एक पौधा, जो लिवर के लिए है रक्षा कवच, दर्जनों अन्य बीमारियों में भी है लाभकारी

एक पौधा, जो लिवर के लिए है रक्षा कवच, दर्जनों अन्य बीमारियों में भी है लाभकारी

यदि आपके शरीर में कोई ऐसा विषैला पदार्थ पहुंच गया है जो लिवर को नुकसान पहुंचा सकता है, तो पिपली उस पदार्थ कं प्रभाव को न्यूट्रल कर देता है। 

                                                                       

भारत पुरातन काल से ही आयुर्वेद की भूमि रही है, हमारे यहां न जाने कितनी ऐसी जड़ी-बूटियां मिलती हैं, जिनका उपयोग करने से विभिन्न प्रकार की बीमारियों को दूर किया जा सकता हैं और इन्हीं जड़ी-बूटियों में से एक है लौंग पीपर या पीपली। वैसे तो पीपली का प्रयोग मसालों के रूप में किया जाता है, लेकिन इसके औषधीय लाभों के बारे में बहुत ही कम लोग ही जानते हैं। कहा तो यह भी जाता है कि सभी गरम मसालों में पिपली का स्थान सबसे ऊँचा हैं।

वैद्यराज व मुंबई यूनिवर्सिटी के पूर्व डीन दीनानाथ उपाध्याय बताते हैं कि आयुर्वेद में पिपली को विशेष सम्मान प्राप्त है। साथ ही विज्ञान की आधुनिक खोजों में भी यह माना गया है कि पिपली मानव के शरीर के लिए गुणों की खान होती है।

                                                                          

मालूम हो कि पीपली के पौधे में बारिश के मौसम में ही फूल खिलते हैं और ठंड का मौसम आते ही उससे फल निकल आते हैं और इसके फलों को ही पीपली कहते हैं। विशेष बात तो यह है कि बिहार के पश्चिम चम्पारण जिले में इसकी उपज बेहद आसानी से हो जाती है. अथवा यह कहा जाए, कि चम्पारण के जंगली क्षेत्रों में इसके पौधे अपने आप ही उग आते हैं।

पतंजलि के आयुर्वेदाचार्य भुवनेश की माने तो, इसका सेवन अगर उचित मात्रा में किया जाए तो यह मानवीय सेहत को कई तरीके से फायदा पहुंचा सकता है, हालांकि, अधिक सेवन करने से नुकसान भी होते हैं। अंतर्राष्ट्रीय एमजोन जैसे ऑनलाइन शॉपिंग साइट पर यह 5200 रुपए प्रति किलोग्राम तक के भाव से बिकती है।

आयुर्वेद में विशेष महत्व

                                                               

जानकारों के अनुसार, इसका उपयोग करने से ब्लड में ग्लूकोज की मात्रा कंट्रोल में रहती है, तो यह लिवर के लिए भी बेहद लाभकारी भी माना गया है। यह मौसम विशेष में शरीर को जीवाणुओं (Bacteria) आदि से भी बचाती है। देश विदेश में पिपली को वही सम्मान प्राप्त है, जो काली मिर्च को प्राप्त है। पिपली में तीखापन थोड़ा कम होता है, जबकि खाते समय यह व्यक्ति के मुंह में अधिक लार पैदा करती है।

7वीं से 8वीं ईसा पूर्व लिखे गए भारत के प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथ में पिपली का विस्तार से वर्णन किया गया है। आयुर्वेद में इसे मधुर, कफ वर्धक, स्निग्ध व गरम तासीर वाली बताया गया है। एक अन्य प्राचीन चिकत्सीय ग्रंथ ‘सुश्रुतसंहिता’ में कुछ ऐसे आहार बताए गए हैं, जिनमें पिपली का इस्तेमाल किया जाता है।

दर्जनों अन्य बीमारियों में भी होती है लाभकारी

                                                                     

भारत की एग्मार्क लेब के संस्थापक निदेशक जीवन सिंह प्रुथी ने अपनी पुस्तक में जानकारी प्रदान की है कि भारत में अधिकांश पिपली जंगली पौधों से ही प्राप्त की जाती है। इसके पौधे बिहार, असम, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, और चेरापूंजी आदि जंगलों में बहुतायत से उगते हैं। यदि किसी व्यक्ति के शरीर में कोई ऐसा विषैला पदार्थ प्रविष्ठ हो गया है, जो कि उसके लिवर को नुकसान पहुंचा सकता है, तो पिपली उस पदार्थ के प्रभावों को न्यूट्रल कर देने में सक्षम है।

                                                            

इसके अलावा यह कफ, जुखाम, खांसी, बुखार, गले की खराबी, सांसों से संबंधित समस्या, अनिद्रा, कोलेस्ट्रॉल, उल्टी, हिचकी और दस्त आदि बीमारियों में चिकित्सक की सलाह के अनुसार इसका उपयोग किया जा सकता है।