कुपोषण की चुनौती का सामना

                                                                        कुपोषण की चुनौती का सामना

                                                                                                                                    डॉ0 आर. एस. सेंगर, डॉ0 शलिनी गुप्ता एवं मुकेश शर्मा

                                                                   

वर्तमान दौर में दुनिया भर में खानपान की आदतों में भारी बदलाव के साथ ही शारीरिक गतिविधियों में कमी का रुझान स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है, इसके अलावा पर प्रसंस्कृत खाद्य और संतृप्त वसा, शर्करा एवं नमक युक्त चटपटे आहार की मांग में भी निरंतर बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। इसके विपरीत फाइबर युक्त खाद्य पदार्थों जैसे फल, सब्जियों, साबुत अनाज और दालों के सेवन में गिरावट देखी जा सकती है। आज भारत में भी शहरी एवं ग्रामीण आबादी में इस प्रकार की प्रवृत्ति में हाल के वर्षों में काफी तेजी आई है, निसंदेह इस प्रवृत्ति के कारण भी स्वास्थ्य एवं पोषण संबंधी समस्याएं बढ़ती ही जा रही हैं।

विश्व बैंक के द्वारा कराए गए एक अध्ययन में बताया गया है कि भारत में कुपोषण से होने वाले नुकसान की लागत कम से कम 10 अरब अमेरिकी डॉलर के आसपास है। इसके कारण उत्पादकता में कमी, रोग एवं अकाल मृत्यु के रूप में देश को भुगतना पड़ता है। समय के रहते इस चुनौती का सफलतापूर्वक सामना करना और देश के मूल मानव संसाधन की उत्पादकता के स्तर को बनाए रखना ही आज की एक बड़ी जरूरत बन गई है।

देश के ग्रामीण हिस्से में रहने वाली एक बड़ी आबादी के बीच पोषण के प्रति जागरूकता का प्रयास करना इस समस्या के समाधान में अत्यंत सार्थक भूमिका निभा सकता है। ग्रामीण स्तर पर ही उपलब्ध स्थानीय कृषि उत्पादों के पोषण महत्व की जानकारी उपलब्ध कराने तथा पारिवारिक स्तर पर उनका नियम पूर्वक सेवन करने से इस तस्वीर को आने वाले समय में बदला जा सकता है।

नए वर्ष में लौटेंगे मोटे अनाज के पुराने दिन

                                                                       

सरकार की पहल के चलते मोटे अनाज की खेती और उसके उपयोग की राहें और आसान तो हुई है। चालू वर्ष 2023 के ‘‘अंतरराष्ट्रीय मिनट्स वर्ष’’ के रूप में घोषित होने के साथ ही मोटे अनाज वाली फसलों के पुराने दिन एक बार फिर से लौटकर आएंगे। कई तरह की सीमाएं थी, जिन्हें दूर किया गया है, भारत सरकार के द्वारा। इससे इस वर्ग की फसलों की खेती को जहां उत्पादन करने को बल मिलेगा, वहीं उपभोक्ताओं तक इसे पहुंचाने में आसानी भी होगी। मिलेट्स फूड फेस्टिवल के माध्यम से मोटे अनाजों की पहुंच अब आम लोगों से खास लोगों तक होने लगी है।

पोषक तत्वों से भरपूर होने के उपरांत भी यह अनाज को खाने में लोग बहुत कम रुचि लेते थे, क्योंकि इन्हें गरीबों का आाहर माना जाता का और अधिकतर खेतिहर मजदूर, मजदूरी करने वाले तथा लघु एवं सीमांत किसान ही इनका सेवन करते थे। लेकिन आज इन मोटे अनाजों की मांग आशा के अनुरूप बढ़ी है और अब यह शहरों, फाइव स्टार होटलों और देश-विदेश में लोग इनकी चपाती और इससे बने हुए व्यंजनों को बहुत पसंद करने लगे हैं। पहले इस वर्ग के अनाजों की खपत केवल खेतिहर मजदूरों और मजदूरी करने वाले लोगों तक ही सीमित थी और सरकार की नजरों से भी इन फसलों को कोई बहुत तरजीह नहीं मिल पाती थी।

सरकार की तरफ से न तो इन अनाजों का बेहतर न्यूनतम समर्थन मूल्य मिल पाता था और ना ही सरकारी खरीद में इन अनाजों को प्राथमिकता दी जाती थी। ऐसे में जहां-तहां इनकी खरीद होती भी थी तो उसे महज 3 महीनों के भीतर ही इन्हें राशन प्रणाली के तहत बांटने की अनिवार्यता भी होती थी। इससे स्थानीय स्तर पर लोग इन अनाजों की खरीद करने से कतराते थे परन्तु अब सरकार की पहल से इनके रास्ते में आने वाली सारी कठिनाइयों को दूर कर दिया गया है।

अब मोटे अनाजों की फसलों का मिलता है अच्छा मूल्य

                                                                  

पिछले कुछ वर्षों के दौरान इन मोटे अनाजों की फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। इसी तरह से इन फसलों की सरकारी खरीद को भी प्रोत्साहित करने के लिए राज्यों को विशेष रियायत दे दी गई है। इन रियायतों के अन्तर्गत 3 महीने के भीतर इन मोटे अनाजों के वितरण की अनिवार्यता को समाप्त कर इसे 6 से 10 महीने तक कर दिया गया है।

केंद्रीय पूल में जिन अनाजों की खरीद का लक्ष्य पिछले साल यानि कि वर्ष 2021 के 6.5 लाख टन के मुकाबले वर्ष 2022 में दुगना कर 1300000 टन कर दिया गया है। इन फसलों को अब खुले बाजार में भी अच्छा मूल मिलने लगा है। यदि हम मिलेट्स की बात करें तो मिलेट का आटा बाजार में ₹90 से लेकर ₹100 प्रति किलोग्राम तक बेचा जा रहा है। बाजरे का आटा भी अब ₹40 से लेकर ₹50 तक बाजार में उपलब्ध है। इसी प्रकार जौ का आटा भी बाजार में ₹40 से लेकर ₹50 तक बेचा जा रहा है। रागी का आटा भी मार्केट में अब ₹70 से ₹80 और कहीं-कहीं तो यह ₹100 से ऊपर भी बेचा जा रहा है

बढाया गया मोटे अनाज के उत्पादन का लक्ष्य

                                                                   

केंद्र सरकार ने चालू खरीफ सीजन में 30 नवंबर 2022 तक देश के 7 राज्यों हरियाणा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात और तमिलनाडु के निर्धारित लक्ष्य 13,00,000 टन से ज्यादा मोटे अनाज की खरीद कर ली है जबकि यह लक्ष्य पूरे साल के लिए निर्धारित है। चालू फसल वर्ष के दौरान 2.88 करोड़ टन मोटे अनाज के उत्पादन का लक्ष्य मोटे अनाज की खेती के लिए नेशनल फूड सिक्योरिटी मिशन के तहत देश के 14 राज्यों के चिन्हित 212 जिलों में पोषक फूड उप मिशन लागू किया गया है। इन जिलों के किसानों को उन्नत प्रजाति के बीजों की आपूर्ति के हर संभव इनपुट उपलब्ध कराया जा रहा है। इसके तहत पोस्ट हार्वेस्ट इन की सुविधा और फूड प्रोसेसिंग तक की सहूलियत मुहैया कराई जा रही है जिससे किसानों को अधिक से अधिक लाभ मिल सके।

अकेले भारत में ही होती है 40 प्रतिशत मोटे अनाज की खेती

                                                                              

यदि मिलेट्स की खेती को विश्व स्तर पर देखा जाए तो मोटे अनाज की खेती करने वाले बहुत ही कम देश हैं। अंतरराष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष घोषित होने के साथ ही इस दिशा में पूरी दुनिया की नजर इन अनाजों की पौष्टिकता पर आई है। प्रारंभिक तौर पर इन फसलों की खेती एशिया और अफ्रीकी देशों में होती थी, जो कि धीरे-धीरे पूरी दुनिया में पहुंच गई है। हालांकि, अभी भी इन फसलों की 40 प्रतिशत खेती भारत में ही की जाती है। दुनिया के दूसरे देशों में इसकी मांग होने का लाभ भारतीय किसानों को मिल सकता है। भारत सरकार की नजर घरेलू किसानों को इन फसलों का बेहतर मूल्य दिलाने पर है। अंतर्राष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष 2023  घोषित हो जाने के बाद भारतीय किसान भी अब इसकी ओर आकर्षित होंगे और वह इन अनाजों की खेती करके अपनी आय को बढ़ा सकते हैं।

प्रधानमंत्री का सांसदों से आवाहन पोषक अनाज स्वयं खाएं और प्रचार भी करें

                                                                          

संयुक्त राष्ट्र के द्वारा वर्ष 2023 को अंतरराष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष घोषित किए जाने की बात कहते हुए प्रधानमंत्री से नरेंद्र भाई मोदी ने अपनी पार्टी के सांसदों से पोषक अनाज खाने और इसका व्यापक प्रचार-प्रसार करने का आवाहन भी किया है। संसदीय दल की बैठक को संबोधित करते हुए पीएम ने इसे देश के किसानों के लिए एक बड़ा अवसर बताया। व्यापक प्रचार-प्रसार के लिए कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने संसद भवन परिसर में ही विशेष कदन्न भोजन की मेजबानी दिनांक 20 दिसंबर 2022 को की थी। प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत ने स्वास्थ्य विश्व की परिकल्पना के तहत संयुक्त राष्ट्र से मोटा अनाज वर्ष घोषित करने की अपील की थी और भारत का यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया। अगर दुनिया में पोषक अनाज का चयन बढ़ता है तो इससे ना सिर्फ लोगों के स्वास्थ्य पर अनुकूल प्रभाव पड़ेगा बल्कि इसका व्यापक लाभ भारत के किसानों को भी मिल सकेगा।

प्रधानमंत्री ने कहा कि इस मामले में सांसदों की अपनी प्रेरक भूमिका निभानी होगी। पोषक अनाज के प्रति लोगों की रूचि बढ़ाने के साथ किसानों को इसकी खेती से होने वाले लाभ के बारे में भी बताया जाना चाहिए।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।