कृत्रिम बुद्धिमता (एआई) की उपयोगिता एवं हानियों के बीच करें प्रबंधन

                                              कृत्रिम बुद्धिमता (एआई) की उपयोगिता एवं हानियों के बीच करें प्रबंधन

                                                                                                                                                                      डॉ0 आर. एस. सेंगर

                                               

तकनीक और राजनीति की दुनिया के दिग्गजों ने उचित ही चेतावनी दी है कि अगर  कृत्रिम बुद्धिमत्ता को नियंत्रित नहीं किया जाए तो दुनिया के लिए भारी कठिनाईयाँ भी पैदा हो सकती हैं। इससे लोगों की गोपनीयता तो समाप्त होगी ही साथ ही मानव जीवन पर भी खतरा मंड़राने लगेगा। ब्रिटेन में कृत्रिम बुद्धिमत्ता शिखर सम्मेलन का आयोजन दरअसल इसके समाधान खोजने का एक सराहनीय प्रयास है। ऐसे शिखर सम्मेलन की लंबे समय से प्रतीक्षा की जा रही थी। कृत्रिम बुद्विमतता अर्थात आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) को लेकर चिंता लगातार बढ़ रही है। ब्रिटेन में आयोजित इस शिखर सम्मेलन की सबसे बड़ी कामयाबी यह है कि तकनीकी की दुनिया के तमाम दिग्गज इस जोखिम को कम करने के लिए तैयार भी दिखाई दिए।

                                                                 

एआई के विकास में सरकारों के साथ मिलकर काम करना जरूरी है जिससे कि कानून-कायदो के अंतर्गत ही इस नई तकनीक का विकास हो। यदि निजी कंपनियों में एआई के विकास को लेकर खुली प्रतिस्पर्धा छिड़ी तो यह मानवता को नुकसान पहुंचाने वाली होगी। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के विकास में लगे राजनेताओं को उनकी जिम्मेदारियों का अहसास करने में शिखर सम्मेलन सफल रहा है, जिससे भविष्य में आने वाली तकनीकों के न्याय अनुकूल होने की संभावनाएं भी काफी हद तक बढ़ गई है। क्योंकि इस शिखर सम्मेलन को यूरोप के विभिन्न नेताओं ने इसे गंभीरता से लिया है और इसमें अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने भी भाग लिया है इससे इस सम्मेलन के महत्व को समझा जा सकता है।

फ्रांस व जर्मनी के वित्त मंत्री, संयुक्त राष्ट्र के महासचिव अटॉर्नियों गुटेरेस, ब्रिटेन एवं इटली के प्रधानमंत्री, ऑस्ट्रेलिया के उप प्रधानमंत्री ने भी इसमें भाग लिया है। जबकि विशेष तो यह है कि चीन के नेता भी शिखर सम्मेलन में शामिल हुए हैं और तमाम राजनेताओं ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से जुड़े खतरों को पहचानने और उनके उचित समाधान पर जोर देने की बात कही है।

                                                                

आज पूरी दुनिया में एआई को लेकर एक साझा नीति का होना बहुत जरूरी है ताकि कोई भी देश या कंपनी इस अत्याधुनिक तकनीक का दुरुपयोग करने का दुस्साहस न कर सके। वास्तव में, यह अन्य तकनीकों की तरह नहीं, क्योंकि इंटरनेट से दुनिया पूरी तरह से जुड़ी हुई है, इसलिए एआई के विकास या उसके प्रभाव को किसी एक विशेष देश या क्षेत्र तक ही सीमित नहीं रखा जा सकता।

मान लीजिए कोई देश किसी हथियार विकसित करता है तो उससे खतरा सभी को नहीं हो सकता है, यदि वह देश अपनी सुरक्षा के लिए हथियार बनाए और सुरक्षित रखें। परन्तु आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीकी को किसी सीमा में बांधकर नही रखा जा सकता। ऐसे में वह एक बार भी कहीं इंटरनेट पर उपलब्ध हुई तो उसका सदुपयोग और दुरुपयोग करने वाले अनेक पैदा हो जाएंगे। अतः आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर निगरानी रखनी बहुत ही आवश्यक है।

                                                                 

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के मामले में केवल समान विचारधारा वाले देश का ही परस्पर सहमत होना पर्याप्त नहीं है अपितु इसके लिए सभी देशों की सहमती लेना भी आवश्यक है। यूरोप और अमेरिका जैसे देश ही आपस में मिलकर कोई तंत्र बनाएंगे तो केवल यही दुनिया के लिए प्रषप्त नहीं होगा। चूँकि डिजिटल दुनिया केवल विकसित या पश्चिमी देशों तक ही सीमित नहीं है।

ऐसे में ऋषि सुनक जैसे नेताओं को व्यापकता में सोचना चाहिए और केवल समान विचारधारा वाले देशों को ही साथ लेने के बजाय सभी देशों को साथ लेना चाहिए और सभी देशों को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के मोर्चे पर समान नीति के पालन के लिए पाबंद भी करना चाहिए। ऐसे में यह शिकायत करना भी वाजिब ही है कि इस तकनीक का फायदा चंद देशों को अधिक हुआ है और अब चूँकी इस तकनीक की उपलब्धता बहुत बढ़ गई है, तो कुछ देश आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी तकनीक पर अपना शिकंजा कसना चाहते हैं।

                                                           

अतः कंप्यूटर विज्ञान के क्षेत्र में विकसित देशों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के सदुपयोग का विस्तार किया जाए और दुरुपयोग पर पूर्णतः अंकुश लगाया जाए।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।