वायु प्रदूषण का सामना और जनसहभागिता की भूमिका

                                                    वायु प्रदूषण का सामना और जनसहभागिता की भूमिका

                                                                                                                                       डॉ0 आर. एस. सेंगर, डॉ0 रेशु चौधरी एवं मुकेश शर्मा

                                                                

पिछले कई वर्षों से किए जा रहे प्रयासों के बावजूद भी दिल्ली की फिर से वही धुंधली सी तस्वीर ही दिखाई देती है। प्रत्येक वर्ष मटमैले जहरीले धुएं की एक गहरी और घनी चादर दिल्ली सहित पूरे एनसीआर को कवर कर लेती है। ऐसे में दिल्ली के बारे में एक विश्व स्तरीय शहर होने के दावे झूठे से लगने लगते हैं। एक इंसानी प्रवृत्ति और उसकी कमजोर स्मृति के चलते हम जल्द ही इन दिनों को भूल जाते हैं, लेकिन ये दिन हमारी सेहत और जीवन पर एक न मिटने वाला दाग छोड़ जाते हैं।

ऐसा क्यों है कि प्रत्येक वर्ष बार-बार यही कहानी दोहराई जाती है? और हम कुछ नही कर पाते हैं तो फिर क्यों नहीं वायु प्रदूषण की समस्या के लिए दूरगामी सोच वाले कुछ प्रभावी और स्थाई उपाय किए जाते हैं?

भारत में पूरे वर्ष भर पीएम 2.5 का औसत स्तर 80-83 मिलीग्राम प्रति घनमीटर रहता है। जबकि नेशनल एंबिएंट एयर क्वालिटी स्टैंडर्ड (एनएएक्यूएस) के अनुसार यह स्तर 40 मिलीग्राम प्रति घनमीटर से कम ही रहना चाहिए। विश्व स्वास्थ्य संगठन तो पीएम 2.5 का स्तर पांच मिलीग्राम प्रति घनमीटर रखने की ही अनुमति देता है। पीएम 2.5 का इससे अधिक स्तर इंसानीं के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है।

                                                               

कई आईआईटी और मौसम एवं पर्यावरण का विश्लेषण करने वाले संस्थान आइआटीएम/सफर वायु प्रदूषण के स्रोतों की स्पष्ट जानकारी देते हैं। दिल्ली में प्रति दिन मुख्यतः वाहनों, स्थानीय उद्योगों, निर्माण कार्यों की धूल और ऊर्जा संयंत्रों जैसे बड़े उद्योंगों के कारण प्रदूषण होता है। सर्दी में तो बड़ी संख्या में फसल अवशेष जलाने और त्योहारी सीजन के दौरान बेतरतीब पटाखे फोड़ने से दिल्ली के पर्यावरण की सेहत और अधिक खराब हो जाती है।

    पंजाब और हरियाणा में केवल दो हफ्ते में ही करीब 2 करोड़ टन पराली खेतों में जला दी जाती है। किसान को भी खेत में ही पराली जलाना आसान लगता है क्योंकि इससे आमदनी प्राप्त करने या ईंधन और कच्चे माल के तौर पर उपयोग करने का कोई भरोसेमंद विकल्प अभी तक उसके पास उपलब्ध नहीं हैं। वायु प्रदूषण को कम करने के लिए छोटी, मध्यम और लंबी अवधि की कड़ी नीतियों व नियमों की तो आवश्यकता है ही, परन्तु इसके लिए एक सक्रिय जनसहभागिता की भूमिका को भी नकारा नहीं जा सकता हैं और विदेश में इस प्रकार के कई उदाहरण भी मौजूद हैं।

    वायु प्रदूषण की रोकथाम के लिए जनसहभागिता के लिए एक बहुत ही अहम एवं महत्वपूर्ण बिंदु शिक्षा है। प्रदूषण के स्रोतों और दुष्परिणामों के बारे में जागरूकता फैलाने से ही जनता सही फैसले कर सकेगी, पर्यावरण के अनुकूल आदतों को अपनाएगी और स्वच्छ नीतियों के पक्ष में खड़ी हो सकेगी। वायु प्रदूषण के स्थानीय या सक्रिय स्रोतों को पहचानने और उनका हल खोजने में अधिकारियों का सहयोग कर हमारे नागरिक बन्धु एक सक्रिय भूमिका निभा सकते हैं। इसी प्रकार कस्बों और शहरों में वायु प्रदूषण के खिलाफ युद्ध में जनता स्थानीय निकायों का साथ भी दे सकती है।

                                                                 

मिसाल के तौर पर, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के द्वारा वर्ष 2018 में दिल्ली में 13 हॉटस्पॉट चिन्हित किए गए। अतः यहां की जनता खतरनाक उत्सर्जन के असली स्रोतों की पहचान करने में शहरी निकार्यों की मदद कर सकती है जिससे कि अधिकारी उचित कार्रवाई कर सकें। एक सहज-सरल मोबाइल एप या कोई इसी प्रकार का अन्य आनलाइन मंच होना चाहिए, जिसके माध्यम से नागरिक वायु प्रदूषण की स्थिति और घटनाओं की जानकारी दे सकें। यह रियल टाइम डाटा अधिकारियों के लिए काफी मददगार साबित होगा।

    नागरिक अपने रिहायशी क्षेत्रों, पार्कों, स्कूलों और कालेज आदि के बेहतर रखरखाव से हरियाली को बनाए रखें तो वायु गुणवत्ता और उसमें आक्सीजन की मात्रा बढ़ाई जा सकती है। तो वहीं घरों में समुचित प्रबंधन के माध्यम से घरेलू कचरे में कमी लाई जा सकती है, जिससे कचरा एकत्र होने वाले स्थानों और निस्तारण केंद्रों से हानिकारक गैसों का उत्सर्जन कम हो सकेगा।

आईआईटी दिल्ली अपने कैंपस में ही 60-70 प्रतिशत कचरे का प्रबंधन करके इसके सम्बन्ध में एक सशक्त उदाहरण पेश भी कर रही है। सार्वजनिक परिवहन को बेहतर करके सरकार के द्वारा, जनता को इसके उपयोग के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। जबकि आरडब्ल्यूए इस पूरे जनआंदोलन के एक अहम साझीदार बन सकते है।

    वायु प्रदूषण की रोकथाम के तहत अभियान में आम लोगों की भागीदारी को सुनिश्चित् करना बहुत जरूरी है। नागरिकों को वायु प्रदूषण के स्रोतों और इससे होने वाले नुकसान के बारे में बताया जाना चाहिए। इसी प्रकार से नागरिकों को पर्यावरण के अनुकूल रहन-सहन अपनाने के लिए प्रेरित किया जा सकता है।

                                                        

महानगरों में हवा प्रदूषण सबसे ज्यादा वाहनों की वजह से होता है। अगर हम सही ढंग से इन वाहनों का प्रयोग करें और टिकाऊ तरीकों का चयन करें तो वाहनों के प्रदूषण को कम कर सकते हैं। वायु प्रदूषण का दूसरा कारण है बहुत सारी फैक्ट्रियां और फैक्ट्री चलाने के पुराने तरीके। फैक्ट्री मालिकों को नए उपकरण और तरीके अपनाने चाहिए जिससे वह अपनी फैक्ट्री से निकलने वाले प्रदूषण को कम कर सकें।

पराली, कूड़ा बिल्कुल न जलाने, रेड लाइट पर वाहन बंद, धूल पर छिड़काव, अधिक से अधिक पेड़-पौधे लगाना, पैदल चलना, साइकिल, पब्लिक ट्रांसपोर्ट व मास्क प्रयोग के अलावा मनमानी पर देश भर में तत्काल सख्त कार्रवाई बहुत जरूरी है, ताकि हवा साफ रहे।

वायु प्रदुषण से निपटने के लिए महानगरों के साथ-साथ पूरे देश में उपाय के साथ जागरूकता को बढ़ावा देना बहुत जरूरी है। वायु प्रदूषण के कारण बच्चों से लेकर बूढ़ों तक सभी को सामान्य जीवन जीने में परेशानी का सामना करना पड़ता है। ऐसे में प्रत्येक व्यक्ति अपनी दिनचर्या में ऐसा बदलाव लाए जिससे वायु प्रदूषण के कारकों को कम किया जा सके। एक नागरिक के तौर पर वायु प्रदूषण को कम करने के प्रयासों में हमारी जिम्मेदारी भी बनती है।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।