विश्व गौरैया दिवस 20 मार्च पर विशेष

                                                                                             विश्व गौरैया दिवस 20 मार्च पर विशेष

                                                                                                                                                  डा0 आर. एस. सेंगर एवं सहयोगी मुकेश शर्मा

गौरैया पक्षियों की देखभाल करने के कुछ सूत्र-

    गर्मी के दिनों में अपने घर की छत पर किसी मिट्टी के बर्तन में पानी भरकर अवश्य रखें।

    बालकनी, छत और पार्कों आदि में गौरैया के लिए कुछ अनाज भी अपने घर की छतों एवं आसपास के पार्कें में अवश्य ही रखें।

    आजकल बाजारों में पक्षियों के लिए, लकड़ी से बने घर बिक रहे हैं, जिन्हें अपने घर के बाहर तथा किसी सुरक्षित स्थान पर लटकाया जा सकता है।

    गौरैया को कभी भी नमक का खाना नही खिलाना चाहिए क्योंकि नमक इनके लिए हानिकारक होता है।

    प्रजनन के समय गौरैया के अंड़ों की सुरक्षा की व्यवस्था अवश्य करें।

    आंगन और पार्कों में कनेर, नींबू, अमरूद, अनार, मेहंदी, बांस एवं चांदनी के जैसे पौधों को लगाना चाहिए।

गौरैया पक्षियों को बचाने के लिए शहर स्थित नानक चन्द कालेज के शिक्षकों के द्वारा पिछले 12 वर्षों से चलाया जा रहा अभियान अब रंग ला रहा है। इसके माध्यम से अब कालेज के आसपास काफी संख्या में गौरैया पक्षी नजर आने लगे हैं।

गौरैया बचाओ अभियान के अन्तर्गत गौरैया मित्र क्लब के तहत पिछले 12 वर्षों से गौरैया का संरक्षण किया जा रहा है। इस अभियान के तहत यह क्लब अभी तक हजारों लकड़ी से बने घर भी लोगों को बांट चुके हैं।

इन घरों का उपयोग अपने घर की छतों पर दाना रखने के लिए करते हैं और इस अभियान के तहत लोगों को गौरैया पक्षी के प्रति जागरूक भी किया जा रहा है। विभिन्न संगोष्ठियों के माध्यम से ‘‘सेव गौरैया, सेव लाइफ’’ नामक अभियान का संचालन भी किया जा रहा है।

गौरैया दिवस पर स्वयंसेवी संस्थाओं, प्रबुद्व नागरिकों एवं छात्रों आदि के सहयोग से जिले में गौरैया चिड़िया की गणना की जाएगी। प्रभागीय निदेशक सामाजिक वानिकी ने बताया कि 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस होने के कारण सुबह सात बजे से साय 7 बजे तक गणना की जाएगी।

अभी तक मिली है 1091 गौरैया

    विश्व गोरैया दिवस को लेकर वन विभाग की ओर से एक विशेष अभियान चलाकर गौरया पक्षियों की गिनती कराई जा रही है। अभी तक विभाग के पास 1091 गौरैया पक्षियों की तस्वीरें शहर के अलग-अलग स्थानों से लोगों के द्वारा प्रेषित की जा चुकी हैं।

    विश्व गौरैया दिवस के अवसर पर विभाग के द्वारा तमाम शहरवासियों से गौरैया को बचाने की अपील की गई है।

एक प्राकृतिक कीटनाशी है कॉफी

    ब्राजील के वैज्ञानिकों के द्वारा की गई एक खोज के अनुसार बगैर भुने कॉफी के दानें ‘प्राकृतिक कीटनाशी’ के समान कार्य करने में सक्षम हैं। कॉफी के बीज में पाये जाने वाले पदार्थ लंगुमिन में प्रोटीन 45 प्रतिशत तक होता है, जो पौधों को कीटों से बचा सकता है। विभिन्न प्रयोगों के माध्यम से सिद् हुआ है कि इस प्रोटीन की सूक्ष्म मात्रा भी कीटो का 50 प्रतिशत तक सफाया करने में पूर्ण रूप से सक्षम है।

    ब्राजील की यूनिवर्सिटी ऑफ कैम्पिनास के वैाानिक पाउलो मज्जीफेरा के नेतृत्व वाली टीम के द्वारा कॉफी की दो प्रजातियों, कॉफिया अरेबिका तथा कॉफिया रेसीमोसा की प्रोटीन का प्रयोग काऊपी वीविल के लार्वा को नष्ट करने में सफलतापूर्वक किया गया, और इससे बच जाने वाले लार्वा का वजन भी काफी कम हो गया।

    इस खोज के बाद अब वैज्ञानिक अब इस सम्भावना पर विचार कर रहे हैं कि इस पौधे के जीन को गेंहूँ एवं मक्के जैसी महत्वपूर्ण फसलों में समायोजित किया जाए जिससे इन फसलों के पौधे अपनी रक्षा स्वयं ही कर पाएं। इस प्रोटीन का सेवन करना मानव के लिए भी पूरी तरह से हानिरहित है और माइक्रोबियल कल्चर के माध्यम से इस प्रोटीन का भारी मात्रा में उत्पादन करना भी सम्भव होगा।  

प्राकृतिक हैं मोटे अनाजों की खेती

पूर्व काल में हमारे पूर्वज पूर्ण रूप से प्राकृतिक खेती ही किया करते थे जिसके अन्तर्गत मोटे अनाजों की भरपूर फसल हुआ करती थी और लोगों को पोष्टिक भोजन की प्राप्ति होती थी। परन्तु हरित क्रान्ति के दौर सं आरम्भ हुआ रासायनिक खेती के दौर के चलते किसानों के द्वारा मोटे अनाजों कीखेती से किनारा कर लिया गया।

अब किसान रायानिक खेती कर रहे हैं, जबकि अब सराकार का जोर मोटे अनाज की खेती पर अधिक है, ऐसा प्रतीत होता है कि अब प्राचीन खेती करने का समय वापिस आ गया है। मोटे अनाजों की खेती के प्रति किसानों को जागरूक करने के लिए अब सरकार विभिन्न योजनाएं ला रही है। किसान विभिन्न प्रकार की फसलों को उगाएं, जिससे उनकी आय में इजाफा हो सकेगा।

किसान अपने परिवार और बच्चों के लिए अपने खेतों में विभिन्न प्रकार के फलदार तथा छायादार वृक्षों का रोपण भी करें, इससे उन्हें स्वादिष्ट एवं पोष्टिक फल भी खाने को मिलेंगे।

यह फैंसला किसान स्वयं करे कि उन्हें अपनी उपलब्ध जमीन के किस हिस्से में कौन सी फसल उगानी है जिससे कि उन्हें अधिक आर्थिक लाभ प्राप्त हो सकेगा।

गो-आधारित कृषि से किसानों की आय हुई दोगुनी

जैविक कृषि ‘‘कृषक संगम’’ में तमिलनाडु से आए किसान राम स्वामी ने बताया कि वह अपनी 25 एकड़ भूमि पर पिछले दस वर्षों से गो-आधारित खेती करते चले आ रहे हैं, जिससे उनकी आय अब रायासायनिक खेती की अपेक्षा दोगुनी हो चुकी है।

इसी कार्यक्रम में कर्नाटक से आए एक किसान रमेश राजू ने बताया कि वह अपनी 20 एकड़ भूमि में विभिन्न प्रकार की खेती करते हैं, जो पूरी तरह से गो-आधारित एवं जैविक खेती ही होती है।

राजू बताया कि वह पिछले 20 वर्षों से नारियल, सुपारी, कॉफी, सन्तरा और आम सहित करीब तीन दर्जन फलों की खेती करते चले आ रहे हैं। वह अपनी इस जैविक खेती के माध्यम से ही लगभग 50 मजदूरों को प्रतिदिन रोजगार भी दे रहे हैं।

कार्यक्रम में ओडिशा से आए एक किसान ज्ञानेन्द्र नायक बताते हैं कि वह वर्ष 2002 से धान की खेती कर रहे हैं और अभी तक वह लगभग 10 किस्म के धान की पैदावार अपने खेतों में कर चुके हैं। जबकि पिछले 20 वर्षों से उन्होंने अपने खेतों में पेस्टीसाइड्स का प्रयोग नही किया है, जिससे उनकी भूमि की उर्वरता बढ़ने के साथ ही उनकी आय में भी पर्याप्त वृद्वि हुई है।

कार्यक्रम में आन्ध्र प्रदेश से आए किसान रामकृष्ण मूर्ति कहते हैं कि उनके यहाँ वर्षा बहुत कम होती है और वहां पर वृक्षों की संख्या भी बहुत कम है।

लेखकः डा0 आर. एस. सेंगर, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर और जैव प्रोद्योगिकी विभाग के अध्यक्ष हैं।