गेहूं का रिकॉर्ड उत्पादन होने का अनुमान

                                                                                            गेहूं का रिकॉर्ड उत्पादन होने का अनुमान

                                                                                                                                                 डा0 आर. एस सेंगर एंव सहयोगी मुकेश शर्मा

कृषि मंत्रालय को 2022-23 फसल वर्ष में रिकॉर्ड 11 करोड़ 21.8 टन गेहूं उत्पादन का अनुमान है, गेहूं उत्पादन को लेकर विभिन्न राज्यों के कृषि विश्वविद्यालय एवं कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा कराए गए सर्वेक्षण में भी रिकार्ड उत्पादन की बात कही गई है। मध्य प्रदेश बिहार राजस्थान एवं गुजरात समेत कई राज्यों में गेहूं का रकबा भी बढ़ा है, यहां फसल भी अच्छी है वर्ष 2021 में देश में गेहूं उत्पादन का अनुमान 10 करोड़ 95.9 लाख टन था,  किंतु होली के बाद प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों में अचानक गर्मी बढ़ने के चलते 10 करोड़ 77 .4 लाख टन उत्पादन हो सका था।

गर्मी से बच्ची तो बारिश की चपेट में आ सकती है गेहूं की फसल:

गेहूं उत्पादक राज्यों में आंधी पानी पर मौसम विभाग की चेतावनी ने बढ़ाई किसानों की चिंता-

अगले तीन-चार दिनों तक गेहूं के प्रमुख उत्पादक समेत कई राज्यों में आंधी पानी की मौसम विभाग की चेतावनी ने गेहूं किसानों की चिंताएं बढ़ा दी हैं। 3 दिन पहले तक चढ़ते तापमान को गेहूं के लिए खतरा बताया जा रहा था, अब आंधी, पानी से नुकसान होने की आशंका जताई जा रही है।

स्पष्ट है कि किसानों के सामने दो तरफा चुनौती है हालांकि कृषि मंत्रालय ने उच्च तापमान का गेहूं की फसल पर किसी तरह के असर से इनकार किया है और आंधी बारिश से क्षति का अभी कोई आंकलन नहीं किया गया है।

हालांकि कृषि वैज्ञानिक का मानना है कि इस मौसम में गर्मी से ज्यादा आंधी बारिश से गेहूं की फसल को नुकसान हो सकता है। पंजाब, हरियाणा, मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में गेहूं की फसल तैयार होने की स्थिति में है और इन्हें ज्यादा खतरा है। कटाई के लायक फसलों को खेत से लेकर खलियान तक लाने में क्षति उठानी पड़ सकती है। आंधी बारिश से खेतों में खड़ी फसल गिर सकती है दानें काले पड़ सकते हैं और अत्यधिक बारिश हुई तो उनमें अंकुरण भी आ सकता है।

उत्तर भारत में बदल सकता है मौसम कई जगह हो सकती है ओलावृष्टि

उत्तर भारत के ज्यादातर हिस्सों में मौसम में अधिक बदलाव नजर आ रहा है पंजाब के गुरदासपुर व पठानकोट में बुधवार रात बारिश के साथ ओले पड़ने के कारण खेतों में गेहूं की फसल बिजली तो राजस्थान व उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में हल्की बरसात हुई।

अगले 5 दिन तक दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में अधिकांश रूप से बादल छाए रहने और वर्षा होने का पूर्वानुमान है। 20 और 21 तारीख को तेज जबकि बाकी दिन हल्की वर्षा हो सकती है।

क्लाइमेट वेदर के अनुसार मौसम में इस बदलाव के लिए तीन कारक जिम्मेदार हैं, पहाड़ों पर पश्चिमी विक्षोभ सक्रिय है तो राजस्थान से एक लक्ष्य रेखा महाराष्ट्र की ओर बढ़ रही है।

इसके अलावा निचले स्तर पर चल रही नमी भरी हवाओं और मध्यम स्तर पर बह रही शुष्क पश्चिमी हवाओं का टकराव भी मौसम में आए इस बदलाव की एक बड़ी वजह है।

इन आगामी 5 दिनों के दौरान गर्मी से थोड़ी राहत रहेगी तापमान में कुछ गिरावट आएगी। खराब मौसम की संभावना को देखते हुए किसानों को गेहूं की फसल की सिंचाई नहीं करने की आवश्यकता है क्योंकि अधिक पानी हो जाने पर फसल के गिरने की संभावना रहेगी।

                                                                         कार्य -क्षमता को बढ़ाने के लिए आंख पर पट्टी बांधकर सोए

एक अध्ययन में पाया गया है कि आंख पर पट्टी बांधकर सोने से मस्तिष्क की कार्य क्षमता बढ़ जाती है, इससे खिड़की आदि के जरिए आप पर पड़ने वाले प्रकाश को रोकने में भी मदद मिलती है इससे नींद में कोई व्यवधान पैदा नहीं होता है और नींद शांत प्रिय लंबी होती है।

 मस्तिष्क को राहत मिलती है रात में भरपूर नींद से मस्तिक से तेज होता है और वह सूचनाओं को तेजी से ग्रहण करता है।

स्लीप जनरल में प्रकाशित अध्ययन में बताया गया है कि आई मास्क के या आंख पर पट्टी पहनकर सोने से हमारी याददाश्त और सजगता बढ़ती है। कार्डिफ़ यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ़ साइकोलॉजी से जुड़ी व शोध की लेखक ने बताया कि आई मास्क के कैसे हमारी मदद करते हैं।

इसे समझने के लिए टीम ने 2 तरह के प्रयोग किए पहले प्रयोग में 18 से 35 वर्ष की उम्र के ऐसे 94 लोगों को शामिल किया जिन्होंने रात को सोते समय आई मास्क पहने और दूसरा प्रयोग उसी आयु वर्ग के ऐसे 35 लोगों पर किया गया जिन्होंने आई मास्क का प्रयोग नहीं किया।

शोध में पाया गया कि जिन लोगों ने आई मास्क का प्रयोग किया था उनकी कार्यक्षमता में बढ़ोतरी हुई और वे अपने आप को और अधिक फ्रेश महसूस करने लगे।

                                                                    फूल से लदे आम के बाग किसानों को है फल की आस

इस बार पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आम के बाग फूलों से लगे हुए हैं पेड़ पर गौर से लदे गुच्छे नजर आ रहे हैं। इतना सब कुछ है फिर भी बागान के माथे पर चिंता की लकीर है।

किसानों का कहना है कि वो तो काफी अच्छे दिखाई दे रहे हैं लेकिन अब तक इनमें आम नहीं बैठ रहे हैं अगर आम ना आए तो हमारे हाथ खाली रह जाएंगे। ऐसा हो रहा है ज्यादातर पश्चिम उत्तर प्रदेश के आम पट्टी के क्षेत्र में।

वहीं दूसरी ओर मौसम विभाग ने भविष्यवाणी की है कि आगामी 20 से 21 मार्च तक बारिश होगी साथ ही कहीं-कहीं ओला पड़ने की संभावना है। यदि ओला पड़ते हैं तो निश्चित रूप से आम पर लगे बोर झड़ जाएंगे और आम का उत्पादन प्रभावित होगा।

आम के पेड़ों में सामान्य रूप से 15 जनवरी के बाद से बोर आने लगते हैं जिन पेड़ों पर उगते सूरज की रोशनी अच्छी पड़ती है उनमें बार पहले आते हैं और जो अस्त होते सूर्य के सामने पढ़ते हैं। उनमें बहुत देरी से आते हैं और आने के बाद 10 मार्च तक मटर के दानों के आकार के आम पेड़ों पर आने लगते हैं लेकिन अभी तक ऐसा नहीं हो सका है। इसका कारण शायद पुरवाई से आज और पछुआ हवाओं ने किसानों की आस तोड़ दी है।

अनुज त्यागी बताते हैं की परागण ना होने से आम आई नहीं है वजह यह कि पुरवाई हवा नहीं चली पुरवाई चलती है तो परागण प्रक्रिया आसानी से हो जाती है इस बार केवल पछुवा हवा चली जिसने सारा खेल बिगाड़ दिया है।

दरअसल पछुआ हवाएं गर्म होती है जो बोर को नुकसान पहुंचाती हैं इसके उलट पुरवाई फलों को बढ़ने में सहायक होती है। एक और कारण है कि इस बार परागण वाले की भी कम दिखाई दे रहे हैं। यह कीट जब ज्यादा हो जाते हैं तब छिड़काव करके उनसे छुटकारा पाया जा सकता है लेकिन स्वीट आते ही नहीं तब तो और नुकसान हो जाता है।

प्रगतिशील किसान मनोहर सिंह तोमर ने बताया कुछ प्रजातियां ऐसी हैं जहां के बोर में फल आ तो रहे हैं लेकिन दशहरी आम पर कम फल दिखाई दे रहे हैं। जिससे चिंता है यदि यदि आंधी तूफान और ओले नहीं पढ़े तो आम का उत्पादन ठीक हो सकता है।

कृषि विश्वविद्यालय के प्रोफेसर आर एस सेंगर ने बताया की बोर आने के बाद भी फल ना बनने के दो प्रमुख कारण हैं। पहला गर्मी का तेजी से बढ़ना जिन पेड़ों में देरी से बार आए वह गर्मी में सूख जा रहे हैं, दूसरी कारण है कि जरूरत से ज्यादा छिड़काव कुछ बागवान और आते ही कीटनाशकों का अत्यधिक छिड़काव कर देते हैं।

इससे प्रांगण को यानी परागण करने वाले किट्टू मक्खियों की संख्या बहुत कम हो जाती है उसका दुष्परिणाम होता है कि परागण हो नहीं पाता और फल नहीं आ पाते क्योंकि फलों की प्रक्रिया के लिए जरूरी है कि जो मित्र कीट हैं।

वह बागानों में उपलब्ध होने चाहिए जिससे अच्छा परागण होता है और फल भी अच्छे बनते हैं हालांकि भगवान कहते हैं कि इस बार कीटनाशकों का ज्यादा छिड़काव किया ही नहीं गया।

प्रगतिशील किसान मनोहर सिंह तोमर का कहना है कि इस बार पाला पढ़ने की वजह से कीट अधिक नष्ट हो गए हैं इसलिए परागण नहीं हो सका परागण नहीं हो रहा है।

वैज्ञानिकों को इस पर शोध करके उसके कारण और उसके लिए एडवाइजरी देनी चाहिए जिससे किसान अपने बागों से अच्छा उत्पादन ले सकें।

क्या करें उपाय

जिन बागों में फलत अच्छी है और अच्छे हैं उन भागों में हल्की सिंचाई करते रहें इससे वहां नमी बनी रहेगी अगर सिंचाई सुबह के समय की जाए तो ज्यादा लाभदायक साबित होगी।

अगर नमी रही तो बढ़ते तापमान का असर कम पड़ेगा और फल आने की उम्मीद भी बढ़ जाएगी।

लगभग 80% आम के बागों में आए हैं बोर

2.64 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में पूरे प्रदेश में होता है आम उत्पादन

45 लाख मैट्रिक टन टन उत्पादन है आम का

15 आम फल पट्टी वाले जिले हैं प्रदेश के 13 जिलों में जिनमें मेरठ, बुलंदशहर, सहारनपुर, लखनऊ, अयोध्या, सीतापुर, हरदोई, बाराबंकी, उन्नाव, प्रतापगढ़, वाराणसी, बागपत, अमरोहा जिले शामिल है।

30,000 हेक्टेयर क्षेत्रफल में लखनऊ फल पट्टी का क्षेत्र आम के अंतर्गत आता है। इस फल पट्टी में माल मलिहाबाद, काकोरी व बख्शी का तालाब शामिल है। इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा आम दशहरी पैदा होता है।

                                                                                              रसोई गैस जलाने से बढ़ता है प्रदूषण

रसोई गैस सेहत के लिए खतरनाक है ऑस्ट्रेलिया की न्यू साउथ वेल्स यूनिवर्सिटी में हुए एक अध्ययन में यह जानकारी सामने आई है कि अब एलपीजी गैस का विकल्प खोजने का वक्त आ गया है।

लगातार ऐसे सबूत आ रहे हैं कि खाना बनाने का यह तरीका सेहत के लिए ठीक नहीं है और पर्यावरण के लिए भी खतरनाक है। अध्ययन की लेखक प्रोफेसर ग्रीन कहती हैं कि रसोई गैस से होने वाले प्रदूषण को लेकर चिंतित होना आवश्यक है।

प्रोफेसर ग्रीन के मुताबिक जब आप गैस जलाते हैं तो असल में आप मीथेन गैस को जला रहे होते हैं जिससे जहरीले योगिक बनते हैं। रसोई गैस में मीथेन मुख्य अवयव होता है जो जलने पर उस्मा यानी गर्मी प्रदान करता है।

इससे नाइट्रोजन और ऑक्सीजन मिलकर नाइट्रो ऑक्साइड बनाते हैं तो प्रोफेसर ग्रीन कहती है कि इससे दमा और अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा होती हैं बार बार चक्कर और सिर दर्द लोगों को होने लगता है।

अध्ययन में शामिल पर्यावरण रोगों के विशेषज्ञ डॉक्टर किसटीन कोवी कहती हैं कि रसोई गैस से दूरी जरूरी है। हमें जीवाश्म ईधनो को जलाने को रोकना चाहिए और गैस भी उनमें शामिल है।

 इससे कई तरह के प्रदूषक तत्वों का उत्सर्जन होता है डॉक्टर कोवी बताती हैं कि जब गैस चूल्हा जलता है तो असल में आप जीवाश्म ईंधन ही जला रहे हैं।

जिसमें कार्बन मोनोऑक्साइड नाइट्रस ऑक्साइड और फॉर्म एल्डिहाइड भी बन सकते हैं कार्बन मोनो ऑक्साइड के उत्सर्जन से हवा में ऑक्सीजन कम होती है और खून में भी ऑक्सीजन नष्ट होती है। इससे आपको सिर दर्द और चक्कर आने जैसी समस्याएं हो सकती हैं।

                                                                       अमेरिका में बढ़ रहे हैं दमे के मामले

एनवायरमेंट साइंस और टेक्नोलॉजी जनरल में छपे अध्ययन में पाया गया है कि अमेरिका में कई बच्चों में दमा होने के मामलों से 12 पॉइंट 7% यानी हर 8 में से एक मामले में वजह रसोई गैस से हुआ उत्सर्जन है।

अमेरिका में रसोई गैस से जितना कार्बन उत्सर्जन होता है वह 5,00,000 कारों से होने वाले उत्सर्जन के बराबर है यह एक चिंता का विषय है।

भारत में क्या है स्थिति

भारत में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा एलपीजी उपभोक्ता देश है यहां 2021 तक करीब 28 करोड़ एलपीजी कनेक्शन थे। इनमें हर साल 15% की बढ़ोतरी हो रही है पेट्रोलियम मंत्रालय के अनुसार 2040 तक एलपीजी उपभोक्ता बढ़कर 4.06 करोड तक पहुंच जाएगा।

भारत में एलपीजी में प्रोपेन गैस का प्रयोग होता है इससे जलने से खतरनाक बेंजीन गैस निकलती है यह गैस निकलती तो है लेकिन इसकी मात्रा अमेरिका और यूरोप में प्राकृतिक गैस से निकलने वाली बेंजीन के मुकाबले कम रहती है।

इस पर अध्ययन करने की आवश्यकता है कि मानव स्वास्थ्य के लिए यह बेंजीन गैस जो घरेलू चूल्हे से निकल रही है उसका क्या प्रभाव पड़ता है।

शोध पर आधारित नतीजों से ही कहा जा सकता है कि भारतीय गैस जो घर में जलाई जा रही है वह घर के लिए कितनी नुकसानदायक है।

रसोई गैस जलाने से बढ़ता है प्रदूषण

रसोई गैस सेहत के लिए भी हानिकारक है, ऑस्ट्रेलिया की न्यू साउथ वेल्स यूनिवर्सिटी में हुए एक अध्ययन में यह जानकारी सामने आई है कि अब एलपीजी गैस का विकल्प खोजने का समय आ गया है क्योंकि लगातार ऐसे साक्ष्य सामने आ रहे हैं कि खाना बनाने का यह तरीका सेहत के लिए ठीक नहीं है और पर्यावरण के लिए भी खतरनाक है। अध्ययन की लेखक प्रोफेसर दोना ग्रीन कहती हैं कि रसोई गैस से होने वाले प्रदूषण को लेकर चिंतित होना आवश्यक है। प्रोफेसर ग्रीन के अनुसार, जब आप गैस जलाते हैं तो असल में आप मीथेन गैस को जला रहे होते है, जिससे जहरीले योगिक बनते हैं। रसोई गैस में मीथेन गैस एक मुख्य अवयव होता है, जो जलने पर उस्मा यानी गर्मी प्रदान करता है। इससे नाइट्रोजन और ऑक्सीजन मिलकर नाइट्रो ऑक्साइड बनाते हैं तो ऑफिसर बीन कहती है कि इससे दमा और अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा होती हैं। बार-बार चक्कर आना और सिर दर्द लोगों को होने लगता है। अध्ययन में शामिल पर्यावरण रोगों के विशेषज्ञ डॉक्टर किसटीन कोवी कहती हैं कि रसोई गैस से दूरी जरूरी है। हमें जीवाश्म ईधनो को जलाने को रोकना चाहिए और गैस भी उनमें शामिल है इससे कई तरह के प्रदूषक तत्वों का उत्सर्जन होता है। डॉक्टर कोवी बताती हैं कि जब गैस का चूल्हा जलता है तो असल में आप जीवाश्म ईंधन ही जला रहे होते हैं, जिसमें कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड और फॉर्म एल्डिहाइड भी बन सकते हैं। कार्बन मोनो ऑक्साइड के उत्सर्जन से हवा में ऑक्सीजन कम होती है और खून में उपस्थित ऑक्सीजन भी नष्ट होती है इससे आपको सिर दर्द और चक्कर आने जैसी समस्याएं हो सकती है।

अमेरिका में बढ़ रहे हैं दमे के मामले

एनवायरमेंट साइंस और टेक्नोलॉजी जनरल में छपे अध्ययन के माध्यम से ज्ञात हुआ है कि अमेरिका में कई बच्चों में दमा होने के मामलों से 12.7 प्रतिशत यानी प्रति 8 में से एक मामले में वजह रसोई गैस से हुआ उत्सर्जन होता है। अमेरिका में रसोई गैस से जितना कार्बन उत्सर्जन होता है वह 5,00,000 कारों से होने वाले उत्सर्जन के बराबर होता है जो एक चिंता का विषय है।

भारत में क्या है स्थिति

भारत में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा एलपीजी उपभोक्ता देश है। यहाँ 2021 करीब 28 करोड़ एलपीजी कनेक्शन थे और इनमें प्रतिवर्ष 15 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो रही है। पेट्रोलियम मंत्रालय के अनुसार वर्ष 2040 तक एलपीजी उपभोक्ताओं का आँकड़ा बढ़कर 406 करोड तक पहुंच जाएगा। भारत में एलपीजी में प्रोपेन गैस का प्रयोग होता है इससे जलने से खतरनाक बेंजीन गैस निकलती है। यह गैस निकलती तो है लेकिन इसकी मात्रा अमेरिका और यूरोप में प्राकृतिक गैस से निकलने वाली बेंजीन के मुकाबले कम रहती है।

    इस पर अध्ययन करने की आवश्यकता है कि मानव स्वास्थ्य के लिए यह बेंजीन गैस जो घरेलू धूएं से निकल रही है उसका क्या प्रभाव पड़ता है। शोध पर आधारित नतीजों से ही कहा जा सकता है कि भारतीय गैस जो घर में जलाई जा रही है, वह घर के लिए कितनी हानिकारक है।