परली का प्रबंधन तथा वायु प्रदूषण के समाधान करने की आवश्यकता

                                                                परली का प्रबंधन तथा वायु प्रदूषण के समाधान करने की आवश्यकता

                                                                                                                                                                               प्रोफेसर आर एस सेंगर

                                                                    

इन दिनों देश में वायु प्रदूषण अपने चरम पर है और इसकी चर्चा जगह-जगह हो रही है और यह समस्या लगातार बढ़ती ही जा रही है, जिससे कमोबेश सभी जीव प्रभावित हैं। यह लोगों के बीच अमीरी गरीबी, मजहब जाति के आधार पर किसी के साथ कोई भेदभाव या कोई रियायत नहीं बरतता है, फिर भी सरकारी पहल से लेकर नागरिक जागरूकता तक, इसे लेकर एक अजीब सी उदासीनता ही दिखाई दे रही है। मगर फिर भी प्रदूषण की मार अहसाय लोगों पर अधिक पड़ती है, क्योंकि न तो वह एयर प्यूरीफायर जैसी आधुनिक महंगे उपायों की मदद ले सकते हैं और न ही बीमार पड़ने की पड़ने पर जरूरी स्वास्थ्य सेवाओं तक उनकी आसान पहुंच होती है।

ऐसे में एक लोक कल्याणकारी राज्य का यह प्राथमिक दायित्व बनता है कि वह ऐसे लोगों का ख्याल करें। सर्वोच्च न्यायालय इसी कसौटी पर इन राज्यों की पहल को मौजूद इस वायु प्रदूषण के बारे में कहा जा रहा है। हवा की धीमी रफ्तार और अधिक नमी की वजह से यह स्थिति लगातार बनी हुई है, परन्तु इस मौसम में तो हर साल यही स्थिति पैदा होती है और इस तथ्य से प्रशासन व नागरिक दोनों अब बहुत ही अच्छी तरह से वाकिफ है।

                                                     

इसके उपरांत भी यह समस्या लगातार बनी हुई है, तो यह सोचने की बात है कि हमारे पास इस बात के ठोस साक्ष्य मौजूद हैं कि दुनिया के कई देशों ने शासकीय पहल और नागरिकों के सहयोग से न सिर्फ अपने महानगरों की वायु गुणवत्ता में अपेक्षित सुधार किया है बल्कि कई देशों ने तो प्रदूषित नदियों को निर्मल करने में सफलता भी प्राप्त की है। हम अब तक पराली जलाने व निर्माण कार्यों पर खास अवधि में अपेक्षित रोक का तंत्र नहीं विकसित कर पाएं हैं। निःसन्देह विकास परियोजनाएं जरूरी होती है, मगर जब पता है कि हमारे कई शहर दुनिया के सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में गिने जा रहे हैं, तब भी क्या इस मोर्चे पर गंभीर पहल के लिए अदालती दखल की राह देखना कहाँ तक उचित है।

                                                                        

पिछले साल दिल्ली को देश में सबसे प्रदूषित शहर आंका गया था। इस लिहाज से अनुमान लगाईए कि यदि पटाखों पर रोक न लगी होती तो दीवाली व उसके बाद के दिनों में दिल्ली की आबो-हवा कैसी रहती। राज्य सरकारें निश्चित तौर पर सुप्रीम कोर्ट में अपने-अपने तर्कों व वाहनों के साथ कल्पना में दायर करेंगे। मगर यह मुद्दा दोषारोपण या बचाव का नहीं, अपितु सामूहिक प्रयास का है। 56 राज्यों की एक छोटी सी कोशिश घनी आबादी वाले महानगरों को चैन से सांस दे सकती है, तो उन्हें यह कोशिश अवश्य करनी चाहिए। जिससे कि लोग शहरों में रहते हुए एक उचित सांस ले सके और वायु प्रदूषण से होने वाले खतरों से अपना बचाव कर सके।

इन दिनों वायु प्रदूषण के चलते राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में रहने वाले लोग और उनमें भी खासकर सांस की बीमारियों से पीड़ित लोगों की जिंदगी दुश्वार हो गई है। ध्यान दीजिए विशेषज्ञ 50 अंकों तक वायु गुणवत्ता सूचकांक को अच्छा और साठ अंक तक के सूचकांक को संतोषजनक बताते हैं। मगर पिछले कई दिनों से दिल्ली और एनसीआर के क्षेत्र में लगातार वायु प्रदूषण बढ़ रहा है और इसका एक यूआई इंडेक्स 300 से भी अधिक दर्ज किया जा रहा है और आने वाले कुछ दिनों तक ऐसी ही स्थिति की आशंका जताई जा रही है।

                                                              

ऐसे में राजधानी के वायु प्रदूषण से जुड़े मामलों की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली और उसके पड़ोसी राज्यों से उचित ही पूछा है कि आखिर प्रदूषण कम करने के लिए उन्होंने कौन-कौन से कदम उठाए हैं। इसके सम्बन्ध में देश की सर्वोच्च अदालत ने दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और राजस्थान की सरकारों से एक हफ्ते में जवाब मांगा है। सरकार अदालत में तो अपना पक्ष रखती ही रहेगी लेकिन अब लोगों को चाहिए कि वह भी अपने-अपने स्तर से जागरूक हो और आने वाले दिनों में जो प्रदूषण बढ़ने की आशंका है उसके लिए एहतियाती कुछ ऐसे कदम उठाएं जिससे वायु प्रदूषण कम हो सके।

वायु प्रदूषण संबंधी जो भी कारण होते हैं उन सब पर आगे बढ़कर रोक लगाने का प्रयास करें तभी हम अपने जीवन को वायु प्रदूषण से सुरक्षित रख सकेंगे।

                                                       

पराली को जलाने की घटनाएं देश में अब लगातार कम हो रही है और इससे निपटने के लिए सरकारों के स्तर पर कई तरह के प्रयास किया जा रहे हैं। ऐसी फसल कटाई मशीनों पर सब्सिडी दी जा रही है जो पराली को मिट्टी के साथ ही मिला देती है। इससे मिट्टी की सेहत भी बनी रहती है, जिसका फायदा अगली फसल में किसानों को होता है। पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में इस तरह की काफी मशीन पहुंच चुकी है, लेकिन किसानों को समय पर यह मिल सके यह सुनिश्चित करना सरकार के सामने एक बड़ी चुनौती है। अतः हमें इस समस्या का हल पंचायत या समुदाय के स्तर पर ही खोजना होगा ताकि किसान इसका अधिक से अधिक इस्तेमाल कर सके। एक अन्य प्रयास परली के व्यावसायिक इस्तेमाल को लेकर भी किया जा रहा है। वायु प्रदूषण को रोकने के लिए वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग ने विशेष रूप से एनसीआर में स्थित उद्योगों में कोयला जैसे इन्धनों का इस्तेमाल को बंद करने और प्राकृतिक गैस एवं बायोमास का उपयोग अत्यधिक बढ़ाने की सलाह दी है। यह निर्देश बढ़ते औद्योगिक प्रदूषण के मद्देनजर दिया गया है।

                                                           

यह सुखद है कि कंपनियां इस दिशा में अपेक्षित प्रयास भी कर रही है और वह अब अपने यहां बायोमास का इस्तेमाल बढ़ाने लगी है, इसके लिए उनको परली की भी दरकार होती है। विद्युत उत्पादन कंपनियों को भी यही कहा गया है कि वह अपने काम से कम 10 फ्ट ईंधन की पूर्ति बायोमास से करें। बायो सीएनजी बनाकर ऊर्जा उत्पादन की बात है इन काम से पराली का व्यावसायिक इस्तेमाल भी बढ़ने लगा है और इसका दो तरफा लाभ हो रहा है एक तो हमारी हवा अपेक्षाकृत दूषित नहीं हो रही है क्योंकि बायोमास आज के समय में ऊर्जा का सबसे अच्छा स्रोत माना जाता है और फिर इससे किसानों की आमदनी भी बढ़ रही है और समृद्धि उनके दरवाजे पर आती है।

मगर मुश्किल यह है कि कई कंपनियां समय पर परली नहीं मिलने की शिकायत कर रही है और इस मसले के समाधान के लिए पूरे तंत्र की सहभागिता अति आवश्यक है। दरअसल भारत में खेती-बाड़ी का विस्तार काफी ज्यादा है दूर के इलाकों में खेत है इस कारण कंपनियों तक परली पहुंचना एक बड़ी चुनौती बन गई है।

ऐसे में पराली के भंडारण और उसकी ढुलाई में सरकारों को भी मदद करनी होगी। अगर किसानों के लिए भंडारण की पर्याप्त व्यवस्था की जाए और परली धुलाई का कोई उचित रास्ता निकाला जाए तो किसान उसे खेत में जलाने के बजाए बेचना ज्यादा पसंद करेंगे। इसके लिए जरूरी बुनियादी ढांचे का निर्माण होना चाहिए और इसके साथ ही इसमें निजी क्षेत्र की भी भागीदारी भी सुनिश्चित होनी चाहिए। यदि हमारे नौजवान चाहे तो पीपीपी सार्वजनिक निजी भागीदारी के माध्यम से परली को उद्योगों तक पहुंचाने की व्यवस्था में सक्रिय भागीदारी कर सकते हैं।

                                                            

परली जैसी समस्याओं का तत्काल समाधान होना भी बहुत जरूरी है क्योंकि अभी तो सर्दियों की शुरुआत ही हुई है। जब दिल्ली एनसीआर का तापमान ओर गिरेगा, तब पराली का यही धुंआ यहां बिल्कुल ठहर जाएगा और पूरा आसमान धुंध की चादर में लिपट जाएगा। यह स्थिति विशेष कर बुजुर्ग और सांस के रोग से पीड़ित मरीजों के लिए काफी खतरनाक हो जाती है। इसलिए राजनीतिक दोषारोपण करके अपने कर्तव्यों की इतिश्री नहीं की जानी चाहिए। सर्दियों के मौसम में पराली जलाने से लोग परेशान न हो किसके लिए केंद्र व राज्य सरकार द्वारा विभिन्न योजनाएं बनाई जा रही है और उनको लागू भी किया गया है।

इसमें पूंजी निवेश की विशेष जरूरत होती है जिसका हल भी सरकार द्वारा किया जा रहा है। अब यह प्रयास होना चाहिए कि इसके लिए निजी क्षेत्र को भी आगे आएं, जिससे कि पराली प्रबंधन और अच्छी तरह से किया जा सके।

समग्रता के साथ काम हो तो परली की समस्या का सार्थक नतीजा भी निकल सकता है। वैसे देखा जाए विगत वर्षों की अपेक्षा इस बार पराली प्रबंधन पर विशेष जोर दिया गया है और काफी हद तक इसका प्रबंधन भी किया जा रहा है। लेकिन अभी किसानों को और अधिक जागरूक करने की आवश्यकता है, जिससे पराली के द्वारा किसानों की आय भी बढ़ सके और पराली को जमीन में मिला देने से उसकी उर्वरकता भी बढ़ सके। इसके बारे में अधिक से अधिक किसानों तक तकनीक को पहुंचाने के लिए गम्भीर प्रयास करने होंगे।

                                                             

पूरे विश्व में वायु प्रदूषण में लगातार बढ़ोतरी हो रही है और वायु गुणवत्ता सूचकांक एक्यूआई के आधार पर दुनिया भर में आज का सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर लाहौर है तो वहीं दिल्ली चौथे स्थान पर है। लाहौर का एक्यूआई 279, बगदाद का 190, बीजिंग का 188 और दिल्ली का 186, ढाका का 159 रहा जो कि 30 अक्टूबर 2023 को दर्ज किया गया था।

वातावरण में बढ़ रहे हैं धुध के आसार

                                                                     

जैसे-जैसे प्रदूषण बढ़ता जा रहा है वातावरण में ढूंढ के आसार बढ़ते जा रहे हैं शांत हवा और प्रदूषकों को एक ही स्थान पर ठहरने से मेरठ की सांसों में सिर्फ धूल धुएं का गुब्बार बढ़ता जा रहा है। मेरठ में प्रदूषण का स्तर तीनों 10 पीएम एवं 2.5 pm का स्तर अब 350 से बढ़कर 436 pm तक पहुंच गया है। प्रदूषण में लगातार बढ़ोतरी हो रही है और फिलहाल प्रदूषण में राहत की उम्मीद नहीं है। मौसम विभाग के अनुसार दिन का तापमान में लगातार गिरावट हो रही है, और दिन का तापमान 29.1 और रात का तापमान 15.4 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड हुआ है, अधिकतम तापमान सामान्य जबकि रात का 2 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज हुआ है।

निजी एजेंसी स्काईमेट वेदर के अनुसार पहाड़ों पर सक्रिय पश्चिमी विक्षोभ आगे निकल चुका है। इससे मैदाने में आज से हवा में तेजी आ सकती है, लेकिन 7 नवंबर से एक बार फिर पश्चिमी विक्षोभ सक्रिय होने जा रहा है, जिसका असर 10 नवंबर तक रहेगा यानी इस अवधि में मैदानों में उत्तर पश्चिमी हवाओं का प्रवाह रुक जाएगा। इससे प्रदूषण में बढ़ोतरी होने की आशंका व्यक्त की जा रही है, दीपावली से ठीक पहले मौसम में यह बदलाव वायु प्रदूषण में तेजी से बढ़ोतरी कर सकता है।

एनसीआर में बढ़ रहा है प्रदूषण

                                                                 

सालों की मेहनत और करोड़ों रुपए वायु प्रदूषण के नाम पर खर्च करने के बाद भी वायु प्रदूषण को लेकर दिल्ली एनसीआर की स्थिति में ज्यादा सुधार नहीं हो सका है। हर साल सर्दियों का मौसम शुरू होते ही इसके ऊपर जहरीली हवा की एक गहरी धुंध छा जाती है। जैसे ही वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ता है कि एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगने शुरू हो जाते हैं। सच्चाई तो यह है कि दिल्ली एनसीआर में बढ़ाने वाले वायु प्रदूषण के सटीक और सही स्रोतों की अभी तक भी पहचान ही नहीं हो पाई है और सिर्फ कुछ मोटे-मोटे आंकड़ों के आधार पर हवा में तीर चलाए जा रहे हैं।

यह स्थिति तो तब है जब कि वायु प्रदूषण के खिलाफ पूरे देश में जंग शुरू होने से पहले दिल्ली एनसीआर सहित वायु प्रदूषण से घिरे सभी राज्यों को निगरानी यानी मॉनिटरिंग के लिए छोटे-छोटे क्षेत्र में सेंसर लगाने के लिए कहा गया था जो कि अभी तक बहुत कम ही लग पाए हैं।

                                                                

यदि इस समस्या से निपटना है तो निश्चित रूप से लोगों को स्वयं ही आगे आना होगा और वायु प्रदूषण के जो कारक हैं उन पर स्वयं ही नियंत्रण लगाना होगा तभी हम स्वस्थ सांस ले पाएंगे अन्यथा सांस की आफत लोगों के सामने बनी ही रहेगी।

लेखक: प्रोफेसर आर एस सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग एंड प्लेसमेंट सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय।