चारे को खाने से चूहें मर जाते हैं अथवा खेत से बाहर भाग जाते हैं।

कैसे करें खरपतवार नियंत्रण

1. चौड़ी पट्टी वाले खरपतवार जैसे बथुआ, आर्जीमोन अर्थात सत्यानाशी, हिरनखुरी, कृष्णनील तथा प्याजी आदि के लिए 2,4-डी, सोडियम सॉल्ट 80 प्रतिशत, डब्ल्यू.पी. की मात्रा प्रति हेक्टेयर 625 ग्राम, कारपेन्ट्राजॉन 50 ग्राम प्रति हेक्टेयर बुवाई के 25 से 30 दिन के बाद प्रयोग करें।

2. गेहूँसा व जंगली जई के नियंत्रण हेतु निम्नलिखित रसायनों का प्रयोग करना चाहिए-

(अ) आइसोप्रोट्यूरॉन 50 प्रतिशत मात्रा प्रति हेक्टेयर 1.5 किलोग्राम अथवा

(ब) आइसोप्रोट्यूरॉन 75 प्रतिशत मात्रा, प्रति हेक्टेयर 1.5 किलोग्राम अथवा

(स) सल्फो सल्फोफ्यूरॉन 75 डब्ल्यू.जी. मात्रा, प्रति हेक्टेयर 33 ग्राम अथवा 32 मिलीमीटर प्रति हेक्टेयर बुवाई के 30 से 35 दिन के अंदर फ्लैटफैन नोजल से 500 से 600 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए।

कटाई मड़ाई कब और कैसेः बालियो के पक जाने अर्थात भौतिक परिपक्वता के प्राप्त होने के बाद फसल को तुरंत काट देना चाहिए अन्यथा दाने झड़ने की संभावना रहती है। खराब मौसम की दशा में कार्बाइन हार्वेस्टर का प्रयोग करते है तो इससे हानियों से बचा जा सकता है।

गेहूं की अधिक पैदावार प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखें:-

1. शुद्ध एवं प्रमाणित बीज की बुवाई बीज-शोधन के बाद ही करनी चाहिए।

2. प्रत्येक तीसरे वर्ष बीज को अवश्य ही बदल देना चाहिए।

3. प्रजाति का चयन, क्षेत्रीय अनुकूलता एवं समय विशेष के अनुसार ही किया जाना चाहिए।

4. संतुलित मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर सही समय पर उचित मात्रा एवं विधि के द्वारा किया जाना चाहिए।

5. क्रांतिक अवस्थाओं (ताजमूल अवस्था एवं पुष्प अवस्था) आदि पर सिंचाई समय से उचित विधि एवं मात्रा में किया जाना चाहिए।

6. कीड़े एवं बीमारी आदि से बचाव हेतु विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।

7. गेहूँसा का प्रकोप हो जाने पर, उसका नियंत्रण समय से किया जाना चाहिए।

8. अन्य क्रियाएं संस्तुति के आधार पर समय से पूरी कर ली जानी चाहिए।

9. जीरो टिलेज एवं रेज्ड बेड विधि का प्रयोग किया जाना चाहिए।

10. खेत की तैयारी करने के लिए रोटावेटर और हैरो आदि का प्रयोग करना चाहिए।

11. अधिकतम मात्रा में जीवाश्म खादो का प्रयोग खेत में किया जाना चाहिए।

12. जहाँ तक सम्भव हो खाद की आवश्यकता की आधी मात्रा की पूर्ति जीवाँश खादों के माध्यम से ही पूर्ति की जानी चाहिए।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।