पोषण एवं स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए लोकाट वरदान

                                                               पोषण एवं स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए लोकाट वरदान

                                                                                                                                    डॉ0 आर. एस. सेंगर, डॉ0 शलिनी गुप्ता एवं मुकेश शर्मा

                                                         

लोकाट को चाइनीज प्लस के नाम से भी जाना जाता है। यह देशी फल का एक सदाबहार पौधा है, लोकाट की उत्पत्ति चीन में हुई थी, जबकि कुछ वैज्ञानिक इसकी उत्पत्ति जापान से मानते हैं।

लोकाट की अधिकतर किस्म चीन या जापान में ही विकसित हुई है और भारत में लोकाट का आगमन कब हुआ, इसके स्पष्ट प्रमाण उपलब्ध नहीं है, लेकिन प्रारंभ में इसे राजकीय वानस्पतिक उद्यान सहारनपुर, उत्तर प्रदेश में लगाया गया था। वहीं से यह देश के अन्य भागों में फैला। लोकाट की बागवानी मुख्य रूप से उत्तराखंड, पश्चिम उत्तर प्रदेश, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश एवं असोम के कुछ भागों तक ही सीमित रही और अपार संभावनाओं से युक्त यह फल केवल इन्हीं क्षेत्रों के स्थानीय बाजारों तक ही सीमित रहा।

                                                                   

जिस समय लोकाट के फल बाजार में आते हैं, तो उस समय बाजारों में अन्य स्वादिष्ट एवं प्रचलित फल जैसे कि आम और लीची आदि बाजार में उपलब्ध होते हैं, इसके कारण बाजार प्रतिस्पर्धा में यह पीछे रह जाता है। हालांकि, लोकाट की बागवानी का उचित विकास नहीं हो पाया, लेकिन कम ऊंचाई वाले पहाड़ी क्षेत्रों तथा कम गर्मी वाले मैदानी क्षेत्रों के लिए यह फल किसी वरदान से कम नही है, क्योंकि यह पोषण के साथ-साथ अच्छी स्वास्थ्य सुरक्षा भी प्रदान करता है।

                                                  

लोकाट के पौधों की लंबाई 3 से 8 मीटर तक होती है और अपनी पत्तियों की सुंदरता के कारण इसे एक शोभाकारी पौधे के रूप में भी बड़ी तादाद में उगाया जाता है। इसकी पत्तियाँ लगभग 10 से 25 सेंटीमीटर लंबी तथा गहरे हरे रंग की होती हैं। लोकाट की बागवानी सभी प्रकार की मृदा में आसानी से की जा सकती है। जबकि जीवांश युक्त उपजाऊ और गहरी दोमट मृदा, जिसमें जल निकास की उत्तम व्यवस्था हो इसके लिए उपयुक्त होती र्है और ककरीली, पथरीली और ऊसर भूमि इसके लिए उपयुक्त नहीं होती है। लोकाट के पौधे तथा इसकी फसल पर वातावरण का भी अत्याधिक प्रभाव पड़ता है। जिन क्षेत्रों में तापमान बहुत कम या अधिक होता है, वह क्षेत्र इसकी बागवानी के लिए उपयुक्त नहीं होते हैं अतः ऐसे क्षेत्रों में इसे केवल एक शोभाकारी पौधे के रूप में उगाया जाता है।

                                                               

लोकाट के पौधों की अधिक सिंचाई करने की आवश्यकता नहीं होती है। इसका फल पुष्पन से 90 दिनों के पश्चात परिपक्व हो जाता है। लोकाट का फल तीन से पांच सेंटीमीटर लंबा, हल्के पीले रंग का और गुदेदार होता है। इसमें 1 से 5 तक भूरे रंग के बीज पाए जाते हैं। इसके फल को छिलका उतार कर खाया जाता है जो कि बहुत स्वादिष्ट होता है। लोकाट का फल स्वाद में आडू, सिट्रस तथा आम के स्वाद की अनुभूति कराता है। लोकाट के फलों को तोड़ने के बाद 1 से 2 सप्ताह तक आसानी से कोल्ड स्टोरेज में भंडारित किया जा सकता है।

स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए लोकाट की उपयोगिता

                                                      

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