वायु प्रदूषण एवं उसका प्रबंधन

                                                                            वायु प्रदूषण एवं उसका प्रबंधन

                                                                                                                                      डॉ0 आर. एस. सेंगर, डॉ0 रेशु चौधरी एवं मुकेश शर्मा

                                                                              

बढ़ती धुंध से बढ़ रहा है वायु प्रदूषण

दिल्ली एनसीआर में छाई हुई धुंध की चादर लोगों को एक बार फिर से बीमार करने लगी है। सांस की समस्या से पीड़ित मरीजों के परेशानी तो बढ़ ही रही है इसके साथ ही अब घरों से बाहर निकलने वाले लोग भी जुकाम और आंखों में जलन आदि परेशानियों की शिकायत करने लगे हैं। फिलहाल वतावरण में छाई इस धुंध का कारण पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में जलाई जा रही पराली को बताया जा रहा है, लेकिन भारत में वायु प्रदूषण का स्रोतों में घरों से निकलने धुआँ, मोटर गाड़ियों और विभिन्न उद्योगों से निकलने वाला दुआ भी शामिल है। विकसित देशों में तो इस समस्या कम देखी जाती है, लेकिन औद्योगीकरण की तरफ बढ़ती अर्थव्यवस्थाएं, गंभीर वायु प्रदूषण के साथ जुड़ रही है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, दुनिया में लगभग 99 प्रतिशत आबादी ऐसी ही दूषित हवाओं में सांस लेने को विवश हो रही है। जिसमें तय सीमा से काफी अधिक प्रदूषण है, इसका विशेष नुकसान अल्प विकसित या विकासशील देशों को अधिक हो रहा है और भारत भी इन देशों में से ही एक देश है।

                                                    

एक अनुमान के मुताबिक, दुनिया भर में घरेलू और बाह्य प्रदूषण के कारण हर साल करीब 55 लाख लोग समय से पहले मर जाते हैं, जिनमें आधे से अधिक मौत विश्व में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं भारत और चीन में हो रही है। अति सूक्ष्म कण पीएम 2.5 के कारण विश्व में जितने लोगों की जान जा रही है, उसे देखते हुए यह दुनिया का पांचवा सबसे प्रमुख जोखिम को कारक माना जाता है। यूरोप में तो वायु प्रदूषण सबसे बड़ा पर्यावरणीय खतरा और समय से पहले मौत व बीमारी का एक प्रमुख कारक बनकर उभरा है।

भारत की राजधानी दिल्ली उन प्रदूषित शहरों में से एक है, जहां की हवा सेहत के लिए काफी खराब मानी जाती है। दूषित हवा में सांस लेने से इंसानों के स्वास्थ्य पर कितने प्रतिकूल प्रभाव पड़ते हैं, इसकी जानकारी अमेरिकन लंग संगठन ने दी है, उसके अनुसार वायु प्रदूषण में लंबे समय तक रहने से अकाल मौत भी होने की आशंका रहती है। इससे अस्थमा की शिकायत बढ़ाने, दिल के दौरे एवं मानसिक आघात का खतरा पैदा होने लगता है। फेफड़ों का कैंसर होने होने की शिकायत सीओपीडी यानी सांस संबंधी पुरानी बीमारियों के गंभीर होने से बच्चों में फेफड़ों की समस्या बढ़ने और फेफड़ों के उत्तकों में सूजन और जलन होने शिशु का जन्म के समय कम वजन खांसी व सांस की तकलीफ आदि बढ़ाने की आशंका अधिक होती है। लीवर जैसे शरीर के महत्वपूर्ण अंगों के भी प्रदूषण से प्रभावित होने की बात कही जाती रही है।

बढ़ते हुए वायु प्रदूषण को रोकने के उपाय भी हैं लेकिन उनको अपनाया नहीं किया जा रहा है। करीब 5 साल पहले जनवरी 2019 में पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम एनसीएपी शुरू किया था। इसके तहत विभिन्न साझेदारों को शामिल करते हुए 24 राज्यों और केंद्र शासित क्षेत्रों में 131 शहरों में वायु प्रदूषण में सुधार करना इसका लक्ष्य था और इसमें 2025 और 26 तक पीएम 10 में 40 प्रतिशत तक की कमी लाने की कल्पना की गई थी। एनसीएपी के तहत 82 शहरों में पीएम 10 के स्तर में 3 से 15 प्रतिशत तक कमी लाने का वार्षिक लक्ष्य है, ताकि इसमें समग्रता में 40 प्रतिशत की कमी लाई जा सके। 15वें वित्त आयोग के वायु गुणवत्ता अनुदान के तहत 49 शहरों को 25 प्रतिशत कमी लाने और वायु गुणवत्ता सुधारने का वार्षिक लक्ष्य दिया गया है। इसके अलावा भी इसके सुधार हेतु विभिन्न प्रकार के कई कदम उठाए जा रहे हैं जैसे गाड़ियों से निकलने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए हम ईको की और बढ़ रहे हैं। मेट्रो व क्षेत्रीय रेलवे आदि क्षेत्रों में अतिरिक्त निवेश किया जा रहा है।

                                                                    

नए एक्सप्रेस वे बनाए जा रहे हैं, पुरानी गाड़ियों को प्रतिबंधित किया जा रहा है, औद्योगिक उत्सर्जन से निपटने के लिए एनसीआर में पेट कोक व फर्निश तेल का उपयोग किया जा रहा है और पीएनजी को बढ़ावा हुआ दिया जा रहा है। विभिन्न अवशिष्ट पदार्थों के जलने से रोकने वाले प्रदूषण को रोकने की भी कोशिश की जा रही है और वायु प्रदूषण की निगरानी करने के साथ-साथ पराली जलाने पर रोकथाम के गम्भीरतम प्रयास भी किये जा रहे हैं क्योंकि वायु की गुणवत्ता धरती की जलवायु और परिस्थिति की तंत्र से जुड़ी हुई होती है इसलिए वायु प्रदूषण को कम करने की नीतियां, जलवायु और स्वास्थ्य दोनों के लिए फायदेमंद है। बीमारियों का हमारा बोझ भी इससे काम हो सकता है इसलिए इस पर गम्भीरता से ध्यान देने की जरूरत है।

इस धुंध में भले बहुत कुछ धुंधला नजर आता हो, परन्तु एक चीज बहुत स्पष्ट नजर आती है और वह है इस प्रदूषण के ज्ञात कारणों की जबरदस्त अनदेखी और रोकथाम के प्रति एक उदासीन रवैया। यह लापरवाही शहर में विकास कार्यों व निर्माण सामग्रियों की वजह से धूल, वाहनों की बड़ी बढ़ती संख्या और ग्रामीण क्षेत्रों में जलाई जा रही परली की आदि की वजह से वायु प्रदूषण बढ़ा है। इसके साथ ही टूटी सड़कों से उड़ने वाली धूल और फ्लाईओवर निर्माण और सीवर लाइन की खुदाई की वजह से उड़ती धूल और वाहनों से निकलने वाला धुआं प्रदूषण के बढ़ाने की एक बड़ी वजह है। अतः इन कारकों को नियंत्रित करने से ही प्रदूषण पर रोकथाम संभव है, मगर इसके लिए जिम्मेदार देर से जागते हैं। यदि वह समय के रहते इनको रोकने के कदम उठाए जाते तो शायद यह दशा दिखाई नहीं देती।

सांस लेने लायक ठीक हवा के पैमाने की बात करें तो उत्तर प्रदेश के कई शहरों में वायु गुणवत्ता सूचकांक 200 को पार कर गया है, मतलब यह काफी खराब स्थिति में पहुंच चुका है। हफ्ते भर पहले इन शहरों की हवा इतनी खराब नहीं थी, मगर प्रदूषण का जहर कछुआ गति के साथ पश्चिम से पूर्वांचल तक पहुंच रहा है। लखनऊ में एक सप्ताह पहले एक जहां यह 202 था वह अब 274 के खराब स्तर पर पहुंच गया है। राजधानी के कुछ इलाकों में तो यह स्तर 300 को भी पार कर चुका है। प्रयागराज में तीन दिन में एक यूआई 200 के पार पहुंच चुका है और इस समय 231 तक के स्तर पर बना हुआ है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पर्यावरण विभाग के डॉक्टर उमेश कुमार सिंह कहते हैं कि निर्माण कार्यों की वजह से उड़ने वाले धूल का प्रभाव शहर पर है।

                                                           

गोरखपुर और आसपास के क्षेत्र में आमतौर पर हवा सांस लेने लायक ही रहती है। लेकिन बीते 5 दिन से गोरखपुर में अत्यधिक बढ़ोतरी हुई है। 1 नवंबर को यहां का यूआई 70 था, जो रविवार को दूसरे 70 तक पहुंच गया है। मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार यूआई और धुंध बढ़ाने की वजह खराब हवा है, जिसके साथ पश्चिम से धुंध गोरखपुर और आसपास के जिलों में पहुंच रही है। कानपुर में एक हफ्ते पहले तक वायु प्रदूषण सूचकांक 89 से 120 के बीच में था, लेकिन बीते दो दिनों में धंुध के बढ़ने के साथ ही प्रदूषण का स्तर भी बढ़ने लगा है और रविवार को वायु प्रदूषण सूचकांक दिन में 283 तक पहुंच गया है।

इसलिए बढ़ती है धुंध

भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के पूर्व अधिकारियों के अनुसार, वातावरण में नाइट्रिक ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और गाड़ियों के धुएं से निकलने वाली अन्य गैसों के कारण कई हानिकारक तत्व हवा में घुलकर स्मोक यानी धुंध को बढ़ाते हैं। यह मनुष्य के साथ-साथ जानवरों और अन्य छोटे जीवों पर भी दुष्प्रभाव डालते हैं। इसके अलावा कोयला, टिंबर, डीजल, गीली लकड़ी जैसी कई चीजे जब अधूरे रूप से जलते हैं तो उनसे प्रदूषण तत्व निकलते हैं, इनमें कई कैंसर कारक तत्व भी होते हैं इसके अलावा गाड़ियों का धुआं और पर्यावरण में मौजूद क्रोमियम, कैडमियम, एलईडी, निकिल और आर्सेनिक जैसी कई भारी धातुएं भी हवा को जहरीला बनती है।

                                                            

इस समय धुंध में कार्बन डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड के अलावा अलग-अलग साइज के विभिन्न पार्टिकल्स यानी बारीक कण भी हवा में घुले हुए हैं। इनके कारण हवा का घनत्व अधिक होने की वजह से यह नीचे ही जमे रहते हैं। बहुत बारीक कण होने की वजह से यह सांस लेते समय हमारे फेफड़ों तक पहुंच जाते हैं और सिगरेट आदि का सेवन करने पर धुएं के साथ बारीक पार्टिकल भी फेफड़ों में पहुंच जाते हैं जो हमारे फेफड़ों को गम्भीर नुकसान पहुंचाते हैं।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।